असहयोग आन्दोलन के दौरान उत्तर प्रदेश के भूमिका की विवेचना कीजिए । (125 Words) [UPPSC 2023]
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में उत्तर प्रदेश के योद्धाओं के योगदान परिचय 1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है। उत्तर प्रदेश, जो उस समय संयुक्त प्रांत कहलाता था, इस संग्राम का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। यहां के योद्धाओं और आम जनता ने इस संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निRead more
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में उत्तर प्रदेश के योद्धाओं के योगदान
परिचय
1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है। उत्तर प्रदेश, जो उस समय संयुक्त प्रांत कहलाता था, इस संग्राम का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। यहां के योद्धाओं और आम जनता ने इस संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रमुख योद्धाओं का योगदान
- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई: उत्तर प्रदेश के निकटवर्ती झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ वीरतापूर्वक संघर्ष किया। उनके साहस और शौर्य ने कानपुर और झांसी क्षेत्र में विद्रोह को प्रेरित किया। वह 1857 के संग्राम का एक प्रतीक बन गईं।
- नाना साहब और कानपुर विद्रोह: कानपुर में नाना साहब ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया। उन्होंने सैनिकों और स्थानीय योद्धाओं को संगठित कर कानपुर को अंग्रेजों से मुक्त कराया। नाना साहब की रणनीति और नेतृत्व ने कानपुर विद्रोह को सफल बनाया।
- बेगम हजरत महल का नेतृत्व: अवध की बेगम हजरत महल ने लखनऊ में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की अगुवाई की। उन्होंने अपने पुत्र बिरजिस क़द्र को अवध का शासक घोषित किया और अंग्रेजों से स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी। उनका नेतृत्व अवध क्षेत्र में विद्रोह को जीवित रखने में महत्वपूर्ण था।
जन सामान्य की भागीदारी
- सिपाही और जमींदारों की भूमिका: उत्तर प्रदेश में मेरठ जैसे स्थानों पर सिपाहियों ने विद्रोह की शुरुआत की। इसके अलावा, कई जमींदारों और स्थानीय योद्धाओं ने विद्रोहियों का साथ दिया और संसाधन प्रदान किए।
- आम जनता का सहयोग: भारी कर और अन्य नीतियों से त्रस्त किसानों और आम लोगों ने विद्रोह में बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया। इससे विद्रोह को व्यापक जन समर्थन मिला और यह अंग्रेजों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया।
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश के योद्धाओं और आम जनता ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके साहस और बलिदान ने संग्राम को एक विशाल और ऐतिहासिक घटना में परिवर्तित कर दिया, जिससे स्वतंत्रता की लड़ाई को नई दिशा मिली।
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असहयोग आन्दोलन (1920-1922) के दौरान उत्तर प्रदेश ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गांधीजी ने इस आन्दोलन के लिए प्रदेश के व्यापक जनसमर्थन का लाभ उठाया। उत्तर प्रदेश में हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक माने जाने वाले इस आन्दोलन ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ व्यापक जनसंगठनों की स्थापना की। मुख्य रूप से, चंद्रशेखरRead more
असहयोग आन्दोलन (1920-1922) के दौरान उत्तर प्रदेश ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गांधीजी ने इस आन्दोलन के लिए प्रदेश के व्यापक जनसमर्थन का लाभ उठाया। उत्तर प्रदेश में हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक माने जाने वाले इस आन्दोलन ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ व्यापक जनसंगठनों की स्थापना की।
मुख्य रूप से, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल जैसे नेता सक्रिय थे, जिन्होंने जन जागरूकता और असहयोग के सिद्धांत को फैलाया। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा और खादी आंदोलन को भी बल मिला। इस दौरान, शिक्षण संस्थानों का बहिष्कार और सरकारी नौकरियों से इस्तीफे की गतिविधियाँ जोर पकड़ीं।
हालांकि, चौरी-चौरा कांड (1922) के बाद आन्दोलन में हिंसा की घटनाएँ हुईं, जिससे गांधीजी ने आन्दोलन को समाप्त कर दिया। बावजूद इसके, उत्तर प्रदेश की भूमिका असहयोग आन्दोलन में केंद्रीय और प्रेरणादायक रही।
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