‘स्मार्ट शहरों’ से क्या तात्पर्य है? भारत के शहरी विकास में इनकी प्रासंगिकता का परीक्षण कीजिए। क्या इससे ग्रामीण तथा शहरी भेदभाव में बढ़ोतरी होगी? पी० यू० आर० ए० एवं आर० यू० आर० बी० ए० एन० मिशन के सन्दर्भ में ...
नई राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (National Logistics Policy) भारत के लॉजिस्टिक्स तंत्र में महत्वपूर्ण सुधार लाने की क्षमता रखती है, साथ ही यह रोजगार सृजन में भी उल्लेखनीय योगदान कर सकती है। इस नीति का उद्देश्य लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति श्रृंखला के क्षेत्रों को आधुनिक और अधिक कुशल बनाना है, जो न केवल आर्थिRead more
नई राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (National Logistics Policy) भारत के लॉजिस्टिक्स तंत्र में महत्वपूर्ण सुधार लाने की क्षमता रखती है, साथ ही यह रोजगार सृजन में भी उल्लेखनीय योगदान कर सकती है। इस नीति का उद्देश्य लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति श्रृंखला के क्षेत्रों को आधुनिक और अधिक कुशल बनाना है, जो न केवल आर्थिक विकास को गति देगा, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा करेगा।
लॉजिस्टिक्स तंत्र में बदलाव: नीति के तहत, लॉजिस्टिक्स क्षेत्र की विभिन्न समस्याओं जैसे कि जटिल प्रक्रियाएं, खराब बुनियादी ढांचा, और उच्च लागत को संबोधित किया जाएगा। इसके लिए, एकीकृत लॉजिस्टिक्स प्रणाली, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, और बेहतर बुनियादी ढांचे की स्थापना की जाएगी। इसके अतिरिक्त, यह नीति डेटा एनालिटिक्स और इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम्स के उपयोग को बढ़ावा देगी, जिससे आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन में सुधार होगा और लॉजिस्टिक्स की लागत कम होगी।
रोजगार सृजन: नीति द्वारा प्रस्तावित सुधारों से कई नए रोजगार अवसर उत्पन्न होंगे। उदाहरण के लिए, लॉजिस्टिक्स हब्स और वेयरहाउसिंग सेंटर के निर्माण से स्थानीय स्तर पर कामकाजी अवसर बढ़ेंगे। साथ ही, डिजिटल और तकनीकी समाधानों के कार्यान्वयन के साथ, IT और डेटा प्रबंधन से जुड़े पेशेवरों की मांग में वृद्धि होगी। इसके अलावा, एक कुशल लॉजिस्टिक्स नेटवर्क छोटे और मध्यम उद्यमों को वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धा करने में मदद करेगा, जिससे व्यापार और औद्योगिक गतिविधियों में वृद्धि होगी और रोजगार की संभावना बढ़ेगी।
समग्रतः, नई राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति भारत के लॉजिस्टिक्स क्षेत्र को आधुनिक बनाने और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसके प्रभावी कार्यान्वयन से न केवल व्यापारिक दक्षता बढ़ेगी बल्कि व्यापक आर्थिक लाभ और सामाजिक विकास भी सुनिश्चित होगा।
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स्मार्ट शहर वे शहरी क्षेत्र हैं जो डिजिटल तकनीक और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का उपयोग करके अपने प्रदर्शन, जीवन की गुणवत्ता और संसाधनों के प्रबंधन में सुधार करते हैं। इसमें स्मार्ट बुनियादी ढाँचा, स्मार्ट ट्रैफिक प्रबंधन, ऊर्जा दक्षता और सार्वजनिक सेवाओं की बेहतरी शामिल होती है। उदाहरण केRead more
स्मार्ट शहर वे शहरी क्षेत्र हैं जो डिजिटल तकनीक और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का उपयोग करके अपने प्रदर्शन, जीवन की गुणवत्ता और संसाधनों के प्रबंधन में सुधार करते हैं। इसमें स्मार्ट बुनियादी ढाँचा, स्मार्ट ट्रैफिक प्रबंधन, ऊर्जा दक्षता और सार्वजनिक सेवाओं की बेहतरी शामिल होती है। उदाहरण के लिए, स्मार्ट दिल्ली में ट्रैफिक प्रबंधन के लिए स्मार्ट सिग्नल और ऊर्जा प्रबंधन के लिए सोलर पैनल लगाए गए हैं।
भारत के शहरी विकास में प्रासंगिकता
स्मार्ट शहर सार्वजनिक सेवाओं की दक्षता बढ़ाते हैं, जैसे स्वच्छ जल, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, और सहज परिवहन। स्मार्ट बेंगलुरु ने ट्रैफिक जाम कम करने के लिए स्मार्ट ट्रैफिक सिग्नल लागू किए हैं।
ये हरित प्रौद्योगिकियाँ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाते हैं, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है। अहमदाबाद में सोलर पैनल और इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए गए हैं।
स्मार्ट शहर निवेश और रोजगार के अवसर उत्पन्न करते हैं, जैसे पुणे में आईटी और टेक्नोलॉजी सेक्टर में वृद्धि।
ग्रामीण-शहरी भेदभाव में वृद्धि
स्मार्ट शहरों पर ध्यान केंद्रित करने से ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों और विकास की कमी हो सकती है, जिससे ग्रामीण-शहरी भेदभाव बढ़ सकता है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं की अनदेखी कर सकता है।
‘स्मार्ट गाँवों’ के लिए तर्क
पी.यू.आर.ए. का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराना है, जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो। स्मार्ट गाँव इन सुविधाओं को बढ़ावा दे सकते हैं और ग्रामीण पलायन को रोक सकते हैं।
आर.यू.आर.बी.एएन मिशन का उद्देश्य सभी सुविधाएँ और आर्थिक विकास को ग्रामीण क्षेत्रों में लाना है। स्मार्ट गाँव इस दृष्टिकोण को आगे बढ़ा सकते हैं और सतत विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
निष्कर्ष
स्मार्ट शहरों का विकास भारत के शहरी क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन स्मार्ट गाँवों को भी उतना ही महत्व देना चाहिए ताकि ग्रामीण-शहरी भेदभाव कम हो सके और सतत विकास संभव हो सके। पी.यू.आर.ए. और आर.यू.आर.बी.एएन मिशन जैसे कार्यक्रम इस प्रक्रिया में सहायक हो सकते हैं।
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