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क्या कारण है कि भारत में जनजातियों को 'अनुसूचित जनजातियाँ' कहा जाता है? भारत के संविधान में प्रतिष्ठापित उनके उत्थापन के लिए प्रमुख प्रावधानों को सूचित कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
भारत में जनजातियों को 'अनुसूचित जनजातियाँ' क्यों कहा जाता है? अनुसूचित जनजातियाँ की परिभाषा भारत में जनजातियों को 'अनुसूचित जनजातियाँ' कहा जाता है क्योंकि वे भारतीय संविधान की अनुसूचित जनजातियों की सूची में विशेष रूप से उल्लिखित हैं। इस सूची में शामिल करना यह दर्शाता है कि ये समुदाय सामाजिक और आर्थिRead more
भारत में जनजातियों को ‘अनुसूचित जनजातियाँ’ क्यों कहा जाता है?
अनुसूचित जनजातियाँ की परिभाषा
भारत में जनजातियों को ‘अनुसूचित जनजातियाँ’ कहा जाता है क्योंकि वे भारतीय संविधान की अनुसूचित जनजातियों की सूची में विशेष रूप से उल्लिखित हैं। इस सूची में शामिल करना यह दर्शाता है कि ये समुदाय सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं और इनकी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान है। ‘अनुसूचित’ शब्द यह संकेत करता है कि ये समुदाय संविधान द्वारा निर्धारित विशेष प्रावधानों के तहत आते हैं।
संविधान में प्रमुख प्रावधान
हालिया उदाहरण
वन अधिकार अधिनियम (2006) ने जनजातीय समुदायों को वन भूमि और संसाधनों पर अधिकार प्रदान किया है, जिससे उनके पारंपरिक अधिकारों को मान्यता मिली और ऐतिहासिक अन्याय को ठीक किया गया।
ये संवैधानिक प्रावधान और कानून सुनिश्चित करते हैं कि अनुसूचित जनजातियाँ उचित प्रतिनिधित्व, सुरक्षा और विकास के अवसर प्राप्त कर सकें, जिससे उनका समग्र उत्थान संभव हो सके।
See lessसमावेशी विकास के लिये महिलाओं का सामाजिक सशक्तिकरण क्यों आवश्यक है? विस्तारूपर्वक वणन कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
समावेशी विकास के लिए महिलाओं का सामाजिक सशक्तिकरण अत्यंत आवश्यक है, और इसके कई प्रमुख कारण हैं: आर्थिक वृद्धि: महिलाओं को शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण, और रोजगार के अवसर प्रदान करने से उनकी उत्पादकता में वृद्धि होती है। यह न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को सुधारता है, बल्कि देश की आर्थिक वृद्धि में भी योगदानRead more
समावेशी विकास के लिए महिलाओं का सामाजिक सशक्तिकरण अत्यंत आवश्यक है, और इसके कई प्रमुख कारण हैं:
इस प्रकार, महिलाओं का सामाजिक सशक्तिकरण समावेशी विकास को सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण आधार है, जो समाज के हर क्षेत्र में सुधार लाने में सहायक होता है।
See lessभारत में जनजातियों के सशक्तिकरण में मूल बाधाओं का परीक्षण कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
1. आर्थिक पिछड़ापन: जनजातियों का आर्थिक पिछड़ापन उनकी विकास में सबसे बड़ी बाधा है। परंपरागत जीवनशैली और अवसंरचना की कमी के कारण वे अक्सर निम्न आय और सीमित रोजगार अवसर का सामना करते हैं। उदाहरणस्वरूप, छत्तीसगढ़ की आदिवासी बस्तियाँ बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रही हैं। 2. शैक्षिक चुनौतियाँ: जनजातियRead more
1. आर्थिक पिछड़ापन: जनजातियों का आर्थिक पिछड़ापन उनकी विकास में सबसे बड़ी बाधा है। परंपरागत जीवनशैली और अवसंरचना की कमी के कारण वे अक्सर निम्न आय और सीमित रोजगार अवसर का सामना करते हैं। उदाहरणस्वरूप, छत्तीसगढ़ की आदिवासी बस्तियाँ बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रही हैं।
2. शैक्षिक चुनौतियाँ: जनजातियों में शिक्षा की पहुँच सीमित है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च शिक्षा और साक्षरता दर में कमी है। आंध्र प्रदेश के कोंडागांव जैसे क्षेत्रों में विद्यालयों की कमी और शिक्षण संसाधनों की कमी ने शिक्षा में बाधाएँ उत्पन्न की हैं।
3. स्वास्थ्य असमानता: स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य असमानता को बढ़ावा देती है। मध्य प्रदेश के बांसवाड़ा जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी एक प्रमुख समस्या है।
**4. सामाजिक बहिष्कार: जनजातियों का सामाजिक बहिष्कार और विभाजन भी उनके सशक्तिकरण में रुकावट डालता है। संस्कृतिक भिन्नताएँ और भेदभाव उनकी सामाजिक समावेशिता में बाधा उत्पन्न करते हैं।
निष्कर्ष: भारत में जनजातियों के सशक्तिकरण में आर्थिक पिछड़ापन, शैक्षिक चुनौतियाँ, स्वास्थ्य असमानता, और सामाजिक बहिष्कार जैसी मूल बाधाएँ हैं, जिनका समाधान समग्र विकास योजनाओं और संवेदनशील नीतियों के माध्यम से किया जा सकता है।
See lessऐसे विभिन्न आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक बलों पर चर्चा कीजिए, जो भारत में कृषि के बढ़ते हुए महिलाकरण को प्रेरित कर रहे हैं। (150 words) [UPSC 2014]
भारत में कृषि के बढ़ते हुए महिलाकरण को प्रेरित करने वाले प्रमुख आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक बल निम्नलिखित हैं: आर्थिक बल: परिवारिक श्रम में परिवर्तन: कृषि कार्यों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है क्योंकि परिवारों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए वे भी कृषि में शामिल हो रही हैं। कुपोषण और आर्थिRead more
भारत में कृषि के बढ़ते हुए महिलाकरण को प्रेरित करने वाले प्रमुख आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक बल निम्नलिखित हैं:
आर्थिक बल:
परिवारिक श्रम में परिवर्तन: कृषि कार्यों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है क्योंकि परिवारों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए वे भी कृषि में शामिल हो रही हैं। कुपोषण और आर्थिक दबाव के कारण महिलाओं की भूमिका बढ़ी है।
संरचनात्मक बदलाव: सरकारी योजनाओं और कृषि सब्सिडी ने छोटे और मध्यम किसानों को प्रोत्साहित किया है, जिनमें अक्सर महिलाएँ शामिल होती हैं।
सामाजिक-सांस्कृतिक बल:
शिक्षा और जागरूकता: महिलाओं की शिक्षा और जागरूकता में वृद्धि ने उन्हें कृषि में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया है। ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता दर में वृद्धि महिलाओं की भूमिका को बढ़ावा दे रही है।
सामाजिक मान्यता: बदलते सामाजिक दृष्टिकोण ने महिलाओं के कृषि कार्यों को मान्यता दी है और पारंपरिक धारणाओं को चुनौती दी है, जिससे महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है।
इन बलों ने मिलकर भारत में कृषि में महिलाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण और प्रभावी बना दिया है।
See lessसामाजिक सशक्तिकरण में सूचना प्रौद्योगिकी एवं अन्तरजाल (इंटरनेट) की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए। (125 Words) [UPPSC 2022]
सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट का सामाजिक सशक्तिकरण में मूल्यांकन 1. सूचना की उपलब्धता: ज्ञान की पहुँच: इंटरनेट ने ज्ञान और सूचना की उपलब्धता को आसान बनाया है। लोग अब विभिन्न विषयों पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, जिससे शिक्षा और जागरूकता में वृद्धि हुई है। 2. डिजिटल समावेशन: संघटन और संपर्क: सूचना पRead more
सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट का सामाजिक सशक्तिकरण में मूल्यांकन
1. सूचना की उपलब्धता:
2. डिजिटल समावेशन:
3. सामाजिक जागरूकता:
4. आर्थिक अवसर:
निष्कर्ष: सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट सामाजिक सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ज्ञान की पहुँच बढ़ाते हैं, डिजिटल समावेशन को बढ़ावा देते हैं, सामाजिक जागरूकता को प्रोत्साहित करते हैं, और आर्थिक अवसर प्रदान करते हैं।
See less. "जाति व्यवस्था नई-नई पहचानों और सहचारी रूपों को धारण कर रही है। अतः, भारत में जाति व्यवस्था का उन्मूलन नहीं किया जा सकता है।" टिप्पणी कीजिये। (150 words) [UPSC 2018]
जाति व्यवस्था और नई पहचानों का प्रभाव परिचय: जाति व्यवस्था भारत की सामाजिक संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो नई पहचानों और सहकारी रूपों के साथ विकसित हो रही है। यह व्यवस्था सामाजिक और सांस्कृतिक विविधताओं को दर्शाती है, लेकिन इसके उन्मूलन की संभावना पर विचार करते समय यह आवश्यक है कि इसे समग्र दृRead more
जाति व्यवस्था और नई पहचानों का प्रभाव
परिचय: जाति व्यवस्था भारत की सामाजिक संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो नई पहचानों और सहकारी रूपों के साथ विकसित हो रही है। यह व्यवस्था सामाजिक और सांस्कृतिक विविधताओं को दर्शाती है, लेकिन इसके उन्मूलन की संभावना पर विचार करते समय यह आवश्यक है कि इसे समग्र दृष्टिकोण से समझा जाए।
जाति व्यवस्था में नई पहचानों का समावेश:
जाति व्यवस्था का उन्मूलन:
निष्कर्ष: जाति व्यवस्था नई पहचानों और सहकारी रूपों के साथ बदल रही है, लेकिन इसका पूर्ण उन्मूलन एक जटिल प्रक्रिया है। जाति व्यवस्था को समझने और प्रासंगिक सुधार लागू करने की दिशा में सतत प्रयास महत्वपूर्ण हैं। सामाजिक समरसता और समानता को बढ़ावा देने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।
See lessभारत में महिलाओं के सशक्तिकरण की प्रक्रिया में 'गिग इकोनॉमी' की भूमिका का परीक्षण कीजिए । (150 words)[UPSC 2021]
भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण में 'गिग इकोनॉमी' की भूमिका आर्थिक स्वतंत्रता और रोजगार के अवसर: स्वतंत्र रोजगार: गिग इकोनॉमी ने महिलाओं को पारंपरिक नौकरियों से अलग होकर स्वतंत्र रूप से काम करने का अवसर प्रदान किया है। उदाहरण के लिए, फ्रीलांसिंग, वेब डेवलपमेंट, और ग्राफिक डिजाइनिंग जैसी सेवाओं में महिRead more
भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण में ‘गिग इकोनॉमी’ की भूमिका
आर्थिक स्वतंत्रता और रोजगार के अवसर:
सामाजिक और वित्तीय सशक्तिकरण:
सुरक्षा और कानूनी मुद्दे:
इस प्रकार, गिग इकोनॉमी ने भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इसके साथ-साथ कई चुनौतियाँ भी हैं, जिन्हें समर्पित नीतियों और समर्थन से संबोधित करने की आवश्यकता है।
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