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"व्यावसायिक शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण को सार्थक बनाने के लिए 'सीखते हुए कमाना (अर्न व्हाइल यू लर्न) की योजना को सशक्त करने की आवश्यकता है।" टिप्पणी कीजिए। (150 words) [UPSC 2021]
"व्यावसायिक शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण को सार्थक बनाने के लिए 'सीखते हुए कमाना (अर्न व्हाइल यू लर्न) की योजना को सशक्त करने की आवश्यकता है" इस कथन पर टिप्पणी करते हुए: सार्थकता का कारण: प्रायोगिक अनुभव: 'सीखते हुए कमाना' मॉडल के तहत, छात्र वास्तविक कार्य वातावरण में काम करते हुए व्यावसायिक कौशल प्राप्Read more
“व्यावसायिक शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण को सार्थक बनाने के लिए ‘सीखते हुए कमाना (अर्न व्हाइल यू लर्न) की योजना को सशक्त करने की आवश्यकता है” इस कथन पर टिप्पणी करते हुए:
सार्थकता का कारण:
प्रायोगिक अनुभव: ‘सीखते हुए कमाना’ मॉडल के तहत, छात्र वास्तविक कार्य वातावरण में काम करते हुए व्यावसायिक कौशल प्राप्त कर सकते हैं। यह उन्हें काम के दौरान त्वरित अनुभव और सैद्धांतिक ज्ञान को व्यावहारिक रूप में लागू करने का अवसर प्रदान करता है।
आर्थिक समर्थन: इस मॉडल के माध्यम से, छात्र अपनी शिक्षा के दौरान आय प्राप्त कर सकते हैं, जो उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है और शिक्षा को अधिक सुलभ बनाता है।
सशक्तीकरण की आवश्यकता:
संस्थान और उद्योग साझेदारी: इस योजना को सफल बनाने के लिए, शिक्षा संस्थानों और उद्योगों के बीच मजबूत साझेदारी की आवश्यकता है, ताकि उपयुक्त अवसर और संसाधन उपलब्ध कराए जा सकें।
संगठित प्रशिक्षण कार्यक्रम: कुशल प्रशिक्षण और मार्गदर्शन सुनिश्चित करने के लिए ठोस और व्यवस्थित प्रशिक्षण कार्यक्रम आवश्यक हैं, ताकि छात्रों को गुणवत्तापूर्ण और प्रभावी अनुभव मिल सके।
इस प्रकार, ‘सीखते हुए कमाना’ योजना को सशक्त बनाने से व्यावसायिक शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण को अधिक प्रभावी और उपयोगी बनाया जा सकता है।
See less"एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।" विश्लेषण कीजिए। (150 words) [UPSC 2021]
"एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है" इस कथन का विश्लेषण करते हुए: नैतिक अनिवार्यता: मूलभूत अधिकार: कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य अपने नागरिकों को जीवन की गुणवत्ता सुधारने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा प्रदान करना हRead more
“एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है” इस कथन का विश्लेषण करते हुए:
नैतिक अनिवार्यता:
मूलभूत अधिकार: कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य अपने नागरिकों को जीवन की गुणवत्ता सुधारने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा प्रदान करना है। प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना जैसे क्लीनिक और स्वास्थ्य केंद्र बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं, जो नैतिक दृष्टिकोण से अनिवार्य हैं।
धारणीय विकास:
स्वास्थ्य और उत्पादकता: अच्छी प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ बीमारी और मृत्यु दर को कम करती हैं, जिससे कार्यक्षमता और उत्पादकता में सुधार होता है। इससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
समानता और समावेशन: प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ सभी वर्गों को समान अवसर प्रदान करती हैं, जिससे सामाजिक असमानता घटती है और समावेशी विकास को बढ़ावा मिलता है।
दीर्घकालिक स्थिरता: प्राथमिक स्वास्थ्य में निवेश दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभ सुनिश्चित करता है, जो धारणीय विकास के लिए आवश्यक है।
इस प्रकार, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना नैतिक जिम्मेदारी के साथ-साथ धारणीय विकास की एक आवश्यक शर्त भी है।
See lessभारत में बाल श्रम की उपस्थिति के विभिन्न निर्धारकों पर चर्चा कीजिए। देश में बाल श्रम की समस्या से निपटने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं? (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत में बाल श्रम की उपस्थिति के विभिन्न निर्धारक निम्नलिखित हैं: गरीबी: परिवारों की आर्थिक स्थिति में कमी बाल श्रम को बढ़ावा देती है क्योंकि बच्चे काम करके अतिरिक्त आय की मदद करते हैं। शिक्षा की कमी: शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी और स्कूलों की अपर्याप्तता बाल श्रम को बढ़ावा देती है। सामाजिक असमानRead more
भारत में बाल श्रम की उपस्थिति के विभिन्न निर्धारक निम्नलिखित हैं:
गरीबी: परिवारों की आर्थिक स्थिति में कमी बाल श्रम को बढ़ावा देती है क्योंकि बच्चे काम करके अतिरिक्त आय की मदद करते हैं।
शिक्षा की कमी: शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी और स्कूलों की अपर्याप्तता बाल श्रम को बढ़ावा देती है।
सामाजिक असमानताएं: जाति और सामाजिक स्थिति के आधार पर भेदभाव भी बाल श्रम को प्रभावित करता है।
कानूनी प्रवर्तन की कमी: बाल श्रम के खिलाफ कानूनों का सही ढंग से लागू न होना समस्या को बढ़ाता है।
समाधान के उपाय:
शिक्षा का प्रोत्साहन: मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की सुविधा सुनिश्चित करना।
See lessगरीबी उन्मूलन: आर्थिक सहायता योजनाओं को बढ़ाना ताकि परिवारों की आय बढ़े।
कानूनी उपाय: बाल श्रम पर प्रभावी कानूनी कार्रवाई और निगरानी।
जागरूकता अभियान: समुदायों में बाल श्रम के दुष्परिणामों के प्रति जागरूकता फैलाना।
स्वय सहायता समूहों की चुनौतियों की विवेचना कीजिए। इसको प्रभावकारी एवं लाभकारी बनाने के साधन क्या है ? (200 Words) [UPPSC 2022]
स्वयं सहायता समूहों की चुनौतियाँ 1. वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता: स्वयं सहायता समूह (SHGs) अक्सर वित्तीय संसाधनों की कमी से जूझते हैं। बैंकों की उच्च ऋण शर्तें और सख्त आवधिक शर्तें SHGs की वृद्धि में बाधक होती हैं। उदाहरण के लिए, रविवार का घेरा नामक अध्ययन ने दिखाया कि गांवों में बैंकों की अनिच्छा नRead more
स्वयं सहायता समूहों की चुनौतियाँ
1. वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता:
2. क्षमता निर्माण की कमी:
3. बाजार संपर्क की कमी:
4. राजनीतिक और प्रशासनिक समर्थन की कमी:
स्वयं सहायता समूहों को प्रभावकारी और लाभकारी बनाने के साधन
1. वित्तीय पहुँच में सुधार:
2. क्षमता निर्माण कार्यक्रम:
3. बाजार संपर्क मजबूत करना:
4. सरकारी समर्थन में वृद्धि:
हालिया उदाहरण:
निष्कर्ष
स्वयं सहायता समूहों के सामने वित्तीय, प्रबंधन, बाजार संपर्क और समर्थन संबंधी चुनौतियों को सुलझाने के लिए विभिन्न उपाय आवश्यक हैं। इन उपायों के कार्यान्वयन से SHGs को अधिक प्रभावकारी और लाभकारी बनाया जा सकता है, जिससे ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन में योगदान मिलेगा।
See lessभारत में दिव्यांगजनों (PwDs) द्वारा सामना की जाने वाली बहुसंख्य चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। साथ ही, दिव्यांगजनों के लिए उपबंधित विधायी प्रावधानों और समाज के इस वर्ग के उत्थान के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई पहलों का भी उल्लेख कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में दिव्यांगजनों (PwDs) द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ: सुविधाओं की कमी: सार्वजनिक स्थानों, परिवहन, और शिक्षा संस्थानों में दिव्यांगजनों के लिए उचित सुविधाओं की कमी होती है, जैसे कि रampe, ब्रेल सिस्टम, और विशेष शैक्षिक सामग्री। भेदभाव और सामाजिक अज्ञानता: समाज में दिव्यांगजनों के प्रति पूRead more
भारत में दिव्यांगजनों (PwDs) द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ:
विधायी प्रावधान और सरकारी पहलों:
इन पहलुओं और प्रावधानों के बावजूद, दिव्यांगजनों के पूर्ण सशक्तिकरण के लिए निरंतर सुधार और समाज में जागरूकता की आवश्यकता है। सरकार की नीतियाँ और योजनाएँ दिव्यांगजनों के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन समाज को भी उनके अधिकारों और सम्मान के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
See lessकृषि के नारीकरण को प्रेरित करने वाले कारकों को सूचीबद्ध कीजिए तथा इसके प्रभावों पर चर्चा कीजिए। साथ ही, उन तरीकों का भी वर्णन कीजिए जिनके माध्यम से महिलाओं को इस संदर्भ में सशक्त बनाया जा सकता है। (250 शब्दों में उत्तर दें)
कृषि के नारीकरण के प्रेरक कारक निम्नलिखित हैं: आवश्यकता और पारंपरिक भूमिका: ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की पारंपरिक भूमिकाओं के कारण वे कृषि कार्यों में सक्रिय भागीदार होती हैं। कृषि कार्य में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी उनके आर्थिक योगदान को दर्शाती है। आर्थिक सशक्तिकरण: महिलाओं को कृषि में शामिल कRead more
कृषि के नारीकरण के प्रेरक कारक निम्नलिखित हैं:
कृषि के नारीकरण के प्रभाव:
महिलाओं को सशक्त बनाने के तरीके:
इन उपायों के माध्यम से महिलाओं को कृषि क्षेत्र में सशक्त बनाया जा सकता है, जो न केवल उनकी व्यक्तिगत भलाई को बेहतर बनाएगा बल्कि पूरे समुदाय और देश की समृद्धि में भी योगदान देगा।
See lessअसुरक्षित गर्भपात भारत में महिलाओं के प्रजनन और मातृ स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसके लिए उत्तरदायी कारणों की पहचान कीजिए और उपचारात्मक उपाय भी बताइए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
असुरक्षित गर्भपात भारत में महिलाओं के प्रजनन और मातृ स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। इसके लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं: कानूनी और सामाजिक अवरोध: गर्भपात की सीमित कानूनी स्वीकृति और समाज में इसे लेकर दोषारोपण महिलाओं को असुरक्षित गर्भपात की ओर धकेलते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की कRead more
असुरक्षित गर्भपात भारत में महिलाओं के प्रजनन और मातृ स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। इसके लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
उपचारात्मक उपाय:
इन उपायों को लागू करके महिलाओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा में सुधार किया जा सकता है।
See lessभारत में, 2011-21 में वृद्धजनों की जनसंख्या की वृद्धि दर सामान्य जनसंख्या की वृद्धि दर से लगभग तीन गुना थी। इस संदर्भ में, चर्चा कीजिए कि वृद्धजनों हेतु नीतियों का निर्माण भारत के समग्र विकास के लिए एक महत्वपूर्ण पहलू क्यों है। (150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में, 2011-21 के बीच वृद्धजनों की जनसंख्या की वृद्धि दर सामान्य जनसंख्या की वृद्धि दर से लगभग तीन गुना रही, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वृद्धजनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इस संदर्भ में, वृद्धजनों हेतु नीतियों का निर्माण भारत के समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण है, निम्नलिखित कारणों से: स्वास्थ्Read more
भारत में, 2011-21 के बीच वृद्धजनों की जनसंख्या की वृद्धि दर सामान्य जनसंख्या की वृद्धि दर से लगभग तीन गुना रही, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वृद्धजनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इस संदर्भ में, वृद्धजनों हेतु नीतियों का निर्माण भारत के समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण है, निम्नलिखित कारणों से:
इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, वृद्धजनों के लिए समर्पित नीतियों का निर्माण भारत की सामाजिक और आर्थिक स्थिरता के लिए आवश्यक है।
See lessभारत में 'जीरो फूड' बच्चों की व्यापकता को कम करने के लिए मातृ पोषण को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत में 'जीरो फूड' या कम पोषण स्तिथियाँ बच्चों के स्वास्थ्य और विकास को प्रभावित कर सकती हैं। इस समस्या का सामना करने के लिए मातृ पोषण को प्राथमिकता देना अत्यंत महत्वपूर्ण है। मातृ पोषण का महत्व उसके शिशु को सही आहार प्रदान करके उसके विकास को सुनिश्चित करने में है। मातृ पोषण से मां के आहार की गुणवतRead more
भारत में ‘जीरो फूड’ या कम पोषण स्तिथियाँ बच्चों के स्वास्थ्य और विकास को प्रभावित कर सकती हैं। इस समस्या का सामना करने के लिए मातृ पोषण को प्राथमिकता देना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मातृ पोषण का महत्व उसके शिशु को सही आहार प्रदान करके उसके विकास को सुनिश्चित करने में है। मातृ पोषण से मां के आहार की गुणवत्ता और मातृ शिशु स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के विकल्पों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है।
इसके अलावा, मातृ पोषण की समीक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देना भी महत्वपूर्ण है। समुदाय के सदस्यों को सही जानकारी और गुणवत्ता वाले आहार के बारे में शिक्षित करने से उन्हें अपने खुद के स्वास्थ्य और अपने बच्चों के विकास के लिए जिम्मेदारी लेने में मदद मिल सकती है।
इस प्रकार, मातृ पोषण को प्राथमिकता देना ‘जीरो फूड’ समस्या को सुलझाने में मदद कर सकता है और समृद्धि की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
See lessवैश्विक बदलावों के साथ समेकन और अर्थव्यवस्था के खुलने के परिणामस्वरूप लोक सेवानों के लिए विविध चुनौतियां उत्पन हो गई हैं, जिनके कारण कुशल सेवा वितरण के लिए उनमें समग्र सुधारों की आवस्यकता है। विवेचना कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
वैश्विकीकरण और अर्थव्यवस्था के खुलने ने लोक सेवाओं के क्षेत्र में नई चुनौतियों का सामना कराया है। इसके परिणामस्वरूप, कुशल सेवा वितरण के लिए कई सुधारों की आवश्यकता है। पहली चुनौती तकनीकी प्रगति और डिजिटलीकरण का है। नई तकनीकों का उपयोग करने के लिए संबंधित कर्मियों को प्रशिक्षित करना और तकनीकी ज्ञान कोRead more
वैश्विकीकरण और अर्थव्यवस्था के खुलने ने लोक सेवाओं के क्षेत्र में नई चुनौतियों का सामना कराया है। इसके परिणामस्वरूप, कुशल सेवा वितरण के लिए कई सुधारों की आवश्यकता है।
पहली चुनौती तकनीकी प्रगति और डिजिटलीकरण का है। नई तकनीकों का उपयोग करने के लिए संबंधित कर्मियों को प्रशिक्षित करना और तकनीकी ज्ञान को लागू करना मुश्किल हो सकता है।
दूसरी चुनौती है नागरिकों की विभिन्न आवश्यकताओं को समझना। लोगों की भाषा, संस्कृति, और स्थानीय दृष्टिकोण को मध्यस्थता करने के लिए सेवाओं को अनुकूलित करना महत्वपूर्ण है।
तीसरी चुनौती है सेवा गुणवत्ता का सुनिश्चित करना। लोक सेवाएं समान रूप से पहुंचनी चाहिए और सुविधाओं की गुणवत्ता में सुधार होना चाहिए।
इन चुनौतियों का सामना करने के लिए, सरकारों को नवीनतम तकनीकी और सेवा वितरण के मानकों का पालन करने के लिए नीतियों में सुधार करना होगा, साथ ही स्थानीय स्तर पर संगठनात्मक और प्रशासनिक क्षमताओं का मजबूती से संदर्भ बनाना होगा।
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