प्रश्न का उत्तर अधिकतम 15 से 20 शब्दों में दीजिए। यह प्रश्न 03 अंक का है। [MPPSC 2023] बाबा साहेब अम्बेडकर ने लोकतन्त्र को कैसे परिभाषित किया है?
जयप्रकाश नारायण का 'सच्चे लोकतन्त्र' का सिद्धान्त जयप्रकाश नारायण (जेपी), भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता और लोकतान्त्रिक मूल्यों के समर्थक, ने 'सच्चे लोकतन्त्र' की एक परिभाषा प्रस्तुत की जो पारंपरिक राजनीतिक ढांचे से आगे बढ़कर सामाजिक और नैतिक पहलुओं को भी शामिल करती है। उनके अनुसार, सच्चाRead more
जयप्रकाश नारायण का ‘सच्चे लोकतन्त्र’ का सिद्धान्त
जयप्रकाश नारायण (जेपी), भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता और लोकतान्त्रिक मूल्यों के समर्थक, ने ‘सच्चे लोकतन्त्र’ की एक परिभाषा प्रस्तुत की जो पारंपरिक राजनीतिक ढांचे से आगे बढ़कर सामाजिक और नैतिक पहलुओं को भी शामिल करती है। उनके अनुसार, सच्चा लोकतन्त्र केवल चुनावी प्रक्रियाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें नागरिकों की सक्रिय भागीदारी, सामाजिक न्याय और नैतिक नेतृत्व भी महत्वपूर्ण है।
सच्चे लोकतन्त्र के प्रमुख तत्व:
- सक्रिय नागरिक भागीदारी:
- नागरिकों की सक्रिय भूमिका: जेपी के अनुसार, लोकतन्त्र का वास्तविक अर्थ तब होता है जब नागरिक केवल चुनावों में ही नहीं, बल्कि रोजमर्रा की सरकारी गतिविधियों और निर्णय-निर्माण में भी सक्रिय रूप से शामिल हों। लोकतन्त्र एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए जिसमें लोग न केवल वोट देते हैं बल्कि अपने समुदाय की गतिविधियों में भी भाग लेते हैं।
- स्थानीय स्वशासन: जेपी ने स्थानीय स्वशासन को सच्चे लोकतन्त्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना। उन्होंने स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को सशक्त बनाने और निर्णय-निर्माण को जनता के करीब लाने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि शासन अधिक उत्तरदायी और पारदर्शी हो।
- सामाजिक न्याय और समानता:
- सामाजिक असमानताओं का उन्मूलन: जेपी का मानना था कि सच्चा लोकतन्त्र तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को समाप्त नहीं किया जाता। संसाधनों और अवसरों का समान वितरण उनकी दृष्टि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
- अल्पसंख्यक और वंचित समूहों का सशक्तिकरण: जेपी ने आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को सशक्त बनाने की आवश्यकता को उजागर किया। उनके अनुसार, सच्चे लोकतन्त्र में सभी लोगों को समान अवसर और अधिकार मिलना चाहिए, और जाति, धर्म, या आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव समाप्त होना चाहिए।
- नैतिक और ethical मूल्य:
- नेतृत्व में ईमानदारी: जेपी ने सच्चे लोकतन्त्र के लिए नैतिक और ईमानदार नेतृत्व की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना था कि नेताओं को पारदर्शी, जिम्मेदार और जनता की भलाई के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए, न कि व्यक्तिगत लाभ के लिए।
- नागरिकों की नैतिक जिम्मेदारी: राजनीतिक अधिकारों के अलावा, जेपी ने नागरिकों के नैतिक आचरण की भी महत्ता को स्वीकार किया। उनका मानना था कि एक स्वस्थ लोकतन्त्र नागरिकों और नेताओं दोनों के नैतिक अखंडता पर निर्भर करता है।
हाल के उदाहरण और प्रासंगिकता:
- सक्रिय नागरिक पहल:
- सार्वजनिक शिकायत निवारण प्रणालियाँ: प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थिति (PM CARES) फंड और विभिन्न राज्य स्तर की शिकायत निवारण प्रणालियाँ नागरिकों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करती हैं और पारदर्शिता सुनिश्चित करती हैं।
- सामाजिक न्याय के उपाय:
- आरक्षण नीतियाँ: अनुसूचित जातियों (SCs), अनुसूचित जनजातियों (STs), और अन्य पिछड़ी जातियों (OBCs) के लिए आरक्षण नीतियाँ सामाजिक असमानताओं को कम करने के लिए लागू की गई हैं और समान अवसरों को बढ़ावा देती हैं।
- विधायी सुधार: विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम (2016) और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम (2015) जैसे विधायी उपाय वंचित समुदायों को सशक्त बनाने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रयास हैं।
- नैतिक शासन:
- भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन: जन लोकपाल बिल आंदोलन, जिसे अन्ना हज़ारे ने नेतृत्व किया, पारदर्शिता और उत्तरदायित्व में सुधार के लिए एक प्रयास है, जो जेपी के नैतिक नेतृत्व की अवधारणा के साथ मेल खाता है।
- चुनावी सुधार: निर्वाचन आयोग का वोटर हेल्पलाइन ऐप और चुनावी बॉंड्स प्रणाली जैसे उपाय पारदर्शिता और भ्रष्टाचार को कम करने का प्रयास हैं।
निष्कर्ष:
जयप्रकाश नारायण का ‘सच्चे लोकतन्त्र’ का सिद्धान्त एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है जिसमें केवल चुनावी प्रक्रिया ही नहीं बल्कि नागरिकों की सक्रिय भागीदारी, सामाजिक न्याय और नैतिक शासन भी शामिल हैं। उनका दृष्टिकोण लोकतन्त्र को एक समावेशी और नैतिक प्रणाली के रूप में परिभाषित करता है, जो आज भी समाज की समानता और न्याय की दिशा में मार्गदर्शक है।
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बाबा साहेब अम्बेडकर ने लोकतन्त्र को कैसे परिभाषित किया है डॉ. भीमराव अम्बेडकर, भारतीय संविधान के निर्माता और सामाजिक न्याय के प्रबल समर्थक, ने लोकतन्त्र को एक व्यापक दृष्टिकोण से परिभाषित किया। उनकी परिभाषा केवल चुनावी प्रक्रिया तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक और आर्थिक समानता की महत्वपूर्ण बाRead more
बाबा साहेब अम्बेडकर ने लोकतन्त्र को कैसे परिभाषित किया है
डॉ. भीमराव अम्बेडकर, भारतीय संविधान के निर्माता और सामाजिक न्याय के प्रबल समर्थक, ने लोकतन्त्र को एक व्यापक दृष्टिकोण से परिभाषित किया। उनकी परिभाषा केवल चुनावी प्रक्रिया तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक और आर्थिक समानता की महत्वपूर्ण बातें भी शामिल हैं।
अम्बेडकर का लोकतन्त्र का दृष्टिकोण:
हाल के उदाहरण और प्रासंगिकता:
निष्कर्ष:
बाबा साहेब अम्बेडकर ने लोकतन्त्र को एक समग्र दृष्टिकोण से परिभाषित किया, जिसमें राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक आयाम शामिल हैं। उनके दृष्टिकोण ने यह सुनिश्चित किया कि लोकतन्त्र केवल वोट देने का अधिकार नहीं है, बल्कि समानता, सामाजिक न्याय, और आर्थिक समानता की गारंटी भी है। उनकी परिभाषा लोकतन्त्र के एक व्यापक और समावेशी दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती है, जो आज भी समाज की समानता और न्याय की दिशा में मार्गदर्शक सिद्ध होती है।
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