गाँधी के नैतिक एंव सामाजिक विचारों का परीक्षण कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2018]
गांधी के असहयोग आंदोलन पर दार्शनिक दृष्टि सत्याग्रह का सिद्धांत: गांधी का असहयोग आंदोलन (1920-22) सत्याग्रह के सिद्धांत पर आधारित था, जो अहिंसात्मक प्रतिरोध को राजनीतिक और सामाजिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के तरीके के रूप में मानता है। गांधी का मानना था कि सच्चाई और अहिंसा पर आधारित शक्ति असली शक्तRead more
गांधी के असहयोग आंदोलन पर दार्शनिक दृष्टि
सत्याग्रह का सिद्धांत: गांधी का असहयोग आंदोलन (1920-22) सत्याग्रह के सिद्धांत पर आधारित था, जो अहिंसात्मक प्रतिरोध को राजनीतिक और सामाजिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के तरीके के रूप में मानता है। गांधी का मानना था कि सच्चाई और अहिंसा पर आधारित शक्ति असली शक्ति है, और बलात्कारी या बलात्कारी तरीकों को नकारता है।
आचारिक और नैतिक ढांचा: आंदोलन नैतिक और आचारिक प्रतिबद्धता का प्रतिक था। गांधी ने तर्क किया कि ब्रिटिश उपनिवेशी शासन के खिलाफ निष्क्रिय प्रतिरोध एक नैतिक कर्तव्य है, जो अहिंसा और सत्य की खोज के सिद्धांतों के अनुरूप है।
आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण: आंदोलन ने सामान्य लोगों को सशक्त और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने का प्रयास किया। ब्रिटिश वस्त्रों और संस्थाओं के बहिष्कार को प्रोत्साहित करके, गांधी ने भारतीयों को अपनी खुद की संसाधनों पर निर्भर रहने के लिए प्रेरित किया।
हालिया उदाहरण: महत्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) गांधी के आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण के सिद्धांतों का आधुनिक उदाहरण है, जो ग्रामीण श्रमिकों को रोजगार की गारंटी प्रदान करता है।
निष्कर्ष: गांधी का असहयोग आंदोलन दार्शनिक दृष्टि से अहिंसा और नैतिक प्रतिरोध का गहन अनुप्रयोग था, जिसका उद्देश्य लोगों को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना था।
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गाँधी के नैतिक और सामाजिक विचार 1. नैतिक दार्शनिकता: गाँधी के नैतिक विचारों का केंद्र अहिंसा और सत्याग्रह था। उन्होंने अहिंसा को सबसे उच्च नैतिक सिद्धांत माना। उदाहरण के लिए, नमक सत्याग्रह (1930) में उन्होंने ब्रिटिश नमक कर के खिलाफ अहिंसात्मक विरोध किया, जो उनके शांतिपूर्ण प्रतिरोध के प्रति प्रतिबदRead more
गाँधी के नैतिक और सामाजिक विचार
1. नैतिक दार्शनिकता: गाँधी के नैतिक विचारों का केंद्र अहिंसा और सत्याग्रह था। उन्होंने अहिंसा को सबसे उच्च नैतिक सिद्धांत माना। उदाहरण के लिए, नमक सत्याग्रह (1930) में उन्होंने ब्रिटिश नमक कर के खिलाफ अहिंसात्मक विरोध किया, जो उनके शांतिपूर्ण प्रतिरोध के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
2. सामाजिक सुधार: गाँधी ने सामाजिक समानता और जाति उन्मूलन का समर्थन किया। उन्होंने हरिजन आंदोलन चलाया, जिसका उद्देश्य निम्न जातियों की स्थिति सुधारना था। चंपारण सत्याग्रह (1917) के माध्यम से उन्होंने ग्रामीण संकट और किसान अधिकारों पर ध्यान केंद्रित किया।
3. आत्मनिर्भरता और ग्रामीण विकास: गाँधी ने खादी और ग्रामीण उद्योगों के माध्यम से आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया। उनका गांवों की गणतंत्र का दृष्टिकोण विकेन्द्रीकृत, सतत विकास पर आधारित था, जिसे उन्होंने अपने लेखों और भाषणों में प्रतिपादित किया।
गाँधी के नैतिक और सामाजिक विचार आज भी अहिंसा और सामाजिक न्याय पर चर्चा में महत्वपूर्ण हैं।
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