उर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत की उर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिए। (125 Words) [UPPSC 2022]
1962 का भारत-चीन युद्ध कई जटिल कारकों का परिणाम था, जो सीमा विवाद, राजनीतिक तनाव, और भू-राजनीतिक प्रतिकूलताओं से संबंधित थे: सीमा विवाद: भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर लंबे समय से विवाद था। चीन ने मैक्महोन रेखा को मान्यता नहीं दी, जो कि भारत द्वारा अरुणाचल प्रदेश (तब के NEFA) और तिब्बत के बीच की सीRead more
1962 का भारत-चीन युद्ध कई जटिल कारकों का परिणाम था, जो सीमा विवाद, राजनीतिक तनाव, और भू-राजनीतिक प्रतिकूलताओं से संबंधित थे:
सीमा विवाद: भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर लंबे समय से विवाद था। चीन ने मैक्महोन रेखा को मान्यता नहीं दी, जो कि भारत द्वारा अरुणाचल प्रदेश (तब के NEFA) और तिब्बत के बीच की सीमा के रूप में मान्यता प्राप्त थी। चीन ने अक्साई चिन क्षेत्र पर भी दावा किया, जो भारत का एक हिस्सा था।
तिब्बत का राजनीतिक परिदृश्य: 1959 में तिब्बत में चीनी आक्रमण और दलाई लामा का भारत में शरण लेना, भारत-चीन संबंधों में तनाव को बढ़ा दिया। चीन ने इसे भारतीय आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देखा।
सैन्य विवाद: चीन ने अपने सैनिकों को भारतीय सीमा में घुसपैठ के लिए भेजा। भारतीय सैन्य तैयारी की कमी और रणनीतिक भ्रम ने स्थिति को और भी जटिल बना दिया।
भू-राजनीतिक तनाव: चीन की सोवियत संघ से निकटता और भारत की अमेरिका और सोवियत संघ के साथ बदलती साझेदारियां भी युद्ध के संदर्भ में महत्वपूर्ण कारक थीं।
युद्ध के भारत के लिए महत्व:
सुरक्षा नीति में बदलाव: युद्ध ने भारत को अपनी रक्षा नीतियों और सामरिक तैयारी को सुधारने की आवश्यकता को उजागर किया। भारत ने अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाया और सीमा पर बुनियादी ढांचे को मजबूत किया।
आत्मनिर्भरता की दिशा: हार के बाद, भारत ने आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने की दिशा में कदम बढ़ाए, विशेष रूप से रक्षा उद्योग में स्वदेशी उत्पादों को प्रोत्साहित किया।
राजनीतिक जागरूकता: यह युद्ध भारतीय विदेश नीति और सुरक्षा नीति पर विचार करने का एक महत्वपूर्ण अवसर था। भारत ने चीन के साथ सीमा विवादों को सुलझाने के लिए कूटनीतिक प्रयासों को बढ़ावा दिया।
सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव: युद्ध ने भारतीय समाज को एकता और राष्ट्रवाद की भावना को प्रोत्साहित किया, और भारतीय नागरिकों में राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाई।
इस प्रकार, 1962 का भारत-चीन युद्ध ने भारत की रक्षा नीतियों, कूटनीति और सामरिक रणनीतियों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया, और देश को एक सशक्त और सतर्क सुरक्षा दृष्टिकोण की ओर अग्रसर किया।
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उर्जा सुरक्षा और भारत की पश्चिम एशियाई देशों के साथ नीति सहयोग 1. पेट्रोलियम आयात: भारत की उर्जा सुरक्षा के लिए पश्चिम एशियाई देशों, विशेषकर सऊदी अरब और इराक से तेल आयात महत्वपूर्ण है। 2022 में, भारत ने सऊदी अरब से बढ़ती आयात मात्रा और सस्ते तेल की आपूर्ति सुनिश्चित की। 2. गैस सप्लाई: कतर के साथ भारRead more
उर्जा सुरक्षा और भारत की पश्चिम एशियाई देशों के साथ नीति सहयोग
1. पेट्रोलियम आयात:
2. गैस सप्लाई:
3. ऊर्जा निवेश:
4. भूराजनीतिक और सुरक्षा चिंताएँ:
हालिया उदाहरण:
निष्कर्ष
भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए पश्चिम एशियाई देशों के साथ सहयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसमें पेट्रोलियम आयात, गैस आपूर्ति, ऊर्जा निवेश और सुरक्षा चिंताओं का एक महत्वपूर्ण भूमिका है। यह सहयोग भारत की आर्थिक प्रगति और ऊर्जा स्थिरता के लिए आवश्यक है।
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