“धार्मिक कट्टरता किसी भी लोकतांत्रिक देश की उन्नति में बाधक रही हैं।” विवेचना कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
ईमानदारी और नैतिक आचरण की चुनौतियाँ परिचय: ईमानदार सिविल सेवक के रूप में नैतिक आचरण के पालन से स्वंय और परिवार को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जबकि अनुचित आचरण करियर में लाभकारी प्रतीत हो सकता है। मुख्य बिंदु: नैतिक आचरण की चुनौतियाँ: नैतिक आचरण का पालन करने से व्यक्तिगत और पारिवारिक समस्याएँRead more
ईमानदारी और नैतिक आचरण की चुनौतियाँ
परिचय: ईमानदार सिविल सेवक के रूप में नैतिक आचरण के पालन से स्वंय और परिवार को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जबकि अनुचित आचरण करियर में लाभकारी प्रतीत हो सकता है।
मुख्य बिंदु:
- नैतिक आचरण की चुनौतियाँ: नैतिक आचरण का पालन करने से व्यक्तिगत और पारिवारिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। **IAS अधिकारी कुलदीप सिंह चहल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जिसके कारण उन्हें कठिनाई और व्यक्तिगत संघर्षों का सामना करना पड़ा।
- अनुचित साधनों की वृद्धि: जब अनुचित साधनों का उपयोग बढ़ जाता है, तो नैतिक साधन अपनाने वाले अल्पसंख्यक प्रभावित होते हैं। प्रीति सुकल, एक महिला IAS अधिकारी, ने भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करते हुए व्यावसायिक और व्यक्तिगत दबावों का सामना किया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि नैतिकता के बावजूद चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
निष्कर्ष: ईमानदारी और नैतिकता का पालन करना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इसे बनाए रखना आवश्यक है। सार्वजनिक समर्थन और संस्थागत सुधार इसे सशक्त बना सकते हैं।
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धार्मिक कट्टरता और लोकतांत्रिक उन्नति परिभाषा और प्रभाव: धार्मिक कट्टरता का तात्पर्य ऐसे असहिष्णुता और पूर्वाग्रह से है जो धार्मिक मान्यताओं के आधार पर व्यक्तियों या समुदायों के प्रति होता है। यह कट्टरता लोकतांत्रिक देशों की सामाजिक और आर्थिक प्रगति में प्रमुख बाधक बनती है। ऐतिहासिक उदाहरण: भारत काRead more
धार्मिक कट्टरता और लोकतांत्रिक उन्नति
परिभाषा और प्रभाव: धार्मिक कट्टरता का तात्पर्य ऐसे असहिष्णुता और पूर्वाग्रह से है जो धार्मिक मान्यताओं के आधार पर व्यक्तियों या समुदायों के प्रति होता है। यह कट्टरता लोकतांत्रिक देशों की सामाजिक और आर्थिक प्रगति में प्रमुख बाधक बनती है।
ऐतिहासिक उदाहरण:
उन्नति पर प्रभाव:
निष्कर्ष: धार्मिक कट्टरता लोकतांत्रिक देशों की उन्नति में बाधक है, क्योंकि यह सामाजिक विघटन, आर्थिक विकास में रुकावट, और मानवाधिकार उल्लंघन को जन्म देती है। असहिष्णुता को समाप्त करना और समावेशिता को बढ़ावा देना लोकतांत्रिक समाजों की स्थिरता और विकास के लिए आवश्यक है।
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