गाँधीवादी प्रावस्था के दौरान विभिन्न स्वरों ने राष्ट्रवादी आन्दोलन को सुदृढ़ एवं समृद्ध बनाया था । विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए। (250 words) [UPSC 2019]
उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान परिचय: उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की शुरुआत की, जिसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक तत्वों ने मिलकर एक नई राष्ट्रीय पहचान को आकार दिया। यह युग भारतीय समाज की एक नई दिशा और पहचान की खोजRead more
उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान
परिचय: उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की शुरुआत की, जिसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक तत्वों ने मिलकर एक नई राष्ट्रीय पहचान को आकार दिया। यह युग भारतीय समाज की एक नई दिशा और पहचान की खोज का दौर था, जिसमें भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव के बीच कई सहलग्नताएँ देखी गईं।
भारतीय पुनर्जागरण: भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय समाज को नई दृष्टि और विचारधारा की ओर अग्रसर किया। इसके प्रमुख तत्वों में शामिल हैं:
- सामाजिक सुधार आंदोलन:
- राममोहन राय और ब्रह्म समाज ने धार्मिक और सामाजिक सुधारों की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस ने भारतीय धर्म और संस्कृति की पुनर्संरचना पर बल दिया।
- शैक्षिक सुधार:
- रवींद्रनाथ ठाकुर और जगदीश चंद्र बोस जैसे विद्वानों ने शिक्षा के क्षेत्र में नवीन विचार प्रस्तुत किए, जिनसे भारतीय समाज की बौद्धिक वृद्धि हुई।
- लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति ने भी आधुनिक शिक्षा के प्रसार में योगदान दिया, हालांकि इसका उद्देश्य अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देना था।
राष्ट्रीय पहचान का उद्भव: भारतीय पुनर्जागरण ने राष्ट्रीय पहचान के उद्भव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई:
- राष्ट्रीय आंदोलन का आरंभ:
- दीनबंधु मित्र और मदन मोहन मालवीय जैसे नेताओं ने भारतीय समाज में राष्ट्रवाद की भावना को जागृत किया।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885) ने भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ लाया, जिसमें स्वायत्तता की माँग के लिए एक संगठित आंदोलन प्रारंभ हुआ।
- सांस्कृतिक आत्मगौरव:
- Tagore और Sarat Chandra Chattopadhyay जैसे साहित्यकारों ने भारतीय संस्कृति और भाषा को बढ़ावा दिया, जिससे भारतीय आत्म-गौरव की भावना उत्पन्न हुई।
- जगतगुरु स्वरूपानंद ने भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करने में योगदान दिया।
हाल की घटनाएँ: आज के समय में, भारतीय पुनर्जागरण के तत्वों का पुनरावलोकन हो रहा है, जैसे कि पुनर्जागरण नेताओं के योगदान की पुनर्समीक्षा और उनके विचारों का आधुनिक समाज पर प्रभाव। स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की नयी पीढ़ी को पहचान और राष्ट्रीयता की नई परिभाषा भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं।
निष्कर्ष: उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव के बीच सहलग्नताएँ दर्शाती हैं कि कैसे सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन ने राजनीतिक जागरूकता को बढ़ावा दिया। यह युग एक सशक्त भारतीय पहचान की नींव रखता है, जो आज भी भारतीय समाज की सामाजिक और राष्ट्रीय भावनाओं को प्रेरित करती है।
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गाँधीवादी प्रावस्था (1917-1947) के दौरान राष्ट्रवादी आंदोलन में विभिन्न स्वरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष को और मजबूत एवं समृद्ध बनाया। इन स्वरों में प्रमुख हैं: महिलाओं की भागीदारी: सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी, अरुणा आसफ अली और विजयलक्ष्मी पंडित जैसी प्रमुRead more
गाँधीवादी प्रावस्था (1917-1947) के दौरान राष्ट्रवादी आंदोलन में विभिन्न स्वरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष को और मजबूत एवं समृद्ध बनाया। इन स्वरों में प्रमुख हैं:
महिलाओं की भागीदारी:
सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी, अरुणा आसफ अली और विजयलक्ष्मी पंडित जैसी प्रमुख महिला नेताओं ने नागरिक अवज्ञा, असहयोग और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
महिलाओं की इस भागीदारी ने न केवल राष्ट्रवादी संघर्ष में लिंग समानता लाई, बल्कि महिला अधिकारों और सशक्तिकरण के मुद्दों को भी प्रमुखता दी।
रैडिकल क्रांतिकारी:
भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने अंग्रेजों के खिलाफ अधिक आक्रामक, सशस्त्र संघर्ष का समर्थन किया।
उनके क्रांतिकारी कार्यकलापों और शहादत ने युवाओं को प्रेरित किया और राष्ट्रवादी आंदोलन में तीव्रता का संचार किया।
समाजवादी और कम्युनिस्ट स्वर:
जवाहरलाल नेहरू, जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया जैसे नेताओं ने समाजवादी और मार्क्सवादी विचारधारा को राष्ट्रवादी वार्ता में शामिल किया।
उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को संबोधित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
दलित दावे:
बी.आर. आंबेडकर दलितों और समाज के वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए एक शक्तिशाली आवाज़ बने।
जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ उनका संघर्ष और दलितों के लिए अलग निर्वाचन मण्डल की मांग ने राष्ट्रवादी आंदोलन की समावेशी प्रकृति को मज़बूत किया।
क्षेत्रीय आंदोलन:
See lessतमिलनाडु में ई.वी. रामास्वामी (पेरियार), केरल में कोकिलामेडु विद्रोह और बंगाल में तेभागा आंदोलन जैसे नेताओं ने क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं और स्थानीय पहचानों के दावों को प्रतिनिधित्व दिया।
ये आंदोलन राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को क्षेत्रीय विविधताओं को समायोजित करने की आवश्यकता पर जोर देकर समृद्ध बनाते हैं।
गाँधीवादी प्रावस्था के दौरान, इन विभिन्न स्वरों का संगम जो एक विशिष्ट दृष्टिकोण और アDृष्टीकरण प्रस्तुत करते थे, ने राष्ट्रवादी आंदोलन को और मज़बूत और समावेशी बनाया। यह आंदोलन भारतीय जनता की विविध चिंताओं को संबोधित करने वाले एक व्यापक संघर्ष में विकसित हुआ, जिसका अंततः स्वतंत्रता प्राप्ति में परिणाम हुआ।