उत्तर-पश्चिमी भारत के कृषि-आधारित खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के स्थानीयकरण के कारकों पर चर्चा कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
परिचय पृथ्वी की संरचना तीन प्रमुख परतों में विभाजित है, जो विभिन्न भौगोलिक और भूगर्भीय प्रक्रियाओं को प्रभावित करती हैं। ये परतें हैं: पपड़ी (Crust), मैंटल (Mantle), और कोर (Core)। इन परतों की विशेषताएँ और उनकी भूमिका पृथ्वी की भौगोलिक गतिविधियों को समझने में महत्वपूर्ण हैं। 1. पपड़ी (Crust) विवरण:Read more
परिचय
पृथ्वी की संरचना तीन प्रमुख परतों में विभाजित है, जो विभिन्न भौगोलिक और भूगर्भीय प्रक्रियाओं को प्रभावित करती हैं। ये परतें हैं: पपड़ी (Crust), मैंटल (Mantle), और कोर (Core)। इन परतों की विशेषताएँ और उनकी भूमिका पृथ्वी की भौगोलिक गतिविधियों को समझने में महत्वपूर्ण हैं।
1. पपड़ी (Crust)
- विवरण: पपड़ी पृथ्वी की सबसे बाहरी परत है, जो अपेक्षाकृत पतली होती है। इसे दो प्रकारों में बांटा जाता है: महाद्वीपीय पपड़ी और महासागरीय पपड़ी। महाद्वीपीय पपड़ी महाद्वीपों को बनाती है और इसकी मोटाई लगभग 30-40 किलोमीटर होती है, जबकि महासागरीय पपड़ी महासागरों के तल को बनाती है और इसकी मोटाई लगभग 5-10 किलोमीटर होती है।
- हाल का उदाहरण: 2021 का ला पाल्मा ज्वालामुखी विस्फोट (La Palma volcanic eruption) कैनरी द्वीप समूह में पपड़ी की गतिशीलता को दर्शाता है। इस विस्फोट ने दिखाया कि कैसे मेंटल से ऊपरी सतह तक पहुंचने वाला मैग्मा पपड़ी में भूकंपीय गतिविधियाँ और ज्वालामुखीय क्रियाएं उत्पन्न कर सकता है।
2. मैंटल (Mantle)
- विवरण: मैंटल पपड़ी के नीचे स्थित परत है और इसकी गहराई लगभग 2,900 किलोमीटर तक होती है। यह मुख्यतः सेमी-सॉलिड चट्टानों से बना है जो धीरे-धीरे प्रवाह करता है। मैंटल के ऊपरी मैंटल (जिसमें एस्थेनोस्फीयर और लिथोस्फीयर शामिल हैं) और निचला मैंटल के रूप में विभाजित किया जाता है।
- हाल का उदाहरण: 2019 का अध्ययन ने सुझाव दिया कि मैंटल प्लूम्स (Mantle Plumes), जो निचले मैंटल और कोर के बीच से उत्पन्न होते हैं, पृथ्वी की सतह पर ज्वालामुखीय गतिविधि को प्रेरित करते हैं। उदाहरण के लिए, हवाई के नीचे मौजूद हॉटस्पॉट (Hawaii hotspot) को ऐसे मंटल प्लूम्स से प्रेरित माना जाता है, जो हवाई द्वीपों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
3. कोर (Core)
- विवरण: कोर पृथ्वी की सबसे भीतरी परत है और यह मुख्यतः आयरन और निकेल से बना है। इसे दो भागों में विभाजित किया जाता है: बाहरी कोर (Outer Core) जो तरल होता है और पृथ्वी के मैग्नेटिक क्षेत्र को उत्पन्न करता है, और आंतरिक कोर (Inner Core) जो ठोस और अत्यंत गर्म होता है, जहां तापमान 5,700°C तक हो सकता है।
- हाल का उदाहरण: 2020 का शोध ने सुझाव दिया कि आंतरिक कोर असममित रूप से बढ़ रहा है, जिससे एक आधा भाग तेजी से ठोस हो रहा है। इस असममित वृद्धि से पृथ्वी के मैग्नेटिक क्षेत्र और भूगर्भीय प्रक्रियाओं पर प्रभाव पड़ सकता है, जो कोर की जटिलता को उजागर करता है।
निष्कर्ष
पृथ्वी की तीन प्रमुख परतें—पपड़ी, मैंटल, और कोर—प्रत्येक की अपनी विशेषताएँ और भूमिकाएँ हैं। पपड़ी बाहरी परत है जो सतह की गतिविधियों और प्लेट टेक्टोनिक्स से संबंधित है; मैंटल भूगर्भीय प्रक्रियाओं और ज्वालामुखीय गतिविधियों को संचालित करता है; और कोर, जो मैग्नेटिक क्षेत्र उत्पन्न करता है और आंतरिक तापमान को नियंत्रित करता है। हाल के अध्ययन और उदाहरण इन परतों की विशेषताओं और उनके प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने में सहायक हैं, जो पृथ्वी की आंतरिक प्रक्रियाओं को उजागर करते हैं।
See less
उत्तर-पश्चिमी भारत के कृषि-आधारित खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के स्थानीयकरण के कारक 1. कच्चे माल की उपलब्धता: उत्तर-पश्चिमी भारत, विशेषकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, ‘भारत का अनाज कोठा’ के रूप में जाना जाता है। यहाँ गेहूँ, चावल और गन्ने की व्यापक खेती होती है, जो खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के लRead more
उत्तर-पश्चिमी भारत के कृषि-आधारित खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के स्थानीयकरण के कारक
1. कच्चे माल की उपलब्धता:
उत्तर-पश्चिमी भारत, विशेषकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, ‘भारत का अनाज कोठा’ के रूप में जाना जाता है। यहाँ गेहूँ, चावल और गन्ने की व्यापक खेती होती है, जो खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के लिए निरंतर कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। उदाहरणस्वरूप, पंजाब के चावल मिलें देश के बासमती चावल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा प्रोसेस करती हैं।
2. अनुकूल जलवायु परिस्थितियाँ:
इस क्षेत्र की जलवायु परिस्थितियाँ विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती के लिए अनुकूल हैं। इंडो-गैंगेटिक मैदानी क्षेत्रों की उर्वर भूमि गेहूँ, मक्का, और सरसों जैसी फसलों की प्रचुरता को बढ़ावा देती है, जो खाद्य प्रक्रमण उद्योगों की स्थापना में सहायक है।
3. पानी और सिंचाई की पहुंच:
उत्तर-पश्चिमी भारत विस्तृत नहर सिंचाई प्रणालियों जैसे भाखड़ा नांगल और पश्चिमी यमुना नहर से लाभान्वित होता है, जो कृषि के लिए साल भर पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। इस भरोसेमंद सिंचाई नेटवर्क से खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के लिए आवश्यक कच्चे माल की निरंतर आपूर्ति होती है।
4. बाजारों और निर्यात केंद्रों की निकटता:
क्षेत्र की निकटता बड़े उपभोक्ता बाजारों जैसे दिल्ली और निर्यात केंद्रों जैसे कांडला पोर्ट और मुंद्रा पोर्ट से, प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के वितरण को सरल बनाती है। यह खाद्य प्रक्रमण उद्योगों की व्यवहार्यता को बढ़ाता है, क्योंकि परिवहन लागत कम होती है।
5. सरकारी नीतियाँ और अवसंरचना:
प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना जैसे विभिन्न सरकारी योजनाएँ और खाद्य प्रक्रमण इकाइयों के लिए राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की गई प्रोत्साहन ने इन उद्योगों के विकास में सहायक भूमिका निभाई है। इस क्षेत्र में विकसित अवसंरचना, जैसे सड़कें, रेलमार्ग, और कोल्ड स्टोरेज सुविधाएँ, खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के सुचारू संचालन को समर्थन देती हैं।
6. कुशल श्रम और तकनीकी प्रगति:
कृषि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों जैसे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की उपस्थिति से कुशल श्रमिक और खाद्य प्रक्रमण तकनीक में नवाचार प्रदान किए जाते हैं। इससे उत्पादकता और दक्षता में सुधार होता है।
निष्कर्ष:
See lessउत्तर-पश्चिमी भारत में कृषि-आधारित खाद्य प्रक्रमण उद्योगों का स्थानीयकरण कच्चे माल की उपलब्धता, अनुकूल जलवायु, पानी की पहुंच, बाजारों की निकटता, सरकारी समर्थन, और कुशल श्रम के कारण संभव हुआ है। ये कारक इस क्षेत्र को भारत के खाद्य प्रक्रमण क्षेत्र में प्रमुख बनाते हैं, स्थानीय किसानों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था दोनों को लाभ पहुँचाते हैं।