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औद्योगिक क्रान्ति केवल तकनीकी क्रान्ति ही नहीं अपितु सामाजिक एवं आर्थिक क्रान्ति भी थी, जिसने लोगों के जीने का ढंग परिवर्तित कर दिया।' टिप्पणी कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2021]
औद्योगिक क्रांति: एक तकनीकी, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन औद्योगिक क्रांति न केवल तकनीकी परिवर्तन का प्रतीक थी, बल्कि यह एक सामाजिक और आर्थिक क्रांति भी थी। तकनीकी दृष्टिकोण से, इसमें यांत्रिक उपकरणों, स्टीम इंजन, और उत्पादन प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण उन्नति शामिल थी, जिससे उत्पादन की मात्रा और गति मेRead more
औद्योगिक क्रांति: एक तकनीकी, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन
औद्योगिक क्रांति न केवल तकनीकी परिवर्तन का प्रतीक थी, बल्कि यह एक सामाजिक और आर्थिक क्रांति भी थी।
तकनीकी दृष्टिकोण से, इसमें यांत्रिक उपकरणों, स्टीम इंजन, और उत्पादन प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण उन्नति शामिल थी, जिससे उत्पादन की मात्रा और गति में तेजी आई।
सामाजिक दृष्टिकोण से, फैक्ट्रियों की स्थापना ने बड़े पैमाने पर शहरीकरण को बढ़ावा दिया। कृषि आधारित जीवनशैली से औद्योगिक जीवनशैली की ओर संक्रमण ने परिवारिक और सामाजिक संरचनाओं को बदल दिया।
आर्थिक दृष्टिकोण से, नए उद्योगों और रोजगार के अवसरों ने आर्थिक असमानता को जन्म दिया, और साथ ही वेतनमान और कार्य परिस्थितियों में भी बदलाव आया।
हाल के उदाहरण जैसे डिजिटल क्रांति और वैश्वीकरण भी इस प्रक्रिया की निरंतरता को दर्शाते हैं, जहाँ तकनीकी प्रगति के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक ढांचों में परिवर्तन हो रहे हैं।
See less1956 में स्वेज़ संकट को पैदा करने वाली घटनाएँ क्या थीं? उसने एक विश्व शक्ति के रूप में ब्रिटेन की आत्म-छवि पर किस प्रकार अंतिम प्रहार किया ? (150 words) [UPSC 2014]
1956 का स्वेज़ संकट एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय घटना थी जो ब्रिटेन की विश्व शक्ति के रूप में आत्म-छवि को गहरा प्रभावित किया। स्वेज़ संकट को पैदा करने वाली घटनाएँ: स्वेज़ नहर का राष्ट्रीयकरण: मिस्र के राष्ट्रपति गामल अब्देल नासर ने स्वेज़ नहर को राष्ट्रीयकरण कर लिया, जो ब्रिटेन और फ्रांस के लिए एक महRead more
1956 का स्वेज़ संकट एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय घटना थी जो ब्रिटेन की विश्व शक्ति के रूप में आत्म-छवि को गहरा प्रभावित किया।
स्वेज़ संकट को पैदा करने वाली घटनाएँ:
See lessस्वेज़ नहर का राष्ट्रीयकरण: मिस्र के राष्ट्रपति गामल अब्देल नासर ने स्वेज़ नहर को राष्ट्रीयकरण कर लिया, जो ब्रिटेन और फ्रांस के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक मार्ग था।
सुएज़ संकट योजना: ब्रिटेन, फ्रांस और इज़राइल ने मिलकर मिस्र के खिलाफ सैन्य अभियान की योजना बनाई, जिसे “सुएज़ संकट” के नाम से जाना जाता है।
ब्रिटेन की आत्म-छवि पर प्रभाव:
अंतरराष्ट्रीय असफलता: संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका के विरोध के चलते ब्रिटेन को सैन्य और कूटनीतिक असफलता का सामना करना पड़ा, जिससे उसकी विश्व शक्ति की छवि को धक्का लगा।
अमेरिका और सोवियत संघ की बढ़ती भूमिका: अमेरिका की धमकियों और सोवियत संघ की धमकी ने ब्रिटेन की वैश्विक प्रभावशीलता को कम किया, दिखाते हुए कि ब्रिटेन अब एक प्रमुख विश्व शक्ति नहीं रह गया।
इस प्रकार, स्वेज़ संकट ने ब्रिटेन की विश्व शक्ति की आत्म-छवि पर महत्वपूर्ण और स्थायी प्रभाव डाला।
पश्चिमी अफ्रीका में उपनिवेश-विरोधी संघर्षों को पाश्चात्य-शिक्षित अफ्रीकियों के नव संभ्रांत वर्ग के द्वारा नेतृत्व प्रदान किया गया था। परीक्षण कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
पश्चिमी अफ्रीका में उपनिवेश-विरोधी संघर्षों का नेतृत्व पाश्चात्य-शिक्षित अफ्रीकियों के नव संभ्रांत वर्ग ने किया, जिन्होंने औपनिवेशिक शासनों के खिलाफ स्वतंत्रता और स्वशासन की मांग उठाई। इस नव संभ्रांत वर्ग का उदय 20वीं सदी के प्रारंभ में हुआ, जब कुछ अफ्रीकी युवाओं को यूरोपीय शिक्षा प्राप्त करने का अवRead more
पश्चिमी अफ्रीका में उपनिवेश-विरोधी संघर्षों का नेतृत्व पाश्चात्य-शिक्षित अफ्रीकियों के नव संभ्रांत वर्ग ने किया, जिन्होंने औपनिवेशिक शासनों के खिलाफ स्वतंत्रता और स्वशासन की मांग उठाई। इस नव संभ्रांत वर्ग का उदय 20वीं सदी के प्रारंभ में हुआ, जब कुछ अफ्रीकी युवाओं को यूरोपीय शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला। इन शिक्षित अफ्रीकियों ने यूरोपीय विचारों, जैसे लोकतंत्र, स्वतंत्रता और मानवाधिकारों से प्रेरणा ली, और उन्होंने अपने देशों के लिए समान अधिकार और स्वतंत्रता की मांग की।
इन नेताओं में क्वीमे नक्रूमा (घाना), सेको टुरे (गिनी), और फेलिक्स हौफुएट-बोइगनी (कोटे डी’आईवोआर) प्रमुख थे, जिन्होंने अपने-अपने देशों में स्वतंत्रता आंदोलनों का नेतृत्व किया। ये नेता औपनिवेशिक शासनों के दमनकारी नीतियों के खिलाफ संगठित हो गए और जनता को जागरूक किया। उन्होंने अपने देशों की राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक स्थितियों को सुधारने के लिए विचारधारात्मक और व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान किया।
हालांकि, इन नव संभ्रांत वर्ग के नेताओं ने उपनिवेश-विरोधी संघर्षों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन जनता के व्यापक समर्थन के बिना यह संघर्ष सफल नहीं हो सकता था। इन नेताओं ने जनता की आकांक्षाओं और पारंपरिक नेताओं के साथ मिलकर उपनिवेश-विरोधी आंदोलन को व्यापक जनाधार प्रदान किया। इस प्रकार, पाश्चात्य-शिक्षित अफ्रीकियों के नव संभ्रांत वर्ग ने पश्चिमी अफ्रीका में स्वतंत्रता संग्राम को नेतृत्व और दिशा दी।
See less19वीं शताब्दी के यूरोप की प्रमुख विशेषताओं में से एक राष्ट्रीय एकीकरण के लिए संघर्ष था। जर्मनी के संदर्भ में चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
19वीं शताब्दी में जर्मनी में राष्ट्रीय एकीकरण का संघर्ष एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी। उस समय जर्मनी विभिन्न स्वतंत्र राज्यों और ड्यूकल्स (राजवाड़ों) में विभाजित था, जिनमें प्रमुख राज्यों के रूप में प्रुशिया और ऑस्ट्रिया शामिल थे। इस राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया को "जर्मन एकीकरण" कहा जाता है और यहRead more
19वीं शताब्दी में जर्मनी में राष्ट्रीय एकीकरण का संघर्ष एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी। उस समय जर्मनी विभिन्न स्वतंत्र राज्यों और ड्यूकल्स (राजवाड़ों) में विभाजित था, जिनमें प्रमुख राज्यों के रूप में प्रुशिया और ऑस्ट्रिया शामिल थे।
इस राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया को “जर्मन एकीकरण” कहा जाता है और यह मुख्यतः ओटो वॉन बिस्मार्क द्वारा संचालित की गई। बिस्मार्क ने अपने “रियलपॉलिटिक” दृष्टिकोण के तहत, प्रुशिया की शक्ति को मजबूत करने और अन्य राज्यों को एकजुट करने के लिए युद्ध और कूटनीति का उपयोग किया। 1864 में डेनिश युद्ध, 1866 में ऑस्ट्रो-प्रुशियन युद्ध, और 1870-71 के फ्रेंको-प्रुशियन युद्ध के बाद, जर्मन साम्राज्य की स्थापना हुई।
यह एकीकरण जर्मन राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा देने के साथ-साथ यूरोप में जर्मनी की शक्ति और प्रभाव को भी स्थापित किया।
See lessEducation
Historical and Cultural Factors: Traditional Learning: The Indian education system has long emphasized rote learning and memorization. Exam Focus: Success is often measured by exam performance, which encourages theoretical study. Resource Constraints: Teacher Training: Many teachers lack training inRead more
Historical and Cultural Factors:
Resource Constraints:
Policy and Curriculum:
Moving Forward:
How does communalism affect social cohesion and the overall stability of a nation?
Communalism, which involves promoting the interests of one religious or ethnic group over others, can seriously damage social cohesion and national stability. When communities are divided along religious lines, trust between different groups erodes, leading to suspicion and hostility. This can sparkRead more
Communalism, which involves promoting the interests of one religious or ethnic group over others, can seriously damage social cohesion and national stability. When communities are divided along religious lines, trust between different groups erodes, leading to suspicion and hostility. This can spark conflicts, riots, and even large-scale violence, making it hard for people to live together peacefully.
Such divisions weaken the sense of national unity, as people start identifying more with their community than with the nation as a whole. The government might struggle to maintain order, and public resources often get diverted to managing conflicts instead of development. Over time, communalism can tear apart the social fabric, disrupt economic progress, and create deep-seated divisions that are hard to heal, making it a serious threat to the stability and growth of any nation.
See lessबाह्य दबाव और औपनिवेशिक विरोध के साथ-साथ घेरलू दबाव ने यूरोपीय शक्तियों को उपनिवेशों पर अपना दावा छोड़ने के लिए विवश किया। सविस्तार वर्णन कीजिए।(150 शब्दों में उत्तर दें)
रोपीय शक्तियों को उपनिवेशों पर अपना दावा छोड़ने के लिए बाह्य, औपनिवेशिक विरोध और घरेलू दबाव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाह्य दबाव: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने उपनिवेशवाद का विरोध किया और औपनिवेशिक देशों की स्वतंत्रता का समर्थन किया। संयुक्त राष्ट्र ने भी उपनिवेRead more
रोपीय शक्तियों को उपनिवेशों पर अपना दावा छोड़ने के लिए बाह्य, औपनिवेशिक विरोध और घरेलू दबाव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बाह्य दबाव: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने उपनिवेशवाद का विरोध किया और औपनिवेशिक देशों की स्वतंत्रता का समर्थन किया। संयुक्त राष्ट्र ने भी उपनिवेशवाद को समाप्त करने का समर्थन किया, जिससे वैश्विक दबाव बढ़ा।
औपनिवेशिक विरोध: उपनिवेशों में स्वतंत्रता आंदोलन तेजी से बढ़े। भारत, अल्जीरिया, इंडोनेशिया जैसे देशों में हुए आंदोलनों ने यूरोपीय शक्तियों के लिए उपनिवेशों को बनाए रखना कठिन कर दिया। इन आंदोलनों ने राजनीतिक और सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से औपनिवेशिक शासन को चुनौती दी।
घरेलू दबाव: यूरोप के भीतर युद्धोत्तर आर्थिक कठिनाइयों और युद्ध के बाद की पुनर्निर्माण की जरूरतों ने उपनिवेशों को बनाए रखने की लागत को बढ़ा दिया। जनता और राजनीतिक नेताओं के बीच उपनिवेशों को छोड़ने की मांग बढ़ी, क्योंकि उनका प्रबंधन अब लाभकारी नहीं रहा था।
इन तीनों दबावों ने मिलकर यूरोपीय शक्तियों को विवश किया कि वे अपने उपनिवेशों पर दावा छोड़ दें और उन्हें स्वतंत्रता प्रदान करें।
See lessवे कौन-से कारक हैं, जिन्होनें 1917 की रूसी क्रांति को प्रेरित किया? इसके परिणामों की विवेचना कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
1917 की रूसी क्रांति को प्रेरित करने वाले मुख्य कारक निम्नलिखित थे: राजनीतिक अस्थिरता: तंत्रिक शासन, युद्ध, और अर्थव्यवस्था में गिरावट ने लोगों के विश्वास को हिला दिया। सामाजिक असमानता: उच्च और निम्न वर्गों के बीच सामाजिक और आर्थिक असमानता ने प्रगति की रोकथाम की भावना को बढ़ाया। प्रगतिवादी विचारधाराRead more
1917 की रूसी क्रांति को प्रेरित करने वाले मुख्य कारक निम्नलिखित थे:
रूसी क्रांति के परिणामों में निम्नलिखित शामिल थे:
इन परिणामों ने रूसी समाज को गहरी रूप से परिवर्तित कर दिया और विश्व के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भी महत्वपूर्ण बदलाव लाए।
See lessप्रथम विश्व युद्ध के अंतर्निहित कारण साम्राज्यवादी देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता और संघर्ष थे। सविस्तार वर्णन कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
प्रथम विश्व युद्ध के अंतर्निहित कारणों में साम्राज्यवादी देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता और संघर्ष महत्वपूर्ण थे। इन कारणों में इतिहास, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारक शामिल थे। 1. साम्राज्यवादी राजनीति: साम्राज्यवादी देशों की राजनीति में विस्तार, सत्ता की भूख और स्वायत्तता के प्रति आक्रांति नकारात्मकRead more
प्रथम विश्व युद्ध के अंतर्निहित कारणों में साम्राज्यवादी देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता और संघर्ष महत्वपूर्ण थे। इन कारणों में इतिहास, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारक शामिल थे।
1. साम्राज्यवादी राजनीति: साम्राज्यवादी देशों की राजनीति में विस्तार, सत्ता की भूख और स्वायत्तता के प्रति आक्रांति नकारात्मक प्रभाव डालती थी।
2. आर्थिक मोटिवेशन: साम्राज्यवादी देशों के बीच वस्त्र और धन की खोज, आर्थिक और व्यापारिक संघर्ष भी एक मुख्य कारक था।
3. इतिहासिक विरोध: इतिहास, विभिन्न स्थानीय और राष्ट्रीय विरोध का एक प्रमुख कारण था।
4. सामाजिक और सांस्कृतिक विभिन्नता: साम्राज्यवादी देशों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक विभिन्नता भी विवाद और प्रतिद्वंद्विता का कारण बनती थी।
इन कारणों के संयोग से प्रथम विश्व युद्ध आरंभ हुआ और यह एक विशाल और नाशकारी संघर्ष स्थापित कर दिया जिसने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया।
See lessजर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए । (200 Words) [UPPSC 2023]
जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का मूल्यांकन 1. राजनीतिक रणनीति: ऑटो वॉन बिस्मार्क, जो कि प्रुसिया के प्रधानमंत्री थे, ने जर्मन एकीकरण के लिए एक सशक्त राजनीतिक रणनीति अपनाई। उन्होंने "रियलपॉलिटिक" की नीति अपनाई, जिसमें उन्होंने जर्मन राज्यों के एकीकरण के लिए वास्तविक शक्ति और अवसरों का उपयोRead more
जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का मूल्यांकन
1. राजनीतिक रणनीति: ऑटो वॉन बिस्मार्क, जो कि प्रुसिया के प्रधानमंत्री थे, ने जर्मन एकीकरण के लिए एक सशक्त राजनीतिक रणनीति अपनाई। उन्होंने “रियलपॉलिटिक” की नीति अपनाई, जिसमें उन्होंने जर्मन राज्यों के एकीकरण के लिए वास्तविक शक्ति और अवसरों का उपयोग किया।
2. युद्ध और कूटनीति: बिस्मार्क ने डेनमार्क (1864), ऑस्ट्रिया (1866), और फ्रांस (1870-71) के साथ युद्धों का आयोजन किया, जो जर्मन राज्यों को एकजुट करने की उनकी रणनीति का हिस्सा था। ऑस्ट्रो-प्रुसियन युद्ध और फ्रांको-प्रुसियन युद्ध ने जर्मन संघ को मजबूत किया और जर्मनी के एकीकरण के मार्ग को प्रशस्त किया।
3. संविधान और संस्थान: जर्मन सम्राट विल्हेम I के तहत, बिस्मार्क ने 1871 में जर्मन साम्राज्य की स्थापना की। उन्होंने एक नई संविधान प्रणाली और प्रशासनिक ढांचा स्थापित किया, जिससे जर्मनी का एकीकरण सुनिश्चित हुआ।
4. आर्थिक और सामाजिक सुधार: बिस्मार्क ने आर्थिक सुधार और सामाजिक नीति पर भी ध्यान दिया, जैसे टैरिफ़ नीतियाँ और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम, जो जर्मन संघ के भीतर एकता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण थे।
निष्कर्ष: बिस्मार्क की कुशल राजनीतिक रणनीति, युद्धों का उपयोग, और संवैधानिक सुधार ने जर्मनी के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी नीतियों और दृष्टिकोण ने जर्मन एकीकरण को प्रभावी और स्थिर बनाने में प्रमुख योगदान दिया।
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