स्वतंत्रोत्तर भारत में जिन विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा, उनमें भारत के विभाजन के दौरान सीमा समझौता और संसाधनों का विभाजन अधिक महत्वपूर्ण थे। चर्चा कीजिए। (उत्तर 250 शब्दों में दें)
जनजातीय नीति की प्रमुख विशेषताएं: आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा: जनजातियों को आर्थिक सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा के लिए योजनाएं शुरू की गईं। संसाधनों का संरक्षण: जल, जमीन, और अन्य संसाधनों का संरक्षण और संवर्धन किया गया। शिक्षा और स्वास्थ्य: शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को जनजातियों तक पहुंचाने के लिए उपायRead more
जनजातीय नीति की प्रमुख विशेषताएं:
- आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा: जनजातियों को आर्थिक सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा के लिए योजनाएं शुरू की गईं।
- संसाधनों का संरक्षण: जल, जमीन, और अन्य संसाधनों का संरक्षण और संवर्धन किया गया।
- शिक्षा और स्वास्थ्य: शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को जनजातियों तक पहुंचाने के लिए उपाय किए गए।
- सांस्कृतिक संरक्षण: जनजातियों की सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण और समर्थन किया गया।
धीमी प्रगति के कारण:
- सामाजिक और आर्थिक असमानता: जनजातियों को सामाजिक और आर्थिक असमानता का सामना करना पड़ा।
- कठिन गिनती: जनजातियों की गिनती और सहायता का उपाय जनमानस में कठिनाई पैदा करता है।
- अभावकृति: कई बार नीतियों की कार्यान्वयन में अभावकृति और विभिन्नताएं देखी गई हैं।
स्वतंत्रता के बाद भारत को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा, उनमें विभाजन के दौरान सीमा समझौता और संसाधनों का विभाजन प्रमुख थे। 1947 में भारत का विभाजन सांप्रदायिक आधार पर हुआ, जिसके परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देश बने। इस विभाजन ने न केवल एक राजनीतिक सीमा खींची, बल्कि सामाजिक और आर्थिकRead more
स्वतंत्रता के बाद भारत को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा, उनमें विभाजन के दौरान सीमा समझौता और संसाधनों का विभाजन प्रमुख थे। 1947 में भारत का विभाजन सांप्रदायिक आधार पर हुआ, जिसके परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देश बने। इस विभाजन ने न केवल एक राजनीतिक सीमा खींची, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विभाजन भी किया।
सीमा समझौते के तहत, भारत और पाकिस्तान के बीच सीमाओं का निर्धारण किया गया। इस विभाजन में पंजाब और बंगाल जैसे बड़े प्रांतों को बांटा गया, जिससे बड़े पैमाने पर जनसंख्या का विस्थापन हुआ। लाखों लोग अपनी जान बचाने के लिए नए बने देशों में पलायन करने लगे, जिससे सांप्रदायिक हिंसा, नरसंहार और अराजकता फैल गई। इस अवधि में लगभग 10-15 लाख लोग मारे गए, और लाखों लोग बेघर हो गए।
संसाधनों का विभाजन भी एक महत्वपूर्ण चुनौती थी। विभाजन के दौरान रेलवे, उद्योग, सिंचाई परियोजनाएं, सैन्य संपत्तियां, और अन्य संसाधनों का बंटवारा हुआ। इस बंटवारे ने भारत की अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का पहुंचाया। विभाजन के कारण पूर्वी पंजाब और बंगाल में कृषि और उद्योग प्रभावित हुए, जिससे भारत की खाद्यान्न आपूर्ति और औद्योगिक उत्पादन में गिरावट आई।
इसके अलावा, भारत को शरणार्थियों के पुनर्वास की भी बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। लाखों शरणार्थियों को रोजगार, आश्रय और खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार को बड़े पैमाने पर प्रयास करने पड़े। इस संकट ने भारत के नवगठित प्रशासन पर भारी दबाव डाला और विकास की गति को धीमा कर दिया।
इन चुनौतियों के बावजूद, भारत ने धीरे-धीरे इन समस्याओं से उबरते हुए अपने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ढांचे को मजबूत किया। विभाजन के बाद की इन चुनौतियों ने भारत को एकजुट रहने और विकास की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
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