प्रश्न का उत्तर अधिकतम 200 शब्दों में दीजिए। यह प्रश्न 11 अंक का है। [MPPSC 2023] कौटिल्य की विदेश नीति की समकालीन प्रासंगिकता की व्याख्या कीजिए।
परिचय: महात्मा गांधी, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता और विचारक, ने राज्य के बारे में एक अद्वितीय और आलोचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उनकी विचारधारा अहिंसा और स्वराज के सिद्धांतों पर आधारित थी। गांधीजी का राज्य के प्रति दृष्टिकोण समाज और शासन के उनके व्यापक दृष्टिकोण से जुड़ा था, जिसमें उRead more
परिचय: महात्मा गांधी, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता और विचारक, ने राज्य के बारे में एक अद्वितीय और आलोचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उनकी विचारधारा अहिंसा और स्वराज के सिद्धांतों पर आधारित थी। गांधीजी का राज्य के प्रति दृष्टिकोण समाज और शासन के उनके व्यापक दृष्टिकोण से जुड़ा था, जिसमें उन्होंने राज्य के न्यूनतम हस्तक्षेप और व्यक्तियों एवं समुदायों के सशक्तिकरण पर जोर दिया।
गांधीजी की राज्य की आलोचना:
- राज्य को हिंसा का साधन मानना: गांधीजी का मानना था कि राज्य स्वाभाविक रूप से हिंसा और बल का प्रयोग करके व्यवस्था बनाए रखता है और कानूनों को लागू करता है। उनके अनुसार, “राज्य हिंसा का एक सघन और संगठित रूप है।” गांधीजी ने तर्क दिया कि राज्य द्वारा बल का प्रयोग अक्सर अन्याय को बढ़ावा देता है और व्यक्तियों के नैतिक विकास को दबा देता है। उनकी अहिंसा पर आधारित विचारधारा राज्य की हिंसक शक्ति के विपरीत थी।
- विकेंद्रीकरण और स्व-शासन: गांधीजी ने एक ऐसे समाज की कल्पना की, जहां स्व-शासन (स्वराज) स्थानीय स्तर पर इस प्रकार से कार्य करेगा कि राज्य की आवश्यकता नगण्य हो जाएगी। उन्होंने शक्ति के विकेंद्रीकरण का समर्थन किया और विश्वास किया कि सच्ची स्वतंत्रता तभी प्राप्त हो सकती है जब व्यक्ति और समुदाय स्वयं शासन करें। उनका ग्राम स्वराज का विचार इस दृष्टिकोण का केंद्रीय हिस्सा था, जहां प्रत्येक गांव स्वायत्त रूप से कार्य करेगा, और केंद्रीय सत्ता का हस्तक्षेप न्यूनतम होगा।
- राज्य को एक आवश्यक बुराई मानना: यद्यपि गांधीजी राज्य के आलोचक थे, फिर भी उन्होंने इसे कुछ परिस्थितियों में आवश्यक माना। उन्होंने राज्य को “एक आवश्यक बुराई” के रूप में देखा, खासकर वर्तमान समय में जब सभी व्यक्ति स्वयं को शासन करने के लिए नैतिक रूप से विकसित नहीं हैं। हालांकि, उन्होंने एक ऐसे भविष्य की आशा की थी, जहां नैतिक और आध्यात्मिक विकास राज्य को अप्रासंगिक बना देगा, और समाज आपसी सहयोग और अहिंसा के सिद्धांतों पर कार्य करेगा।
समकालीन प्रासंगिकता: हाल के समय में, गांधीजी के विचार विभिन्न आंदोलनों में प्रतिध्वनित होते हैं, जो विकेंद्रीकरण और समुदाय-आधारित विकास का समर्थन करते हैं। उदाहरण के लिए, केरल मॉडल ऑफ डेवलपमेंट विकेंद्रीकृत योजना और स्थानीय स्व-शासन पर जोर देता है, जो गांधीजी के समुदायों के सशक्तिकरण के दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करता है। इसी प्रकार, अन्ना हज़ारे द्वारा लोकपाल बिल के कार्यान्वयन के लिए चलाए गए आंदोलन को केंद्रीकृत राज्य शक्ति को कम करने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक धक्का के रूप में देखा जा सकता है, जो गांधीजी की राज्य के जबरदस्ती शक्ति के बारे में चिंता को प्रतिध्वनित करता है।
निष्कर्ष: महात्मा गांधी के राज्य के बारे में विचार अहिंसा, स्वराज और नैतिक शासन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता से प्रेरित थे। यद्यपि उन्होंने समाज में राज्य की भूमिका को स्वीकार किया, फिर भी उन्होंने एक ऐसे भविष्य की कल्पना की, जहां स्व-शासित समुदाय राज्य के एक ज़बरदस्त तंत्र की आवश्यकता को कम कर देंगे। उनके विचार आज भी शासन, विकेंद्रीकरण और न्याय एवं समानता सुनिश्चित करने में राज्य की भूमिका पर समकालीन बहसों को प्रभावित करते हैं।
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कौटिल्य की विदेश नीति की समकालीन प्रासंगिकता परिचय कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने ग्रंथ "अर्थशास्त्र" में विदेश नीति पर महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए हैं। उनकी नीतियों का मुख्य उद्देश्य राज्य की सुरक्षा, शक्ति, और समृद्धि को सुनिश्चित करना था। आधुनिक समय में, कौटिल्य की वRead more
कौटिल्य की विदेश नीति की समकालीन प्रासंगिकता
परिचय
कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने ग्रंथ “अर्थशास्त्र” में विदेश नीति पर महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए हैं। उनकी नीतियों का मुख्य उद्देश्य राज्य की सुरक्षा, शक्ति, और समृद्धि को सुनिश्चित करना था। आधुनिक समय में, कौटिल्य की विदेश नीति के सिद्धांत कई वैश्विक परिदृश्यों में प्रासंगिक साबित हो रहे हैं। इस उत्तर में, हम देखेंगे कि कौटिल्य की विदेश नीति की समकालीन प्रासंगिकता क्या है और हाल की घटनाओं के उदाहरणों के माध्यम से इसे समझेंगे।
1. शक्ति संतुलन और नीति
2. सहयोग और विरोध की रणनीति
3. आंतरिक और बाहरी सुरक्षा
4. कूटनीति और राजनयिकता
5. अनुकूलन और लचीलापन
6. आर्थिक और व्यापारिक हित
निष्कर्ष
कौटिल्य की विदेश नीति के सिद्धांत आज भी वैश्विक राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में प्रासंगिक हैं। शक्ति संतुलन, कूटनीति, आंतरिक सुरक्षा, और आर्थिक हितों पर ध्यान देने वाले उनके विचार आधुनिक परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण हैं। UPSC Mains aspirants के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि ऐतिहासिक सिद्धांतों का आधुनिक संदर्भ में कैसे उपयोग किया जा सकता है और उनके अनुसार नीतियाँ कैसे विकसित की जा सकती हैं।
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