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यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन) के मैक्ब्राइड आयोग के लक्ष्य और उद्देश्य क्या-क्या है ? इनमें भारत की क्या स्थिति है ? (200 words) [UPSC 2016]
यूनेस्को के मैक्ब्राइड आयोग के लक्ष्य और उद्देश्य और भारत की स्थिति परिचय यूनेस्को के मैक्ब्राइड आयोग (1980) का पूरा नाम "कमेटी ऑन एम्सट्रिंग इनफॉर्मेशन फ्लो" है। इसका गठन वैश्विक संचार और सूचना प्रवाह की असमानताओं को दूर करने के लिए किया गया था। इस आयोग ने एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट, "मैक्रोब्राइड रिपोरRead more
यूनेस्को के मैक्ब्राइड आयोग के लक्ष्य और उद्देश्य और भारत की स्थिति
परिचय यूनेस्को के मैक्ब्राइड आयोग (1980) का पूरा नाम “कमेटी ऑन एम्सट्रिंग इनफॉर्मेशन फ्लो” है। इसका गठन वैश्विक संचार और सूचना प्रवाह की असमानताओं को दूर करने के लिए किया गया था। इस आयोग ने एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट, “मैक्रोब्राइड रिपोर्ट” प्रस्तुत की, जिसमें संचार और सूचना के क्षेत्र में समानता की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
लक्ष्य और उद्देश्य
भारत की स्थिति
निष्कर्ष मैक्ब्राइड आयोग ने वैश्विक संचार और सूचना प्रवाह में समानता की आवश्यकता को रेखांकित किया। भारत ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन संचार और सूचना असमानताओं को पूरी तरह से दूर करने के लिए निरंतर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
See less“भारत में बढ़ते हुए सीमापारीय आतंकी हमले और अनेक सदस्य राज्यों के आंतरिक मामलों में पाकिस्तान द्वारा बढ़ता हुआ हस्तक्षेप सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) के भविष्य के लिए सहायक नहीं हैं।" उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिए । (200 words) [UPSC 2016]
भारत में सीमापारीय आतंकी हमलों और पाकिस्तान के हस्तक्षेप का सार्क के भविष्य पर प्रभाव परिचय दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) का उद्देश्य दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग और विकास को बढ़ावा देना है। हालांकि, भारत में बढ़ते सीमापारीय आतंकी हमले और पाकिस्तान द्वारा सदस्य देशों के आंतरिक मामलRead more
भारत में सीमापारीय आतंकी हमलों और पाकिस्तान के हस्तक्षेप का सार्क के भविष्य पर प्रभाव
परिचय दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) का उद्देश्य दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग और विकास को बढ़ावा देना है। हालांकि, भारत में बढ़ते सीमापारीय आतंकी हमले और पाकिस्तान द्वारा सदस्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ने सार्क की प्रभावशीलता को प्रभावित किया है।
सीमापारीय आतंकी हमले
पाकिस्तान का आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप
सार्क पर प्रभाव
निष्कर्ष भारत में बढ़ते सीमापारीय आतंकी हमले और पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ने सार्क के भविष्य के लिए गंभीर चुनौतियाँ पेश की हैं। इन समस्याओं ने क्षेत्रीय सहयोग और सुरक्षा को प्रभावित किया है, जिससे सार्क की प्रभावशीलता और विकासात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति में बाधाएँ उत्पन्न हुई हैं।
See less"विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) के अधिक व्यापक लक्ष्य और उद्देश्य वैश्वीकरण के युग में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रबंधन और प्रोन्नति करना है। परन्तु (संधि) वार्ताओं की दोहा परिधि मृतोन्मुखी प्रतीत होती है, जिसका कारण विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेद है ।" भारतीय परिप्रेक्ष्य में, इस पर चर्चा कीजिए । (200 words) [UPSC 2016]
डब्ल्यू.टी.ओ. के लक्ष्य और दोहा दौर की वार्ताओं पर भारतीय परिप्रेक्ष्य परिचय विश्व व्यापार संगठन (WTO) का उद्देश्य वैश्वीकरण के युग में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रबंधित और प्रोत्साहित करना है। हालांकि, दोहा दौर की वार्ताएँ विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेदों के कारण ठप हो गई हैं। डब्ल्यू.टी.ओ.Read more
डब्ल्यू.टी.ओ. के लक्ष्य और दोहा दौर की वार्ताओं पर भारतीय परिप्रेक्ष्य
परिचय विश्व व्यापार संगठन (WTO) का उद्देश्य वैश्वीकरण के युग में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रबंधित और प्रोत्साहित करना है। हालांकि, दोहा दौर की वार्ताएँ विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेदों के कारण ठप हो गई हैं।
डब्ल्यू.टी.ओ. के लक्ष्य और उद्देश्य
दोहा दौर की वार्ताओं में चुनौतियाँ
भारतीय परिप्रेक्ष्य
निष्कर्ष डब्ल्यू.टी.ओ. के व्यापक लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रबंधित और प्रोत्साहित करना है, लेकिन दोहा दौर की वार्ताओं में विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेदों के कारण प्रगति में रुकावट आई है। भारतीय दृष्टिकोण से, कृषि सब्सिडी और बाजार पहुंच जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण हैं, और इसके समाधान से वैश्विक व्यापार प्रणाली में समावेशिता और समानता सुनिश्चित की जा सकती है।
See lessदक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था एवं समाज में भारतीय प्रवासियों को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। इस संदर्भ में, दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय प्रवासियों की भूमिका का मूल्यनिरूपण कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय प्रवासियों की भूमिका आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में भारतीय प्रवासियों का योगदान न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करता है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य में भी गहरा प्रभाव डालता है। आर्थिक योगदान: व्यापार और निवेश: भारतीयRead more
दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय प्रवासियों की भूमिका आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में भारतीय प्रवासियों का योगदान न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करता है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य में भी गहरा प्रभाव डालता है।
आर्थिक योगदान:
व्यापार और निवेश: भारतीय प्रवासी दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में व्यापार और निवेश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे विभिन्न उद्योगों, जैसे सूचना प्रौद्योगिकी, निर्माण, और वित्तीय सेवाओं में सक्रिय हैं। इस प्रकार, वे द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को बढ़ावा देते हैं, जो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाता है।
रेमिटेंस: भारतीय प्रवासी, विशेषकर सिंगापुर और मलेशिया में, अपने परिवारों को भारत में रेमिटेंस भेजते हैं। ये रेमिटेंस भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं और भारतीय परिवारों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाते हैं।
कौशलयुक्त श्रमिक: सिंगापुर जैसे देशों में भारतीय प्रवासी उच्च-skilled श्रमिकों के रूप में कार्यरत हैं। IT, स्वास्थ्य देखभाल, और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में उनकी विशेषज्ञता ने न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचाया है, बल्कि भारत की छवि को भी सकारात्मक रूप से प्रस्तुत किया है।
सामाजिक योगदान:
सांस्कृतिक आदान-प्रदान: भारतीय प्रवासी दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय संस्कृति, त्योहारों और परंपराओं का प्रचार करते हैं। दिवाली, होली, और पोंगल जैसे त्योहारों की भव्यता सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देती है और स्थानीय समाज में विविधता को समृद्ध करती है।
सामाजिक एकीकरण: भारतीय प्रवासी अपने पारंपरिक सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखते हुए स्थानीय समाज में समाहित हो गए हैं। इस एकीकरण ने बहुसांस्कृतिक समाजों को प्रोत्साहित किया है, जहाँ विभिन्न सांस्कृतिक समूह मिलकर एक समृद्ध सामाजिक परिदृश्य का निर्माण करते हैं।
शैक्षिक और परोपकारी कार्य: कई भारतीय प्रवासियों ने दक्षिण-पूर्व एशिया में शिक्षा संस्थान, स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ और दान-पुनर्निर्माण संस्थान स्थापित किए हैं। इन पहलों ने न केवल भारतीय प्रवासियों, बल्कि स्थानीय समुदायों को भी लाभ पहुँचाया है।
राजनयिक पुल: भारतीय प्रवासी भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच एक महत्वपूर्ण राजनयिक पुल का कार्य करते हैं। उनके योगदान और प्रभाव ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत किया है और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा दिया है।
निष्कर्ष:
See lessदक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय प्रवासियों का आर्थिक और सामाजिक योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके व्यवसायिक प्रयास, सांस्कृतिक प्रचार, और समाज सेवा ने न केवल उनकी मेज़बान देशों की अर्थव्यवस्था और समाज को समृद्ध किया है, बल्कि भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच संबंधों को भी सुदृढ़ किया है।
चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के बारे में बढ़ती आशंकाओं के बीच, चर्चा कीजिए कि क्या G7 का बिल्ड बैंक बेटर वर्ल्ड (B3W) और यूरोपीय संघ का ग्लोबल गेटवे वैश्विक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए एक विकल्प प्रदान कर सकता है। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) ने वैश्विक बुनियादी ढांचे के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इसके साथ-साथ कई आशंकाएँ भी उत्पन्न हुई हैं, जैसे कि ऋण जाल, पारदर्शिता की कमी, और क्षेत्रीय प्रभुत्व की संभावना। इन चिंताओं के जवाब में, G7 का बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) और यूरोपीय संघ कRead more
चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) ने वैश्विक बुनियादी ढांचे के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इसके साथ-साथ कई आशंकाएँ भी उत्पन्न हुई हैं, जैसे कि ऋण जाल, पारदर्शिता की कमी, और क्षेत्रीय प्रभुत्व की संभावना। इन चिंताओं के जवाब में, G7 का बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) और यूरोपीय संघ का ग्लोबल गेटवे जैसी पहलकदमियाँ वैश्विक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए वैकल्पिक रास्ते प्रदान करने का प्रयास कर रही हैं।
B3W का दृष्टिकोण: G7 देशों ने B3W पहल की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य विकासशील देशों को उच्च गुणवत्ता वाले, पारदर्शी, और टिकाऊ बुनियादी ढांचे के लिए निवेश उपलब्ध कराना है। यह पहल तीन मुख्य स्तंभों पर केंद्रित है: डिजिटल, जलवायु और ऊर्जा, और स्वास्थ्य। B3W का लक्ष्य है कि यह BRI के समकक्ष एक विकल्प प्रस्तुत करें जो कि गुणवत्ता, स्थिरता और पारदर्शिता पर जोर देता है। इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर प्रभावी और समावेशी विकास को बढ़ावा देना है, साथ ही साथ विकासशील देशों को ऐसे निवेश की सुविधा प्रदान करना है जो उन्हें वित्तीय और पर्यावरणीय दबावों से बचाए।
ग्लोबल गेटवे की रणनीति: यूरोपीय संघ का ग्लोबल गेटवे भी B3W के समान सिद्धांतों पर आधारित है। यह पहल 300 बिलियन यूरो के निवेश के साथ, 2030 तक विश्व भर में बुनियादी ढांचे के विकास को प्रोत्साहित करने का लक्ष्य रखती है। ग्लोबल गेटवे मुख्य रूप से डिजिटल कनेक्टिविटी, स्थायी परिवहन, और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ उपायों पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य यूरोपीय संघ के साझेदार देशों के साथ मिलकर, विश्वसनीय, पारदर्शी, और टिकाऊ बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को लागू करना है।
विकल्प के रूप में भूमिका: B3W और ग्लोबल गेटवे, दोनों ही चीन की BRI का एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान करने का प्रयास कर रहे हैं। ये पहलकदमियाँ न केवल विकासशील देशों को एक स्थायी और पारदर्शी निवेश विकल्प प्रदान करती हैं, बल्कि वे वैश्विक बुनियादी ढांचे के विकास में एक सकारात्मक और संतुलित प्रतिस्पर्धा को भी प्रोत्साहित करती हैं। इसके अलावा, ये पहलें उच्च गुणवत्ता और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से मजबूत परियोजनाओं को प्राथमिकता देती हैं, जो कि BRI की आलोचनाओं का सामना करती हैं।
निष्कर्ष: G7 का B3W और यूरोपीय संघ का ग्लोबल गेटवे, वैश्विक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए एक प्रभावी विकल्प प्रदान कर सकते हैं। ये पहलें पारदर्शिता, गुणवत्ता, और स्थिरता पर जोर देती हैं, और वे वैश्विक स्तर पर समावेशी और टिकाऊ विकास को प्रोत्साहित करती हैं। जबकि BRI ने वैश्विक बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, इन नए विकल्पों के माध्यम से विकासशील देशों को एक बेहतर और अधिक संतुलित विकास मार्ग मिल सकता है।
See lessऐसे तर्क दिए गए हैं कि पुरानी वैश्विक बहुपक्षीय व्यवस्था बढ़ती चुनौतियों का प्रबंधन करने में विफल रही है, जबकि मुद्दे- आधारित गठबंधन लोकप्रियता प्राप्त कर रहे हैं और कार्यात्मक सहयोग के क्षेत्र बन गए हैं। चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में, पुरानी वैश्विक बहुपक्षीय व्यवस्था—जैसे कि संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन—बढ़ती चुनौतियों के प्रबंधन में विफल रही है। इसके विपरीत, मुद्दे-आधारित गठबंधन और कार्यात्मक सहयोग के क्षेत्र लोकप्रियता प्राप्त कर रहे हैं। यह बदलाव वैश्विक राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधोंRead more
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में, पुरानी वैश्विक बहुपक्षीय व्यवस्था—जैसे कि संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन—बढ़ती चुनौतियों के प्रबंधन में विफल रही है। इसके विपरीत, मुद्दे-आधारित गठबंधन और कार्यात्मक सहयोग के क्षेत्र लोकप्रियता प्राप्त कर रहे हैं। यह बदलाव वैश्विक राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए महत्वपूर्ण संकेतक हैं।
पुरानी बहुपक्षीय व्यवस्था की चुनौतियाँ: पारंपरिक बहुपक्षीय संस्थाएँ अक्सर जटिल निर्णय प्रक्रिया, सदस्य देशों के विविध हितों, और प्रबंधकीय अक्षमताओं के कारण प्रभावी कार्रवाई में असफल होती हैं। उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन, वैश्विक स्वास्थ्य संकट, और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद जैसे वैश्विक मुद्दों पर पुरानी संस्थाओं की प्रतिक्रिया अक्सर धीमी और असंगठित रही है। निर्णय प्रक्रिया में असहमति और सुधार के लिए आवश्यक समर्थन की कमी ने इन संस्थाओं की कार्यक्षमता को सीमित किया है।
मुद्दे-आधारित गठबंधन: इसके विपरीत, मुद्दे-आधारित गठबंधन जैसे कि जी-20, पेरिस जलवायु समझौता, और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी गठबंधन ने विशेष मुद्दों पर लक्षित और प्रभावी कार्रवाई की है। ये गठबंधन सामान्य हितों और लक्ष्यों पर आधारित होते हैं, जिससे निर्णय प्रक्रिया तेज और अधिक प्रभावी होती है। उदाहरण के लिए, पेरिस जलवायु समझौते ने वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए स्पष्ट और सुसंगत लक्ष्यों को स्थापित किया और विभिन्न देशों को एक साझा एजेंडा के तहत संगठित किया।
कार्यात्मक सहयोग: कार्यात्मक सहयोग के क्षेत्र जैसे कि स्वास्थ्य, विज्ञान, और ऊर्जा में भी तेजी से वृद्धि देखी गई है। ये क्षेत्र विशिष्ट समस्याओं के समाधान पर ध्यान केंद्रित करते हैं और तेजी से प्रतिक्रिया देने में सक्षम होते हैं। महामारी के दौरान, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के बजाय, देशों ने बायोटेक कंपनियों और वैश्विक स्वास्थ्य नेटवर्क्स के साथ मिलकर त्वरित समाधान खोजे।
निष्कर्ष: पुरानी वैश्विक बहुपक्षीय व्यवस्था की सीमाओं और चुनौतियों ने मुद्दे-आधारित गठबंधनों और कार्यात्मक सहयोग के क्षेत्र को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित किया है। यह नया परिदृश्य दर्शाता है कि विशिष्ट समस्याओं पर लक्षित और लचीले दृष्टिकोण वैश्विक समस्याओं के समाधान में अधिक प्रभावी हो सकते हैं। यह बदलाव अंतरराष्ट्रीय सहयोग की नई दिशा और रणनीतियों की आवश्यकता को स्पष्ट करता है, जिसमें अधिक लचीलापन और प्राथमिकता आधारित निर्णय लेने की प्रक्रिया शामिल है।
See lessपाकिस्तान की नई सुरक्षा नीति का अनावरण भारत के लिए, विशेष रूप से हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से, महत्वपूर्ण प्रश्न प्रस्तुत करता है। चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
पाकिस्तान की नई सुरक्षा नीति का अनावरण भारत के लिए कई महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रश्न प्रस्तुत करता है: आतंकवाद की नीति: पाकिस्तान की सुरक्षा नीति में आतंकवाद के प्रति अपनाए गए दृष्टिकोण का प्रभाव भारत पर सीधा पड़ता है। यदि पाकिस्तान ने आतंकवादी समूहों के खिलाफ कड़े कदम उठाने का आश्वासन नहीं दिया, तो भारतRead more
पाकिस्तान की नई सुरक्षा नीति का अनावरण भारत के लिए कई महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रश्न प्रस्तुत करता है:
आतंकवाद की नीति: पाकिस्तान की सुरक्षा नीति में आतंकवाद के प्रति अपनाए गए दृष्टिकोण का प्रभाव भारत पर सीधा पड़ता है। यदि पाकिस्तान ने आतंकवादी समूहों के खिलाफ कड़े कदम उठाने का आश्वासन नहीं दिया, तो भारत के लिए सीमा पर और आतंकवादी गतिविधियों की बढ़ती चुनौतियाँ हो सकती हैं।
क्षेत्रीय असंतुलन: पाकिस्तान की सुरक्षा नीति में भारतीय सीमा के साथ संघर्ष प्रबंधन या कश्मीर पर दृष्टिकोण भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा सकता है। नीति में भारत के प्रति संभावित आक्रामक या सामरिक रणनीतियाँ भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा की स्थिरता को प्रभावित कर सकती हैं।
सैन्य क्षमता और सहयोग: पाकिस्तान की नई नीति में सैन्य क्षमता में वृद्धि या अंतरराष्ट्रीय सहयोग की संभावनाएँ भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं, विशेषकर यदि इससे पाकिस्तान की सेना की आक्रामक क्षमता में वृद्धि होती है।
इन पहलुओं के कारण, भारत को पाकिस्तान की सुरक्षा नीति पर करीबी निगरानी रखनी होगी और अपनी रणनीतियों को सुसंगत रूप से अनुकूलित करना होगा।
See lessयू.एस.ए. और रूस के बीच स्पष्ट तनाव के बावजूद, भारत अब तक अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए दोनों देशों के साथ अपने अनुकूल द्विपक्षीय संबंधों को सफलतापूर्वक बनाए रखने में सक्षम रहा है। चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
यू.एस.ए. और रूस के बीच स्पष्ट तनाव के बावजूद, भारत ने अपनी रणनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों के साथ मजबूत और संतुलित द्विपक्षीय संबंध बनाए रखने में सफलता प्राप्त की है। भारत की यह कूटनीतिक सफलताएँ उसके बहुपरकारी विदेश नीति और रणनीतिक संतुलन की क्षमताओं को दर्शाती हैं।Read more
यू.एस.ए. और रूस के बीच स्पष्ट तनाव के बावजूद, भारत ने अपनी रणनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों के साथ मजबूत और संतुलित द्विपक्षीय संबंध बनाए रखने में सफलता प्राप्त की है। भारत की यह कूटनीतिक सफलताएँ उसके बहुपरकारी विदेश नीति और रणनीतिक संतुलन की क्षमताओं को दर्शाती हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंध: भारत और अमेरिका के बीच संबंध पिछले दो दशकों में काफी मजबूत हुए हैं, विशेषकर व्यापार, रक्षा और आतंकवाद विरोधी सहयोग में। भारत और अमेरिका ने कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जैसे कि नागरिक परमाणु समझौता और रक्षा साझेदारी। इन समझौतों ने व्यापार और निवेश के क्षेत्र में वृद्धि की है और भारत को अमेरिका के रक्षा प्रौद्योगिकी और सुरक्षा सहयोग का लाभ मिला है। अमेरिका की “प्रो-इंडिया” नीति भी भारत के वैश्विक स्थिति को सुदृढ़ करती है, खासकर Indo-Pacific क्षेत्र में।
रूस के साथ संबंध: भारत और रूस के बीच भी ऐतिहासिक और मजबूत रिश्ते हैं, विशेषकर रक्षा क्षेत्र में। रूस ने भारत को सैन्य उपकरण और प्रौद्योगिकी की आपूर्ति की है, जो भारतीय सुरक्षा नीति के लिए महत्वपूर्ण है। दोनों देशों ने कई प्रमुख रक्षा सौदे किए हैं, और रूस भारत का प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता बना हुआ है। इसके अलावा, भारत और रूस की साझेदारी संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी महत्वपूर्ण रही है, जहां दोनों देशों ने अक्सर एक दूसरे का समर्थन किया है।
भारत की कूटनीति: भारत ने इन दोनों शक्तियों के साथ संबंधों को संतुलित रखते हुए अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा की है। भारत की विदेश नीति की बहुपरकारी दृष्टि ने उसे अमेरिका और रूस दोनों के साथ अनुकूल संबंध बनाए रखने में सक्षम बनाया है, जिससे भारत ने वैश्विक कूटनीतिक खेल में अपनी भूमिका को मजबूती प्रदान की है।
इस तरह, भारत ने यू.एस.ए. और रूस के बीच बढ़ते तनाव के बावजूद अपने कूटनीतिक कौशल का प्रदर्शन करते हुए दोनों देशों के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती से बनाए रखा है।
See lessवर्तमान समय में अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों के प्रबंधन में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की प्रभावशीलता पर टिप्पणी कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता सीमित भी हो सकती है। सकारात्मक पहलू: शांति रक्षण: UNSC ने कई संघर्षों में शांति रक्षक मिशनों को तैनात किया है, जैसे कि सियर्रा लियोन और दक्षिण सूडान में। संकट समाधान: UNSCRead more
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता सीमित भी हो सकती है।
सकारात्मक पहलू:
शांति रक्षण: UNSC ने कई संघर्षों में शांति रक्षक मिशनों को तैनात किया है, जैसे कि सियर्रा लियोन और दक्षिण सूडान में।
संकट समाधान: UNSC ने आर्थिक और सैन्य प्रतिबंधों के माध्यम से कई देशों पर दबाव डाला है, जैसे कि उत्तर कोरिया पर।
सीमाएँ:
वेटो पावर: UNSC के स्थायी सदस्यों के पास वेटो शक्ति है, जो कभी-कभी विवादों को हल करने में बाधा डालती है, जैसे कि सीरिया संघर्ष में।
See lessनिर्णायक कार्रवाई की कमी: कभी-कभी UNSC की कार्रवाइयाँ धीमी या अपर्याप्त साबित होती हैं, जिससे संघर्षों के समाधान में देरी होती है।
इन चुनौतियों के बावजूद, UNSC वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बनी हुई है।
चीन-रूस के बीच गहरे होते रणनीतिक संबंधों को कुछ लोगों ने 'विश्व में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अघोषित गठबंधन' के रूप में वर्णित किया है। यह गठबंधन भारत के राष्ट्रीय हित को कैसे प्रभावित कर सकता है? भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए क्या रणनीति अपनानी चाहिए? (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
चीन और रूस के बीच गहरे होते रणनीतिक संबंध, जिन्हें 'विश्व में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अघोषित गठबंधन' कहा जाता है, भारत के राष्ट्रीय हितों पर कई तरह से प्रभाव डाल सकते हैं। भारत पर प्रभाव: सुरक्षा और सैन्य दबाव: चीन और रूस के रणनीतिक साझेदारी के कारण, भारत को द्वीपक्षीय या बहुपक्षीय सैन्य दबाव का सामना कRead more
चीन और रूस के बीच गहरे होते रणनीतिक संबंध, जिन्हें ‘विश्व में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अघोषित गठबंधन’ कहा जाता है, भारत के राष्ट्रीय हितों पर कई तरह से प्रभाव डाल सकते हैं।
भारत पर प्रभाव:
सुरक्षा और सैन्य दबाव: चीन और रूस के रणनीतिक साझेदारी के कारण, भारत को द्वीपक्षीय या बहुपक्षीय सैन्य दबाव का सामना करना पड़ सकता है। विशेष रूप से, चीन के साथ भारत की सीमा पर तनाव और रूस की सैन्य सहायता से चीनी सैन्य क्षमताओं में वृद्धि हो सकती है।
भूराजनीतिक परिदृश्य: रूस का समर्थन प्राप्त करने के कारण, चीन को भूराजनीतिक मोर्चे पर अधिक प्रभावी बनने का अवसर मिल सकता है। इससे भारत की वैश्विक स्थिति और क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है, विशेषकर दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में।
आर्थिक और रणनीतिक सहयोग: चीन और रूस के बीच गहरे आर्थिक और रणनीतिक सहयोग से भारत की व्यापारिक और आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। विशेषकर ऊर्जा, रक्षा और तकनीकी क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है।
भारत की रणनीति:
मजबूत रणनीतिक साझेदारी: भारत को अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ मजबूत रणनीतिक साझेदारी विकसित करनी चाहिए। इससे क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों को संतुलित किया जा सकेगा और चीन के प्रभाव को कम किया जा सकेगा।
सैन्य और सुरक्षा वृद्धि: भारत को अपनी सैन्य क्षमताओं को सुधारना और आधुनिक उपकरणों के साथ अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाना चाहिए, ताकि वह संभावित सुरक्षा खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सके।
आर्थिक विविधता: भारत को अपनी आर्थिक नीतियों में विविधता लानी चाहिए और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के उपायों को बढ़ावा देना चाहिए। इससे भारत को वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा में मजबूत स्थिति मिल सकेगी।
राजनयिक प्रयास: भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर सक्रिय रहकर अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी चाहिए। रणनीतिक संवाद और कूटनीति के माध्यम से वैश्विक समर्थन जुटाना भी महत्वपूर्ण है।
इन रणनीतियों को अपनाकर भारत चीन-रूस के रणनीतिक गठबंधन के संभावित प्रभावों का प्रभावी ढंग से सामना कर सकता है और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सकता है।
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