धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के सामने क्या-क्या चुनौतियाँ हैं ? (250 words) [UPSC 2019]
धर्मनिरपेक्षता के भारतीय रूप में सहिष्णुता, सम्मिलन, और बहुलता के तत्त्व धर्मनिरपेक्षता का भारतीय रूप: धर्मनिरपेक्षता का भारतीय दृष्टिकोण सहिष्णुता, सम्मिलन, और बहुलता के मूल तत्वों पर आधारित है, जो भारत की विविधता को स्वीकार करने और सभी धार्मिक मान्यताओं को समान मान्यता देने के सिद्धांतों पर जोर देRead more
धर्मनिरपेक्षता के भारतीय रूप में सहिष्णुता, सम्मिलन, और बहुलता के तत्त्व
धर्मनिरपेक्षता का भारतीय रूप:
धर्मनिरपेक्षता का भारतीय दृष्टिकोण सहिष्णुता, सम्मिलन, और बहुलता के मूल तत्वों पर आधारित है, जो भारत की विविधता को स्वीकार करने और सभी धार्मिक मान्यताओं को समान मान्यता देने के सिद्धांतों पर जोर देते हैं।
सहिष्णुता:
- धार्मिक सहिष्णुता: भारत में विभिन्न धर्मों के बीच सहिष्णुता की परंपरा रही है, जो धार्मिक सह-अस्तित्व को बढ़ावा देती है। मंगल पांडे से लेकर महात्मा गांधी तक, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ने धार्मिक सहिष्णुता को प्रमुखता दी। हाल के वर्षों में, उदारीकरण और सुधार के दौर में भी यह सहिष्णुता जारी रही है, जैसे आयोध्या विवाद में समाधान की प्रक्रिया में विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों के बीच समझौता और संवाद।
- सामाजिक समरसता: भारत में विभिन्न धार्मिक समूहों और जातियों के बीच सामाजिक समरसता बनाए रखने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। उदाहरण के लिए, गांधीजी की सविनय अवज्ञा आंदोलन में धार्मिक एकता और समानता को बढ़ावा देने के लिए विशेष ध्यान दिया गया।
सम्मिलन:
- संविधान में सम्मिलन: भारतीय संविधान ने धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाया है, जो सभी धर्मों को समान मान्यता देने और राज्य को किसी भी धार्मिक विश्वास में हस्तक्षेप न करने का निर्देश देता है। धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा संविधान की धारा 15 और 25 में स्पष्ट रूप से परिभाषित की गई है।
- सांस्कृतिक सम्मिलन: भारत में विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के सम्मिलन की एक लंबी परंपरा रही है। कृष्ण जन्माष्टमी और ईद जैसे त्योहारों को विभिन्न धार्मिक समूह एक साथ मनाते हैं, जो सांस्कृतिक सम्मिलन को दर्शाता है।
बहुलता:
- धार्मिक बहुलता: भारत में विभिन्न धर्मों की बहुलता है, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, और ईसाई जैसे धर्म शामिल हैं। यह बहुलता भारतीय समाज की विविधता और सह-अस्तित्व को दर्शाती है।
- संस्कृतिक विविधता: भारतीय समाज में भाषाओं, जातियों, और संप्रदायों की बहुलता देखने को मिलती है। नार्थ-ईस्ट भारत के राज्य जैसे मणिपुर और मिज़ोरम विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक समूहों का घर हैं, जो भारतीय बहुलता को दर्शाते हैं।
निष्कर्ष:
धर्मनिरपेक्षता का भारतीय रूप सहिष्णुता, सम्मिलन, और बहुलता के सिद्धांतों पर आधारित है। ये तत्त्व भारतीय समाज की विविधता और एकता को बनाए रखने में सहायक हैं और धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को गहराई प्रदान करते हैं।
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धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सांस्कृतिक प्रथाओं की चुनौतियाँ परिचय: भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जिसका अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण रखता है और धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करता। हालांकि, इस धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के सामने कई चुनौतियाँ उत्पन्न होतीRead more
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सांस्कृतिक प्रथाओं की चुनौतियाँ
परिचय: भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जिसका अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण रखता है और धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करता। हालांकि, इस धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के सामने कई चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं। ये चुनौतियाँ विभिन्न सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोणों से उभरती हैं, जो सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखने की जटिलताओं को दर्शाती हैं।
सांस्कृतिक प्रथाओं पर चुनौतियाँ:
हाल की घटनाएँ: हाल ही में, “गैर-मुस्लिम परंपराओं की कानूनी मान्यता” जैसे मुद्दे भी उभरे हैं, जहां धार्मिक या सांस्कृतिक प्रथाओं को संविधान के अनुसार सुरक्षित रखने की कोशिश की जा रही है, लेकिन इससे विवाद और टकराव की स्थिति भी पैदा होती है।
निष्कर्ष: धर्मनिरपेक्षता और सांस्कृतिक प्रथाओं के बीच संतुलन बनाए रखना एक जटिल चुनौती है। यह आवश्यक है कि हम धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करें, जबकि संविधान और कानूनी दृष्टिकोण की सीमाओं का भी सम्मान करें। सांस्कृतिक संवाद और धार्मिक सहिष्णुता के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान खोजा जा सकता है।
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