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'आवश्यकता से कम नगदी, अत्यधिक राजनीति ने यूनेस्को को जीवन-रक्षण की स्थिति में पहुँचा दिया है ।' अमेरिका द्वारा सदस्यता परित्याग करने और सांस्कृतिक संस्था पर 'इजराइल विरोधी पूर्वाग्रह' होने का दोषारोपण करने के प्रकाश में इस कथन की विवेचना कीजिए । (150 words) [UPSC 2019]
यूनेस्को को 'जीवन-रक्षण की स्थिति' में पहुँचा देने के कारण कई प्रमुख मुद्दे हैं: 1. नगदी की कमी: यूनेस्को को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उसकी कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। अमेरिका जैसे प्रमुख सदस्य देशों द्वारा वित्तीय योगदान में कमी, जैसे कि 2018 में अमेरिका द्वारा सदसRead more
यूनेस्को को ‘जीवन-रक्षण की स्थिति’ में पहुँचा देने के कारण कई प्रमुख मुद्दे हैं:
1. नगदी की कमी:
यूनेस्को को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उसकी कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। अमेरिका जैसे प्रमुख सदस्य देशों द्वारा वित्तीय योगदान में कमी, जैसे कि 2018 में अमेरिका द्वारा सदस्यता परित्याग, ने संगठन की वित्तीय स्थिरता को संकट में डाल दिया है।
2. राजनीतिक विवाद:
यूनेस्को पर ‘इजराइल विरोधी पूर्वाग्रह’ का आरोप, विशेषकर उस समय जब कई प्रस्ताव और निर्णय इजराइल के खिलाफ लिए गए, ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में विवाद पैदा किया है। अमेरिका और अन्य देशों के द्वारा इस पूर्वाग्रह के खिलाफ विरोध ने संगठन की राजनीतिक स्थिति को कमजोर कर दिया है।
3. सांस्कृतिक और शैक्षणिक मिशन पर प्रभाव:
इन समस्याओं के कारण, यूनेस्को अपने सांस्कृतिक और शैक्षणिक मिशनों को प्रभावी ढंग से लागू करने में असमर्थ हो रहा है, जिससे वैश्विक सांस्कृतिक संरक्षण और शिक्षा के प्रयास प्रभावित हो रहे हैं।
इन मुद्दों के समाधान के लिए, यूनेस्को को वित्तीय स्थिरता और राजनीतिक पूर्वाग्रहों को संबोधित करने की आवश्यकता है ताकि वह अपने लक्ष्यों को पूरा कर सके और वैश्विक सांस्कृतिक साझेदारी में योगदान दे सके।
See less'भारत और जापान के लिए लिए समय आ गया है कि एक ऐसे मजबूत समसामयिक संबंध का निर्माण करें, जिसका वैश्विक एवं रणनीतिक साझेदारी को आवेष्टित करते हुए एशिया एवं सम्पूर्ण विश्व के लिए बड़ा महत्व होगा।' टिप्पणी कीजिए । (150 words) [UPSC 2019]
भारत और जापान के लिए एक मजबूत समसामयिक संबंध निर्माण का समय आ गया है, जो वैश्विक और रणनीतिक साझेदारी को सशक्त करेगा। इसके कई महत्वपूर्ण कारण हैं: 1. भूराजनीतिक सामंजस्य: भारत और जापान की भूराजनीतिक स्थिति और साझा रणनीतिक हितों के कारण, दोनों देशों के बीच सहयोग एशिया के स्थायित्व और सुरक्षा को बढ़ावाRead more
भारत और जापान के लिए एक मजबूत समसामयिक संबंध निर्माण का समय आ गया है, जो वैश्विक और रणनीतिक साझेदारी को सशक्त करेगा। इसके कई महत्वपूर्ण कारण हैं:
1. भूराजनीतिक सामंजस्य:
भारत और जापान की भूराजनीतिक स्थिति और साझा रणनीतिक हितों के कारण, दोनों देशों के बीच सहयोग एशिया के स्थायित्व और सुरक्षा को बढ़ावा देगा। चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में, दोनों देशों की साझेदारी क्षेत्रीय और वैश्विक रणनीतिक संतुलन में सहायक हो सकती है।
2. आर्थिक और तकनीकी सहयोग:
भारत और जापान के बीच आर्थिक और तकनीकी सहयोग, जैसे कि इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और डिजिटल प्रौद्योगिकी में साझेदारी, दोनों देशों की आर्थिक वृद्धि और समृद्धि में योगदान देगी। जापान के तकनीकी कौशल और भारत के बाजार की आवश्यकता को पूरा करना द्विपक्षीय संबंध को मजबूत करेगा।
3. वैश्विक चुनौतियाँ:
जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, और वैश्विक स्वास्थ्य संकट जैसी समस्याओं पर संयुक्त प्रयास से दोनों देश मिलकर प्रभावी समाधान प्रदान कर सकते हैं।
इस प्रकार, भारत और जापान के लिए एक मजबूत और समसामयिक साझेदारी का निर्माण न केवल द्विपक्षीय संबंधों को सशक्त करेगा बल्कि एशिया और वैश्विक स्थायित्व के लिए भी महत्वपूर्ण होगा।
See lessगरि 'ग्गापार युद्ध' के नर्तमान परिदृश्य में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू० ० ओ०) को जिन्दा बने रहना है, तो उसके सुधार के कौन-कौन से प्रमुख क्षेत्र हैं, विशेष रूप से भारत के हित को ध्यान में रखते हुए? (250 words) [UPSC 2018]
डब्ल्यूटीओ सुधार के प्रमुख क्षेत्र: भारत के दृष्टिकोण से वर्तमान परिदृश्य में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) को वैश्विक व्यापार युद्धों और बढ़ती भू-राजनीतिक तनावों के बीच जीवित रहने और प्रभावी बने रहने के लिए कई सुधारों की आवश्यकता है। विशेष रूप से, भारत के हितों को ध्यान में रखते हुए, निम्नलिखितRead more
डब्ल्यूटीओ सुधार के प्रमुख क्षेत्र: भारत के दृष्टिकोण से
वर्तमान परिदृश्य में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) को वैश्विक व्यापार युद्धों और बढ़ती भू-राजनीतिक तनावों के बीच जीवित रहने और प्रभावी बने रहने के लिए कई सुधारों की आवश्यकता है। विशेष रूप से, भारत के हितों को ध्यान में रखते हुए, निम्नलिखित प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता है:
1. विवाद निपटान तंत्र में सुधार: भारत को विवाद निपटान तंत्र में पारदर्शिता और दक्षता की आवश्यकता है। डब्ल्यूटीओ के अपील तंत्र में सुधार किया जाना चाहिए, जिससे फैसलों में समय की देरी और पूर्वाग्रह की शिकायतों को कम किया जा सके।
2. कृषि सब्सिडी और व्यापार संरक्षण: भारत के कृषि क्षेत्र को उचित संरक्षण की आवश्यकता है। डब्ल्यूटीओ में कृषि सब्सिडी के नियमों को समायोजित किया जाना चाहिए, ताकि विकासशील देशों को अपनी कृषि नीतियों को लागू करने में सहजता मिले और कृषि क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
3. विकासशील देशों की आवाज: डब्ल्यूटीओ में विकासशील देशों के प्रतिनिधित्व को बढ़ाना चाहिए। भारत जैसे देश व्यापार के समान अवसर और न्यायपूर्ण प्रतिस्पर्धा की मांग कर रहे हैं। डब्ल्यूटीओ की प्रक्रियाओं में इन देशों की भूमिका और प्रभाव को बढ़ाना आवश्यक है।
4. डिजिटल व्यापार और ई-कॉमर्स: डिजिटल व्यापार और ई-कॉमर्स पर स्पष्ट और प्रगतिशील नियमों की जरूरत है। भारत के ई-कॉमर्स और टेक्नोलॉजी सेक्टर के हितों को ध्यान में रखते हुए, डब्ल्यूटीओ को डिजिटल लेनदेन और डेटा सुरक्षा पर बेहतर नीतिगत ढांचा तैयार करना चाहिए।
5. पर्यावरणीय और श्रमिक मानक: भारत को पर्यावरणीय संरक्षण और श्रमिक मानकों के लिए वैश्विक मानकों की आवश्यकता है। डब्ल्यूटीओ को ऐसे नियमों को लागू करने की दिशा में काम करना चाहिए जो स्थिरता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा दें।
इन सुधारों से डब्ल्यूटीओ की प्रासंगिकता और प्रभावशीलता बढ़ेगी, और वैश्विक व्यापार को अधिक संगठित और न्यायपूर्ण बनाया जा सकेगा, जिससे भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा की जा सकेगी।
See lessइस समय जारी अमरीका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद भारत के राष्ट्रीय हितों को किस प्रकार प्रभावित करेगा? भारत को इस स्थिति के प्रति क्या रवैया अपनाना चाहिए? (250 words) [UPSC 2018]
अमरीका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद और भारत के राष्ट्रीय हित अमरीका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद (JCPOA) भारत के राष्ट्रीय हितों को कई तरीकों से प्रभावित कर सकता है: 1. ऊर्जा सुरक्षा: भारत, जो एक प्रमुख ऊर्जा आयातक है, ईरान से तेल और गैस के आपूर्तिकर्ता पर निर्भर है। ईरान पर प्रतिबंधों की स्थिति में ऊर्जाRead more
अमरीका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद और भारत के राष्ट्रीय हित
अमरीका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद (JCPOA) भारत के राष्ट्रीय हितों को कई तरीकों से प्रभावित कर सकता है:
1. ऊर्जा सुरक्षा: भारत, जो एक प्रमुख ऊर्जा आयातक है, ईरान से तेल और गैस के आपूर्तिकर्ता पर निर्भर है। ईरान पर प्रतिबंधों की स्थिति में ऊर्जा कीमतें बढ़ सकती हैं, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पर असर डाल सकती है।
2. व्यापार और निवेश: ईरान के साथ वाणिज्यिक संबंधों और निवेश में बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इससे भारतीय कंपनियों की व्यापारिक गतिविधियाँ प्रभावित हो सकती हैं, विशेषकर उद्योगों और बुनियादी ढांचे में।
3. क्षेत्रीय स्थिरता: ईरान और अमरीका के बीच तनाव क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकता है, जिससे भारत की सुरक्षा और भूराजनीतिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर पड़ोसी देशों में।
भारत को अपनाने योग्य रवैया:
1. संतुलित दृष्टिकोण: भारत को संतुलित और तटस्थ दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जो न केवल अमेरिका और ईरान के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखे, बल्कि भारत की आर्थिक और सुरक्षा आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखे।
2. ऊर्जा विविधता: भारत को ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण करना चाहिए, ताकि किसी एक आपूर्तिकर्ता पर निर्भरता कम हो और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
3. कूटनीतिक सक्रियता: भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय रहकर, कूटनीतिक संवाद को बढ़ावा देना चाहिए और वैश्विक सुरक्षा और स्थिरता को बनाए रखने में योगदान देना चाहिए।
इस प्रकार, भारत को एक सवेंदनशील और समाधान-उन्मुख दृष्टिकोण अपनाते हुए अपनी आर्थिक और सुरक्षा प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेना चाहिए।
See lessभारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है ? हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिए । (250 words) [UPSC 2020]
भारत-रूस और भारत-अमेरिका के रक्षा समझौतों की तुलना करते समय, यह स्पष्ट होता है कि दोनों देशों के साथ भारत के समझौतों की रणनीतिक महत्वता विभिन्न दृष्टिकोण से भिन्न है। खासकर, हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में इन समझौतों की प्रभावशीलता को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता हRead more
भारत-रूस और भारत-अमेरिका के रक्षा समझौतों की तुलना करते समय, यह स्पष्ट होता है कि दोनों देशों के साथ भारत के समझौतों की रणनीतिक महत्वता विभिन्न दृष्टिकोण से भिन्न है। खासकर, हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में इन समझौतों की प्रभावशीलता को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:
1. भारत-रूस रक्षा समझौतों की विशेषताएँ:
दीर्घकालिक सहयोग: भारत और रूस के बीच रक्षा संबंध लंबे समय से मजबूत हैं। दोनों देशों के बीच कई ऐतिहासिक रक्षा समझौते और सहयोग कार्यक्रम रहे हैं, जैसे कि सस्ते सैन्य उपकरण, तकनीकी हस्तांतरण, और सैन्य प्रशिक्षण।
तकनीकी और सामरिक समर्थन: रूस ने भारत को कई प्रमुख सैन्य उपकरण प्रदान किए हैं, जैसे कि सुखोई-30 विमान और ब्रह्मोस मिसाइल। रूस के साथ रक्षा संबंध भारतीय सेना के लिए प्रौद्योगिकी और सामरिक उपकरणों का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
2. भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की विशेषताएँ:
स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप: भारत और अमेरिका के रक्षा समझौतों में हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है। “लौजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA)”, “Communications Compatibility and Security Agreement (COMCASA)”, और “Basic Exchange and Cooperation Agreement (BECA)” जैसे समझौते भारतीय सेना को अमेरिकी सैन्य प्रौद्योगिकी और खुफिया जानकारियों तक पहुँच प्रदान करते हैं।
हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में स्थायित्व: अमेरिका के साथ भारत का रक्षा सहयोग हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में रणनीतिक स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायक है। अमेरिका और भारत दोनों ही क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। अमेरिका की सशस्त्र बलों की आधुनिक तकनीक और सामरिक सहयोग भारत को क्षेत्रीय सुरक्षा में महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान करता है।
3. तुलना और निष्कर्ष:
रक्षा और सामरिक सहयोग: जबकि भारत-रूस समझौते ऐतिहासिक और तकनीकी सहयोग पर आधारित हैं, भारत-अमेरिका समझौतों ने हाल ही में आधुनिक सैन्य प्रौद्योगिकी, खुफिया सहयोग, और सामरिक गहरी साझेदारी को मजबूत किया है। अमेरिका के साथ समझौतों की रणनीतिक महत्वता इस बात में है कि ये भारत को हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में अपनी स्थिति को सशक्त करने में मदद करते हैं, विशेषकर चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में।
विस्तारित साझेदारी: भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी ने क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जबकि भारत-रूस समझौतों ने दीर्घकालिक सैन्य सहयोग और उपकरणों की आपूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
संक्षेप में, भारत-रूस और भारत-अमेरिका के रक्षा समझौतों की अपनी-अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ हैं, लेकिन हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में भारत-अमेरिका की साझेदारी का अधिक सामरिक महत्व है।
See less'चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड) वर्तमान समय में स्वयं को सैनिक गठबंधन से एक व्यापारिक गुट में रूपान्तरित कर रहा है विवेचना कीजिये ।(250 words) [UPSC 2020]
चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड), जिसमें अमेरिका, भारत, जापान, और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, प्रारंभ में एक सैन्य गठबंधन के रूप में विचारित किया गया था। लेकिन हाल के वर्षों में, यह समूह स्वयं को एक अधिक व्यापारिक और सामरिक गुट में रूपांतरित करता प्रतीत हो रहा है। इस रूपांतरण की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओRead more
चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड), जिसमें अमेरिका, भारत, जापान, और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, प्रारंभ में एक सैन्य गठबंधन के रूप में विचारित किया गया था। लेकिन हाल के वर्षों में, यह समूह स्वयं को एक अधिक व्यापारिक और सामरिक गुट में रूपांतरित करता प्रतीत हो रहा है। इस रूपांतरण की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं पर की जा सकती है:
1. सामरिक सहयोग से व्यापारिक पहल की ओर:
सामरिक सहयोग: प्रारंभ में, क्वाड का गठन मुख्य रूप से चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ एक सामरिक गठबंधन के रूप में हुआ था। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता को सुनिश्चित करना था, जिसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास और सुरक्षा मुद्दों पर सहयोग शामिल था।
व्यापारिक पहल: हाल के वर्षों में, क्वाड ने व्यापारिक और आर्थिक सहयोग पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है। 2021 में, समूह ने “क्वाड वैक्सीन डिप्लोमेसी” की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य COVID-19 वैक्सीनेशन की आपूर्ति और वितरण में मदद करना था। इसके अलावा, क्वाड ने “सस्टेनेबल इन्फ्रास्ट्रक्चर” और “टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप” पर भी जोर दिया है।
2. सामरिक और आर्थिक लाभ:
सामरिक लाभ: क्वाड का सामरिक पहलू अब भी महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका प्राथमिक ध्यान क्षेत्रीय सुरक्षा और रणनीतिक स्थिरता के साथ-साथ व्यापारिक हितों पर भी केंद्रित है। यह अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए एक अवसर प्रदान करता है कि वे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपने आर्थिक और सामरिक प्रभाव को बढ़ा सकें।
आर्थिक लाभ: व्यापारिक गुट के रूप में क्वाड ने “इकोनॉमिक रिसिलिएंस” और “विपणन और आपूर्ति श्रृंखला” को मजबूत करने के लिए कई पहल की हैं। इसने चीन पर निर्भरता को कम करने के प्रयास किए हैं और क्षेत्रीय व्यापारिक नेटवर्क को सशक्त किया है।
3. सदस्य देशों के दृष्टिकोण:
भारत: भारत ने क्वाड को एक व्यापक रणनीतिक और आर्थिक मंच के रूप में देखा है। यह भारत के लिए व्यापारिक अवसरों को बढ़ाने और क्षेत्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करने का एक माध्यम है।
जापान और ऑस्ट्रेलिया: जापान और ऑस्ट्रेलिया भी व्यापारिक और आर्थिक पहल पर ध्यान दे रहे हैं, जिससे वे अपने आर्थिक हितों को सुरक्षित रख सकें और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ा सकें।
निष्कर्ष:
See lessक्वाड का रूपांतरण एक सैन्य गठबंधन से एक व्यापारिक गुट में हो रहा है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को भी बढ़ावा देता है। इस बदलाव से समूह के सदस्य देशों को सामरिक स्थिरता के साथ-साथ आर्थिक लाभ प्राप्त हो रहे हैं, जिससे वे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपने प्रभाव को व्यापक रूप से सशक्त कर रहे हैं।
'अमेरिका एवं यूरोपीय देशों की राजनीति और अर्थव्यवस्था में भारतीय प्रवासियों को एक निर्णायक भूमिका निभानी है। उदाहरणों सहित टिप्पणी कीजिए। (150 words) [UPSC 2020]
भारतीय प्रवासियों ने अमेरिका और यूरोपीय देशों की राजनीति और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे उनकी प्रभावशीलता को व्यापक मान्यता मिली है। अमेरिका: आर्थिक प्रभाव: भारतीय अमेरिकी पेशेवरों ने सिलिकॉन वैली में प्रमुख कंपनियों की स्थापना और संचालन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उदाहरणस्वRead more
भारतीय प्रवासियों ने अमेरिका और यूरोपीय देशों की राजनीति और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे उनकी प्रभावशीलता को व्यापक मान्यता मिली है।
अमेरिका:
See lessआर्थिक प्रभाव: भारतीय अमेरिकी पेशेवरों ने सिलिकॉन वैली में प्रमुख कंपनियों की स्थापना और संचालन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उदाहरणस्वरूप, सत्या नाडेला (Microsoft) और सुंदर पिचाई (Google) जैसे CEOs ने भारतीय समुदाय की आर्थिक शक्ति को दर्शाया है।
राजनीतिक प्रभाव: भारतीय अमेरिकी मतदाता और राजनीतिक प्रतिनिधि, जैसे कि प्रीत भररा और कमला हैरिस, ने अमेरिकी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे भारतीय समुदाय की राजनीतिक उपस्थिति मजबूत हुई है।
यूरोप:
आर्थिक योगदान: ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों में भारतीय व्यवसायी और उद्यमी आर्थिक क्षेत्र में सक्रिय योगदान दे रहे हैं। भारतीय व्यापारियों ने ब्रिटेन के उद्योगों में महत्वपूर्ण निवेश किया है।
राजनीतिक प्रभाव: भारतीय प्रवासी नेताओं ने यूरोपीय राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में भारतीय मूल के सांसदों ने विभिन्न राजनीतिक मुद्दों पर प्रभाव डाला है।
ये उदाहरण भारतीय प्रवासियों की राजनीति और अर्थव्यवस्था में निर्णायक भूमिका को स्पष्ट करते हैं और उनके वैश्विक प्रभाव को दर्शाते हैं।
हाल के समय में भारत और यू.के, की न्यायिक व्यवस्थाएं अभिसरणीय एवं अपसरणीय होती प्रतीत हो रही हैं। दोनों राष्ट्रों की न्यायिक कार्यप्रणालियों के आलोक में अभिसरण तथा अपसरण के मुख्य बिदुओं को आलोकित कीजिये ।(150 words) [UPSC 2020]
भारत और यू.के. की न्यायिक व्यवस्थाओं में ऐतिहासिक रूप से गहरा संबंध रहा है, क्योंकि भारत की न्यायिक प्रणाली ब्रिटिश कानूनी परंपराओं पर आधारित है। हाल के समय में, दोनों देशों की न्यायिक प्रणालियों में अभिसरण (convergence) और अपसरण (divergence) दोनों देखे जा सकते हैं। अभिसरण: विधि की सर्वोच्चता: दोनोंRead more
भारत और यू.के. की न्यायिक व्यवस्थाओं में ऐतिहासिक रूप से गहरा संबंध रहा है, क्योंकि भारत की न्यायिक प्रणाली ब्रिटिश कानूनी परंपराओं पर आधारित है। हाल के समय में, दोनों देशों की न्यायिक प्रणालियों में अभिसरण (convergence) और अपसरण (divergence) दोनों देखे जा सकते हैं।
अभिसरण:
See lessविधि की सर्वोच्चता: दोनों देशों में विधि का शासन (Rule of Law) महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जो न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र बनाता है।
न्यायिक समीक्षा: भारत और यू.के. दोनों में न्यायालयों को संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों की समीक्षा करने और असंवैधानिक विधानों को निरस्त करने का अधिकार है।
अपसरण:
संविधानिक संरचना: यू.के. का कोई लिखित संविधान नहीं है, जबकि भारत का एक विस्तृत लिखित संविधान है, जो न्यायालयों को व्यापक अधिकार प्रदान करता है।
न्यायिक सक्रियता: भारत में न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) अधिक है, जहां अदालतें सामाजिक और आर्थिक मुद्दों में भी हस्तक्षेप करती हैं, जबकि यू.के. में न्यायालय आमतौर पर विधायिका के फैसलों का सम्मान करते हैं और सीमित हस्तक्षेप करते हैं।
मानवाधिकार: यू.के. में यूरोपीय मानवाधिकार अधिनियम 1998 के तहत न्यायालय मानवाधिकार मामलों में फैसले लेते हैं, जबकि भारत में संविधान के मौलिक अधिकारों के तहत न्यायालय मानवाधिकार की रक्षा करते हैं।
इन अभिसरण और अपसरण के बिंदुओं ने दोनों न्यायिक प्रणालियों को समय के साथ अनोखा और गतिशील बनाया है।
भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य है। क्या यह इस क्षेत्र में मौजूदा साझेदारी का स्थान लेने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में, AUKUS की शक्ति और प्रभाव की विवेचना कीजिए। (250 words) [UPSC 2021]
AUKUS (Australia, United Kingdom, United States) त्रि-राष्ट्र साझेदारी का उद्देश्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना है। यह समझौता विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया को परमाणु-संचालित पनडुब्बियों से लैस करने पर केंद्रित है, जो इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन कRead more
AUKUS (Australia, United Kingdom, United States) त्रि-राष्ट्र साझेदारी का उद्देश्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना है। यह समझौता विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया को परमाणु-संचालित पनडुब्बियों से लैस करने पर केंद्रित है, जो इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बदलने का प्रयास है।
AUKUS का गठन क्वाड (Quadrilateral Security Dialogue) जैसी मौजूदा साझेदारियों का स्थान लेने के लिए नहीं, बल्कि इन्हें सुदृढ़ करने के लिए किया गया है। AUKUS और क्वाड दोनों ही चीन के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करने के उद्देश्य से बनाए गए हैं, लेकिन उनके कार्यक्षेत्र और उद्देश्य अलग-अलग हैं। जहां AUKUS मुख्य रूप से रक्षा और सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है, वहीं क्वाड का ध्यान व्यापक क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और समुद्री सुरक्षा पर है।
वर्तमान परिदृश्य में, AUKUS ने इंडो-पैसिफिक में सैन्य शक्ति के संतुलन को प्रभावित किया है। ऑस्ट्रेलिया के लिए परमाणु-संचालित पनडुब्बियों की आपूर्ति क्षेत्र में चीन के नौसैनिक प्रभाव का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण हो सकती है। इसके अलावा, AUKUS ने क्षेत्र में अन्य देशों को भी अपनी रक्षा रणनीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया है। हालांकि, यह साझेदारी क्षेत्र में केवल तीन देशों तक सीमित है, जिससे इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठ सकते हैं, विशेष रूप से चीन के प्रभाव को सीमित करने के लिए एक व्यापक क्षेत्रीय गठबंधन की आवश्यकता हो सकती है।
AUKUS की शक्ति और प्रभाव को उसकी सफलताओं, जैसे परमाणु पनडुब्बियों की तैनाती, और क्षेत्रीय देशों के साथ सामरिक सहयोग में बढ़ोतरी के माध्यम से मापा जाएगा।
See lessएस० सी० ओ० के लक्ष्यों और उद्देश्यों का विश्लेषणात्मक परीक्षण कीजिए। भारत के लिए इसका क्या महत्त्व है? (250 words) [UPSC 2021]
शांगहाई सहयोग संगठन (SCO) एक अंतरराष्ट्रीय मंच है जिसे 2001 में स्थापित किया गया था। इसके सदस्य देशों में चीन, भारत, रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान शामिल हैं। SCO का उद्देश्य और लक्ष्य क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना हैRead more
शांगहाई सहयोग संगठन (SCO) एक अंतरराष्ट्रीय मंच है जिसे 2001 में स्थापित किया गया था। इसके सदस्य देशों में चीन, भारत, रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान शामिल हैं। SCO का उद्देश्य और लक्ष्य क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है।
SCO के लक्ष्यों और उद्देश्यों का विश्लेषणात्मक परीक्षण:
सुरक्षा और स्थिरता:
उद्देश्य: SCO का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता को बनाए रखना है, विशेषकर आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद के खिलाफ संघर्ष करना।
विश्लेषण: SCO ने आतंकवाद और कट्टरपंथ के खिलाफ समन्वित प्रयास किए हैं, और इसके सदस्य देशों ने साझा सुरक्षा प्राथमिकताओं पर काम किया है।
आर्थिक सहयोग और विकास:
उद्देश्य: SCO सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना, व्यापार और निवेश को प्रोत्साहित करना।
विश्लेषण: SCO ने आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए कई मंच और पहल की हैं, जैसे कि व्यापार और निवेश में सुविधा और सुधार लाने के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर करना।
संस्कृतिक और सामाजिक आदान-प्रदान:
उद्देश्य: सदस्य देशों के बीच सांस्कृतिक, शैक्षिक, और सामाजिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।
विश्लेषण: SCO सांस्कृतिक कार्यक्रमों और शैक्षिक आदान-प्रदान की पहल करता है, जो सदस्य देशों के बीच बेहतर समझ और सहयोग को बढ़ावा देता है।
बहुपक्षीय समन्वय:
उद्देश्य: एक बहुपरकारी ढाँचे के तहत विभिन्न वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर समन्वित दृष्टिकोण अपनाना।
विश्लेषण: SCO एक मंच प्रदान करता है जहाँ सदस्य देश वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर आपसी समझ और समन्वय बढ़ा सकते हैं।
भारत के लिए SCO का महत्त्व:
क्षेत्रीय सुरक्षा:
महत्त्व: भारत के लिए SCO क्षेत्रीय सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण प्लेटफ़ॉर्म है, खासकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान से उत्पन्न होने वाली सुरक्षा चुनौतियों को संबोधित करने में।
आर्थिक और व्यापारिक अवसर:
महत्त्व: SCO भारत को मध्य एशिया के संसाधनों और बाजारों तक पहुँचने का अवसर प्रदान करता है, जिससे भारत के लिए व्यापार और निवेश के नए रास्ते खुलते हैं।
डिप्लोमैटिक एंगेजमेंट:
महत्त्व: SCO भारत को चीन और रूस जैसे महत्वपूर्ण वैश्विक शक्तियों के साथ बेहतर द्विपक्षीय और त्रैतीयक संबंध विकसित करने का अवसर प्रदान करता है।
संस्कृतिक आदान-प्रदान:
महत्त्व: SCO के माध्यम से भारत सांस्कृतिक और सामाजिक आदान-प्रदान बढ़ा सकता है, जिससे भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की पहचान और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलती है।
See lessनिष्कर्ष:
SCO के लक्ष्यों और उद्देश्यों का क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर महत्वपूर्ण प्रभाव है। भारत के लिए, SCO एक महत्वपूर्ण मंच है जो सुरक्षा, आर्थिक अवसर, और डिप्लोमैटिक एंगेजमेंट को मजबूत करने में सहायक है। इसके द्वारा, भारत न केवल क्षेत्रीय मुद्दों पर प्रभावी ढंग से काम कर सकता है, बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को भी मजबूत कर सकता है।