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धर्मनिरपेक्षता पर भारतीय वाद-विवाद, पश्चिम में वाद-विवादों से किस प्रकार भिन्न हैं ? (150 words) [UPSC 2014]
धर्मनिरपेक्षता पर भारतीय और पश्चिमी वाद-विवादों में प्रमुख भिन्नताएँ हैं: भारतीय वाद-विवाद: सांस्कृतिक विविधता: भारत में धर्मनिरपेक्षता का मतलब विभिन्न धर्मों की सह-अस्तित्व और धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है। यहाँ धर्मनिरपेक्षता का संदर्भ भारतीय सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक विविधता से संबंधितRead more
धर्मनिरपेक्षता पर भारतीय और पश्चिमी वाद-विवादों में प्रमुख भिन्नताएँ हैं:
भारतीय वाद-विवाद:
सांस्कृतिक विविधता: भारत में धर्मनिरपेक्षता का मतलब विभिन्न धर्मों की सह-अस्तित्व और धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है। यहाँ धर्मनिरपेक्षता का संदर्भ भारतीय सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक विविधता से संबंधित है।
संविधानिक दृष्टिकोण: भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता को एक सक्रिय सिद्धांत मानता है, जिसमें राज्य का धर्मों से निष्पक्षता सुनिश्चित करने का उद्देश्य है। धर्मनिरपेक्षता भारतीय राज्य को किसी भी धार्मिक समूह के पक्षपाती बनाने से रोकती है।
पश्चिमी वाद-विवाद:
धर्म और राज्य का अलगाव: पश्चिमी देशों में धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म और राज्य के पूर्ण अलगाव से होता है। यहाँ धार्मिक संस्थाओं और सरकारी कार्यों के बीच कोई भी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
लैटिट्यूड की अवधारणा: पश्चिमी देशों में धर्मनिरपेक्षता को एक व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता के रूप में देखा जाता है, जिसमें धार्मिक विश्वासों को सार्वजनिक नीतियों पर प्रभाव डालने की अनुमति नहीं होती।
इस प्रकार, भारतीय धर्मनिरपेक्षता सांस्कृतिक समावेशन और विविधता को प्रोत्साहित करती है, जबकि पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता धर्म और राज्य के पूर्ण अलगाव पर जोर देती है।
See lessभारत का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण 'सैद्धांतिक दूरी' बनाए हुआ है न कि 'समान दूरी'। टिप्पणी कीजिए।(150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण 'सैद्धांतिक दूरी' बनाए हुए है, न कि 'समान दूरी'। इसका मतलब है कि भारत का पंथनिरपेक्षता किसी भी धार्मिक समूह के प्रति एक निष्पक्ष और समान रवैया अपनाने के बजाय, धार्मिक मामलों में 'सैद्धांतिक दूरी' बनाए रखता है। यह दृष्टिकोण धार्मिक तटस्थता का संकेत देता है, जिसमें राज्यRead more
भारत का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण ‘सैद्धांतिक दूरी’ बनाए हुए है, न कि ‘समान दूरी’। इसका मतलब है कि भारत का पंथनिरपेक्षता किसी भी धार्मिक समूह के प्रति एक निष्पक्ष और समान रवैया अपनाने के बजाय, धार्मिक मामलों में ‘सैद्धांतिक दूरी’ बनाए रखता है। यह दृष्टिकोण धार्मिक तटस्थता का संकेत देता है, जिसमें राज्य धार्मिक मामलों से सीधे तौर पर नहीं जुड़ता, लेकिन कुछ धार्मिक समूहों के प्रति विशेष ध्यान या समर्थन भी हो सकता है।
इस प्रकार, ‘सैद्धांतिक दूरी’ का मतलब है कि सरकार और अन्य संस्थान धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, लेकिन यह जरूरी नहीं कि सभी धार्मिक समूहों के साथ समान दूरी बनाए रखी जाए। इससे पंथनिरपेक्षता के आदर्शों और व्यावहारिक कार्यान्वयन में असमानता का अनुभव हो सकता है, जो समाज में धार्मिक तटस्थता की परिभाषा और उसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है।
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भारतीय संकल्पना और पाश्चात्य मॉडल में धर्मनिरपेक्षतावाद के भिन्नताएँ परिचय: धर्मनिरपेक्षता, या secularism, विभिन्न सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों में भिन्न-भिन्न होती है। भारतीय और पाश्चात्य मॉडल में धर्मनिरपेक्षता के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भिन्नताएँ हैं। भारतीय संकल्पना: सहिष्णुता और समानता: भRead more
भारतीय संकल्पना और पाश्चात्य मॉडल में धर्मनिरपेक्षतावाद के भिन्नताएँ
परिचय: धर्मनिरपेक्षता, या secularism, विभिन्न सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों में भिन्न-भिन्न होती है। भारतीय और पाश्चात्य मॉडल में धर्मनिरपेक्षता के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भिन्नताएँ हैं।
भारतीय संकल्पना:
पाश्चात्य मॉडल:
निष्कर्ष: भारतीय धर्मनिरपेक्षता और पाश्चात्य धर्मनिरपेक्षता में मूल अंतर उनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ से उत्पन्न होता है। भारत में धर्मनिरपेक्षता धार्मिक विविधता को स्वीकार करती है और सरकारी समर्थन प्रदान करती है, जबकि पाश्चात्य मॉडल धर्म और राज्य के बीच सख्त अलगाव पर जोर देता है।
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धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सांस्कृतिक प्रथाओं की चुनौतियाँ परिचय: भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जिसका अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण रखता है और धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करता। हालांकि, इस धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के सामने कई चुनौतियाँ उत्पन्न होतीRead more
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सांस्कृतिक प्रथाओं की चुनौतियाँ
परिचय: भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जिसका अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण रखता है और धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करता। हालांकि, इस धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के सामने कई चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं। ये चुनौतियाँ विभिन्न सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोणों से उभरती हैं, जो सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखने की जटिलताओं को दर्शाती हैं।
सांस्कृतिक प्रथाओं पर चुनौतियाँ:
हाल की घटनाएँ: हाल ही में, “गैर-मुस्लिम परंपराओं की कानूनी मान्यता” जैसे मुद्दे भी उभरे हैं, जहां धार्मिक या सांस्कृतिक प्रथाओं को संविधान के अनुसार सुरक्षित रखने की कोशिश की जा रही है, लेकिन इससे विवाद और टकराव की स्थिति भी पैदा होती है।
निष्कर्ष: धर्मनिरपेक्षता और सांस्कृतिक प्रथाओं के बीच संतुलन बनाए रखना एक जटिल चुनौती है। यह आवश्यक है कि हम धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करें, जबकि संविधान और कानूनी दृष्टिकोण की सीमाओं का भी सम्मान करें। सांस्कृतिक संवाद और धार्मिक सहिष्णुता के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान खोजा जा सकता है।
See lessक्या सहिष्णुता, सम्मिलन एवं बहुलता मुख्य तत्त्व हैं जो धर्मनिरपेक्षता के भारतीय रूप का निर्माण करते हैं ? तर्कसंगत उत्तर दें। (250 words) [UPSC 2022]
धर्मनिरपेक्षता के भारतीय रूप में सहिष्णुता, सम्मिलन, और बहुलता के तत्त्व धर्मनिरपेक्षता का भारतीय रूप: धर्मनिरपेक्षता का भारतीय दृष्टिकोण सहिष्णुता, सम्मिलन, और बहुलता के मूल तत्वों पर आधारित है, जो भारत की विविधता को स्वीकार करने और सभी धार्मिक मान्यताओं को समान मान्यता देने के सिद्धांतों पर जोर देRead more
धर्मनिरपेक्षता के भारतीय रूप में सहिष्णुता, सम्मिलन, और बहुलता के तत्त्व
धर्मनिरपेक्षता का भारतीय रूप:
धर्मनिरपेक्षता का भारतीय दृष्टिकोण सहिष्णुता, सम्मिलन, और बहुलता के मूल तत्वों पर आधारित है, जो भारत की विविधता को स्वीकार करने और सभी धार्मिक मान्यताओं को समान मान्यता देने के सिद्धांतों पर जोर देते हैं।
सहिष्णुता:
सम्मिलन:
बहुलता:
निष्कर्ष:
धर्मनिरपेक्षता का भारतीय रूप सहिष्णुता, सम्मिलन, और बहुलता के सिद्धांतों पर आधारित है। ये तत्त्व भारतीय समाज की विविधता और एकता को बनाए रखने में सहायक हैं और धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को गहराई प्रदान करते हैं।
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