वर्तमान संदर्भ में दक्षिणी चीन सागर का भू-राजनीतिक महत्त्व बहुत बढ़ गया है। टिप्पणी कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
विश्व में खनिज तेल के असमान वितरण के बहुआयामी प्रभाव आर्थिक असमानताएँ: आय में विषमताएँ: खनिज तेल के असमान वितरण ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में आर्थिक विषमताएँ पैदा की हैं। मध्य पूर्व, जैसे कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, में खनिज तेल की प्रचुरता ने इन देशों को अत्यधिक समृद्ध बनाया, जबकि अफ्रीका और दRead more
विश्व में खनिज तेल के असमान वितरण के बहुआयामी प्रभाव
आर्थिक असमानताएँ:
- आय में विषमताएँ: खनिज तेल के असमान वितरण ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में आर्थिक विषमताएँ पैदा की हैं। मध्य पूर्व, जैसे कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, में खनिज तेल की प्रचुरता ने इन देशों को अत्यधिक समृद्ध बनाया, जबकि अफ्रीका और दक्षिण एशिया जैसे तेल-रहित क्षेत्रों में आर्थिक विकास की गति धीमी रही है।
- वित्तीय निर्भरता और अस्थिरता: तेल-उत्पादक देशों की अर्थव्यवस्थाएँ तेल की कीमतों पर अत्यधिक निर्भर हैं। 2014-2016 के तेल संकट ने दिखाया कि वैश्विक तेल की कीमतों में गिरावट ने तेल-उत्पादक देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया, जैसे कि वेनज़ुएला और नाइजीरिया।
राजनीतिक और सामरिक प्रभाव:
- भौगोलिक राजनीति: तेल के असमान वितरण ने भौगोलिक राजनीति में महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। मध्य पूर्व में तेल की प्रचुरता ने इसे वैश्विक शक्तियों के लिए एक सामरिक क्षेत्र बना दिया है। अमेरिका, रूस और चीन ने इस क्षेत्र में अपनी सामरिक रुचि बढ़ाई है।
- संसाधन संघर्ष: तेल के असमान वितरण ने संसाधन संघर्षों को जन्म दिया है। दक्षिण सूडान और सीरिया में तेल संसाधनों को लेकर संघर्ष और युद्ध देखे गए हैं, जो मानव जीवन और क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित करते हैं।
पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव:
- पर्यावरणीय क्षति: तेल उत्पादन और परिवहन के दौरान पर्यावरणीय क्षति होती है, जैसे कि आमज़न रेनफॉरेस्ट में तेल रिसाव। यह स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
- सामाजिक असमानता: तेल-उत्पादक क्षेत्रों में धन की असमान वितरण ने सामाजिक असमानता को बढ़ावा दिया है। रियाद और अबू धाबी में समृद्धि और विलासिता के बावजूद, अन्य क्षेत्रीय देशों में गरीबी और संघर्ष जारी हैं।
ऊर्जा सुरक्षा और वैकल्पिक ऊर्जा:
- ऊर्जा सुरक्षा: तेल के असमान वितरण ने ऊर्जा सुरक्षा के मुद्दे को जन्म दिया है। देशों को ऊर्जा स्रोतों की विविधता और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने की आवश्यकता है। कृषि आधारित बायोफ्यूल्स और सौर ऊर्जा जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ते कदम इस दिशा में महत्वपूर्ण हैं।
- भविष्य की रणनीतियाँ: तेल के असमान वितरण के प्रभावों से निपटने के लिए वैश्विक समुदाय ने पेरिस जलवायु समझौता जैसे उपायों को अपनाया है, जो नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने और तेल पर निर्भरता कम करने का प्रयास करता है।
निष्कर्ष:
खनिज तेल का असमान वितरण वैश्विक आर्थिक, राजनीतिक, पर्यावरणीय, और सामाजिक परिदृश्यों पर व्यापक प्रभाव डालता है। यह आर्थिक विषमताओं, राजनीतिक संघर्षों, और पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म देता है, साथ ही ऊर्जा सुरक्षा और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की दिशा में नवाचार की आवश्यकता को भी उजागर करता है।
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वर्तमान संदर्भ में दक्षिणी चीन सागर का भू-राजनीतिक महत्त्व
भू-राजनीतिक महत्त्व
दक्षिणी चीन सागर (South China Sea) का भू-राजनीतिक महत्त्व वर्तमान में कई कारणों से बढ़ गया है। यह क्षेत्र न केवल समृद्ध मछली संसाधनों का घर है, बल्कि इसमें महत्वपूर्ण ऊर्जा संसाधन भी पाए जाते हैं, जैसे कि तेल और प्राकृतिक गैस।
संप्रभुत्व विवाद
दक्षिणी चीन सागर में संप्रभुत्व विवाद कई देशों के बीच हैं, विशेषकर चीन, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और ब्रुनेई के बीच। चीन ने “नाइन डैश लाइन” के आधार पर इस क्षेत्र पर अपना दावा किया है, जो अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून के तहत विवादित है।
मूल्यवान नौवहन मार्ग
यह सागर वैश्विक नौवहन के लिए एक प्रमुख मार्ग है। दुनिया के समुद्री व्यापार का एक बड़ा हिस्सा इस क्षेत्र से होकर गुजरता है, जिससे इसे एक महत्वपूर्ण सामरिक क्षेत्र बना दिया है।
हालिया उदाहरण
चीन द्वारा हाल ही में कृत्रिम द्वीपों का निर्माण और उनके सैन्यकरण ने इस विवाद को और अधिक जटिल बना दिया है। 2020 में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने इस क्षेत्र में नौसैनिक अभ्यास किए, जिससे तनाव और बढ़ गया।
इस प्रकार, दक्षिणी चीन सागर का भू-राजनीतिक महत्त्व वैश्विक व्यापार, ऊर्जा संसाधनों, और क्षेत्रीय सुरक्षा के संदर्भ में अत्यधिक बढ़ गया है, जो इसे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बना देता है।
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