काण्ट का ‘कर्तव्य के लिये कर्तव्य’ का सिद्धांत क्या है? सिविल सेवा में इस सिद्धांत की क्या भूमिका है? विवेचना कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
गांधी के असहयोग आंदोलन पर दार्शनिक दृष्टि सत्याग्रह का सिद्धांत: गांधी का असहयोग आंदोलन (1920-22) सत्याग्रह के सिद्धांत पर आधारित था, जो अहिंसात्मक प्रतिरोध को राजनीतिक और सामाजिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के तरीके के रूप में मानता है। गांधी का मानना था कि सच्चाई और अहिंसा पर आधारित शक्ति असली शक्तRead more
गांधी के असहयोग आंदोलन पर दार्शनिक दृष्टि
सत्याग्रह का सिद्धांत: गांधी का असहयोग आंदोलन (1920-22) सत्याग्रह के सिद्धांत पर आधारित था, जो अहिंसात्मक प्रतिरोध को राजनीतिक और सामाजिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के तरीके के रूप में मानता है। गांधी का मानना था कि सच्चाई और अहिंसा पर आधारित शक्ति असली शक्ति है, और बलात्कारी या बलात्कारी तरीकों को नकारता है।
आचारिक और नैतिक ढांचा: आंदोलन नैतिक और आचारिक प्रतिबद्धता का प्रतिक था। गांधी ने तर्क किया कि ब्रिटिश उपनिवेशी शासन के खिलाफ निष्क्रिय प्रतिरोध एक नैतिक कर्तव्य है, जो अहिंसा और सत्य की खोज के सिद्धांतों के अनुरूप है।
आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण: आंदोलन ने सामान्य लोगों को सशक्त और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने का प्रयास किया। ब्रिटिश वस्त्रों और संस्थाओं के बहिष्कार को प्रोत्साहित करके, गांधी ने भारतीयों को अपनी खुद की संसाधनों पर निर्भर रहने के लिए प्रेरित किया।
हालिया उदाहरण: महत्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) गांधी के आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण के सिद्धांतों का आधुनिक उदाहरण है, जो ग्रामीण श्रमिकों को रोजगार की गारंटी प्रदान करता है।
निष्कर्ष: गांधी का असहयोग आंदोलन दार्शनिक दृष्टि से अहिंसा और नैतिक प्रतिरोध का गहन अनुप्रयोग था, जिसका उद्देश्य लोगों को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना था।
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कार्ल मार्क्स के सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों की समकालीन लोकसेवा में भूमिका 1. वर्ग संघर्ष का सिद्धांत कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत, जिसमें वह पूंजीपतियों और श्रमिकों के बीच संघर्ष की बात करते हैं, समकालीन लोकसेवाओं पर प्रभावी रहा है। उदाहरण के लिए, भारत में श्रमिक अधिकारों की सुरक्षा औरRead more
कार्ल मार्क्स के सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों की समकालीन लोकसेवा में भूमिका
1. वर्ग संघर्ष का सिद्धांत
कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत, जिसमें वह पूंजीपतियों और श्रमिकों के बीच संघर्ष की बात करते हैं, समकालीन लोकसेवाओं पर प्रभावी रहा है। उदाहरण के लिए, भारत में श्रमिक अधिकारों की सुरक्षा और न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करने के लिए श्रम कानूनों का निर्माण किया गया है, जो मार्क्स के श्रमिकों की सुरक्षा की विचारधारा को दर्शाता है।
2. राज्य की भूमिका
मार्क्स के अनुसार, राज्य मुख्य रूप से शासक वर्ग के हितों की सेवा करता है। इस विचारधारा का प्रभाव वर्तमान में निजीकरण और सरकारी सेवाओं के वितरण पर देखा जा सकता है। जैसे कि भारत में स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण की प्रक्रिया, जिनके माध्यम से यह चिंता उठती है कि क्या ये सेवाएँ आम जनता की जरूरतों को पूरा कर रही हैं या आर्थिक लाभ के लिए संचालित हो रही हैं।
3. समाजिक परिवर्तन का उपकरण
मार्क्स ने कहा था कि सार्वजनिक सेवाएं समाज में बदलाव के लिए एक उपकरण हो सकती हैं। भारत में, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे कार्यक्रम इस दिशा में उठाए गए कदम हैं, जो समाजिक समानता और विकास को बढ़ावा देते हैं।
4. संसाधनों का पुनर्वितरण
मार्क्स के विचार में, संसाधनों का पुनर्वितरण आर्थिक असमानताओं को कम करने के लिए आवश्यक है। समकालीन उदाहरणों में, उत्तरी यूरोप के देशों जैसे स्वीडन और नॉर्वे में प्रगतिशील कराधान और सामाजिक कल्याण योजनाएं लागू की गई हैं, जो सामाजिक समानता को बढ़ावा देने का प्रयास करती हैं।
इन विचारों के माध्यम से, कार्ल मार्क्स के सामाजिक और राजनीतिक विचार समकालीन लोकसेवा में सामाजिक न्याय, राज्य की भूमिका, और संसाधनों के उचित वितरण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
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