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मुगलकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
मुगलकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति मुगलकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति जटिल और बहुपरकारी थी, जो सामाजिक वर्ग, धर्म, और विभिन्न मुग़ल सम्राटों की नीतियों से प्रभावित थी। इस स्थिति को समझने के लिए निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है: 1. सामाजिक स्थिति: राजघराने की महिलाएँ: मुग़ल राजघरानेRead more
मुगलकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति
मुगलकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति जटिल और बहुपरकारी थी, जो सामाजिक वर्ग, धर्म, और विभिन्न मुग़ल सम्राटों की नीतियों से प्रभावित थी। इस स्थिति को समझने के लिए निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है:
1. सामाजिक स्थिति:
2. शिक्षा और सांस्कृतिक भागीदारी:
3. विवाह और पारिवारिक जीवन:
4. कानूनी और सामाजिक अधिकार:
5. हाल की ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन:
निष्कर्ष
मुग़लकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति सामाजिक वर्गों के आधार पर भिन्न थी। जबकि राजघराने और उच्चवर्गीय महिलाओं के पास शिक्षा, शक्ति और सांस्कृतिक प्रभाव था, सामान्य महिलाओं की स्थिति अधिक सीमित थी और उनकी भूमिकाएँ मुख्यतः पारिवारिक और घरेलू जिम्मेदारियों तक सीमित थीं। हाल के शोध और पुनर्मूल्यांकन ने इस स्थिति को अधिक व्यापक रूप से समझने में मदद की है।
See lessइजारा प्रणाली क्या थी?
इजारा प्रणाली एक ऐतिहासिक राजस्व प्रथा थी जिसका उपयोग भारत में मुग़ल काल और उसके बाद के काल में हुआ। इस प्रणाली के अंतर्गत, सरकार ने भूमि कर (राजस्व) का संग्रह एक मध्यस्थ को सौंप दिया। इस मध्यस्थ को "इजारा" कहा जाता था। इजारा प्रणाली में, सरकार ने एक निश्चित समयावधि के लिए, जैसे कि एक वर्ष, भूमि करRead more
इजारा प्रणाली एक ऐतिहासिक राजस्व प्रथा थी जिसका उपयोग भारत में मुग़ल काल और उसके बाद के काल में हुआ। इस प्रणाली के अंतर्गत, सरकार ने भूमि कर (राजस्व) का संग्रह एक मध्यस्थ को सौंप दिया। इस मध्यस्थ को “इजारा” कहा जाता था।
इजारा प्रणाली में, सरकार ने एक निश्चित समयावधि के लिए, जैसे कि एक वर्ष, भूमि कर का पूरा अधिकार एक ठेकेदार को दे दिया। ठेकेदार (या इजारा) को अपने ऊपर निर्भर क्षेत्रों से कर इकट्ठा करने और उसे सरकार को जमा करने की जिम्मेदारी दी जाती थी। इसके बदले में, ठेकेदार को कर संग्रहण से प्राप्त राशि में से एक हिस्सा लाभ के रूप में मिलता था।
इस प्रणाली के फायदे और नुकसान दोनों थे:
समय के साथ, इस प्रणाली की आलोचना हुई और अन्य राजस्व प्रणालियों ने इसे प्रतिस्थापित किया, लेकिन इसका प्रभाव और स्वरूप भारतीय प्रशासनिक इतिहास में महत्वपूर्ण था।
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