स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिए, राज्य द्वारा की गई दो मुख्य विधिक पहलें क्या हैं? (150 words) [UPSC 2017]
भारतीय राजनीति में चरम राष्ट्रवादी भावना को जन्म देने का श्रेय तिलक को जाता है परिचय बाल गंगाधर तिलक, जिन्हें "लोकमान्य" या "प्रिय नेता" के रूप में जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे। उनका योगदान भारतीय राजनीति में चरम राष्ट्रवादी भावना को जन्म देने में अत्यंत महत्वपूर्ण था।Read more
भारतीय राजनीति में चरम राष्ट्रवादी भावना को जन्म देने का श्रेय तिलक को जाता है
परिचय
बाल गंगाधर तिलक, जिन्हें “लोकमान्य” या “प्रिय नेता” के रूप में जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे। उनका योगदान भारतीय राजनीति में चरम राष्ट्रवादी भावना को जन्म देने में अत्यंत महत्वपूर्ण था। तिलक ने भारतीय राजनीतिक चेतना को संवारने और उग्र राष्ट्रवाद को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे स्वतंत्रता संघर्ष की दिशा और तीव्रता बदल गई।
तिलक की प्रारंभिक भूमिकाएँ
- शैक्षिक और सामाजिक सुधार: तिलक ने शिक्षा और भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देने के लिए कई पहल कीं। उन्होंने महसूस किया कि शिक्षा और सामाजिक जागरूकता ही राजनीतिक सक्रियता की कुंजी हैं।
- स्वशासन की वकालत: तिलक ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ खुलकर विरोध किया और स्वशासन की मांग की। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की संतुलित दृष्टिकोण से असहमत थे और अधिक सक्रिय और संघर्षशील दृष्टिकोण की ओर अग्रसर हुए।
चरम राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में तिलक के प्रमुख योगदान
- स्वदेशी आंदोलन: तिलक ने 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन का नेतृत्व किया। इस आंदोलन के तहत ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार और भारतीय वस्तुओं को प्रोत्साहित किया गया। तिलक का स्वदेशी और बहिष्कार का आह्वान जनमानस में राष्ट्रीय गर्व और एकता को बढ़ावा देने में सफल रहा।
- जन आंदोलन और सार्वजनिक mobilization: तिलक ने जनसाधारण को जुटाने में अत्यधिक कुशलता दिखाई। उन्होंने गणेश चतुर्थी जैसे त्योहारों का उपयोग राजनीतिक विमर्श और जन जागरूकता के लिए किया। इन त्योहारों ने राष्ट्रीय एकता और प्रतिरोध की भावना को मजबूत किया।
- पत्रकारिता और लेखन: तिलक ने अपने समाचार पत्र “केसरी” और “मराठा” के माध्यम से राष्ट्रीय विचारों को फैलाया। उनके संपादकीय ब्रिटिश नीतियों की आलोचना करते थे और प्रत्यक्ष प्रतिरोध की आवश्यकता पर जोर देते थे, जिससे जनता की राय में बदलाव आया।
भारतीय राजनीति पर प्रभाव
- राष्ट्रवाद का उग्र स्वरूप: तिलक के दृष्टिकोण ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पूर्ववर्ती मध्यमार्गी विधियों से उग्र राष्ट्रवाद की ओर मोड़ दिया। उनके द्वारा अपनाया गया प्रतिरोध और संघर्ष का दृष्टिकोण स्वतंत्रता आंदोलन के विकास में महत्वपूर्ण था।
- भविष्य के नेताओं पर प्रभाव: तिलक की विचारधारा ने लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं को प्रभावित किया। उनके स्वदेशी और संघर्षपूर्ण दृष्टिकोण ने भारतीय राजनीति में एक नया उग्र राष्ट्रवादी स्वरूप प्रदान किया।
- स्वतंत्रता आंदोलन में तिलक की भूमिका: तिलक की उपस्थिति ने एक अधिक आक्रामक और संघर्षशील स्वतंत्रता आंदोलन को जन्म दिया, जिसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष की तीव्रता को बढ़ाया।
हालिया उदाहरण और तुलनात्मक विश्लेषण
- आधुनिक राष्ट्रवादी आंदोलनों की तुलना: तिलक की प्रभावशाली रणनीतियों को वर्तमान समय के राष्ट्रवादी आंदोलनों में देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, “मेक इन इंडिया” अभियान और स्वदेशी उत्पादों को प्रोत्साहित करने की वर्तमान पहलें तिलक के स्वदेशी विचारों को पुनः सजीव करती हैं।
- राजनीतिक जनसाधारण की रणनीतियाँ: तिलक के जन आंदोलन की विधियों को आधुनिक राजनीति में देखा जा सकता है जहाँ सार्वजनिक रैलियों, त्योहारों और मीडिया का उपयोग जन समर्थन को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
- सांस्कृतिक और राजनीतिक एकीकरण: तिलक की सांस्कृतिक प्रतीकों और त्योहारों के उपयोग की रणनीति आधुनिक नेताओं द्वारा अपनाई गई है, जो राष्ट्रीय पहचान और राजनीतिक समर्थन को मजबूत करने में मदद करती है।
निष्कर्ष
बाल गंगाधर तिलक का भारतीय राजनीति में चरम राष्ट्रवादी भावना को जन्म देने में अहम योगदान था। उनकी स्वदेशी आंदोलन, जनसाधारण को जुटाने की रणनीतियाँ, और उग्र राष्ट्रवादी विचारधारा ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा और तीव्रता को बदल दिया। तिलक का दृष्टिकोण भारतीय राजनीति की परंपरा में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जो आज भी आधुनिक राजनीतिक रणनीतियों और राष्ट्रीय आंदोलनों में प्रभावशाली है।
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स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिए विधिक पहलें 1. अनुसूचित जनजाति (अनुसूचित क्षेत्रों) अधिनियम, 1952: यह अधिनियम अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों और सुरक्षा की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान करता है। "अनुसूचित क्षेत्रों" में स्वशासन को प्रोत्साहित किया जाता हRead more
स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिए विधिक पहलें
1. अनुसूचित जनजाति (अनुसूचित क्षेत्रों) अधिनियम, 1952:
2. अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989:
निष्कर्ष: इन विधिक पहलों के माध्यम से राज्य ने अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों की रक्षा और उनके प्रति भेदभाव को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
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