इसरो और डीआरडीओ जैसे संस्थानों की भूमिका स्वतंत्र भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्या महत्व रखती है? इनके योगदान का विश्लेषण करें।
स्वतंत्र भारत की विदेश नीति में सुरक्षा और विकास के मुद्दों का स्थान स्वतंत्र भारत की विदेश नीति में सुरक्षा और विकास के मुद्दे अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये दोनों पहलू भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता, और वैश्विक समृद्धि को सुनिश्चित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। भारत की विदRead more
स्वतंत्र भारत की विदेश नीति में सुरक्षा और विकास के मुद्दों का स्थान
स्वतंत्र भारत की विदेश नीति में सुरक्षा और विकास के मुद्दे अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये दोनों पहलू भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता, और वैश्विक समृद्धि को सुनिश्चित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। भारत की विदेश नीति इन मुद्दों को संतुलित तरीके से संबोधित करने का प्रयास करती है ताकि देश की दीर्घकालिक स्थिरता और विकास सुनिश्चित हो सके।
1. सुरक्षा के मुद्दे
- सैन्य और सामरिक सहयोग:
- सीमा सुरक्षा: भारत की विदेश नीति में सीमा सुरक्षा एक प्राथमिकता है। भारत-चीन सीमा विवाद और भारत-पाकिस्तान सीमा तनाव जैसे मुद्दों का समाधान सुरक्षा उपायों और कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से किया जाता है। 2020 में गलवान घाटी संघर्ष के बाद सुरक्षा उपायों में वृद्धि की गई है।
- सैन्य गठबंधन और समझौते: COMCASA (Communications Compatibility and Security Agreement) और BECA (Basic Exchange and Cooperation Agreement) जैसे समझौतों के माध्यम से भारत ने सैन्य और सामरिक सहयोग को मजबूत किया है। 2023 में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा समझौतों ने इन संबंधों को और भी गहरा किया है।
- आतंकवाद और सीमा पार अपराध:
- आतंकवाद विरोधी सहयोग: पुलवामा हमला और उरी हमले जैसे घटनाओं के बाद भारत ने आतंकवाद विरोधी सहयोग को बढ़ाया है। साउथ एशिया टेररिज़्म पोर्टल और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ जागरूकता फैलाने के प्रयास किए गए हैं।
- सीमा पार अपराध: भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा सुरक्षा और आतंकी गतिविधियों का निवारण के लिए सीमा बलों के बीच सहयोग बढ़ाया गया है।
2. विकास के मुद्दे
- आर्थिक और व्यापारिक सहयोग:
- विकासशील देशों के साथ साझेदारी: भारत ने अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया, और लातिन अमेरिका के देशों के साथ विकास परियोजनाओं और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा दिया है। 2021 में भारत-अफ्रीका विकास साझेदारी एक महत्वपूर्ण पहल है।
- सहायता और निवेश: 2023 में भारत ने श्रीलंका को आर्थिक सहायता प्रदान की और विकासात्मक परियोजनाओं में निवेश किया। इसके अलावा, भारत ने सौर ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में भी कई पहल की हैं।
- संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक मंच:
- संयुक्त राष्ट्र विकास लक्ष्य: भारत ने संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की दिशा में कई पहल की हैं। 2022 में भारत ने SDGs को लागू करने के लिए कई योजनाएँ शुरू की, जैसे स्वच्छ भारत अभियान और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जल जीवन मिशन।
- ग्लोबल पॉलिटिक्स में भूमिका: 2021 में भारत ने G20 और BRICS देशों के साथ सहयोग को बढ़ावा दिया और वैश्विक आर्थिक स्थिरता के लिए योगदान किया।
3. हाल की घटनाएँ और पहल
- COVID-19 महामारी: भारत ने वैश्विक स्वास्थ्य संकट के दौरान वैक्सीनेशन और चिकित्सा सहायता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया। भारत ने COVID-19 वैक्सीन को विशेष रूप से विकासशील देशों को प्रदान किया, जो वैश्विक स्वास्थ्य के क्षेत्र में उसकी भूमिका को दर्शाता है।
- जलवायु परिवर्तन: भारत ने COP26 जलवायु सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ ठोस योजनाओं की घोषणा की, जैसे पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना और ग्रीन एनर्जी में निवेश।
4. निष्कर्ष
स्वतंत्र भारत की विदेश नीति में सुरक्षा और विकास दोनों ही मुद्दे महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। सुरक्षा उपाय सीमा पार खतरों, आतंकवाद, और सैन्य सहयोग से संबंधित हैं, जबकि विकास के मुद्दे आर्थिक सहयोग, वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका, और विकासशील देशों के साथ साझेदारी को शामिल करते हैं। भारत की विदेश नीति इन दोनों पहलुओं को संतुलित रूप से संबोधित करते हुए देश की दीर्घकालिक स्थिरता और समृद्धि को सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रही है।
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इसरो और डीआरडीओ की भूमिका स्वतंत्र भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) स्वतंत्र भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभा रहे हैं। इन दोनों संस्थानों के योगदान से भारत ने वRead more
इसरो और डीआरडीओ की भूमिका स्वतंत्र भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) स्वतंत्र भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभा रहे हैं। इन दोनों संस्थानों के योगदान से भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को मजबूत किया है और तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
1. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)
स्थापना और उद्देश्य: ISRO की स्थापना 1969 में की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की क्षमताओं को विकसित करना है।
प्रमुख योगदान:
2. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO)
स्थापना और उद्देश्य: DRDO की स्थापना 1958 में की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य रक्षा प्रणालियों और तकनीकी क्षमताओं में स्वदेशी विकास और नवाचार को बढ़ावा देना है।
प्रमुख योगदान:
हाल के उदाहरण:
निष्कर्ष:
ISRO और DRDO ने स्वतंत्र भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ISRO ने अंतरिक्ष अनुसंधान में नई ऊँचाइयाँ हासिल की हैं और भारत को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में एक प्रमुख खिलाड़ी बनाया है। DRDO ने रक्षा प्रणालियों और तकनीकी नवाचारों में आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है। इन दोनों संस्थानों के प्रयासों ने न केवल भारत की वैश्विक पहचान को मजबूत किया है, बल्कि देश की सुरक्षा, स्वदेशी तकनीक, और अंतरिक्ष क्षमताओं को भी सुदृढ़ किया है।
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