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आप इस मत से कहाँ तक सहमत है कि भूख के मुख्य कारण के रूप में खाद्य की उपलब्धता में कमी पर फोकस, भारत में अप्रभावी मानव विकास नीतियों से ध्यान हटा देता है? (250 words) [UPSC 2018]
खाद्य उपलब्धता बनाम मानव विकास नीतियाँ: भारत की स्थिति खाद्य की उपलब्धता में कमी को भूख के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है, लेकिन यह दृष्टिकोण भारत में अप्रभावी मानव विकास नीतियों से ध्यान हटा सकता है। इस परिदृश्य की समालोचना निम्नलिखित बिंदुओं पर आधारित है: 1. खाद्य आपूर्ति की कमी: खाद्य उपलब्धRead more
खाद्य उपलब्धता बनाम मानव विकास नीतियाँ: भारत की स्थिति
खाद्य की उपलब्धता में कमी को भूख के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है, लेकिन यह दृष्टिकोण भारत में अप्रभावी मानव विकास नीतियों से ध्यान हटा सकता है। इस परिदृश्य की समालोचना निम्नलिखित बिंदुओं पर आधारित है:
1. खाद्य आपूर्ति की कमी: खाद्य उपलब्धता की कमी निश्चित रूप से भूख के प्रमुख कारणों में से एक है। खाद्य आपूर्ति में कमी, असमान वितरण, और उत्पादन में कमी भूख और कुपोषण को जन्म देती है। भारत में खाद्य सुरक्षा योजनाएं जैसे पीडीएस (Public Distribution System) और आशा (Integrated Child Development Services) का उद्देश्य इन मुद्दों को संबोधित करना है।
2. मानव विकास नीतियाँ: खाद्य सुरक्षा के अलावा, मानव विकास नीतियाँ जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, और आजीविका विकास भी भूख और कुपोषण को प्रभावित करती हैं। यदि ये नीतियाँ प्रभावी नहीं हैं, तो खाद्य उपलब्धता के बावजूद संपूर्ण पोषण और जीवन की गुणवत्ता में सुधार नहीं हो पाएगा। स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, शिक्षा का अभाव, और आर्थिक असमानता भी भूख और कुपोषण के बड़े कारक हैं।
3. नीतिगत विफलताएँ: कई बार, मानव विकास नीतियाँ गरीबी और कुपोषण की जड़ों को गहराई से समझने में विफल रहती हैं। कार्यक्रमों और नीतियों का समन्वय और विवेकपूर्ण कार्यान्वयन जरूरी है।
4. खाद्य सुरक्षा और मानव विकास का संबंध: खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, नीतियाँ समग्र विकास की दिशा में होना चाहिए। सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, और शिक्षा की नीतियों को भी प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि नागरिकों को केवल भोजन ही नहीं बल्कि एक स्वस्थ जीवन और सशक्त भविष्य मिल सके।
उपसंहार: खाद्य की उपलब्धता में कमी महत्वपूर्ण है, लेकिन भारत में भूख और कुपोषण के मुद्दों को पूरी तरह से सुलझाने के लिए मानव विकास नीतियों पर भी ध्यान देना आवश्यक है। केवल खाद्य सुरक्षा के उपायों के बजाय, समग्र मानव विकास की दिशा में काम करना जरूरी है ताकि हर व्यक्ति को पोषण, शिक्षा, और स्वास्थ्य की सही सुविधाएँ मिल सकें।
See lessभारत में निर्धनता और भूख के बीच संबंध में एक बढ़ता हुआ अंतर है। सरकार द्वारा सामाजिक व्यय को संकुचित किए जाना, निर्धनों को अपने खाद्य बजट को निचोड़ते हुए खाद्येतर अत्यावश्यक मदों पर अधिक व्यय करने के लिए मजबूर कर रहा है। स्पष्ट कीजिए । (150 words) [UPSC 2019]
भारत में निर्धनता और भूख के बीच संबंध में एक बढ़ता हुआ अंतर दर्शाता है कि आर्थिक वृद्धि के बावजूद गरीबों की जीवन-यापन की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है। यह अंतर कई कारणों से उत्पन्न हो रहा है: 1. सामाजिक व्यय में कमी: सरकारी सामाजिक व्यय में संकुचन के कारण, विशेषकर खाद्य सब्सिडी और सामाजिक सुरक्षाRead more
भारत में निर्धनता और भूख के बीच संबंध में एक बढ़ता हुआ अंतर दर्शाता है कि आर्थिक वृद्धि के बावजूद गरीबों की जीवन-यापन की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है। यह अंतर कई कारणों से उत्पन्न हो रहा है:
1. सामाजिक व्यय में कमी:
सरकारी सामाजिक व्यय में संकुचन के कारण, विशेषकर खाद्य सब्सिडी और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में कटौती की जा रही है। इससे निर्धन वर्ग के पास खाद्य सुरक्षा के लिए आवश्यक संसाधन कम हो जाते हैं।
2. भोजन बजट में कमी:
संकुचित सामाजिक व्यय के चलते निर्धन व्यक्तियों को अपनी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सीमित बजट का सामना करना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप, वे भोजन के बजाए अन्य अत्यावश्यक मदों पर अधिक खर्च करने के लिए मजबूर होते हैं।
3. भूख और निर्धनता का संबंध:
इस स्थिति से भूख और निर्धनता के बीच एक बढ़ता हुआ अंतर उत्पन्न हो रहा है। खाद्य व्यय में कमी के कारण, गरीबों की पोषण स्थिति बिगड़ रही है, जबकि सामाजिक सुरक्षा के अन्य क्षेत्रों में भी सुधार की कमी है।
इस प्रकार, सामाजिक व्यय में कटौती के कारण निर्धन वर्ग की खाद्य सुरक्षा प्रभावित हो रही है, जिससे भूख और निर्धनता के बीच अंतर बढ़ रहा है।
See lessउच्च संवृद्धि के लगातार अनुभव के बावजूद, भारत के मानव विकास के निम्नतम संकेतक चल रहे हैं। उन मुद्दों का परीक्षण कीजिए, जो संतुलित और समावेशी विकास को पकड़ में आने नहीं दे रहे हैं। (150 words) [UPSC 2019]
भारत में उच्च संवृद्धि के बावजूद, मानव विकास के निम्नतम संकेतक कई मुद्दों के कारण प्रभावित हो रहे हैं: 1. समानता की कमी: भारत में आर्थिक वृद्धि का लाभ सभी वर्गों तक समान रूप से नहीं पहुँच रहा है। सामाजिक और आर्थिक असमानता के कारण, गरीब और हाशिये पर रहने वाले समूहों को लाभ नहीं मिल पा रहा है, जिससे मRead more
भारत में उच्च संवृद्धि के बावजूद, मानव विकास के निम्नतम संकेतक कई मुद्दों के कारण प्रभावित हो रहे हैं:
1. समानता की कमी:
भारत में आर्थिक वृद्धि का लाभ सभी वर्गों तक समान रूप से नहीं पहुँच रहा है। सामाजिक और आर्थिक असमानता के कारण, गरीब और हाशिये पर रहने वाले समूहों को लाभ नहीं मिल पा रहा है, जिससे मानव विकास के संकेतक कमजोर होते हैं।
2. स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं की कमी:
स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश की कमी और उनके असमान वितरण के कारण, देश के कई हिस्सों में बुनियादी सेवाओं की गुणवत्ता और पहुँच सीमित है। यह स्थिति विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में अधिक गंभीर है।
3. गरीबी और कुपोषण:
हालांकि आर्थिक वृद्धि हुई है, गरीबी और कुपोषण जैसी समस्याएँ अभी भी व्यापक रूप से विद्यमान हैं। यह स्थिति मानव विकास के संकेतकों को प्रभावित करती है।
4. संविधानिक और प्रशासनिक चुनौतियाँ:
प्रभावी नीतियों और योजनाओं की कमी, भ्रष्टाचार, और प्रशासनिक अक्षमता भी संतुलित और समावेशी विकास को बाधित करती है।
इन मुद्दों के समाधान के लिए प्रभावी नीतियाँ और सुधारात्मक उपाय आवश्यक हैं।
See lessराष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 धारणीय विकास लक्ष्य-4 (2030) के साथ अनुरूपता में है। उसका ध्येय भारत में शिक्षा प्रणाली की पुनःसंरचना और पुनःस्थापना है। इस कथन का समालोचनात्मक निरीक्षण कीजिए । (250 words) [UPSC 2020]
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 भारत में शिक्षा प्रणाली को पुनःसंरचित और पुनःस्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह नीति विशेष रूप से धारणीय विकास लक्ष्य-4 (SDG 4) 2030 के साथ अनुरूपता में है, जिसका उद्देश्य 'सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और जीवन-पर्यंत सीखने के अवसरों को सुनिश्चित करनRead more
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 भारत में शिक्षा प्रणाली को पुनःसंरचित और पुनःस्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह नीति विशेष रूप से धारणीय विकास लक्ष्य-4 (SDG 4) 2030 के साथ अनुरूपता में है, जिसका उद्देश्य ‘सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और जीवन-पर्यंत सीखने के अवसरों को सुनिश्चित करना’ है। NEP 2020 का समालोचनात्मक निरीक्षण निम्नलिखित बिंदुओं पर किया जा सकता है:
1. शिक्षा प्रणाली की पुनःसंरचना:
शिक्षा की सार्वभौमिकता: NEP 2020 ने ‘समावेशिता’ और ‘सार्वभौमिकता’ पर जोर दिया है। इसमें सभी बच्चों के लिए शिक्षा की अनिवार्यता, विशेषकर कक्षा 12 तक, को सुनिश्चित किया गया है। इसके तहत, ‘नई स्कूल शिक्षा प्रणाली’ की संरचना को बहु-स्तरीय और लचीला बनाया गया है, जिसमें 5+3+3+4 ढांचा प्रस्तावित है। यह प्रणाली बच्चों की उम्र और विकासात्मक जरूरतों के अनुसार शिक्षण को अनुकूलित करती है।
गुणवत्ता और दृष्टिकोण: NEP 2020 गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की दिशा में कई सुधारों का प्रस्ताव करती है, जैसे कि शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार, शिक्षण विधियों में आधुनिकता, और शिक्षा के डिजिटलकरण को बढ़ावा देना। यह छात्रों की सीखने की क्षमता और शिक्षा के प्रति उनकी रुचि को बढ़ाने में सहायक हो सकता है।
2. धारणीय विकास लक्ष्य-4 के साथ अनुरूपता:
समावेशिता और समानता: NEP 2020 विशेष रूप से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों, जैसे कि SC/ST, ओबीसी, और दिव्यांग बच्चों के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करने पर जोर देती है। यह SDG 4 के समावेशिता के लक्ष्य को पूरा करने में सहायक होती है।
जीवन-पर्यंत शिक्षा: NEP 2020 जीवन-पर्यंत सीखने की अवधारणा को अपनाती है, जो SDG 4 के अनुरूप है। इसमें Vocational Education और Skill Development पर जोर दिया गया है, जिससे युवाओं को रोजगार के लिए तैयार किया जा सके।
आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण: NEP 2020 ने ‘स्वतंत्रता और सशक्तिकरण’ की दिशा में कई कदम उठाए हैं, जैसे कि स्कूलों और कॉलेजों के लिए अधिक स्वायत्तता प्रदान करना और बुनियादी ढांचे में सुधार। यह धारणीय विकास के सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से मेल खाता है।
निष्कर्ष:
See lessNEP 2020 भारत की शिक्षा प्रणाली को पुनःसंरचित और पुनःस्थापित करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है, जो SDG 4 के साथ अनुरूपता में है। हालांकि, इसके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ हो सकती हैं, जैसे कि संसाधनों की कमी और राज्य-स्तरीय भिन्नताएँ। लेकिन, अगर सही ढंग से लागू किया जाए, तो यह नीति भारत में शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
"सूक्ष्म-वित्त एक गरीबी रोधी टीका है जो भारत में ग्रामीण दरिद्र की परिसंपत्ति निर्माण और आयसुरक्षा के लिए लक्षित है"। स्वयं सहायता समूहों की भूमिका का मूल्यांकन ग्रामीण भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ साथ उपरोक्त दोहरे उद्देश्यों के लिए कीजिए। (250 words) [UPSC 2020]
सूक्ष्म-वित्त (Microfinance) और स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups, SHGs) ग्रामीण भारत में गरीबी रोधी उपायों के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, विशेषकर महिलाओं के सशक्तिकरण और परिसंपत्ति निर्माण के संदर्भ में। 1. महिलाओं के सशक्तिकरण: आर्थिक स्वतंत्रता: स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाएRead more
सूक्ष्म-वित्त (Microfinance) और स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups, SHGs) ग्रामीण भारत में गरीबी रोधी उपायों के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, विशेषकर महिलाओं के सशक्तिकरण और परिसंपत्ति निर्माण के संदर्भ में।
1. महिलाओं के सशक्तिकरण:
आर्थिक स्वतंत्रता: स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाएं छोटे-छोटे ऋण प्राप्त कर सकती हैं, जो उन्हें अपने छोटे व्यवसायों को स्थापित करने और संचालित करने की सुविधा प्रदान करते हैं। इससे वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती हैं और परिवार के आर्थिक निर्णयों में भाग ले सकती हैं।
सामाजिक सशक्तिकरण: SHGs महिलाओं को सामूहिक रूप से संगठित करती हैं, जिससे वे सामाजिक मुद्दों पर चर्चा और निर्णय लेने में सक्षम होती हैं। यह उनके आत्म-सम्मान और नेतृत्व क्षमताओं को बढ़ावा देता है, जिससे वे समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
2. परिसंपत्ति निर्माण:
स्रोतों की उपलब्धता: स्वयं सहायता समूहों द्वारा प्रदान किए गए सूक्ष्म-वित्तीय साधन, जैसे छोटे ऋण और बचत योजनाएँ, ग्रामीण गरीबों को आवश्यक पूंजी प्रदान करती हैं। इससे वे अपने छोटे व्यवसायों या कृषि कार्यों में निवेश कर सकते हैं, जो उनकी संपत्ति निर्माण में सहायक होता है।
स्थिरता और सुरक्षा: SHGs में जुड़ी महिलाएं नियमित रूप से अपनी बचत करती हैं और ऋण चुकता करती हैं, जिससे उनके पास आर्थिक सुरक्षा और स्थिरता का आधार होता है। यह दीर्घकालिक वित्तीय सुरक्षा और संपत्ति निर्माण को बढ़ावा देता है।
उदाहरण:
नरेन्द्रा मोदी की सरकार के तहत ‘प्रधानमंत्री जन धन योजना’ और ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ जैसे कार्यक्रमों ने SHGs को वित्तीय समावेशन में योगदान दिया है। इसी तरह, ‘अन्नपूर्णा योजना’ ने SHGs को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में मदद की है।
जिला ग्रामीण विकास एजेंसियाँ (DRDAs) और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) ने भी SHGs के माध्यम से सूक्ष्म-वित्तीय योजनाओं को लागू किया है, जिससे ग्रामीण महिलाओं को लाभ हुआ है और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
निष्कर्ष:
See lessस्वयं सहायता समूहों की भूमिका ग्रामीण भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण और परिसंपत्ति निर्माण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे न केवल आर्थिक अवसर प्रदान करते हैं बल्कि सामाजिक और सामुदायिक सशक्तिकरण में भी योगदान करते हैं। इन समूहों द्वारा किए गए प्रयासों से ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी कम करने और विकास को गति देने में मदद मिलती है।
"केवल आय पर आधारित गरीबी के निर्धारण में गरीबी का आपतन और तीव्रता अधिक महत्वपूर्ण है"। इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र बहुआयामी गरीबी सूचकांक की नवीनतम रिपोर्ट का विश्लेषण कीजिए । (250 words) [UPSC 2020]
"केवल आय पर आधारित गरीबी के निर्धारण में गरीबी का आपतन और तीव्रता अधिक महत्वपूर्ण है" इस विचार को समझने के लिए संयुक्त राष्ट्र बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) की नवीनतम रिपोर्ट का विश्लेषण किया जा सकता है। MPI गरीबी की एक व्यापक परिभाषा प्रदान करता है, जो केवल आय के बजाय विभिन्न सामाजिक और आर्थिक आयामोRead more
“केवल आय पर आधारित गरीबी के निर्धारण में गरीबी का आपतन और तीव्रता अधिक महत्वपूर्ण है” इस विचार को समझने के लिए संयुक्त राष्ट्र बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) की नवीनतम रिपोर्ट का विश्लेषण किया जा सकता है। MPI गरीबी की एक व्यापक परिभाषा प्रदान करता है, जो केवल आय के बजाय विभिन्न सामाजिक और आर्थिक आयामों को भी ध्यान में रखता है।
MPI का विश्लेषण:
संविधानिक निर्धारण:
MPI में गरीबी का निर्धारण आय के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, और जीवन स्तर जैसे आयामों पर आधारित होता है। यह सूचकांक यह मापता है कि कितने लोग इन प्रमुख आयामों में से कितने में गरीब हैं और उनकी गरीबी कितनी गहरी है।
आपतन (Incidence):
MPI में गरीबी का आपतन यह दिखाता है कि एक निश्चित जनसंख्या का कितना प्रतिशत बहुआयामी गरीबी में है। यह निर्धारण गरीबी की व्यापकता को दर्शाता है। नवीनतम रिपोर्ट में दिखाया गया है कि कई देश, विशेषकर विकासशील देशों में, MPI के आधार पर गरीबी का आपतन उच्च है, जो केवल आय आधारित निर्धारण से कहीं अधिक गहराई से दर्शाता है।
तीव्रता (Intensity):
तीव्रता से तात्पर्य है गरीबी के उस स्तर की गहराई, जिसमें गरीब लोग रहते हैं। MPI में, यह दिखाया जाता है कि गरीब लोगों को कितनी संख्या में आवश्यक संसाधनों की कमी है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति की शिक्षा, स्वास्थ्य, और जीवन स्तर में महत्वपूर्ण कमी है, तो उनकी गरीबी की तीव्रता अधिक होगी।
वर्तमान रिपोर्ट के निष्कर्ष:
उच्च आपतन और तीव्रता: नवीनतम MPI रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर कई देश, जैसे कि अफ्रीकी और दक्षिण एशियाई देश, उच्च गरीबी आपतन और तीव्रता का सामना कर रहे हैं। ये आंकड़े केवल आय आधारित गरीबी की तुलना में अधिक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक कारक: रिपोर्ट में यह भी दर्शाया गया है कि गरीबी के विभिन्न आयामों की गहराई और तीव्रता सांस्कृतिक और सामाजिक कारकों से प्रभावित होती है, जैसे कि शिक्षा की कमी और स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता।
संक्षेप में, MPI का उपयोग केवल आय आधारित निर्धारण की तुलना में गरीबी के गहरे और अधिक समग्र चित्र को प्रस्तुत करता है। यह न केवल गरीबी की मौजूदगी को दिखाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि गरीब लोगों को कितनी गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ता है, जिससे नीति निर्धारण और अंतर्राष्ट्रीय सहायता के लिए बेहतर मार्गदर्शन प्राप्त होता है।
See lessसामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने के क्रम में, विशेषकर जराचिकित्सा एवं मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में सुदृढ़ और पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल संबंधी नीतियों की आवश्यकता है। विवेचन कीजिए। (150 words) [UPSC 2020]
सामाजिक विकास के लिए जराचिकित्सा (geriatrics) और मातृ स्वास्थ्य देखभाल (maternal health care) की दिशा में सुदृढ़ नीतियों की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण है। जराचिकित्सा: वृद्ध जनसंख्या का बढ़ना: भारत में वृद्ध जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, जिसके लिए विशेष स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत है, जैसे वृद्धावस्थाRead more
सामाजिक विकास के लिए जराचिकित्सा (geriatrics) और मातृ स्वास्थ्य देखभाल (maternal health care) की दिशा में सुदृढ़ नीतियों की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जराचिकित्सा:
See lessवृद्ध जनसंख्या का बढ़ना: भारत में वृद्ध जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, जिसके लिए विशेष स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत है, जैसे वृद्धावस्था संबंधी रोगों की जांच और उपचार।
सामाजिक सुरक्षा: वृद्ध व्यक्तियों को स्वास्थ्य देखभाल, मानसिक समर्थन और सामाजिक सुरक्षा की नीतियाँ सुनिश्चित करनी होंगी, ताकि उनकी जीवन गुणवत्ता में सुधार हो सके।
मातृ स्वास्थ्य देखभाल:
स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच: गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए समुचित स्वास्थ्य सेवाएं, जैसे नियमित जांच, टीकाकरण, और प्रसव पूर्व देखभाल, की आवश्यकता है।
आहार और पोषण: मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए पोषण संबंधी नीतियों को सुदृढ़ करना आवश्यक है, जिससे गर्भवती महिलाओं और शिशुओं को आवश्यक पोषण मिल सके।
इन क्षेत्रों में सुधार से सामाजिक विकास को गति मिलेगी, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा, और समाज के कमजोर वर्गों की भलाई सुनिश्चित होगी।
क्या नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठन, आम नागरिक को लाभ प्रदान करने के लिए लोक सेवा प्रदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकते हैं? इस वैकल्पिक प्रतिमान की चुनौतियों की विवेचना कीजिए। (250 words) [UPSC 2021]
नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) लोक सेवा प्रदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकते हैं। इन संगठनों की भूमिका और क्षमताएँ पारंपरिक सरकारी सेवाओं के पूरक के रूप में उभर सकती हैं, विशेषकर जब सरकारी संस्थाएँ कुछ क्षेत्रों में अक्षम या अनुपस्थित होती हैं। वैकल्पिक प्रतिमान के लाभ: स्थानीय जRead more
नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) लोक सेवा प्रदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकते हैं। इन संगठनों की भूमिका और क्षमताएँ पारंपरिक सरकारी सेवाओं के पूरक के रूप में उभर सकती हैं, विशेषकर जब सरकारी संस्थाएँ कुछ क्षेत्रों में अक्षम या अनुपस्थित होती हैं।
वैकल्पिक प्रतिमान के लाभ:
स्थानीय जरूरतों के प्रति संवेदनशीलता:
उदाहरण: NGOs जैसे डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स और सेवा इंटरनेशनल स्थानीय समुदायों की विशिष्ट स्वास्थ्य और सामाजिक जरूरतों को समझते हैं और उनका समाधान करते हैं।
लचीलापन और नवाचार:
उदाहरण: गूगल.org और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसे संगठन नई प्रौद्योगिकी और नवाचारों का उपयोग करके शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार कर रहे हैं।
जवाबदेही और पारदर्शिता:
NGOs अक्सर स्थानीय स्तर पर काम करते हैं और उनकी पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीदें अधिक होती हैं। यह उन्हें नागरिकों के प्रति अधिक उत्तरदायी बनाता है।
चुनौतियाँ:
संसाधनों की कमी और स्थिरता:
NGOs को अक्सर वित्तीय और मानव संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी स्थिरता और दीर्घकालिक प्रभाव पर प्रश्न उठते हैं।
उदाहरण: कई NGOs को नियमित फंडिंग की समस्या का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके प्रोजेक्ट्स प्रभावित होते हैं।
समानता और पहुंच:
NGOs द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ कभी-कभी सीमित भौगोलिक क्षेत्रों या विशेष जनसंख्या समूहों तक ही सीमित होती हैं, जिससे समाज के सभी वर्गों तक पहुँच सुनिश्चित करना कठिन होता है।
उदाहरण: ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले NGO प्रोजेक्ट्स को शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
नियामक चुनौतियाँ और संघर्ष:
NGOs को अक्सर नियामक और कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, विशेषकर जब उनकी गतिविधियाँ सरकार की नीतियों से मेल नहीं खाती हैं।
उदाहरण: कई देशों में NGOs को विदेशी फंडिंग को लेकर सख्त नियामक नियमों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी कार्यक्षमता पर असर पड़ता है।
प्रशासनिक बाधाएँ और समन्वय:
सरकारी और NGO प्रयासों के बीच समन्वय की कमी से प्रभावशीलता में कमी आ सकती है। विभिन्न संगठनों के प्रयासों का समन्वय और एकीकरण अक्सर चुनौतीपूर्ण होता है।
उदाहरण: आपातकालीन स्थितियों में, कई NGOs और सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी से सहायता की पहुँच में देरी हो सकती है।
निष्कर्ष:
See lessनागरिक समाज और NGOs लोक सेवा प्रदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकते हैं, जो पारंपरिक सरकारी सेवाओं के पूरक के रूप में कार्य कर सकते हैं। हालांकि, इन प्रतिमानों की सफलता के लिए उन्हें संसाधनों, समानता, और समन्वय जैसी चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। सही तरीके से कार्यान्वित किए जाने पर, ये संगठन समाज में महत्वपूर्ण सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और लोक सेवा के क्षेत्र में नवाचार और संवेदनशीलता को बढ़ावा दे सकते हैं।
"यद्यपि स्वातंत्र्योत्तर भारत में महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल की है, इसके बावजूद महिलाओं और नारीवादी आन्दोलन के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण पितृसत्तात्मक रहा है।" महिला शिक्षा और महिला सशक्तीकरण की योजनाओं के अतिरिक्त कौन-से हस्तक्षेप इस परिवेश के परिवर्तन में सहायक हो सकते हैं? (250 words) [UPSC 2021]
स्वतंत्रता के बाद भारत में महिलाओं ने कई क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त की है, लेकिन पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण और सामाजिक असमानताएँ बनी हुई हैं। महिला शिक्षा और सशक्तीकरण की योजनाओं के अतिरिक्त, निम्नलिखित हस्तक्षेप इस परिवेश के परिवर्तन में सहायक हो सकते हैं: 1. सामाजिक जागरूकता और शिक्षा: सार्वजनिRead more
स्वतंत्रता के बाद भारत में महिलाओं ने कई क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त की है, लेकिन पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण और सामाजिक असमानताएँ बनी हुई हैं। महिला शिक्षा और सशक्तीकरण की योजनाओं के अतिरिक्त, निम्नलिखित हस्तक्षेप इस परिवेश के परिवर्तन में सहायक हो सकते हैं:
1. सामाजिक जागरूकता और शिक्षा:
सार्वजनिक अभियान और शिक्षा: सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव के लिए व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। मीडिया, स्कूलों और समुदायों में पितृसत्तात्मक सोच के खिलाफ शिक्षित किया जाना आवश्यक है।
उदाहरण: बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान ने महिलाओं की शिक्षा और सुरक्षा के प्रति समाज में जागरूकता बढ़ाई है। इसी तरह के अभियान पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण को चुनौती दे सकते हैं।
2. कानूनी सुधार और कार्यान्वयन:
सख्त कानून और उनका अनुपालन: महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कठोर कानूनी प्रावधान और उनके प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता है। यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और समान वेतन जैसे मामलों में कानूनों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
उदाहरण: राष्ट्रीय महिला आयोग और महिला अत्याचार निवारण अधिनियम जैसे कानूनी ढाँचे ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन उनके प्रभावी कार्यान्वयन पर ध्यान देना आवश्यक है।
3. आर्थिक सशक्तिकरण और रोजगार के अवसर:
स्वरोजगार और उद्यमिता: महिलाओं के लिए स्वरोजगार और उद्यमिता के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। सरकारी योजनाओं और वित्तीय सहायता से महिलाएँ खुद को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बना सकती हैं।
उदाहरण: महिला उद्यमिता प्रोत्साहन योजना और प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ने महिलाओं को व्यवसाय स्थापित करने के अवसर प्रदान किए हैं, जिससे उनका आर्थिक सशक्तिकरण बढ़ा है।
4. सामुदायिक और पारिवारिक समर्थन:
पारिवारिक दृष्टिकोण में बदलाव: परिवार और समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण बदलने के लिए सामुदायिक कार्यक्रमों और कार्यशालाओं का आयोजन किया जाना चाहिए। पारिवारिक भूमिकाओं में समानता की ओर प्रोत्साहन देना आवश्यक है।
उदाहरण: सामाजिक समरसता अभियान और समानता पर कार्यशालाएँ ने पारिवारिक और सामाजिक दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद की है।
5. नारीवादी आंदोलनों और प्रतिनिधित्व:
वृद्धि और समर्थन: नारीवादी आंदोलनों और संगठनों का समर्थन बढ़ाया जाना चाहिए, जो महिलाओं की सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। समाज में महिलाओं की बेहतर प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है।
उदाहरण: नारीवादी संगठनों और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई है और कई सामाजिक बदलावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इन हस्तक्षेपों के माध्यम से पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण में बदलाव किया जा सकता है और महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार किया जा सकता है। इन पहलों के साथ समन्वय और सक्रिय कार्यान्वयन से ही एक सशक्त और समान समाज की दिशा में प्रगति की जा सकती है।
See lessक्या लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुश्चक्र को महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को सूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनेन्स) प्रदान करके तोड़ा जा सकता है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। (150 words) [UPSC 2021]
हाँ, लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुश्चक्र को महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को सूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनेंस) प्रदान करके तोड़ा जा सकता है। उदाहरण और प्रभाव: स्वयं सहायता समूह (SHG) और सूक्ष्म वित्त: भारतीय राज्यों जैसे तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में SHGs को सूक्ष्म वित्त देने से महिलाओंRead more
हाँ, लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुश्चक्र को महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को सूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनेंस) प्रदान करके तोड़ा जा सकता है।
उदाहरण और प्रभाव:
स्वयं सहायता समूह (SHG) और सूक्ष्म वित्त: भारतीय राज्यों जैसे तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में SHGs को सूक्ष्म वित्त देने से महिलाओं ने छोटे-छोटे व्यवसाय शुरू किए, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।
उदाहरण: “सेल्वा” (Tamil Nadu) और “महिला बैंक” (Andhra Pradesh) जैसी योजनाओं के तहत, महिलाओं को ऋण और वित्तीय सेवाएं मिलीं, जिससे उन्होंने स्वरोजगार और कुटीर उद्योगों में भागीदारी की। इसने न केवल उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार किया, बल्कि सामाजिक मान्यता और आत्म-निर्भरता भी बढ़ाई।
गरीबी और कुपोषण पर प्रभाव: आर्थिक सशक्तिकरण से महिलाओं के परिवारों की वित्तीय स्थिति मजबूत हुई, जिससे बेहतर पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ी।
इस प्रकार, सूक्ष्म वित्त SHGs के माध्यम से लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुश्चक्र को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
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