प्रश्न का उत्तर अधिकतम 15 से 20 शब्दों में दीजिए। यह प्रश्न 03 अंक का है। [MPPSC 2022] ई-वेस्ट क्या है?
यूट्रोफिकेशन एक प्रक्रिया है जिसमें जलाशयों या जल निकायों में अत्यधिक पोषक तत्वों का संचय हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप शैवाल और अन्य जलपरी किस्मों की अत्यधिक वृद्धि होती है। यह प्रक्रिया जल की गुणवत्ता, जलीय पारिस्थितिक तंत्र और कुल पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। मुख्य बिंदुRead more
यूट्रोफिकेशन एक प्रक्रिया है जिसमें जलाशयों या जल निकायों में अत्यधिक पोषक तत्वों का संचय हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप शैवाल और अन्य जलपरी किस्मों की अत्यधिक वृद्धि होती है। यह प्रक्रिया जल की गुणवत्ता, जलीय पारिस्थितिक तंत्र और कुल पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
मुख्य बिंदु:
- परिभाषा और प्रक्रिया
- यूट्रोफिकेशन का तात्पर्य जल में पोषक तत्वों, विशेषकर नाइट्रोजन और फास्फोरस, के अत्यधिक संचित होने से है। ये पोषक तत्व अक्सर कृषि अपशिष्ट, सीवेज, और औद्योगिक प्रदूषण से आते हैं।
- अत्यधिक पोषक तत्व शैवाल और जलपरी की तेजी से वृद्धि का कारण बनते हैं, जिससे जल की सतह पर शैवाल के बड़े ब्लूम बन जाते हैं। इससे पानी की सतह के नीचे की जलपरी की वृद्धि प्रभावित होती है।
- यूट्रोफिकेशन के परिणाम
- ऑक्सीजन की कमी: जैसे-जैसे शैवाल और जलपरी मरती हैं, उनका विघटन पानी से ऑक्सीजन का उपयोग करता है। इससे ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है, जिससे हाइपोक्सिक (कम ऑक्सीजन) या एनोमिक (कोई ऑक्सीजन नहीं) स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। इससे मछलियों की मौत हो सकती है और जलीय पारिस्थितिक तंत्र का पतन हो सकता है।
- विविधता की हानि: जल की रसायनिकी और ऑक्सीजन स्तर में बदलाव से जैव विविधता की कमी हो सकती है। जिन प्रजातियों को कम ऑक्सीजन स्तर सहन नहीं कर सकते, वे मर सकती हैं, और पारिस्थितिक तंत्र कुछ सहनशील प्रजातियों तक सीमित हो जाता है।
- जल की गुणवत्ता की समस्याएँ: यूट्रोफिकेशन से हानिकारक शैवाल ब्लूम्स उत्पन्न हो सकते हैं, जो विषैले होते हैं और पीने के पानी को संदूषित कर सकते हैं, जिससे मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
- हाल के उदाहरण:
- लेक एरी (अमेरिका/कनाडा): लेक एरी में कृषि भूमि से पोषक तत्वों के बहाव के कारण महत्वपूर्ण यूट्रोफिकेशन हुआ है। हाल के वर्षों में बड़े शैवाल ब्लूम्स ने जल की गुणवत्ता को प्रभावित किया और “डेड जोन” उत्पन्न किए जहाँ जलीय जीवन नहीं रह सकता।
- चिलिका लेक (भारत): ओडिशा में स्थित चिलिका लेक ने अत्यधिक पोषक तत्वों के बहाव के कारण यूट्रोफिकेशन का सामना किया है। शैवाल के ब्लूम्स और जल की गुणवत्ता में गिरावट ने मछली पालन और पक्षियों के आवास को प्रभावित किया है।
- डेड सी (मध्य पूर्व): डेड सी में जल की प्राप्ति में कमी और खनन गतिविधियों के कारण तेजी से यूट्रोफिकेशन हो रहा है। इसका परिणाम बढ़ी हुई लवणता और पोषक तत्वों की सांद्रता में हुआ है, जिससे इसके अनूठे पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव पड़ा है।
- निवारण और प्रबंधन
- पोषक तत्व प्रबंधन: कृषि में पोषक तत्वों के प्रबंधन के सर्वोत्तम अभ्यास, जैसे उर्वरक की मात्रा को कम करना और मिट्टी संरक्षण में सुधार करना, पोषक तत्वों के बहाव को कम कर सकता है।
- सीवेज उपचार: जल निकायों में डिस्चार्ज से पहले पोषक तत्वों को हटाने के लिए सीवेज उपचार सुविधाओं को सुधारना आवश्यक है।
- पुनर्स्थापना परियोजनाएँ: प्रभावित जलाशयों की पुनर्स्थापना के लिए उपायों में पोषक तत्वों के प्रवाह को कम करना, जल परिसंचरण में सुधार करना और जलपरी की वृद्धि को पुनर्स्थापित करना शामिल है।
- वैश्विक और स्थानीय प्रयास
- अंतर्राष्ट्रीय पहल: यूट्रोफिकेशन से निपटने के लिए वैश्विक प्रयासों में अंतर्राष्ट्रीय समझौते और सहयोग शामिल हैं, जैसे बाल्टिक सागर की रक्षा के लिए हेलसिंकी कन्वेंशन।
- स्थानीय कार्य: भारत में, राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना (NLCP) जैसे स्थानीय प्रयास यूट्रोफिकेशन से प्रभावित जलाशयों की पुनर्स्थापना और संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
निष्कर्ष
यूट्रोफिकेशन, जल में अत्यधिक पोषक तत्वों के संचित होने से उत्पन्न होती है, जिससे शैवाल और जलपरी की अत्यधिक वृद्धि होती है। इसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन की कमी, जैव विविधता की हानि, और जल की गुणवत्ता में गिरावट हो सकती है। हाल के उदाहरण, जैसे लेक एरी, चिलिका लेक, और डेड सी, इस मुद्दे की वैश्विक प्रासंगिकता को उजागर करते हैं। यूट्रोफिकेशन से निपटने के लिए प्रभावी प्रबंधन रणनीतियाँ, जैसे पोषक तत्व नियंत्रण, बेहतर सीवेज उपचार, और पुनर्स्थापना परियोजनाएँ, आवश्यक हैं ताकि जल पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
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ई-वेस्ट: एक अवलोकन परिभाषा और क्षेत्र ई-वेस्ट (E-waste) या इलेक्ट्रॉनिक कचरा उन इलेक्ट्रॉनिक या विद्युत उपकरणों को संदर्भित करता है जो अब उपयोग में नहीं हैं या जिनकी जीवन अवधि समाप्त हो चुकी है। इसमें कंप्यूटर, स्मार्टफोन्स, टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर्स, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण शामिल हैं। ई-वेस्ट का अRead more
ई-वेस्ट: एक अवलोकन
परिभाषा और क्षेत्र ई-वेस्ट (E-waste) या इलेक्ट्रॉनिक कचरा उन इलेक्ट्रॉनिक या विद्युत उपकरणों को संदर्भित करता है जो अब उपयोग में नहीं हैं या जिनकी जीवन अवधि समाप्त हो चुकी है। इसमें कंप्यूटर, स्मार्टफोन्स, टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर्स, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण शामिल हैं। ई-वेस्ट का असंगठित निपटान पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरों को जन्म देता है क्योंकि इनमें हानिकारक सामग्री होती है।
ई-वेस्ट के घटक:
हाल के उदाहरण और प्रभाव
चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा
असंगठित निपटान प्रथाएँ:
विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी (EPR) की आवश्यकता:
जन जागरूकता और शिक्षा:
निष्कर्ष ई-वेस्ट एक बढ़ता हुआ वैश्विक मुद्दा है जिसका पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव है। इसका समाधान करने के लिए पुनर्नवीनीकरण तकनीकों, सख्त नियमों, और जन जागरूकता में सुधार की आवश्यकता है। हाल के नवाचार और अंतर्राष्ट्रीय प्रयास, जैसे कि WEEE Directive और नवीनतम पुनर्नवीनीकरण तकनीकें, आशाजनक समाधान प्रदान करती हैं, लेकिन ई-वेस्ट को स्थायी रूप से प्रबंधित करने और इसके प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक हैं।
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