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क्या कारण था कि औद्योगिक क्रांति सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में घटी थी ? औद्योगीकरण के दौरान वहाँ के लोगों की जीवन-गुणता पर चर्चा कीजिये। भारत में वर्तमान में जीवन-गुणता के साथ वह किस प्रकार तुलनीय है ? (200 words) [UPSC 2015]
औद्योगिक क्रांति का इंग्लैण्ड में आरंभ **1. भौगोलिक और प्राकृतिक संसाधन औद्योगिक क्रांति इंग्लैण्ड में सबसे पहले घटी क्योंकि वहाँ कोयला और लौह अयस्क जैसे प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता थी। इन संसाधनों ने औद्योगिक मशीनों और ऊर्जा उत्पादन के लिए आवश्यक सामग्री प्रदान की। इंग्लैण्ड की भौगोलिक स्थिति नेRead more
औद्योगिक क्रांति का इंग्लैण्ड में आरंभ
**1. भौगोलिक और प्राकृतिक संसाधन
औद्योगिक क्रांति इंग्लैण्ड में सबसे पहले घटी क्योंकि वहाँ कोयला और लौह अयस्क जैसे प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता थी। इन संसाधनों ने औद्योगिक मशीनों और ऊर्जा उत्पादन के लिए आवश्यक सामग्री प्रदान की। इंग्लैण्ड की भौगोलिक स्थिति ने व्यापार मार्गों तक सुगम पहुंच प्रदान की, जिससे कच्चे माल के आयात और तैयार माल के निर्यात में मदद मिली।
**2. राजनीतिक और आर्थिक कारक
इंग्लैण्ड में स्थिर राजनीतिक वातावरण और अनुकूल आर्थिक नीतियाँ थीं, जिन्होंने नवाचार और उद्यमिता को प्रोत्साहित किया। बैंकिंग प्रणाली और पूंजी निवेश ने नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने में सहायता की। एन्क्लोजर एक्ट्स ने कृषि उत्पादकता को बढ़ाया और श्रमिकों को औद्योगिक कार्यों के लिए उपलब्ध कराया।
**3. प्रौद्योगिकी में नवाचार
इंग्लैण्ड में स्टीम इंजन (जेम्स वॉट द्वारा) और मेकनाइज्ड वस्त्र मशीनरी (स्पिनिंग जेननी जैसी) जैसे नवाचार हुए, जिन्होंने औद्योगिकीकरण को प्रोत्साहित किया।
औद्योगीकरण के दौरान जीवन-गुणता
**1. जीवित परिस्थितियाँ
औद्योगिकीकरण के प्रारंभिक चरणों में इंग्लैण्ड में जीवन-गुणता काफी कठिन थी। शहरीकरण के कारण अधिक आबादी, भीड़-भाड़ वाले आवास, और स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हुईं। श्रमिकों को लंबे घंटे और कम वेतन का सामना करना पड़ा। हालांकि, फैक्ट्री एक्ट्स और सामाजिक सुधारों ने समय के साथ परिस्थितियों में सुधार किया।
**2. आर्थिक लाभ
इन कठिनाइयों के बावजूद, औद्योगिक युग ने आर्थिक अवसरों में वृद्धि और जीवन स्तर में सुधार को बढ़ावा दिया, जैसा कि धन संचय और प्रौद्योगिकी में प्रगति के माध्यम से हुआ।
भारत में वर्तमान जीवन-गुणता की तुलना
**1. आर्थिक और सामाजिक प्रगति
आज भारत औद्योगिक और आर्थिक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। यहाँ श्रम कानून जैसे फैक्ट्री एक्ट और श्रम मानक अधिनियम हैं, जो श्रमिकों की भलाई को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं।
**2. जीवन-गुणता
भारत में शहरीकरण और आधुनिकीकरण के बावजूद, अवसंरचना समस्याएँ, आय असमानता, और नौकरी की स्थिति जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। हालिया पहल जैसे मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया इन समस्याओं को संबोधित करने का प्रयास कर रही हैं।
**3. प्रौद्योगिकी में प्रगति
भारत ने प्रौद्योगिकी और औद्योगिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की है, जिससे जीवन-गुणता में सुधार हुआ है, लेकिन असमान विकास और सामाजिक भिन्नताओं को ध्यान में रखना आवश्यक है।
संक्षेप में, इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति के समय जीवन-गुणता कठिन थी, जबकि भारत आज की स्थितियों में सुधार की दिशा में कदम बढ़ा रहा है, फिर भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
See lessलेनिन की नव आर्थिक नीति 1921 ने स्वतंत्रता के शीघ्र पश्चात् भारत द्वारा अपनाई गई नीतियों को प्रभावित किया था । मूल्यांकन कीजिए । (150 words) [UPSC 2014]
लेनिन की नव आर्थिक नीति (1921) और स्वतंत्रता के बाद भारत की नीतियों पर इसका प्रभाव नव आर्थिक नीति (NEP) 1921 का अवलोकन लेनिन की नव आर्थिक नीति (NEP) 1921 ने सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए राज्य नियंत्रण और सीमित बाजार तंत्र का संयोजन पेश किया। इसमें छोटे व्यवसायों की निजी स्वामित्वRead more
लेनिन की नव आर्थिक नीति (1921) और स्वतंत्रता के बाद भारत की नीतियों पर इसका प्रभाव
नव आर्थिक नीति (NEP) 1921 का अवलोकन
लेनिन की नव आर्थिक नीति (NEP) 1921 ने सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए राज्य नियंत्रण और सीमित बाजार तंत्र का संयोजन पेश किया। इसमें छोटे व्यवसायों की निजी स्वामित्व की अनुमति दी गई और कृषि उत्पादन को प्रोत्साहित किया गया, जिससे आर्थिक स्थिरता और साम्यवादी संक्रमण को सुगम बनाया गया।
भारत की स्वतंत्रता के बाद की नीतियों पर प्रभाव
भारत ने स्वतंत्रता के बाद कुछ नीतिगत तत्व अपनाए जो NEP के सिद्धांतों से प्रेरित थे:
हाल के उदाहरण
भारत की 1991 की आर्थिक उदारीकरण नीतियाँ और इसके बाद के सुधार, NEP की राज्य नियंत्रण और बाजार तंत्र के संयोजन की दिशा में एक व्यावहारिक दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।
निष्कर्ष
See lessलेनिन की नव आर्थिक नीति ने भारत की प्रारंभिक स्वतंत्रता के बाद की आर्थिक रणनीतियों को प्रभावित किया, जिसमें राज्य हस्तक्षेप और बाजार तंत्र का संतुलित दृष्टिकोण अपनाया गया।
स्पष्ट कीजिए कि अमरीकी एवं फ्रांसीसी क्रांतियों ने आधुनिक विश्व की आधारशिलाएँ किस प्रकार निर्मित की थीं । (250 words) [UPSC 2019]
अमेरिकी एवं फ्रांसीसी क्रांतियों द्वारा आधुनिक विश्व की आधारशिलाओं का निर्माण अमेरिकी क्रांति (1775-1783): अमेरिकी क्रांति ने लोकतंत्र, स्वतंत्रता, और मानवाधिकारों की अवधारणा को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया। अमेरिकी संविधान और बिल ऑफ़ राइट्स ने स्वतंत्रता, समानता और न्याय के सिद्धांतों को औपचारिक रूRead more
अमेरिकी एवं फ्रांसीसी क्रांतियों द्वारा आधुनिक विश्व की आधारशिलाओं का निर्माण
अमेरिकी क्रांति (1775-1783): अमेरिकी क्रांति ने लोकतंत्र, स्वतंत्रता, और मानवाधिकारों की अवधारणा को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया। अमेरिकी संविधान और बिल ऑफ़ राइट्स ने स्वतंत्रता, समानता और न्याय के सिद्धांतों को औपचारिक रूप से मान्यता दी, जो आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव बने। यह क्रांति औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ाई थी, जिसने उपनिवेशों को आत्म-निर्णय और स्वतंत्र राष्ट्र बनने का अधिकार दिया। उदाहरणस्वरूप, अमेरिकी क्रांति ने 20वीं शताब्दी में एशिया और अफ्रीका में स्वतंत्रता आंदोलनों को प्रेरित किया, जिससे औपनिवेशिक शासन का अंत हुआ।
फ्रांसीसी क्रांति (1789-1799): फ्रांसीसी क्रांति ने स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व के नारे के साथ राजशाही और सामंतवाद को चुनौती दी। यह क्रांति मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1789) के माध्यम से व्यक्तिगत अधिकारों और जनता की संप्रभुता के विचारों को फैलाने में महत्वपूर्ण रही। फ्रांसीसी क्रांति ने यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों में रिपब्लिकन विचारधारा को स्थापित किया, जिससे राजशाही का पतन हुआ और लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थापना हुई।
वैश्विक प्रभाव: अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांतियों ने संविधानवाद, नागरिक अधिकारों, और जनतांत्रिक सरकारों के आदर्शों को बढ़ावा दिया। उदाहरणस्वरूप, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1948) इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित है। हाल के समय में, जैसे 2011 में अरब स्प्रिंग, अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांति की प्रेरणा से लोकतंत्र और अधिकारों के लिए व्यापक जन आंदोलन हुए।
निष्कर्ष: अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांतियों ने आधुनिक विश्व की राजनीतिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक नींव को मजबूत किया। इन क्रांतियों से स्थापित सिद्धांत आज भी लोकतांत्रिक समाजों में समानता, स्वतंत्रता, और मानवाधिकारों के आधार पर कायम हैं।
See lessविश्व के विभिन्न देशों में रेलवे के आगमन से होने वाले सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को उजागर कीजिए। ( 150 Words) [UPSC 2023]
रेलवे के आगमन से विश्व के विभिन्न देशों में सामाजिक-आर्थिक प्रभाव आर्थिक प्रभाव: रेलवे के आगमन ने औद्योगिक क्रांति के दौरान और उसके बाद वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत किया। यह सामान्य माल और कच्चे माल की त्वरित और किफायती ढुलाई को संभव बनाता है, जिससे व्यापार और औद्योगिकीकरण में वृद्धि हुई। उदाहरणसRead more
रेलवे के आगमन से विश्व के विभिन्न देशों में सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
आर्थिक प्रभाव: रेलवे के आगमन ने औद्योगिक क्रांति के दौरान और उसके बाद वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत किया। यह सामान्य माल और कच्चे माल की त्वरित और किफायती ढुलाई को संभव बनाता है, जिससे व्यापार और औद्योगिकीकरण में वृद्धि हुई। उदाहरणस्वरूप, ब्रिटेन में 19वीं सदी में रेलवे नेटवर्क के विस्तार ने औद्योगिक क्षेत्रों को प्रमुख बंदरगाहों से जोड़ा, जिससे उत्पादन में तेजी आई और निर्यात में बढ़ोतरी हुई। आज के समय में चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत रेलवे नेटवर्क का विस्तार वैश्विक व्यापार कनेक्टिविटी को बढ़ा रहा है, जिससे विकासशील देशों में रोजगार और निवेश के अवसर बढ़ रहे हैं।
सामाजिक प्रभाव: रेलवे ने शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच संपर्क को मजबूत किया। भारत में, 19वीं शताब्दी में रेलवे के आगमन ने सामाजिक गतिशीलता और संचार में सुधार किया, जिससे विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के बीच संबंध स्थापित हुए। आज, बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट जैसे योजनाओं से ग्रामीण और शहरी भारत के बीच कनेक्टिविटी बढ़ रही है, जिसका प्रभाव आर्थिक विकास और सामाजिक समृद्धि पर पड़ रहा है।
रेलवे ने वैश्विक स्तर पर शहरीकरण, रोजगार और सांस्कृतिक संपर्क को बढ़ावा दिया है, जो लंबे समय तक आर्थिक और सामाजिक प्रगति का आधार बना।
See lessद्वितीय विश्व युद्ध को अवश्यम्भावी बनाने में हिटलर की भूमिका की विवेचना कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2018]
हिटलर की भूमिका द्वितीय विश्व युद्ध में: परिचय: हिटलर की आक्रामक नीतियाँ और विस्तारवादी एजेंडा ने द्वितीय विश्व युद्ध को उत्तेजित किया, जिसने यूरोप और उसके परे क्षेत्र के भूगोलिक परिदृश्य को पुनर्रचित किया। आक्रामक विस्तारवाद: आडॉल्फ हिटलर, जैसे जर्मनी के चांसलर, ने एक भूमि के विस्तार की नीति का पालRead more
हिटलर की भूमिका द्वितीय विश्व युद्ध में:
परिचय:
हिटलर की आक्रामक नीतियाँ और विस्तारवादी एजेंडा ने द्वितीय विश्व युद्ध को उत्तेजित किया, जिसने यूरोप और उसके परे क्षेत्र के भूगोलिक परिदृश्य को पुनर्रचित किया।
आक्रामक विस्तारवाद:
आडॉल्फ हिटलर, जैसे जर्मनी के चांसलर, ने एक भूमि के विस्तार की नीति का पालन किया जिसने वर्साय की संधि का उल्लंघन किया। उनकी महत्वाकांक्षाएँ एक महान जर्मनी बनाने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए 1938 में ऑस्ट्रिया (आंश्लस) का अधिग्रहण और चेकोस्लोवाकिया का अधिग्रहण किया।
पोलैंड का आक्रमण:
हिटलर का सबसे उत्तेजक कृत्य था पोलैंड का आक्रमण सितंबर 1939 में, जिसने ब्रिटेन और फ्रांस को जर्मनी पर युद्ध घोषित करने के लिए मजबूर किया, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध की आधिकारिक शुरुआत हुई।
ब्लिट्ज़क्रीग युद्ध रणनीति:
हिटलर के कमांड में जर्मन सैन्य ने तेजी से विजय पाने के लिए भयानक ब्लिट्ज़क्रीग युद्ध रणनीतियों का उपयोग किया, जिससे फ्रांस, निम्न देश और पूर्वी यूरोप के बड़े हिस्सों को तेजी से जीता गया।
वैश्विक संघर्ष पर प्रभाव:
हिटलर के कार्यों ने सीधे रूप से दो विरोधी गठबंधनों का गठन किया – एक्सिस शक्तियाँ और सहयोगी, जिसने संघर्ष को वैश्विक युद्ध में एक प्रमुख भूमिका दिया, जिसमें विभिन्न महाद्वीपों से मुख्य शक्तियाँ शामिल थीं।
निष्कर्ष:
See lessसमग्र रूप से, हिटलर की आक्रामक विदेशी नीतियाँ, विस्तारवादी महत्वाकांक्षाएँ, और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के प्रति अवहेलना, द्वितीय विश्व युद्ध को प्रारंभ और उत्तेजित करने में महत्वपूर्ण थी, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर व्यापक विनाश और जीवन की हानि हुई। उनकी भूमिका एक स्पष्ट चेतावनी के रूप में कार्य करती है कि बिना निगरानी की सैन्यवाद और आक्रामक राष्ट्रवाद के अत्याधुनिक अन्धाधुनिकी के अपराधों के क्या अत्याचारी परिणाम हो सकते हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् वैश्विक स्तर पर विश्वशांति के लिये किये गये प्रयासों का वर्णन कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् वैश्विक स्तर पर विश्वशांति के प्रयास 1. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को की गई। इसका उद्देश्य वैश्विक शांति, सुरक्षा, और सहयोग को बढ़ावा देना था। सुरक्षा परिषद, आर्थिक और सामाजिक परिषद, और सRead more
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् वैश्विक स्तर पर विश्वशांति के प्रयास
1. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को की गई। इसका उद्देश्य वैश्विक शांति, सुरक्षा, और सहयोग को बढ़ावा देना था। सुरक्षा परिषद, आर्थिक और सामाजिक परिषद, और संस्कृति एवं शिक्षा संगठन (UNESCO) जैसे विभिन्न अंग इसकी शांति और सहयोग की दिशा में काम कर रहे हैं।
2. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)
विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना 7 अप्रैल 1948 को हुई थी। इसका लक्ष्य वैश्विक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना और महामारियों और स्वास्थ्य संकटों के खिलाफ लड़ना है। हाल ही में, COVID-19 महामारी के दौरान WHO ने वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य नीतियाँ और सहायता प्रदान की।
3. परमाणु हथियारों के नियंत्रण के प्रयास
1945 में परमाणु बम के उपयोग के बाद, आणविक हथियारों के नियंत्रण के प्रयास तेज हुए। अणु ऊर्जा आयोग और परमाणु अप्रसार संधि (NPT) ने परमाणु हथियारों के प्रसार को सीमित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। पेरिस जलवायु समझौता (2015) भी वैश्विक संकटों के समाधान के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
4. क्षेत्रीय सुरक्षा संधियाँ और समझौतें
नाटो (NATO) और शंघाई सहयोग संगठन जैसे क्षेत्रीय सुरक्षा संधियाँ ने विभिन्न क्षेत्रों में सुरक्षा सहयोग और शांति प्रयास को प्रोत्साहित किया है।
5. वैश्विक संधियाँ और सम्मेलन
जेनिवा संधियाँ और मध्यस्थता जैसे सम्मेलन ने मानवाधिकार और अंतर्राष्ट्रीय मानक स्थापित किए हैं। म्यांमार और यमन जैसे संघर्षों में शांति प्रयासों को भी वैश्विक समर्थन मिला है।
इन प्रयासों ने वैश्विक शांति को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, हालांकि चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।
See lessब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति का भारत के आर्थिक जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजये। (125 Words) [UPPSC 2019]
1. उद्योगों का पतन: ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति के कारण भारत के पारंपरिक उद्योगों जैसे हस्तशिल्प और कपड़ा उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। ब्रिटिश सामान की सस्ती कीमतों ने भारतीय वस्त्र उद्योग को मंदी की ओर धकेल दिया, जैसे कि बंगाल का कपड़ा उद्योग। 2. आर्थिक शोषण: भारत को कच्चे माल और बाजार के रूपRead more
1. उद्योगों का पतन: ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति के कारण भारत के पारंपरिक उद्योगों जैसे हस्तशिल्प और कपड़ा उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। ब्रिटिश सामान की सस्ती कीमतों ने भारतीय वस्त्र उद्योग को मंदी की ओर धकेल दिया, जैसे कि बंगाल का कपड़ा उद्योग।
2. आर्थिक शोषण: भारत को कच्चे माल और बाजार के रूप में उपयोग किया गया। रेलवे और इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास मुख्यतः ब्रिटेन के लिए संसाधनों के परिवहन हेतु था, जिससे धन का बहाव और आर्थिक शोषण हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत से ब्रिटेन को भेजे गए संसाधनों की मात्रा में वृद्धि हुई।
3. कृषि में परिवर्तन: कृषि क्षेत्र में नकद फसलों पर जोर देने से फसल विविधता में कमी आई, जिससे खाद्य संकट पैदा हुआ। गंगा तट पर बाढ़ और फसल असफलता ने अन्न संकट को बढ़ाया।
निष्कर्ष: ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति ने भारत के उद्योगों का पतन, आर्थिक शोषण, और कृषि में परिवर्तन के माध्यम से उसकी आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया, जिसके दूरगामी परिणाम आज भी महसूस किए जाते हैं।
See lessजैकोबिन्स कौन थे ? फ्रांसीसी क्रांति में उनकी क्या भूमिका थी? (200 Words) [UPPSC 2020]
जैकोबिन्स और फ्रांसीसी क्रांति में उनकी भूमिका जैकोबिन्स का परिचय जैकोबिन्स फ्रांसीसी क्रांति के दौरान एक उग्रवादी राजनीतिक समूह थे, जिनका नाम जैकॉबिन क्लब के नाम पर पड़ा, जो कि एक पूर्व जैकोबिन मठ में स्थित था। इस क्लब ने आज़ादी, समानता, और लोकतंत्र के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया। फ्रांसीसी क्रांति मRead more
जैकोबिन्स और फ्रांसीसी क्रांति में उनकी भूमिका
जैकोबिन्स का परिचय
जैकोबिन्स फ्रांसीसी क्रांति के दौरान एक उग्रवादी राजनीतिक समूह थे, जिनका नाम जैकॉबिन क्लब के नाम पर पड़ा, जो कि एक पूर्व जैकोबिन मठ में स्थित था। इस क्लब ने आज़ादी, समानता, और लोकतंत्र के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया।
फ्रांसीसी क्रांति में भूमिका
हाल के उदाहरण
निष्कर्ष
जैकोबिन्स ने फ्रांसीसी क्रांति के दौरान राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, परंतु उनके द्वारा अपनाए गए सख्त उपाय और आतंक की स्थिति ने उनके कार्यकाल की जटिलता और विवादास्पदता को बढ़ाया।
See lessइटली में फाँसीवाद के नेता मुसोलिनी की विदेश नीति पर समीक्षात्मक टिप्पणी लिखिये। (125 Words) [UPPSC 2020]
मुसोलिनी की विदेश नीति पर समीक्षात्मक टिप्पणी मुसोलिनी की विदेश नीति, फासीवादी सिद्धांतों से प्रेरित, आक्रमकता और साम्राज्यवाद पर आधारित थी। विस्तारवाद: मुसोलिनी ने इथियोपिया (1935) और अल्बानिया (1939) पर आक्रमण कर इटली के साम्राज्यवादी लक्ष्यों को पूरा करने की कोशिश की। रोम-बर्लिन धुरी: उसने नाजी जRead more
मुसोलिनी की विदेश नीति पर समीक्षात्मक टिप्पणी
मुसोलिनी की विदेश नीति, फासीवादी सिद्धांतों से प्रेरित, आक्रमकता और साम्राज्यवाद पर आधारित थी।
निष्कर्ष: मुसोलिनी की विदेश नीति ने इटली को अंतरराष्ट्रीय विवाद और युद्ध की ओर धकेल दिया, जिससे उसकी विदेश नीति की विफलता स्पष्ट हो गई।
See lessबालकन संकट से आप क्या समझते हैं? प्रथम विश्व युद्ध में इसकी क्या भूमिका थी? (200 Words) [UPPSC 2021]
बालकन संकट (Balkan Crisis) 19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में यूरोप में एक प्रमुख राजनीतिक संकट था, जिसने प्रथम विश्व युद्ध की परिस्थितियों को उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह संकट बालकन क्षेत्र में देशों की सीमा विवाद, राष्ट्रीयता की भावना, और बड़ी शक्तियों के बीच प्रतिकूल राजनीति के कारणRead more
बालकन संकट (Balkan Crisis) 19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में यूरोप में एक प्रमुख राजनीतिक संकट था, जिसने प्रथम विश्व युद्ध की परिस्थितियों को उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह संकट बालकन क्षेत्र में देशों की सीमा विवाद, राष्ट्रीयता की भावना, और बड़ी शक्तियों के बीच प्रतिकूल राजनीति के कारण उत्पन्न हुआ।
बालकन संकट की शुरुआत 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में हुई जब ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य और ओटोमन साम्राज्य के विघटन के कारण बालकन क्षेत्र में कई छोटे राष्ट्र उभरने लगे। 1908 में ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य ने बोस्निया और हर्जेगोविना को अपने कब्जे में ले लिया, जिससे रूस और सर्बिया के साथ तनाव बढ़ गया। 1912-1913 के बालकन युद्धों के परिणामस्वरूप, बालकन क्षेत्र में नए राजनीतिक समीकरण बने और नए सर्बियन साम्राज्य के निर्माण ने क्षेत्रीय असंतोष को बढ़ावा दिया।
इन संकटों ने यूरोपीय शक्तियों के बीच तनाव को बढ़ाया और मिलिट्री गठबंधनों को मजबूत किया। विशेष रूप से, ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य और सर्बिया के बीच का तनाव और सर्बिया के साथ रूस के सहयोग ने यूरोप में गहरे संघर्षों को जन्म दिया। इस तरह, बालकन संकट ने एक श्रृंखलाबद्ध संघर्ष की स्थिति उत्पन्न की, जो 1914 में प्रथम विश्व युद्ध का मुख्य कारण बनी।
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