‘सांप्रदायिकता या तो शक्ति संघर्ष के कारण उभर कर आती है या आपेक्षिक बंचन के कारण उभरती है।’ उपयुक्त उदाहरणों को प्रस्तुत करते हुए तर्क दीजिए । (250 words) [UPSC 2018]
भारत में जातीय अस्मिता (ethnic identity) गतिशील (dynamic) और स्थिर (static) दोनों रूपों में प्रकट होती है, और इसके पीछे कई कारण हैं: गतिशीलता के कारण: आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन: वैश्वीकरण, औद्योगिकीकरण, और शहरीकरण के साथ, जातीय अस्मिता की पहचान और अनुभव में परिवर्तन आया है। आर्थिक अवसरों और सामाजिकRead more
भारत में जातीय अस्मिता (ethnic identity) गतिशील (dynamic) और स्थिर (static) दोनों रूपों में प्रकट होती है, और इसके पीछे कई कारण हैं:
गतिशीलता के कारण:
- आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन: वैश्वीकरण, औद्योगिकीकरण, और शहरीकरण के साथ, जातीय अस्मिता की पहचान और अनुभव में परिवर्तन आया है। आर्थिक अवसरों और सामाजिक गतिशीलता के कारण जातियों के पारंपरिक कागजात और स्थिति में बदलाव देखा गया है।
- शैक्षिक और रोजगार के अवसर: शिक्षा और रोजगार के क्षेत्रों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और अवसर जातीय पहचान को पुनर्परिभाषित करते हैं। नए सामाजिक और पेशेवर मानक जातीय अस्मिता को प्रभावित कर सकते हैं।
- राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन: जातीय अस्मिता को लेकर विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन, जैसे कि आरक्षण और समान अधिकारों के लिए संघर्ष, जातीय पहचान को सक्रिय रूप से बदलने का प्रयास करते हैं।
- मीडिया और सांस्कृतिक प्रभाव: मीडिया, फिल्में और सांस्कृतिक प्रदर्शनों के माध्यम से जातीय अस्मिता की पहचान और अनुभव में बदलाव आ रहा है। यह गतिशीलता को बढ़ावा देता है और नई पहचान और मान्यताओं को जन्म देता है।
स्थिरता के कारण:
- पारंपरिक मान्यताएँ और प्रथाएँ: भारत में जातीय पहचान परंपराओं और सामाजिक मान्यताओं से गहराई से जुड़ी हुई है। जाति आधारित सामाजिक संरचनाएँ और रिवाज अक्सर स्थिर रहती हैं और समय के साथ कम ही बदलती हैं।
- सामाजिक व्यवस्था: जातीय पहचान भारतीय समाज की संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जाति व्यवस्था, जो प्राचीन समय से चली आ रही है, समाज की स्थिरता को बनाए रखने में योगदान करती है और जातीय अस्मिता को स्थिर बनाए रखती है।
- सांस्कृतिक विरासत: जातीय पहचान सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत से भी जुड़ी हुई है। पारंपरिक धार्मिक अनुष्ठान, त्यौहार और रीति-रिवाज जातीय पहचान को स्थिर बनाए रखते हैं।
- संवैधानिक और कानूनी संरचनाएँ: जातीय अस्मिता को संरक्षित करने के लिए संवैधानिक और कानूनी प्रावधान भी होते हैं, जो कुछ हद तक जातीय पहचान को स्थिर बनाए रखते हैं और इससे जुड़े सामाजिक अधिकारों की रक्षा करते हैं।
इस प्रकार, जातीय अस्मिता भारत में गतिशीलता और स्थिरता दोनों को दर्शाती है। यह सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के साथ बदलती है, जबकि पारंपरिक मान्यताएँ और सामाजिक संरचनाएँ इसे स्थिर बनाए रखने में योगदान करती हैं।
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सांप्रदायिकता और उसके उद्भव के कारण परिचय: सांप्रदायिकता समाज में धार्मिक, जातीय, या सांस्कृतिक समूहों के बीच संघर्ष और विभाजन को दर्शाती है। यह अक्सर शक्ति संघर्ष या आपेक्षिक बंचन (relative deprivation) के कारण उभरती है। ये दो कारण सांप्रदायिकता के उभार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शक्ति संघर्Read more
सांप्रदायिकता और उसके उद्भव के कारण
परिचय: सांप्रदायिकता समाज में धार्मिक, जातीय, या सांस्कृतिक समूहों के बीच संघर्ष और विभाजन को दर्शाती है। यह अक्सर शक्ति संघर्ष या आपेक्षिक बंचन (relative deprivation) के कारण उभरती है। ये दो कारण सांप्रदायिकता के उभार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
शक्ति संघर्ष:
आपेक्षिक बंचन (Relative Deprivation):
निष्कर्ष: सांप्रदायिकता का उभार अक्सर शक्ति संघर्ष और आपेक्षिक बंचन के कारण होता है। राजनीतिक और सामाजिक असमानताएँ, आर्थिक असमानताएँ, और धार्मिक पहचान के लिए संघर्ष सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देते हैं। इन तत्वों को समझने से सांप्रदायिकता के उभार के कारणों को स्पष्ट किया जा सकता है और समाज में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के उपाय किए जा सकते हैं।
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