“बहुधार्मिक व बहुजातीय समाज के रूप में भारत की विविध प्रकृति, पड़ोस में दिख रहे अतिवाद के संधात के प्रति निरापद नहीं है।” ऐसे बातावरण के प्रतिकार के लिए अपनाए जाने वाली रणनीतियों के साथ विवेचना कीजिए। (200 words) [UPSC ...
संशोधन और मानवाधिकार संगठनों का विरोध: यूएपीए और एनआईए अधिनियम 1. यूएपीए और एनआईए अधिनियम में हालिया संशोधन: संशोधन: हाल ही में, भारत सरकार ने विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (यूएपीए), 1967 और राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी (एनआईए) अधिनियम में संशोधन किए हैं। ये संशोधन आतंकवाद-रोधी कानूनों को मजबूRead more
संशोधन और मानवाधिकार संगठनों का विरोध: यूएपीए और एनआईए अधिनियम
1. यूएपीए और एनआईए अधिनियम में हालिया संशोधन:
- संशोधन: हाल ही में, भारत सरकार ने विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (यूएपीए), 1967 और राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी (एनआईए) अधिनियम में संशोधन किए हैं। ये संशोधन आतंकवाद-रोधी कानूनों को मजबूत करने के उद्देश्य से किए गए हैं, जिनमें संबंधित अभियुक्तों को अधिक कठोर सजा और सुरक्षा एजेंसियों को विस्तृत जांच शक्तियां देने का प्रावधान है।
2. मानवाधिकार संगठनों का विरोध:
- मानवाधिकार चिंताएँ: मानवाधिकार संगठनों ने यूएपीए के तहत नागरिक स्वतंत्रताओं और मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि संशोधन अविचार में गिरफ्तारी और अन्यायपूर्ण दंड को बढ़ावा देते हैं। उदाहरण के लिए, भ्रष्टाचार के आरोप में विवेकानंद स्कूल के शिक्षकों को बिना न्यायिक प्रक्रिया के गिरफ्तार करने की घटनाएँ सामने आई हैं।
3. संशोधनों का विश्लेषण:
- सुरक्षा के दृष्टिकोण से: वर्तमान आतंकवाद के खतरों के संदर्भ में, जैसे जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हमले और नक्सली गतिविधियाँ, ये संशोधन सुरक्षा एजेंसियों को सभी प्रकार की आतंकवादी गतिविधियों पर कठोर निगरानी और त्वरित कार्रवाई की शक्ति प्रदान करते हैं। यह आतंकवाद से निपटने में सरकार की सख्त नीति को दर्शाता है।
4. आलोचनाओं और न्यायिक चुनौती:
- विवाद और कानूनी चुनौती: आलोचक दावा करते हैं कि ये संशोधन न्यायिक स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकते हैं, और जमानत की प्रक्रिया को जटिल बनाते हैं। इसके अतिरिक्त, आतंकवाद के आरोप में कई निर्दोष व्यक्तियों की गिरफ्तारी की घटनाएँ सामने आई हैं, जो कि मानवाधिकार उल्लंघन की ओर इशारा करती हैं।
5. संतुलन और सुधार की आवश्यकता:
- संतुलित दृष्टिकोण: जबकि आतंकवाद से निपटने के लिए कठोर कानून आवश्यक हैं, मानवाधिकार और न्यायिक प्रक्रियाओं के उल्लंघन से बचने के लिए संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सरकार को सुधारात्मक उपाय और निगरानी तंत्र सुनिश्चित करने चाहिए ताकि सुरक्षा और मानवाधिकार के बीच उचित संतुलन बना रहे।
इन संशोधनों के परिणामस्वरूप, सुरक्षा बलों को सशक्त किया गया है, लेकिन मानवाधिकार की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सावधानीपूर्वक नियम और निगरानी की आवश्यकता बनी रहती है।
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परिचय: भारत की बहुधार्मिक और बहुजातीय प्रकृति उसे पड़ोसी देशों में दिखाई दे रहे अतिवाद के प्रभावों से बचा नहीं सकती। अतिवाद की यह प्रवृत्ति भारत के सामाजिक ताने-बाने और आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है। इस वातावरण के प्रतिकार के लिए कुछ प्रभावी रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं। भारत पर अतिवाद का प्रRead more
परिचय: भारत की बहुधार्मिक और बहुजातीय प्रकृति उसे पड़ोसी देशों में दिखाई दे रहे अतिवाद के प्रभावों से बचा नहीं सकती। अतिवाद की यह प्रवृत्ति भारत के सामाजिक ताने-बाने और आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है। इस वातावरण के प्रतिकार के लिए कुछ प्रभावी रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं।
भारत पर अतिवाद का प्रभाव:
अतिवाद के प्रतिकार के लिए रणनीतियाँ:
हाल के उदाहरण:
निष्कर्ष: भारत की विविध प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, पड़ोसी देशों में अतिवाद के प्रभावों को कम करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। सुरक्षा उपाय, सामाजिक एकता, शिक्षा, कानूनी ढांचे, और सामुदायिक भागीदारी जैसे रणनीतियाँ भारत को इस चुनौती का सामना करने में सक्षम बना सकती हैं।
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