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भारत और उसके पड़ोसियों के बीच एक महत्वपूर्ण संपर्क स्थल के रूप में स्थापित होने से पहले, भारत को अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र की आंतरिक और बाह्य दोनों तरह की अंतर्निहित चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को एक महत्वपूर्ण संपर्क स्थल के रूप में स्थापित करने से पहले, भारत को इस क्षेत्र की आंतरिक और बाह्य दोनों तरह की अंतर्निहित चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। यह क्षेत्र, जो भारत के सात राज्यों को शामिल करता है, रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है लेकिन विभिन्न समस्याओं काRead more
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को एक महत्वपूर्ण संपर्क स्थल के रूप में स्थापित करने से पहले, भारत को इस क्षेत्र की आंतरिक और बाह्य दोनों तरह की अंतर्निहित चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। यह क्षेत्र, जो भारत के सात राज्यों को शामिल करता है, रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है लेकिन विभिन्न समस्याओं का सामना कर रहा है।
आंतरिक चुनौतियाँ:
बाहरी चुनौतियाँ:
उपसंहार:
पूर्वोत्तर क्षेत्र की आंतरिक और बाहरी चुनौतियों को सुलझाना भारत के लिए महत्वपूर्ण है ताकि इसे एक प्रभावशाली संपर्क स्थल के रूप में स्थापित किया जा सके। यह न केवल क्षेत्रीय विकास और सुरक्षा में सुधार लाएगा, बल्कि भारत की रणनीतिक और आर्थिक स्थिति को भी मजबूत करेगा। सही नीतियों और रणनीतियों के साथ, भारत पूर्वोत्तर क्षेत्र की पूर्ण संभावनाओं को साकार कर सकता है।
See lessहिंद-प्रशांत क्षेत्र में यथार्थवादी और प्रभावी सह्योग के लिए, इस क्षेत्र से संबंधित विभिन्न देशों के प्रमुख हितों को स्वीकार करने और उनकी पहचान करने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यथार्थवादी और प्रभावी सहयोग के लिए विभिन्न देशों के प्रमुख हितों को स्वीकार करना और उनकी पहचान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण शक्तियां और क्षेत्रीय खिलाड़ी शामिल हैं, जिनके भू-राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंधी हित विभिन्न और कभी-कभी विरोधाभासी हो सकRead more
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यथार्थवादी और प्रभावी सहयोग के लिए विभिन्न देशों के प्रमुख हितों को स्वीकार करना और उनकी पहचान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण शक्तियां और क्षेत्रीय खिलाड़ी शामिल हैं, जिनके भू-राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंधी हित विभिन्न और कभी-कभी विरोधाभासी हो सकते हैं।
आर्थिक हित: हिंद-प्रशांत क्षेत्र वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें प्रमुख व्यापार मार्ग और समुद्री रास्ते शामिल हैं। चीन, जापान, भारत, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश आर्थिक वृद्धि और व्यापार के अवसरों के लिए इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहे हैं। व्यापारिक साझेदारियां, निवेश और आपूर्ति श्रृंखलाएं इन देशों के लिए प्रमुख हितों में शामिल हैं।
सुरक्षा और रणनीतिक हित: क्षेत्रीय सुरक्षा की दृष्टि से, चीन की बढ़ती सैन्य उपस्थिति और समुद्री क्षेत्र में विस्तार की प्रवृत्ति ने चिंताओं को जन्म दिया है। अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया जैसी शक्तियों के लिए, समुद्री स्वतंत्रता, सुलभ व्यापार मार्गों की रक्षा और क्षेत्रीय सुरक्षा की गारंटी महत्वपूर्ण हैं। भारत के लिए, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आतंकवाद, समुद्री सुरक्षा, और क्षेत्रीय अस्थिरता पर नियंत्रण प्रमुख प्राथमिकताएं हैं।
भू-राजनीतिक और सामरिक हित: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विभिन्न देशों की भू-राजनीतिक प्राथमिकताएं भी भिन्न होती हैं। चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और अमेरिका का इंडो-पैसिफिक स्ट्रेटेजी इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करते हैं। भारत, जापान, और ऑस्ट्रेलिया जैसी देशों ने सामरिक साझेदारियों को मजबूत करने और चीन की बढ़ती ताकत को संतुलित करने की दिशा में कदम उठाए हैं।
सहयोग की दिशा: प्रभावी सहयोग के लिए, यह आवश्यक है कि सभी प्रमुख हितधारक एक साझा दृष्टिकोण पर सहमत हों जो सभी पक्षों के हितों का सम्मान करे। एक बहुपरकारी मंच, जैसे कि क्वाड (भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका) जैसे समूह, क्षेत्रीय सुरक्षा और विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, सभी देशों को आपसी संवाद और विश्वास निर्माण के लिए प्रयास करने होंगे ताकि विवादों को सुलझाया जा सके और साझा हितों को आगे बढ़ाया जा सके।
इस प्रकार, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यथार्थवादी और प्रभावी सहयोग को सुनिश्चित करने के लिए, विभिन्न देशों के प्रमुख हितों की पहचान और स्वीकार्यता आवश्यक है। यह क्षेत्रीय स्थिरता, आर्थिक विकास, और सामरिक संतुलन को बनाए रखने में सहायक होगा।
See lessऋण-जाल कूटनीति क्या है? चीन की ऋण-जाल कूटनीति भारत के पड़ोस में भारतीय हितों को कैसे प्रभावित करती है? (150 शब्दों में उत्तर दें)
ऋण-जाल कूटनीति (Debt-Trap Diplomacy) एक रणनीति है जिसका उपयोग देश ऋण देने वाले देश करते हैं ताकि उधार लेने वाले देश को आर्थिक रूप से निर्भर और कमजोर किया जा सके। इसमें, देश बड़े पैमाने पर ऋण प्रदान करते हैं, लेकिन जब उधारकर्ता ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाता है, तो वह अपनी संसाधन या सम्पत्ति के बदले ऋणRead more
ऋण-जाल कूटनीति (Debt-Trap Diplomacy) एक रणनीति है जिसका उपयोग देश ऋण देने वाले देश करते हैं ताकि उधार लेने वाले देश को आर्थिक रूप से निर्भर और कमजोर किया जा सके। इसमें, देश बड़े पैमाने पर ऋण प्रदान करते हैं, लेकिन जब उधारकर्ता ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाता है, तो वह अपनी संसाधन या सम्पत्ति के बदले ऋण देने वाले देश के नियंत्रण में चला जाता है।
चीन की ऋण-जाल कूटनीति भारत के पड़ोसी देशों में भारतीय हितों को प्रभावित कर सकती है। उदाहरण के लिए, श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों में चीन द्वारा बड़े पैमाने पर ऋण दिए गए हैं। जब ये देश ऋण चुकाने में विफल रहते हैं, तो चीन को प्रमुख सामरिक और आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण मिल जाता है। इससे भारत के पड़ोसी देशों में चीन का प्रभाव बढ़ता है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा और रणनीतिक संतुलन पर असर पड़ता है।
See lessभारत और लैटिन अमेरिका के देशों के बीच फलता-फूलता संबंध भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण भाग बन गया है। परीक्षण कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत और लैटिन अमेरिका के देशों के बीच फलता-फूलता संबंध: एक परीक्षण भारत और लैटिन अमेरिका के बीच संबंध हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण रूप से मजबूत हुए हैं, जो भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख हिस्सा बन गए हैं: आर्थिक और व्यापारिक सहयोग: भारत और लैटिन अमेरिका के देशों के बीच व्यापारिक संबंध बढ़ रहे हैं।Read more
भारत और लैटिन अमेरिका के देशों के बीच फलता-फूलता संबंध: एक परीक्षण
भारत और लैटिन अमेरिका के बीच संबंध हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण रूप से मजबूत हुए हैं, जो भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख हिस्सा बन गए हैं:
इन पहलुओं से स्पष्ट है कि भारत और लैटिन अमेरिका के देशों के बीच बढ़ते संबंध भारत की विदेश नीति के लिए एक महत्वपूर्ण और लाभकारी रणनीति बन गए हैं।
See lessसंयुक्त राष्ट्र आर्थिक व सामाजिक परिषद् (इकोसॉक) के प्रमुख प्रकार्य क्या हैं? इसके साथ संलग्न विभिन्न प्रकार्यात्मक आयोगों को स्पष्ट कीजिए। (150 words) [UPSC 2017]
संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद् (इकोसॉक) संयुक्त राष्ट्र की एक प्रमुख संस्था है, जो आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, और मानवीय मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए कार्य करती है। इसके प्रमुख प्रकार्य निम्नलिखित हैं: अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक और सामाजिक मामलों पर चर्चा: वैश्विक आर्थRead more
संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद् (इकोसॉक) संयुक्त राष्ट्र की एक प्रमुख संस्था है, जो आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, और मानवीय मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए कार्य करती है। इसके प्रमुख प्रकार्य निम्नलिखित हैं:
अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक और सामाजिक मामलों पर चर्चा: वैश्विक आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर चर्चाओं का आयोजन और समन्वयन।
नीतियों और अनुशंसाओं का निर्माण: सदस्य देशों के लिए नीतिगत दिशा-निर्देश और अनुशंसाएँ विकसित करना।
संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों का समन्वयन: विभिन्न एजेंसियों के कार्यों का समन्वयन और निगरानी।
सतत विकास लक्ष्यों का समर्थन: 2030 एजेंडा के तहत सतत विकास लक्ष्यों की प्रगति की समीक्षा और समर्थन।
इकोसॉक के साथ संलग्न प्रमुख प्रकार्यात्मक आयोग:
आर्थिक आयोग: क्षेत्रीय स्तर पर आर्थिक मुद्दों का विश्लेषण, जैसे एशिया और प्रशांत के लिए आर्थिक और सामाजिक आयोग (ESCAP)।
See lessसामाजिक आयोग: सामाजिक नीतियों और मानकों की निगरानी, जैसे सामाजिक विकास आयोग (CSD)।
आबादी और विकास आयोग: जनसंख्या संबंधी नीतियों पर अनुसंधान और सिफारिशें।
नारकोटिक ड्रग्स पर आयोग: अंतर्राष्ट्रीय ड्रग नीति और नियंत्रण।
ये आयोग इकोसॉक की व्यापक नीति निर्माण और अनुशंसा प्रक्रिया में सहायक होते हैं।
"चीन अपने आर्थिक संबंधों एवं सकारात्मक व्यापार अधिशेष को, एशिया में संभाव्य सैनिक शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिए, उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।" इस कथन के प्रकाश में, उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिए। (150 words) [UPSC 2017]
चीन अपने आर्थिक संबंधों और व्यापार अधिशेष का उपयोग एशिया में अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए कर रहा है, जिससे क्षेत्रीय संतुलन में बदलाव आ रहा है। चीन की आर्थिक शक्ति उसे विशाल रक्षा बजट और सैन्य आधुनिकीकरण की क्षमता देती है, जिससे वह दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर, और भारतीय महासागर में अपनी उपस्थRead more
चीन अपने आर्थिक संबंधों और व्यापार अधिशेष का उपयोग एशिया में अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए कर रहा है, जिससे क्षेत्रीय संतुलन में बदलाव आ रहा है। चीन की आर्थिक शक्ति उसे विशाल रक्षा बजट और सैन्य आधुनिकीकरण की क्षमता देती है, जिससे वह दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर, और भारतीय महासागर में अपनी उपस्थिति को मजबूत कर रहा है।
भारत के लिए, यह स्थिति चिंताजनक है क्योंकि चीन का बढ़ता सैन्य प्रभाव उसकी सुरक्षा और रणनीतिक हितों के लिए खतरा पैदा कर सकता है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और चीन की “String of Pearls” रणनीति भारत को घेरने का प्रयास मानी जाती है।
इसके जवाब में, भारत को अपनी सैन्य तैयारियों को बढ़ाना होगा, पड़ोसी देशों के साथ मजबूत रणनीतिक साझेदारी करनी होगी, और अपने आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों को सुदृढ़ करना होगा। इसके अलावा, भारत को अपनी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को भी और अधिक प्रभावी बनाना चाहिए ताकि क्षेत्र में संतुलन कायम रखा जा सके।
See less"भारत के इज़राइल के साथ संबंधों ने हाल में एक ऐसी गहराई एवं विविधता प्राप्त कर ली है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।" विवेचना कीजिए। (150 words) [UPSC 2018]
भारत-इज़राइल संबंधों की गहराई और विविधता संबंधों की गहराई: भारत और इज़राइल के संबंध हाल के वर्षों में एक नई गहराई और विविधता प्राप्त कर चुके हैं। दोनों देशों ने 1992 में आधिकारिक राजनैतिक संबंध स्थापित किए, और तब से उनके सहयोग का दायरा व्यापक हुआ है। रक्षा सहयोग: भारत और इज़राइल के बीच रक्षा और सुरकRead more
भारत-इज़राइल संबंधों की गहराई और विविधता
संबंधों की गहराई: भारत और इज़राइल के संबंध हाल के वर्षों में एक नई गहराई और विविधता प्राप्त कर चुके हैं। दोनों देशों ने 1992 में आधिकारिक राजनैतिक संबंध स्थापित किए, और तब से उनके सहयोग का दायरा व्यापक हुआ है।
उपसंहार: भारत और इज़राइल के बीच बढ़ते संबंधों ने दोनों देशों के लिए रणनीतिक, आर्थिक, और तकनीकी सहयोग को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया है। इन संबंधों की गहराई और विविधता ने इसे एक मजबूत और स्थायी साझेदारी बना दिया है, जिसकी पुनर्वापसी मुश्किल है।
See lessमध्य एशिया, जो भारत के लिए एक हित क्षेत्र है, में अनेक बाह्य शक्तियों ने अपने-आप को संस्थापित कर लिया है। इस संदर्भ में, भारत द्वारा अश्गाबात करार, 2018 में शामिल होने के निहितार्थों पर चर्चा कीजिए। (150 words) [UPSC 2018]
अश्गाबात करार 2018 और भारत के हित अश्गाबात करार 2018: अश्गाबात करार 2018, जिसे ‘ट्रांस-अफगानिस्तान पाइपलाइन’ (TAPI) समझौते के रूप में भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसमें भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, और हाल ही में इस पर हस्ताक्षर किए गए अन्य देशों को शामिलRead more
अश्गाबात करार 2018 और भारत के हित
अश्गाबात करार 2018: अश्गाबात करार 2018, जिसे ‘ट्रांस-अफगानिस्तान पाइपलाइन’ (TAPI) समझौते के रूप में भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसमें भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, और हाल ही में इस पर हस्ताक्षर किए गए अन्य देशों को शामिल किया गया है। इसका उद्देश्य तुर्कमेनिस्तान से अफगानिस्तान और पाकिस्तान के माध्यम से भारत तक गैस पाइपलाइन का निर्माण करना है।
भारत के लिए निहितार्थ:
उपसंहार: अश्गाबात करार 2018 भारत के ऊर्जा सुरक्षा, भूराजनीतिक स्थिति, और आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, और यह मध्य एशिया में भारतीय उपस्थिति को बढ़ाने में सहायक होगा।
See less'भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिए किसी ऐसे स्थान की खोज करने में विफलता है, जो भारत के आत्म-समादर और महत्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
भारत और यूनाइटेड स्टेट्स (अमेरिका) के बीच संबंधों में खटास का एक मुख्य कारण यह है कि वाशिंगटन अपनी वैश्विक रणनीति में भारत को ऐसा स्थान प्रदान करने में विफल रहा है जो भारत के आत्म-सम्मान और महत्वाकांक्षाओं को पूरी तरह से संतुष्ट कर सके। इस विषय पर विचार करते हुए, निम्नलिखित बिंदुओं और उदाहरणों के माRead more
भारत और यूनाइटेड स्टेट्स (अमेरिका) के बीच संबंधों में खटास का एक मुख्य कारण यह है कि वाशिंगटन अपनी वैश्विक रणनीति में भारत को ऐसा स्थान प्रदान करने में विफल रहा है जो भारत के आत्म-सम्मान और महत्वाकांक्षाओं को पूरी तरह से संतुष्ट कर सके। इस विषय पर विचार करते हुए, निम्नलिखित बिंदुओं और उदाहरणों के माध्यम से इसे स्पष्ट किया जा सकता है:
1. अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताएँ:
अमेरिका ने अपनी वैश्विक रणनीति में कई बार चीन को एक प्रमुख प्रतिस्पर्धी के रूप में देखा है। इसके परिणामस्वरूप, भारत को अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताओं में अपेक्षित स्थान नहीं मिल सका। डिफेंस और सुरक्षा सहयोग के बावजूद, अमेरिका ने भारत के साथ एक व्यापक स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप स्थापित करने में धीमी गति दिखाई है, जिससे भारत की महत्वाकांक्षाओं को पूरी तरह से साकार नहीं किया जा सका।
2. व्यापारिक विवाद:
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक विवादों ने भी संबंधों में खटास का योगदान किया है। उदाहरण के लिए, ट्रेड पॉलिसी और शुल्क के मुद्दों पर भारत और अमेरिका के बीच मतभेद रहे हैं। अमेरिका ने भारत के व्यापारिक नीतियों और संरक्षणवादी दृष्टिकोण पर आलोचना की है, जिससे व्यापारिक रिश्तों में तनाव उत्पन्न हुआ है।
3. आंतरराष्ट्रीय मंच पर भिन्न दृष्टिकोण:
भारत और अमेरिका के बीच अंतरराष्ट्रीय मंच पर भिन्न दृष्टिकोण भी खटास का कारण बने हैं। परमाणु संधि, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक आतंकवाद जैसे मुद्दों पर विभिन्न दृष्टिकोणों के कारण भारत को अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा है। उदाहरण के लिए, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में भारत की सदस्यता के लिए अमेरिका का समर्थन ठोस नहीं रहा है, जिससे भारत की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में बाधा आई है।
4. अमेरिकी रणनीति की सीमाएँ:
अमेरिका की वैश्विक रणनीति में भारत के लिए विशिष्ट और महत्वपूर्ण स्थान की कमी ने भारत को नाराज किया है। अमेरिका ने साल 2021 में अफगानिस्तान से अपनी वापसी के दौरान भारत की चिंताओं और प्राथमिकताओं को पूरी तरह से नहीं समझा, जिससे भारत की सुरक्षा चिंताओं की अनदेखी हुई।
5. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में असंतोष:
क्लाइमेट चेंज और इंटेलिजेंस शेरिंग जैसे महत्वपूर्ण मामलों में भी भारत को पर्याप्त सहयोग नहीं मिला। इसने भारत को असंतुष्ट किया है और अमेरिका के साथ उसके संबंधों में खटास को बढ़ाया है।
इस प्रकार, अमेरिका की वैश्विक रणनीति में भारत को उचित स्थान प्रदान करने में विफलता के कारण भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में खटास आई है। भारत की आत्म-सम्मान और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए, अमेरिका को अपनी नीति और सहयोग में बदलाव करना होगा।
See less'उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में, भारत द्वारा प्राप्त नव-भूमिका के कारण, उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घ काल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है।' विस्तार से समझाइये । (250 words) [UPSC 2019]
भारत की उभरती वैश्विक भूमिका और उसकी दीर्घकालिक पहचान के बीच का संबंध एक जटिल और महत्वपूर्ण मुद्दा है। यहाँ पर विस्तार से इस मुद्दे की विवेचना की जा सकती है: 1. भारत की नव-भूमिका: हाल के वर्षों में, भारत ने वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आर्थिक वृद्धि, सामरिक शक्ति, और अंतर्राष्ट्रीयRead more
भारत की उभरती वैश्विक भूमिका और उसकी दीर्घकालिक पहचान के बीच का संबंध एक जटिल और महत्वपूर्ण मुद्दा है। यहाँ पर विस्तार से इस मुद्दे की विवेचना की जा सकती है:
1. भारत की नव-भूमिका:
हाल के वर्षों में, भारत ने वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आर्थिक वृद्धि, सामरिक शक्ति, और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सक्रियता के कारण भारत एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी बन चुका है। भारत की नव-भूमिका ने उसे एक महत्वपूर्ण आर्थिक और सामरिक शक्ति के रूप में स्थापित किया है, जिससे वह वैश्विक निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
2. उत्पीड़ित और उपेक्षित राष्ट्रों की पहचान:
विगत दशकों में, भारत ने उत्पीड़ित और उपेक्षित राष्ट्रों के अधिकारों की रक्षा और उनकी सहायता के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारत ने वैश्विक दक्षिण (Global South) के प्रमुख देश के रूप में विकासशील देशों के मुद्दों को प्रोत्साहित किया और उनके हितों की रक्षा की। इस संदर्भ में, भारत ने दक्षिण-सुत्र सहयोग, विकास सहायता, और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उनकी आवाज उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
3. नव-भूमिका के प्रभाव:
भारत की नई वैश्विक भूमिका ने उसकी पुरानी पहचान को प्रभावित किया है। उसकी बढ़ती आर्थिक और सामरिक शक्ति ने उसे एक प्रमुख शक्ति बना दिया है, जिससे उसका ध्यान अब बड़े वैश्विक मुद्दों और भू-राजनीतिक खेलों पर केंद्रित हो गया है। इस प्रक्रिया में, उत्पीड़ित और उपेक्षित राष्ट्रों के प्रति भारत की पारंपरिक पहचान और भूमिका कम हो गई है।
4. संतुलन बनाए रखने की चुनौती:
भारत को अपनी वैश्विक भूमिका और पारंपरिक पहचान के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वैश्विक शक्तियों के साथ रणनीतिक साझेदारी और आर्थिक सहयोग के बावजूद, भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह उत्पीड़ित और उपेक्षित राष्ट्रों के प्रति अपनी ऐतिहासिक प्रतिबद्धता को बनाए रखे।
5. आगे की दिशा:
भारत को अपने नव-भूमिका के साथ-साथ अपनी पारंपरिक पहचान को पुनर्जीवित करने के प्रयास करने होंगे। यह आवश्यक है कि भारत अपने विकासशील देशों के साथ सहयोग, सहायता और समर्थन की नीतियों को मजबूत करे और वैश्विक मंच पर उनके अधिकारों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाए।
इस प्रकार, भारत की उभरती वैश्विक भूमिका ने उसके उत्पीड़ित और उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घकालिक पहचान को प्रभावित किया है, लेकिन इसे संतुलित करने और समग्र वैश्विक राजनीति में अपने ऐतिहासिक दृष्टिकोण को बनाए रखने की आवश्यकता है।
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