भारत का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण ‘सैद्धांतिक दूरी’ बनाए हुआ है न कि ‘समान दूरी’। टिप्पणी कीजिए।(150 शब्दों में उत्तर दें)
धर्मनिरपेक्षता पर भारतीय और पश्चिमी वाद-विवादों में प्रमुख भिन्नताएँ हैं: भारतीय वाद-विवाद: सांस्कृतिक विविधता: भारत में धर्मनिरपेक्षता का मतलब विभिन्न धर्मों की सह-अस्तित्व और धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है। यहाँ धर्मनिरपेक्षता का संदर्भ भारतीय सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक विविधता से संबंधितRead more
धर्मनिरपेक्षता पर भारतीय और पश्चिमी वाद-विवादों में प्रमुख भिन्नताएँ हैं:
भारतीय वाद-विवाद:
सांस्कृतिक विविधता: भारत में धर्मनिरपेक्षता का मतलब विभिन्न धर्मों की सह-अस्तित्व और धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है। यहाँ धर्मनिरपेक्षता का संदर्भ भारतीय सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक विविधता से संबंधित है।
संविधानिक दृष्टिकोण: भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता को एक सक्रिय सिद्धांत मानता है, जिसमें राज्य का धर्मों से निष्पक्षता सुनिश्चित करने का उद्देश्य है। धर्मनिरपेक्षता भारतीय राज्य को किसी भी धार्मिक समूह के पक्षपाती बनाने से रोकती है।
पश्चिमी वाद-विवाद:
धर्म और राज्य का अलगाव: पश्चिमी देशों में धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म और राज्य के पूर्ण अलगाव से होता है। यहाँ धार्मिक संस्थाओं और सरकारी कार्यों के बीच कोई भी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
लैटिट्यूड की अवधारणा: पश्चिमी देशों में धर्मनिरपेक्षता को एक व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता के रूप में देखा जाता है, जिसमें धार्मिक विश्वासों को सार्वजनिक नीतियों पर प्रभाव डालने की अनुमति नहीं होती।
इस प्रकार, भारतीय धर्मनिरपेक्षता सांस्कृतिक समावेशन और विविधता को प्रोत्साहित करती है, जबकि पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता धर्म और राज्य के पूर्ण अलगाव पर जोर देती है।
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भारत का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण 'सैद्धांतिक दूरी' बनाए हुए है, न कि 'समान दूरी'। इसका मतलब है कि भारत का पंथनिरपेक्षता किसी भी धार्मिक समूह के प्रति एक निष्पक्ष और समान रवैया अपनाने के बजाय, धार्मिक मामलों में 'सैद्धांतिक दूरी' बनाए रखता है। यह दृष्टिकोण धार्मिक तटस्थता का संकेत देता है, जिसमें राज्यRead more
भारत का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण ‘सैद्धांतिक दूरी’ बनाए हुए है, न कि ‘समान दूरी’। इसका मतलब है कि भारत का पंथनिरपेक्षता किसी भी धार्मिक समूह के प्रति एक निष्पक्ष और समान रवैया अपनाने के बजाय, धार्मिक मामलों में ‘सैद्धांतिक दूरी’ बनाए रखता है। यह दृष्टिकोण धार्मिक तटस्थता का संकेत देता है, जिसमें राज्य धार्मिक मामलों से सीधे तौर पर नहीं जुड़ता, लेकिन कुछ धार्मिक समूहों के प्रति विशेष ध्यान या समर्थन भी हो सकता है।
इस प्रकार, ‘सैद्धांतिक दूरी’ का मतलब है कि सरकार और अन्य संस्थान धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, लेकिन यह जरूरी नहीं कि सभी धार्मिक समूहों के साथ समान दूरी बनाए रखी जाए। इससे पंथनिरपेक्षता के आदर्शों और व्यावहारिक कार्यान्वयन में असमानता का अनुभव हो सकता है, जो समाज में धार्मिक तटस्थता की परिभाषा और उसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है।
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