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नासा' का जूनो मिशन पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास को समझने में किस प्रकार सहायता करता है ? (150 words) [UPSC 2017]
नासा का जूनो मिशन: पृथ्वी की उत्पत्ति और विकास को समझने में सहायता गृह वैज्ञानिक अध्ययन जूनो मिशन का मुख्य उद्देश्य बृहस्पति के अध्ययन पर केंद्रित है, जो सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। बृहस्पति की संरचना, गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन कर, वैज्ञानिक पृथ्वी और अन्य ग्रहों के निर्माण की प्रRead more
नासा का जूनो मिशन: पृथ्वी की उत्पत्ति और विकास को समझने में सहायता
गृह वैज्ञानिक अध्ययन
जूनो मिशन का मुख्य उद्देश्य बृहस्पति के अध्ययन पर केंद्रित है, जो सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। बृहस्पति की संरचना, गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन कर, वैज्ञानिक पृथ्वी और अन्य ग्रहों के निर्माण की प्रक्रियाओं को समझने में सहायता प्राप्त करते हैं।
तुलनात्मक ग्रहविज्ञान
बृहस्पति की संरचना और विकास के अध्ययन से तुलनात्मक ग्रहविज्ञान में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। बृहस्पति के कोर और वायुमंडलीय गुणधर्म पृथ्वी के निर्माण की प्रक्रियाओं की जानकारी देने में सहायक होते हैं।
हालिया खोजें
जूनो ने हाल ही में बृहस्पति के गहरे कोर की जटिल संरचना का खुलासा किया है, जो ग्रहों के निर्माण की प्रक्रियाओं के समझने में मदद करता है। इस मिशन से प्राप्त डेटा पृथ्वी के प्रारंभिक सौरमंडल के इतिहास को पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जूनो मिशन से मिली जानकारी सौरमंडल की उत्पत्ति और पृथ्वी के विकास की प्रक्रियाओं को बेहतर ढंग से समझने में सहायक है।
See lessआज विश्व ताजे जल के संसाधनों की उपलब्धता और पहुँच के संकट से क्यों जूझ रहा है? ( 150 Words) [UPSC 2023]
विश्व ताजे जल के संसाधनों की उपलब्धता और पहुँच के संकट आज विश्व ताजे जल के संसाधनों की उपलब्धता और पहुँच के संकट से जूझ रहा है, इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं: 1. जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण जनसंख्या वृद्धि और तीव्र शहरीकरण के कारण जल की मांग बढ़ रही है। उदाहरण के लिए, भारत के बड़े शहरों जैसे दिल्लीRead more
विश्व ताजे जल के संसाधनों की उपलब्धता और पहुँच के संकट
आज विश्व ताजे जल के संसाधनों की उपलब्धता और पहुँच के संकट से जूझ रहा है, इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
1. जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण
जनसंख्या वृद्धि और तीव्र शहरीकरण के कारण जल की मांग बढ़ रही है। उदाहरण के लिए, भारत के बड़े शहरों जैसे दिल्ली और मुंबई में जल संकट गहरा हो गया है क्योंकि इनका पानी की आवश्यकता और उपयोग अत्यधिक बढ़ गया है।
2. जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा की धाराओं में अस्थिरता आ गई है। हाल ही में, दक्षिण पश्चिम अमेरिका और पूर्वी अफ्रीका में सूखा और पानी की कमी के संकट ने गंभीर प्रभाव डाले हैं।
3. जल प्रदूषण
जल प्रदूषण भी एक बड़ी चुनौती है। नदी प्रदूषण के उदाहरण में गंगा और यमुना नदियों का प्रदूषण शामिल है, जो न केवल पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है बल्कि ताजे जल की उपलब्धता को भी संकुचित करता है।
4. असमान वितरण
जल संसाधनों का असमान वितरण भी समस्या का एक बड़ा हिस्सा है। उदाहरण के लिए, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में पानी की अत्यधिक कमी है, जबकि अन्य हिस्सों में पानी की अधिकता है।
इन समस्याओं का समाधान जल प्रबंधन, नीति सुधार और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से किया जा सकता है।
See lessजल संकट क्या है? जल संसाधन प्रबंधन के लिये उपयुक्त उपाय सुझाइये। (125 Words) [UPPSC 2021]
main-surface-primary text-token-text-primary h-8 w-8"> जल संकट का तात्पर्य जल संसाधनों की कमी से है, जो अत्यधिक उपयोग, प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है। इसका प्रभाव पीने के पानी की कमी, कृषि में समस्याएँ, और औद्योगिक उत्पादन पर पड़ता है। जल संसाधन प्रबंधन के लिए उपयुक्त उपाय निRead more
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जल संकट का तात्पर्य जल संसाधनों की कमी से है, जो अत्यधिक उपयोग, प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है। इसका प्रभाव पीने के पानी की कमी, कृषि में समस्याएँ, और औद्योगिक उत्पादन पर पड़ता है।
जल संसाधन प्रबंधन के लिए उपयुक्त उपाय निम्नलिखित हैं:
ये उपाय जल संकट को कम करने और दीर्घकालिक जल सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक हैं।
See lessभारत में एल नीनो और दक्षिण-पश्चिम मानसून के बीच संबंधों की व्याख्या कीजिए और उसके कृषि पर प्रभाव बताइए । (200 Words) [UPPSC 2023]
एल नीनो और दक्षिण-पश्चिम मानसून के बीच संबंध: एल नीनो एक जलवायु घटना है जिसमें प्रशांत महासागर के मध्य और पूर्वी हिस्से में समुद्री सतह का तापमान सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है। इसका प्रभाव वैश्विक मौसम पर पड़ता है, विशेषकर भारत के दक्षिण-पश्चिम मानसून पर। दक्षिण-पश्चिम मानसून, जो जून से सितंबर तकRead more
एल नीनो और दक्षिण-पश्चिम मानसून के बीच संबंध:
एल नीनो एक जलवायु घटना है जिसमें प्रशांत महासागर के मध्य और पूर्वी हिस्से में समुद्री सतह का तापमान सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है। इसका प्रभाव वैश्विक मौसम पर पड़ता है, विशेषकर भारत के दक्षिण-पश्चिम मानसून पर।
दक्षिण-पश्चिम मानसून, जो जून से सितंबर तक भारत में वर्षा लाता है, एल नीनो की स्थिति में कमजोर हो जाता है। जब एल नीनो सक्रिय होता है, तो यह भारतीय मानसूनी हवाओं की दिशा और ताकत को प्रभावित करता है, जिससे मानसून की बारिश में कमी हो सकती है। गर्म महासागरीय तापमान वायुमंडलीय संचलन को बाधित करता है, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में कम नमी आती है।
कृषि पर प्रभाव:
इस प्रकार, एल नीनो का प्रभाव दक्षिण-पश्चिम मानसून पर कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा पर महत्वपूर्ण असर डालता है।
See lessउत्तर-पश्चिमी भारत के कृषि-आधारित खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के स्थानीयकरण के कारकों पर चर्चा कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
उत्तर-पश्चिमी भारत के कृषि-आधारित खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के स्थानीयकरण के कारक 1. कच्चे माल की उपलब्धता: उत्तर-पश्चिमी भारत, विशेषकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, ‘भारत का अनाज कोठा’ के रूप में जाना जाता है। यहाँ गेहूँ, चावल और गन्ने की व्यापक खेती होती है, जो खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के लRead more
उत्तर-पश्चिमी भारत के कृषि-आधारित खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के स्थानीयकरण के कारक
1. कच्चे माल की उपलब्धता:
उत्तर-पश्चिमी भारत, विशेषकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, ‘भारत का अनाज कोठा’ के रूप में जाना जाता है। यहाँ गेहूँ, चावल और गन्ने की व्यापक खेती होती है, जो खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के लिए निरंतर कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। उदाहरणस्वरूप, पंजाब के चावल मिलें देश के बासमती चावल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा प्रोसेस करती हैं।
2. अनुकूल जलवायु परिस्थितियाँ:
इस क्षेत्र की जलवायु परिस्थितियाँ विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती के लिए अनुकूल हैं। इंडो-गैंगेटिक मैदानी क्षेत्रों की उर्वर भूमि गेहूँ, मक्का, और सरसों जैसी फसलों की प्रचुरता को बढ़ावा देती है, जो खाद्य प्रक्रमण उद्योगों की स्थापना में सहायक है।
3. पानी और सिंचाई की पहुंच:
उत्तर-पश्चिमी भारत विस्तृत नहर सिंचाई प्रणालियों जैसे भाखड़ा नांगल और पश्चिमी यमुना नहर से लाभान्वित होता है, जो कृषि के लिए साल भर पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। इस भरोसेमंद सिंचाई नेटवर्क से खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के लिए आवश्यक कच्चे माल की निरंतर आपूर्ति होती है।
4. बाजारों और निर्यात केंद्रों की निकटता:
क्षेत्र की निकटता बड़े उपभोक्ता बाजारों जैसे दिल्ली और निर्यात केंद्रों जैसे कांडला पोर्ट और मुंद्रा पोर्ट से, प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के वितरण को सरल बनाती है। यह खाद्य प्रक्रमण उद्योगों की व्यवहार्यता को बढ़ाता है, क्योंकि परिवहन लागत कम होती है।
5. सरकारी नीतियाँ और अवसंरचना:
प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना जैसे विभिन्न सरकारी योजनाएँ और खाद्य प्रक्रमण इकाइयों के लिए राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की गई प्रोत्साहन ने इन उद्योगों के विकास में सहायक भूमिका निभाई है। इस क्षेत्र में विकसित अवसंरचना, जैसे सड़कें, रेलमार्ग, और कोल्ड स्टोरेज सुविधाएँ, खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के सुचारू संचालन को समर्थन देती हैं।
6. कुशल श्रम और तकनीकी प्रगति:
कृषि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों जैसे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की उपस्थिति से कुशल श्रमिक और खाद्य प्रक्रमण तकनीक में नवाचार प्रदान किए जाते हैं। इससे उत्पादकता और दक्षता में सुधार होता है।
निष्कर्ष:
See lessउत्तर-पश्चिमी भारत में कृषि-आधारित खाद्य प्रक्रमण उद्योगों का स्थानीयकरण कच्चे माल की उपलब्धता, अनुकूल जलवायु, पानी की पहुंच, बाजारों की निकटता, सरकारी समर्थन, और कुशल श्रम के कारण संभव हुआ है। ये कारक इस क्षेत्र को भारत के खाद्य प्रक्रमण क्षेत्र में प्रमुख बनाते हैं, स्थानीय किसानों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था दोनों को लाभ पहुँचाते हैं।
वैश्विक तापन का प्रवाल जीवन तंत्र पर प्रभाव का, उदाहरणों के साथ, आकलन कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
वैश्विक तापन का प्रवाल जीवन तंत्र पर प्रभाव 1. प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching): वैश्विक तापन के कारण समुद्र के तापमान में वृद्धि होती है, जिससे प्रवाल विरंजन की समस्या उत्पन्न होती है। जब समुद्र का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है, तो प्रवाल अपने अंदर स्थित शैवाल (ज़ोक्सैन्थेली) को निष्कासित कर देतRead more
वैश्विक तापन का प्रवाल जीवन तंत्र पर प्रभाव
1. प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching):
वैश्विक तापन के कारण समुद्र के तापमान में वृद्धि होती है, जिससे प्रवाल विरंजन की समस्या उत्पन्न होती है। जब समुद्र का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है, तो प्रवाल अपने अंदर स्थित शैवाल (ज़ोक्सैन्थेली) को निष्कासित कर देते हैं, जिससे प्रवाल रंगहीन और कमजोर हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, ग्रेट बैरियर रीफ में 2016 और 2017 में भारी प्रवाल विरंजन देखा गया, जिससे वहां की जैव विविधता पर गंभीर प्रभाव पड़ा।
2. महासागरीय अम्लीकरण (Ocean Acidification):
बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) उत्सर्जन से महासागरों में अम्लीकरण हो रहा है, जिससे प्रवालों के कैल्शियम कार्बोनेट ढांचे का निर्माण प्रभावित होता है। यह प्रवालों को कमजोर बना देता है और उनके विकास को धीमा कर देता है। उदाहरण के लिए, कैरेबियन सागर के प्रवाल भित्तियों में अम्लीकरण के कारण क्षरण हो रहा है।
3. समुद्री जैव विविधता का ह्रास:
प्रवाल भित्तियाँ समुद्री जीवन के लिए आवास का काम करती हैं। जब प्रवाल विरंजन और अम्लीकरण के कारण प्रवाल नष्ट हो जाते हैं, तो वहां रहने वाली कई प्रजातियाँ अपना आवास खो देती हैं। उदाहरण के लिए, कोरल ट्राएंगल क्षेत्र, जो विश्व की सबसे समृद्ध जैव विविधता वाला क्षेत्र है, प्रवाल क्षरण के कारण संकट में है।
4. तटीय सुरक्षा में कमी:
प्रवाल भित्तियाँ तटों को समुद्री तूफानों और लहरों से बचाती हैं। प्रवालों के नष्ट होने से तटों की प्राकृतिक सुरक्षा कम हो जाती है, जिससे मालदीव और फिजी जैसे द्वीपीय देशों में तटीय क्षरण और बाढ़ का खतरा बढ़ गया है।
निष्कर्ष:
See lessवैश्विक तापन के कारण प्रवाल जीवन तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। प्रवाल विरंजन, महासागरीय अम्लीकरण, और समुद्री जैव विविधता में ह्रास जैसी समस्याओं से प्रवाल भित्तियों की सुरक्षा आवश्यक हो गई है। यह पर्यावरणीय संतुलन और समुद्री जीवन के संरक्षण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मरुस्थलीकरण के प्रक्रम की जलवायविक सीमाएँ नहीं होती हैं। उदाहरणों सहित औचित्य सिद्ध कीजिए । (150 words)[UPSC 2020]
मरुस्थलीकरण के प्रक्रम की जलवायवीय सीमाएँ नहीं होती हैं **1. विविध जलवायु क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण: मरुस्थलीकरण केवल शुष्क जलवायु क्षेत्रों तक सीमित नहीं है; यह अर्द्ध-शुष्क और उप-आर्द्र क्षेत्रों में भी हो सकता है। उदाहरण के लिए, थार मरुस्थल में अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों के आस-पास के इलाके भी मरुस्थलRead more
मरुस्थलीकरण के प्रक्रम की जलवायवीय सीमाएँ नहीं होती हैं
**1. विविध जलवायु क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण: मरुस्थलीकरण केवल शुष्क जलवायु क्षेत्रों तक सीमित नहीं है; यह अर्द्ध-शुष्क और उप-आर्द्र क्षेत्रों में भी हो सकता है। उदाहरण के लिए, थार मरुस्थल में अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों के आस-पास के इलाके भी मरुस्थलीकरण के शिकार हुए हैं, जहां अत्यधिक चराई और वनों की कटाई ने भूमि के विघटन को बढ़ावा दिया।
**2. मानव गतिविधियों का प्रभाव: मानव गतिविधियाँ जैसे कि वन कटाई, अत्यधिक चराई और असमर्थ कृषि प्रथाएँ, अपेक्षाकृत संतुलित जलवायु वाले क्षेत्रों में भी मरुस्थलीकरण का कारण बनती हैं। मध्य प्रदेश में वनों की कटाई और असतत कृषि ने पहले उपजाऊ भूमि को मरुस्थलीकरण की ओर धकेल दिया है।
**3. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: जलवायु परिवर्तन द्वारा वर्षा पैटर्न और तापमान में बदलाव मरुस्थलीकरण को बढ़ावा देता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी हिस्से जैसे न्यू मैक्सिको में बदलते जलवायु पैटर्न ने मरुस्थलीकरण को बढ़ावा दिया है, भले ही ये क्षेत्र पारंपरिक मरुस्थल के रूप में नहीं माने जाते।
**4. वैश्विक उदाहरण: सहेल क्षेत्र, अफ्रीका में मरुस्थलीकरण ने अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में भी प्रभाव डाला है, जहां घटती वर्षा और बढ़ते तापमान ने मरुस्थल जैसी परिस्थितियों को फैला दिया है।
ये उदाहरण दर्शाते हैं कि मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया जलवायवीय सीमाओं को पार करती है, जो प्राकृतिक और मानव जनित कारणों से विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों को प्रभावित करती है।
See lessविश्व के संसाधन संकट से निपटने के लिए महासागरों के विभिन्न संसाधनों, जिनका उपयोग किया जा सकता है, का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए । (150 words) [UPSC 2014]
महासागरीय संसाधनों का मूल्यांकन: विश्व संसाधन संकट से निपटने के उपाय **1. खनिज संसाधन महासागर खनिज संसाधनों से भरपूर हैं, जैसे पोलिमेटलिक नोड्यूल्स और हाइड्रोथर्मल वेंट्स। हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (ISA) ने क्लेरियन-क्लिपरटन जोन में गहरे समुद्री खनन के लिए लाइसेंस जारी किए हैं, जोRead more
महासागरीय संसाधनों का मूल्यांकन: विश्व संसाधन संकट से निपटने के उपाय
**1. खनिज संसाधन
महासागर खनिज संसाधनों से भरपूर हैं, जैसे पोलिमेटलिक नोड्यूल्स और हाइड्रोथर्मल वेंट्स। हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (ISA) ने क्लेरियन-क्लिपरटन जोन में गहरे समुद्री खनन के लिए लाइसेंस जारी किए हैं, जो कोबाल्ट और निकल से भरपूर है। हालांकि, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता पर इसके नकारात्मक प्रभाव चिंता का विषय हैं।
**2. ऊर्जा संसाधन
महासागरों में तेल, प्राकृतिक गैस, और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जैसे ज्वारीय, लहर और महासागर तापीय ऊर्जा उपलब्ध हैं। स्कॉटलैंड के तट पर फ्लोटिंग विंड फार्म्स और फ्रांस तथा दक्षिण कोरिया में ज्वारीय ऊर्जा परियोजनाएं इसके उदाहरण हैं। फिर भी, इन तकनीकों की उच्च लागत और पर्यावरणीय प्रभाव प्रमुख समस्याएँ हैं।
**3. जैविक संसाधन
मैरिन बायोडायवर्सिटी खाद्य और औषधीय संसाधन प्रदान करती है। हाल ही में, गहरे समुद्र की कोरल्स से प्राप्त एंटी-कैंसर दवाइयां वैज्ञानिक अनुसंधान का उदाहरण हैं। लेकिन, अत्यधिक मछली पकड़ना और आवासीय क्षति इन संसाधनों के संरक्षण को चुनौती देती है।
**4. नमकीन जल से ताजे पानी का निर्माण
नमकीन जल से ताजे पानी के निर्माण के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग जल संकट को दूर कर सकता है। इज़राइल और सऊदी अरब में हाल ही में स्थापित जलवर्धन संयंत्र इसकी सफलता को दर्शाते हैं। लेकिन, उच्च ऊर्जा खपत और ब्राइन के निपटान का पर्यावरणीय प्रभाव चिंताजनक है।
इस प्रकार, महासागरीय संसाधनों की संभावनाओं के बावजूद, इनके उपयोग और संरक्षण में संतुलन बनाए रखना दीर्घकालिक स्थिरता के लिए आवश्यक है।
See lessइंडोनेशियाई और फिलिपीनी द्वीपसमूहों में हज़ारों द्वीपों के विरचन की व्याख्या कीजिए । (150 words) [UPSC 2014]
इंडोनेशियाई और फिलिपीनी द्वीपसमूहों में द्वीपों का गठन टेक्टोनिक प्लेट गतिविधि इंडोनेशियाई और फिलिपीनी द्वीपसमूह टेक्टोनिक प्लेट गतिविधियों के कारण बने हैं। ये क्षेत्र कई प्रमुख टेक्टोनिक प्लेटों के मिलन स्थल पर स्थित हैं, जैसे पैसिफिक प्लेट, इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट, और यूरेशियन प्लेट। इन प्लेटों कीRead more
इंडोनेशियाई और फिलिपीनी द्वीपसमूहों में द्वीपों का गठन
टेक्टोनिक प्लेट गतिविधि
इंडोनेशियाई और फिलिपीनी द्वीपसमूह टेक्टोनिक प्लेट गतिविधियों के कारण बने हैं। ये क्षेत्र कई प्रमुख टेक्टोनिक प्लेटों के मिलन स्थल पर स्थित हैं, जैसे पैसिफिक प्लेट, इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट, और यूरेशियन प्लेट। इन प्लेटों की गति और टकराव के परिणामस्वरूप द्वीपों का निर्माण होता है।
ज्वालामुखीय गतिविधि
ज्वालामुखीय गतिविधि द्वीप निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इंडोनेशियाई द्वीपसमूह में, सुमात्रा और जावा जैसे द्वीप रिंग ऑफ फायर के ज्वालामुखीय विस्फोटों के कारण बने हैं, जहां पैसिफिक प्लेट इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट के नीचे जाती है। फिलिपीनी द्वीपसमूह में, लुज़ोन और मिंडानाओ जैसे द्वीप ज्वालामुखीय विस्फोटों और टेक्टोनिक उथल-पुथल से बने हैं।
हाल के उदाहरण
1883 में क्राकातुआ के विस्फोट ने इंडोनेशिया में द्वीपों का परिदृश्य बदल दिया। फिलिपींस में ताल ज्वालामुखी का गठन नए भू-आकृतियों को जन्म दे रहा है।
निष्कर्ष
See lessइंडोनेशियाई और फिलिपीनी द्वीपसमूहों में हज़ारों द्वीप टेक्टोनिक गतिविधियों और ज्वालामुखीय गतिविधियों के कारण बने हैं, जो इन भौगोलिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों की विशेषता हैं।
क्या कारण है कि संसार का वलित पर्वत (फोल्डेड माउन्टेन) तंत्र महाद्वीपों के सीमांतों के साथ-साथ अवस्थित है ? वलित पर्वतों के वैश्विक वितरण और भूकंपों एवं ज्वालामुखियों के बीच साहचर्य को उजागर कीजिए । (150 words) [UPSC 2014]
वलित पर्वत तंत्र का महाद्वीपीय सीमांतों पर अवस्थित होना महाद्वीपीय सीमांतों पर स्थिति वलित पर्वत तंत्र महाद्वीपों के सीमांतों पर स्थित होते हैं क्योंकि ये स्थान टेक्टोनिक प्लेट सीमाओं पर होते हैं। जब दो टेक्टोनिक प्लेटें आपस में टकराती हैं या एक दूसरे के ऊपर जाती हैं, तो पृथ्वी की सतह पर दबाव बनता हRead more
वलित पर्वत तंत्र का महाद्वीपीय सीमांतों पर अवस्थित होना
महाद्वीपीय सीमांतों पर स्थिति
वलित पर्वत तंत्र महाद्वीपों के सीमांतों पर स्थित होते हैं क्योंकि ये स्थान टेक्टोनिक प्लेट सीमाओं पर होते हैं। जब दो टेक्टोनिक प्लेटें आपस में टकराती हैं या एक दूसरे के ऊपर जाती हैं, तो पृथ्वी की सतह पर दबाव बनता है, जिससे वलन (folding) और पर्वत निर्माण होता है। उदाहरणस्वरूप, हिमालय महाद्वीपीय प्लेटों के टकराने का परिणाम है।
भूकंपों और ज्वालामुखियों के साथ साहचर्य
वलित पर्वत तंत्र भूकंप और ज्वालामुखी गतिविधियों से गहरे जुड़े हुए हैं। टेक्टोनिक सीमाओं पर अत्यधिक भूगर्भीय गतिविधि होती है, जिससे भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं। हाल के उदाहरणों में, नेपाल में 2015 का भूकंप और चिली का 2010 का भूकंप शामिल हैं, जो कि हिमालय और एंडीज जैसे वलित पर्वतों के निकट हुआ। इसके अतिरिक्त, जापान में ज्वालामुखी गतिविधि, जैसे कि कुमामोटो ज्वालामुखी, इस साहचर्य को दर्शाती है।
निष्कर्ष
See lessवलित पर्वत तंत्र महाद्वीपीय सीमांतों पर स्थित होते हैं क्योंकि ये स्थान टेक्टोनिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र होते हैं, जिससे भूकंप और ज्वालामुखियों की घटनाएँ सामान्य होती हैं।