1765 से 1833 तक ब्रिटिश राज के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के संबंधों के विकास का पता लगाइए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
1857 का विद्रोह भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण घटना थी, लेकिन इसके पूर्व भी अनेक विद्रोह हुए थे जो भारतीय जनता की बढ़ती नाराजगी और असंतोष का संकेत थे। इन विद्रोहों ने 1857 के विद्रोह की पृष्ठभूमि तैयार की थी। 18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी के प्रारंभ में भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थाRead more
1857 का विद्रोह भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण घटना थी, लेकिन इसके पूर्व भी अनेक विद्रोह हुए थे जो भारतीय जनता की बढ़ती नाराजगी और असंतोष का संकेत थे। इन विद्रोहों ने 1857 के विद्रोह की पृष्ठभूमि तैयार की थी।
18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी के प्रारंभ में भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थानीय स्तर पर विद्रोह हुए। इनमें से कुछ प्रमुख विद्रोहों में संन्यासी विद्रोह (1763-1800), पायका विद्रोह (1817), वेल्लोर विद्रोह (1806), और भील विद्रोह (1818-31) शामिल थे। संन्यासी और फकीर विद्रोह बंगाल में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ धार्मिक संप्रदायों द्वारा किया गया। वेल्लोर विद्रोह में भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था, जो 1857 के विद्रोह का पूर्वाभास था।
इसके अलावा, आदिवासी विद्रोह जैसे संथाल विद्रोह (1855-56) और भील विद्रोह, स्थानीय जनजातियों द्वारा अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ उठाई गई आवाज़ें थीं। इन विद्रोहों का मुख्य कारण ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीतियां, जैसे भूमि कर में वृद्धि और पारंपरिक समाजिक व्यवस्थाओं का विध्वंस, था।
इन सभी विद्रोहों ने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष को प्रकट किया। यद्यपि ये विद्रोह सफल नहीं हो सके, लेकिन उन्होंने 1857 के विद्रोह की नींव रखी और ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक जनाक्रोश को प्रकट किया। इस प्रकार, 1857 से पहले के विद्रोहों ने यह स्पष्ट किया कि ब्रिटिश शासन की नीतियों ने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में गहरी नाराजगी और असंतोष को जन्म दिया था।
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1765 से 1833 तक, ब्रिटिश राज के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के संबंधों का विकास एक महत्वपूर्ण अध्याय था। इस अवधि में कंपनी ने भारत में अपनी धार्मिक, सामाजिक, और आर्थिक शक्ति को मजबूत किया। 1765 में कंपनी को बिहार, उड़ीसा, और बंगाल के सम्राट की दरबारी आदेश से व्यवस्था करने का अधिकार मिला। इससे कंपनी की आर्Read more
1765 से 1833 तक, ब्रिटिश राज के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के संबंधों का विकास एक महत्वपूर्ण अध्याय था। इस अवधि में कंपनी ने भारत में अपनी धार्मिक, सामाजिक, और आर्थिक शक्ति को मजबूत किया।
1765 में कंपनी को बिहार, उड़ीसा, और बंगाल के सम्राट की दरबारी आदेश से व्यवस्था करने का अधिकार मिला। इससे कंपनी की आर्थिक शक्ति में वृद्धि हुई।
1784 में पास हुए पिट्स अधिनियम के बाद कंपनी का शासनिक अधिकार कम हो गया और ब्रिटिश सरकार की निगरानी में आ गई।
कंपनी के साथ संबंध अधिक दक्षिण भारत में मजबूत थे। इस अवधि में कंपनी ने व्यापार, कृषि, और राजनीति में अपनी उपस्थिति को मजबूत किया।
1833 में गोलीय कानून के बाद, ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी के सारे शासन को खत्म कर दिया और भारत पर सीधा नियंत्रण स्थापित किया।
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