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भारत प्रवासी-नीति क्या है? वर्तमान में भारतीय प्रवासियों के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं? (125 Words) [UPPSC 2020]
भारत प्रवासी-नीति और वर्तमान चुनौतियाँ 1. भारत प्रवासी-नीति: भारत प्रवासी-नीति (Diaspora Policy) भारत सरकार की नीति है जो विदेशों में बसे भारतीय नागरिकों और विदेशी मूल के भारतीयों के साथ संबंध को मजबूती प्रदान करती है। इसका उद्देश्य समाज-आर्थिक योगदान को सहमति और सुरक्षा प्रदान करना है। प्रमुख पहलुओRead more
भारत प्रवासी-नीति और वर्तमान चुनौतियाँ
1. भारत प्रवासी-नीति:
भारत प्रवासी-नीति (Diaspora Policy) भारत सरकार की नीति है जो विदेशों में बसे भारतीय नागरिकों और विदेशी मूल के भारतीयों के साथ संबंध को मजबूती प्रदान करती है। इसका उद्देश्य समाज-आर्थिक योगदान को सहमति और सुरक्षा प्रदान करना है। प्रमुख पहलुओं में प्रवासी मामलों के मंत्रालय, प्रवासी भारतीय दिवस, और प्रवासी भारतीय केंद्र शामिल हैं।
2. वर्तमान में प्रवासियों के समक्ष चुनौतियाँ:
निष्कर्ष:
See lessभारत प्रवासी-नीति प्रवासियों के कल्याण और संबंध को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन विधायी, आर्थिक, और सामाजिक चुनौतियाँ अभी भी उनके समक्ष हैं।
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जहाँ लिए गए निर्णय देशों को गहराई से प्रभावित करते हैं। डब्ल्यू. टी. ओ. का क्या अधिदेश (मैडेट) है और उसके निर्णय किस प्रकार बंधनकारी है ? खाद्य सुरक्षा पर विचार-विमर्श के पिछले चक्र पर भारत के दृढ़-मत का समालोचनापूर्वक विश्लेषण कीजिये। (200 words) [UPSC 2014]
डब्ल्यू.टी.ओ. का अधिदेश (Mandate): विश्व व्यापार संगठन (WTO) एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जिसका मुख्य उद्देश्य वैश्विक व्यापार नियमों की निगरानी करना और यह सुनिश्चित करना है कि व्यापार सुगमता से, पूर्वानुमानित रूप से और स्वतंत्र रूप से हो सके। इसका अधिदेश सदस्य देशों के बीच व्यापार से संबंधित मुद्दोRead more
डब्ल्यू.टी.ओ. का अधिदेश (Mandate):
डब्ल्यू.टी.ओ. के निर्णयों की बंधनकारी प्रकृति:
खाद्य सुरक्षा पर भारत का दृढ़-मत:
समालोचनात्मक विश्लेषण:
निष्कर्ष: WTO वैश्विक व्यापार नीतियों को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और इसके निर्णय सदस्य राज्यों पर बंधनकारी होते हैं। खाद्य सुरक्षा पर हाल के WTO विचार-विमर्श में भारत का दृढ़-मत यह दर्शाता है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रतिबद्धताओं के साथ-साथ घरेलू प्राथमिकताओं के संतुलन की आवश्यकता है, विशेष रूप से विकासशील देशों के संदर्भ में। इन चर्चाओं का परिणाम वैश्विक खाद्य सुरक्षा नीतियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा।
See lessभारत ने हाल ही में "नव विकास बैंक" (NDB) और साथ ही "एशियाई आधारिक संरचना निवेश बैंक" (AIIB) के संस्थापक सदस्य बनने के लिये हस्ताक्षर किये हैं। इन दो बैंकों की भूमिकाएं एक दूसरे से किस प्रकार भिन्न होंगी ? भारत के लिये इन दो बैंकों के रणनीतिक महत्व पर चर्चा कीजिये । (200 words) [UPSC 2014]
NDB और AIIB की भूमिकाओं में अंतर: नव विकास बैंक (NDB): NDB की स्थापना BRICS देशों (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, और दक्षिण अफ्रीका) द्वारा की गई है। इसका मुख्य उद्देश्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं और विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे और सतत विकास परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इसका ध्यानRead more
NDB और AIIB की भूमिकाओं में अंतर:
भारत के लिये रणनीतिक महत्व:
निष्कर्ष: NDB और AIIB की भूमिकाएँ भिन्न हैं, जहाँ NDB का ध्यान वैश्विक सतत विकास पर है, वहीं AIIB एशियाई बुनियादी ढांचे पर केंद्रित है। भारत के लिए, ये बैंक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं, क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ाते हैं, और घरेलू आर्थिक विकास का समर्थन करते हैं।
See lessअंतर्राष्ट्रीय निधीयन संस्थाओं में से कुछ की आर्थिक भागीदारी के लिए विशेष शर्तें होती हैं, जो शर्त लगाती हैं कि उपस्कर के स्रोतन के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला सहायता का एक बड़ा भाग, अग्रणी देशों से उपस्कर स्रोतन के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। ऐसी शर्तों के गुणों-अवगुणों पर चर्चा कीजिए और क्या भारतीय संदर्भ में ऐसी शर्तों को स्वीकार न करने की एक मजबूत स्थिति विद्यमान है। (200 words) [UPSC 2014]
अंतर्राष्ट्रीय निधीयन संस्थाओं की शर्तें: कुछ अंतर्राष्ट्रीय निधीयन संस्थाएँ, जैसे विश्व बैंक, आईएमएफ, और द्विपक्षीय दात्री संस्थाएँ, आर्थिक भागीदारी के लिए विशेष शर्तें लगाती हैं। इन शर्तों के तहत सहायता का एक बड़ा भाग अग्रणी देशों से उपस्कर और सेवाओं के स्रोतन के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। इन शर्तRead more
अंतर्राष्ट्रीय निधीयन संस्थाओं की शर्तें: कुछ अंतर्राष्ट्रीय निधीयन संस्थाएँ, जैसे विश्व बैंक, आईएमएफ, और द्विपक्षीय दात्री संस्थाएँ, आर्थिक भागीदारी के लिए विशेष शर्तें लगाती हैं। इन शर्तों के तहत सहायता का एक बड़ा भाग अग्रणी देशों से उपस्कर और सेवाओं के स्रोतन के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। इन शर्तों का उद्देश्य दात्री देशों की अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचाना होता है, क्योंकि सहायता का हिस्सा उनके उद्योगों में पुनर्निवेश किया जाता है।
ऐसी शर्तों के गुण:
ऐसी शर्तों को न स्वीकारने के तर्क:
निष्कर्ष: अंतर्राष्ट्रीय निधीयन संस्थाओं की शर्तों के कुछ लाभ हो सकते हैं, लेकिन भारत को इन शर्तों पर बातचीत करनी चाहिए ताकि वे घरेलू प्राथमिकताओं के साथ बेहतर तालमेल बिठा सकें। विशेष रूप से आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत, घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने और आर्थिक संप्रभुता की रक्षा करने के लिए एक मजबूत स्थिति विद्यमान है।
See lessसूचना प्रौद्योगिकी समझौतों (ITA) का उद्देश्य हस्ताक्षरकर्ताओं द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों पर सभी करों और प्रशुल्कों को कम करके शून्य पर लाना है। ऐसे समझौतों का भारत के हितों पर क्या प्रभाव होगा ? (200 words) [UPSC 2014]
परिचय सूचना प्रौद्योगिकी समझौतों (ITA) का उद्देश्य सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों पर सभी करों और प्रशुल्कों को शून्य पर लाना है, जिससे व्यापार और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा मिले। भारत के लिए, जो कि IT क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी है, इन समझौतों के कई महत्वपूर्ण प्रभाव हो सकते हैं। सकारात्मक प्रभाव बाजारRead more
परिचय
सूचना प्रौद्योगिकी समझौतों (ITA) का उद्देश्य सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों पर सभी करों और प्रशुल्कों को शून्य पर लाना है, जिससे व्यापार और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा मिले। भारत के लिए, जो कि IT क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी है, इन समझौतों के कई महत्वपूर्ण प्रभाव हो सकते हैं।
सकारात्मक प्रभाव
चुनौतियाँ
निष्कर्ष
ITA समझौतों से भारत के IT क्षेत्र को महत्वपूर्ण लाभ हो सकते हैं, लेकिन इनसे जुड़े संभावित जोखिमों को संतुलित करने के लिए रणनीतिक नीतिगत उपायों की आवश्यकता होगी।
See lessदक्षिण चीन सागर के मामले में, समुद्री भूभागीय विवाद और बढ़ता हुआ तनाव समस्त क्षेत्र में नौपरिवहन की और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिये समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता की अभिपुष्टि करतें हैं। इस सन्दर्भ में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (200 words) [UPSC 2014]
परिचय दक्षिण चीन सागर एक महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र है जहाँ समुद्री भूभागीय विवाद और बढ़ते तनाव ने नौपरिवहन की और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता की सुरक्षा की आवश्यकता को और अधिक स्पष्ट किया है। इस संदर्भ में, भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं। दक्षिण चीन सागर के विवाद दक्षिण चीन सागरRead more
परिचय
दक्षिण चीन सागर एक महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र है जहाँ समुद्री भूभागीय विवाद और बढ़ते तनाव ने नौपरिवहन की और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता की सुरक्षा की आवश्यकता को और अधिक स्पष्ट किया है। इस संदर्भ में, भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं।
दक्षिण चीन सागर के विवाद
दक्षिण चीन सागर में चीन, वियतनाम, फिलीपीन्स, मलेशिया और ब्रुनेई के बीच भूभागीय दावे हैं। चीन की नाइन-डैश लाइन के आधार पर सम्पूर्ण सागर पर दावा, क्षेत्र में मिलिटरीकरण और संघर्ष को बढ़ावा दे रहा है। यह स्थिति समुद्री सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय जलमार्गों की स्वतंत्रता की महत्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित करती है।
भारत और चीन के द्विपक्षीय मुद्दे
हालांकि भारत सीधे दक्षिण चीन सागर विवाद में शामिल नहीं है, लेकिन द्विपक्षीय मुद्दे महत्वपूर्ण हैं:
सहयोग और संवाद
दोनों देशों ने तनाव प्रबंधन के लिए BRICS शिखर सम्मेलन और अनौपचारिक शिखर बैठकों जैसी पहल की हैं। भारत और चीन ने समुद्री सुरक्षा और नौपरिवहन की स्वतंत्रता की पुष्टि की है, जो उनके अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के अनुरूप है।
निष्कर्ष
दक्षिण चीन सागर में बढ़ते तनाव समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता को स्पष्ट करते हैं। भारत और चीन के द्विपक्षीय मुद्दों के बावजूद, सहयोग और संवाद इन विवादों को प्रबंधित करने और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण हैं।
See lessआतंकवादी गतिविधियों और परस्पर अविश्वास ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को धूमिल बना दिया है। खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदानों जैसी मृदु शक्ति किस सीमा तक दोनों देशों के बीच सद्भाव उत्पन्न करने में सहायक हो सकती है? उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
भारत-पाकिस्तान के बीच आतंकवादी गतिविधियाँ और परस्पर अविश्वास ने संबंधों को जटिल बना दिया है। हालांकि, खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसी मृदु शक्ति इस तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। खेलों के माध्यम से आपसी समझ और दोस्ती को बढ़ावा देने की कई उदाहरण हैं। 1986 के विश्व कप क्रिकेटRead more
भारत-पाकिस्तान के बीच आतंकवादी गतिविधियाँ और परस्पर अविश्वास ने संबंधों को जटिल बना दिया है। हालांकि, खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसी मृदु शक्ति इस तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
खेलों के माध्यम से आपसी समझ और दोस्ती को बढ़ावा देने की कई उदाहरण हैं। 1986 के विश्व कप क्रिकेट के दौरान, भारत और पाकिस्तान के बीच खेला गया मैच केवल खेल नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी माध्यम था। दोनों देशों के प्रशंसक मैच देखने के लिए उत्साहित थे, और यह घटना दो देशों के बीच सकारात्मक संवाद का एक संकेत बनी।
सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी महत्वपूर्ण है। 2006 में, भारत और पाकिस्तान के बीच लाहौर और दिल्ली में आयोजित कला और संगीत महोत्सवों ने दोनों देशों के कलाकारों को एक मंच पर लाकर सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत किया।
इन गतिविधियों से लोगों के बीच सामाजिक और भावनात्मक संबंधों को प्रोत्साहन मिलता है, जो कि सरकारी नीतियों से परे एक सामान्य जनसमर्थन उत्पन्न कर सकते हैं। इस प्रकार, मृदु शक्ति के माध्यम से दोनों देशों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देना संभव है।
See lessपरियोजना 'मौसम' को भारत सरकार की अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने की एक अद्वितीय विदेश नीति पहल माना जाता है। क्या इस परियोजना का एक रणनीतिक आयाम है? चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
परियोजना 'मौसम': एक रणनीतिक आयाम परिचय: परियोजना 'मौसम' 2014 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक पहल है, जिसका उद्देश्य समुद्री सहयोग को बढ़ाना और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करना है। यह परियोजना भारत की रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो ऐतिहासिक समुद्री संबंधों का लाभ उठाकर क्षेत्रीय कूRead more
परियोजना ‘मौसम’: एक रणनीतिक आयाम
परिचय: परियोजना ‘मौसम’ 2014 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक पहल है, जिसका उद्देश्य समुद्री सहयोग को बढ़ाना और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करना है। यह परियोजना भारत की रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो ऐतिहासिक समुद्री संबंधों का लाभ उठाकर क्षेत्रीय कूटनीति और सुरक्षा को मजबूत करना चाहती है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कूटनीति: परियोजना ‘मौसम’ का ध्यान प्राचीन समुद्री मार्गों को पुनर्जीवित करने और भारतीय महासागर क्षेत्र (IOR) के देशों के साथ सांस्कृतिक संबंधों को प्रोत्साहित करने पर है। उदाहरण के लिए, श्रीलंका और बांग्लादेश के साथ हालिया सांस्कृतिक आदान-प्रदान इस परियोजना की ऐतिहासिक बंधनों को मजबूत करने की भूमिका को दर्शाते हैं।
रणनीतिक और आर्थिक आयाम: रणनीतिक आयाम: इस परियोजना में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक आयाम है, क्योंकि इसका उद्देश्य भारत की समुद्री हितों को सुरक्षित करना और चीन की बढ़ती प्रभाव को संतुलित करना है। सेशेल्स और मॉरीशस के साथ भारत की भागीदारी इसका एक उदाहरण है, जो समुद्री सुरक्षा साझेदारी और महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों की पहुंच को मजबूत करने की दिशा में है।
आर्थिक सहयोग: परियोजना आर्थिक कनेक्टिविटी को बढ़ावा देती है, जैसे म्यांमार और थाईलैंड के साथ पोर्ट विकास और व्यापार को बढ़ावा देने के प्रयास। यह क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष: परियोजना ‘मौसम’ ऐतिहासिक और रणनीतिक आयामों को प्रभावी ढंग से जोड़ती है, जिससे भारत को क्षेत्रीय समुद्री मामलों में एक सक्रिय खिलाड़ी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह पहल न केवल कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करती है, बल्कि समकालीन रणनीतिक और आर्थिक चुनौतियों का समाधान भी प्रस्तुत करती है।
See lessसंयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सीट की खोज में भारत के समक्ष आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सीट की खोज में भारत के समक्ष आने वाली बाधाएँ भौगोलिक प्रतिरोध: भारत की स्थायी सीट की खोज में प्रमुख बाधाओं में से एक भौगोलिक प्रतिरोध है। चीन और पाकिस्तान जैसे देश भारत के स्थायी सदस्यता के प्रयासों का विरोध करते हैं। चीन, विशेष रूप से, भारत के UNSC में स्थाRead more
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सीट की खोज में भारत के समक्ष आने वाली बाधाएँ
भौगोलिक प्रतिरोध:
भारत की स्थायी सीट की खोज में प्रमुख बाधाओं में से एक भौगोलिक प्रतिरोध है। चीन और पाकिस्तान जैसे देश भारत के स्थायी सदस्यता के प्रयासों का विरोध करते हैं। चीन, विशेष रूप से, भारत के UNSC में स्थायी सदस्य बनने के खिलाफ है और यह तर्क करता है कि इससे UNSC की संरचना जटिल हो जाएगी और इसकी प्रभावशीलता प्रभावित हो सकती है।
क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व:
भारत की स्थायी सीट की खोज में क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। अफ्रीकी संघ और अन्य क्षेत्रीय संगठन मानते हैं कि UNSC में अफ्रीकी और अन्य क्षेत्रों की अधिक प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है। इसके चलते, अफ्रीका के लिए एक स्थायी सीट की मांग को लेकर दबाव बढ़ा है, जिससे भारत के प्रयासों को चुनौती मिलती है।
संस्थानिक प्रतिरोध:
संस्थानिक प्रतिरोध भी एक बड़ी बाधा है। UNSC की संरचना और इसके स्थायी सदस्यों की संख्या में परिवर्तन के लिए UN चार्टर में संशोधन की आवश्यकता होती है। यह संशोधन सभी स्थायी UNSC सदस्यों की स्वीकृति और जनरल असेंबली में दो-तिहाई बहुमत की मांग करता है, जो प्राप्त करना कठिन है।
सहमति की कमी:
अंततः, सहमति की कमी भी एक प्रमुख बाधा है। UNSC के विस्तार के लिए व्यापक समर्थन और स्पष्टता की कमी है, जिससे भारत की स्थायी सदस्यता की खोज में अड़चनें आती हैं।
निष्कर्ष:
भारत की UNSC में स्थायी सीट की खोज में भौगोलिक प्रतिरोध, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व, संस्थानिक प्रतिरोध और सहमति की कमी जैसी बाधाएँ शामिल हैं। इन चुनौतियों को पार करने के लिए भारत को व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समर्थन और कूटनीतिक प्रयासों की आवश्यकता है।
See lessअफ्रीका में भारत की बढ़ती हुई रुचि के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष है। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
अफ्रीका में भारत की बढ़ती हुई रुचि: सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष सकारात्मक पक्ष: आर्थिक अवसर: भारत की अफ्रीका में बढ़ती रुचि ने कई आर्थिक अवसर प्रदान किए हैं। उदाहरण के लिए, भारत ने 2023 में नाइजीरिया और केन्या के ऊर्जा क्षेत्र में बड़े निवेश किए हैं। भारत-अफ्रीका व्यापार मंच और द्विपक्षीय व्यापार मेRead more
अफ्रीका में भारत की बढ़ती हुई रुचि: सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष
सकारात्मक पक्ष:
नकारात्मक पक्ष:
निष्कर्ष: अफ्रीका में भारत की बढ़ती रुचि के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं। आर्थिक, रणनीतिक और शैक्षिक लाभ के साथ-साथ भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, संसाधन निर्भरता और स्थानीय विरोध के जोखिम भी जुड़े हैं। इन पहलुओं को संतुलित करना भारत की अफ्रीका के साथ बढ़ती हुई साझेदारी की सफलता के लिए आवश्यक है।
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