भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की संवृद्धि और विकास का विवरण प्रस्तुत कीजिए। भारत में तीव्र प्रजनक रियेक्टर कार्यक्रम का क्या लाभ है ? (250 words) [UPSC 2017]
सौर ऊर्जा की उपकरण लागतों और टैरिफ में पतन के कारक तकनीकी उन्नति: सौर प्रौद्योगिकी में नवाचार ने उपकरण लागतों में कमी की है। जैसे कि फोटोवोल्टिक (PV) कोशिकाओं की दक्षता में वृद्धि और सौर पैनल निर्माण में सुधार ने उत्पादन लागत कम की है। थिन-फिल्म तकनीक और उच्च दक्षता वाले मॉड्यूल इस कमी में योगदान करRead more
सौर ऊर्जा की उपकरण लागतों और टैरिफ में पतन के कारक
- तकनीकी उन्नति: सौर प्रौद्योगिकी में नवाचार ने उपकरण लागतों में कमी की है। जैसे कि फोटोवोल्टिक (PV) कोशिकाओं की दक्षता में वृद्धि और सौर पैनल निर्माण में सुधार ने उत्पादन लागत कम की है। थिन-फिल्म तकनीक और उच्च दक्षता वाले मॉड्यूल इस कमी में योगदान कर रहे हैं।
- मात्रा लाभ: वैश्विक सौर बाजार के विस्तार के साथ, मात्रा लाभ ने लागतों को घटाया है। उत्पादक कंपनियों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा और उत्पादन में वृद्धि के कारण सौर पैनलों की कीमतें कम हुई हैं। उदाहरण के लिए, चीन की सौर पैनल उत्पादन में प्रमुखता ने मास प्रोडक्शन के कारण कीमतें घटाईं।
- कच्चे माल की लागत में कमी: सिलिकॉन, जो सौर पैनलों के लिए एक प्रमुख कच्चा माल है, की लागत में कमी आई है। इसके अलावा, पुनर्चक्रण तकनीकों और आपूर्ति श्रृंखला में सुधार ने सामग्री लागत को घटाया है।
- सरकारी नीतियाँ और सब्सिडी: सरकारी नीतियाँ और सब्सिडी ने सौर ऊर्जा के निवेश को प्रोत्साहित किया है। उदाहरण के लिए, भारत की राष्ट्रीय सौर मिशन और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) ने सौर ऊर्जा की लागतों को कम करने में मदद की है।
तापीय विद्युत् उत्पादकों और संबंधित उद्योग पर निहितार्थ
- प्रतिस्पर्धात्मक दबाव: सौर ऊर्जा की घटती लागतें तापीय विद्युत् उत्पादकों पर दबाव डाल रही हैं। सौर ऊर्जा के घटते टैरिफ ने कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की लाभप्रदता को चुनौती दी है। हाल ही में, भारत में सौर ऊर्जा के टैरिफ कोयला आधारित बिजली से कम हो गए हैं, जिससे क्लीनर ऊर्जा की ओर झुकाव बढ़ा है।
- निवेश में बदलाव: सस्ते सौर ऊर्जा की प्रवृत्ति नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में अधिक निवेश को आकर्षित कर रही है। इससे तापीय ऊर्जा अवसंरचना में निवेश कम हो रहा है। ऊर्जा कंपनियाँ अब सौर और अन्य नवीकरणीय स्रोतों में अधिक निवेश कर रही हैं।
- नीति और विनियमन में समायोजन: सरकारों को ऊर्जा नीतियों और विनियमों को समायोजित करने की आवश्यकता हो सकती है ताकि सौर ऊर्जा की बढ़ती हिस्सेदारी को समाहित किया जा सके। इसमें सब्सिडी में संशोधन और क्लीनर प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करना शामिल है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: सौर ऊर्जा की लागत में कमी से फॉसिल ईंधन पर निर्भरता घट रही है और कार्बन उत्सर्जन में कमी आ रही है। यह वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप है और पर्यावरणीय स्थिरता में सुधार करता है।
इस प्रकार, सौर ऊर्जा की उपकरण लागतों और टैरिफ में हाल के नाटकीय पतन के कई कारक हैं, और यह प्रवृत्ति तापीय विद्युत् उत्पादकों, निवेश धाराओं, नीति समायोजनों और पर्यावरणीय प्रभावों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल रही है।
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भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की संवृद्धि और विकास 1. प्रारंभिक विकास और प्रमुख मील के पत्थर: **1. स्थापना और प्रारंभिक कदम: 1948: भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC) की स्थापना के साथ नाभिकीय विज्ञान में भारत की यात्रा शुरू हुई। 1962: अप्सरा, भारत का पहला स्वदेशी परमाणु रियेक्टर, बंबई परमाणुRead more
भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की संवृद्धि और विकास
1. प्रारंभिक विकास और प्रमुख मील के पत्थर:
**1. स्थापना और प्रारंभिक कदम:
**2. नाभिकीय प्रौद्योगिकी में उन्नति:
**3. हालिया विकास:
भारत में तीव्र प्रजनक रियेक्टर कार्यक्रम के लाभ
**1. ईंधन दक्षता में सुधार:
**2. थोरियम का उपयोग:
**3. रेडियोधर्मी कचरे में कमी:
**4. ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि:
हालिया उदाहरण:
निष्कर्ष: