भारत में जनजातियों के सशक्तिकरण में मूल बाधाओं का परीक्षण कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
समावेशी विकास के लिए महिलाओं का सामाजिक सशक्तिकरण अत्यंत आवश्यक है, और इसके कई प्रमुख कारण हैं: आर्थिक वृद्धि: महिलाओं को शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण, और रोजगार के अवसर प्रदान करने से उनकी उत्पादकता में वृद्धि होती है। यह न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को सुधारता है, बल्कि देश की आर्थिक वृद्धि में भी योगदानRead more
समावेशी विकास के लिए महिलाओं का सामाजिक सशक्तिकरण अत्यंत आवश्यक है, और इसके कई प्रमुख कारण हैं:
- आर्थिक वृद्धि: महिलाओं को शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण, और रोजगार के अवसर प्रदान करने से उनकी उत्पादकता में वृद्धि होती है। यह न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को सुधारता है, बल्कि देश की आर्थिक वृद्धि में भी योगदान करता है। अध्ययन बताते हैं कि जब महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी बढ़ती है, तो आर्थिक विकास की गति तेज होती है।
- गरीबी में कमी: महिलाएं अक्सर परिवार की मुख्य देखभालकर्ता होती हैं। उनका सशक्तिकरण परिवार के संसाधनों के प्रबंधन और बेहतर निर्णय लेने में मदद करता है, जिससे गरीबी में कमी और जीवनस्तर में सुधार होता है।
- स्वास्थ्य और शिक्षा: सशक्त महिलाओं के पास स्वास्थ्य और शिक्षा पर अधिक नियंत्रण होता है। वे बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करती हैं और अपने बच्चों को शिक्षा की ओर प्रेरित करती हैं, जिससे समुदाय की समग्र भलाई में सुधार होता है।
- सामाजिक समानता: लिंग समानता एक न्यायपूर्ण समाज के निर्माण में सहायक होती है। यह भेदभावपूर्ण प्रथाओं को चुनौती देती है और महिलाओं को समान अधिकार और अवसर प्रदान करती है, जिससे सामाजिक असमानताओं में कमी आती है।
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व: महिलाओं का सशक्तिकरण राजनीतिक प्रतिनिधित्व और शासन में विविध दृष्टिकोणों को शामिल करने में मदद करता है। इससे अधिक समावेशी और प्रभावी नीतियों का निर्माण होता है।
इस प्रकार, महिलाओं का सामाजिक सशक्तिकरण समावेशी विकास को सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण आधार है, जो समाज के हर क्षेत्र में सुधार लाने में सहायक होता है।
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1. आर्थिक पिछड़ापन: जनजातियों का आर्थिक पिछड़ापन उनकी विकास में सबसे बड़ी बाधा है। परंपरागत जीवनशैली और अवसंरचना की कमी के कारण वे अक्सर निम्न आय और सीमित रोजगार अवसर का सामना करते हैं। उदाहरणस्वरूप, छत्तीसगढ़ की आदिवासी बस्तियाँ बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रही हैं। 2. शैक्षिक चुनौतियाँ: जनजातियRead more
1. आर्थिक पिछड़ापन: जनजातियों का आर्थिक पिछड़ापन उनकी विकास में सबसे बड़ी बाधा है। परंपरागत जीवनशैली और अवसंरचना की कमी के कारण वे अक्सर निम्न आय और सीमित रोजगार अवसर का सामना करते हैं। उदाहरणस्वरूप, छत्तीसगढ़ की आदिवासी बस्तियाँ बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रही हैं।
2. शैक्षिक चुनौतियाँ: जनजातियों में शिक्षा की पहुँच सीमित है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च शिक्षा और साक्षरता दर में कमी है। आंध्र प्रदेश के कोंडागांव जैसे क्षेत्रों में विद्यालयों की कमी और शिक्षण संसाधनों की कमी ने शिक्षा में बाधाएँ उत्पन्न की हैं।
3. स्वास्थ्य असमानता: स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य असमानता को बढ़ावा देती है। मध्य प्रदेश के बांसवाड़ा जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी एक प्रमुख समस्या है।
**4. सामाजिक बहिष्कार: जनजातियों का सामाजिक बहिष्कार और विभाजन भी उनके सशक्तिकरण में रुकावट डालता है। संस्कृतिक भिन्नताएँ और भेदभाव उनकी सामाजिक समावेशिता में बाधा उत्पन्न करते हैं।
निष्कर्ष: भारत में जनजातियों के सशक्तिकरण में आर्थिक पिछड़ापन, शैक्षिक चुनौतियाँ, स्वास्थ्य असमानता, और सामाजिक बहिष्कार जैसी मूल बाधाएँ हैं, जिनका समाधान समग्र विकास योजनाओं और संवेदनशील नीतियों के माध्यम से किया जा सकता है।
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