संजातीय पहचान एवं सांप्रदायिकता पर उत्तर-उदारवादी अर्थव्यवस्था के प्रभाव की विवेचना कीजिए। (250 words) [UPSC 2023]
सांप्रदायिकता और उसके उद्भव के कारण परिचय: सांप्रदायिकता समाज में धार्मिक, जातीय, या सांस्कृतिक समूहों के बीच संघर्ष और विभाजन को दर्शाती है। यह अक्सर शक्ति संघर्ष या आपेक्षिक बंचन (relative deprivation) के कारण उभरती है। ये दो कारण सांप्रदायिकता के उभार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शक्ति संघर्Read more
सांप्रदायिकता और उसके उद्भव के कारण
परिचय: सांप्रदायिकता समाज में धार्मिक, जातीय, या सांस्कृतिक समूहों के बीच संघर्ष और विभाजन को दर्शाती है। यह अक्सर शक्ति संघर्ष या आपेक्षिक बंचन (relative deprivation) के कारण उभरती है। ये दो कारण सांप्रदायिकता के उभार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
शक्ति संघर्ष:
- राजनीतिक और सामाजिक असमानता:
- “पाकिस्तान विभाजन” (1947) एक स्पष्ट उदाहरण है जहाँ सांप्रदायिकता ने राजनीतिक और सामाजिक असमानताओं के कारण बलवती हुई। धार्मिक पहचान के आधार पर समाज में शक्ति संघर्ष ने हिंदू-मुस्लिम विभाजन को जन्म दिया, जिससे बड़े पैमाने पर हिंसा और पलायन हुआ।
- रथ यात्रा विवाद:
- “1992 का बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद” में भी शक्ति संघर्ष का तत्व प्रमुख था। यह संघर्ष एक धार्मिक स्थल के नियंत्रण के लिए सत्ता और प्रभाव की लड़ाई का परिणाम था, जिसने सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया और “अयोध्या में सांप्रदायिक हिंसा” को जन्म दिया।
आपेक्षिक बंचन (Relative Deprivation):
- सामाजिक और आर्थिक असमानता:
- “दादरी लिंचिंग” (2015) एक उदाहरण है जहाँ आर्थिक और सामाजिक असमानता के कारण सांप्रदायिक हिंसा उभरी। मुस्लिम समुदाय के कुछ हिस्से आर्थिक और सामाजिक रूप से उपेक्षित महसूस कर रहे थे, जिससे उनके खिलाफ हिंसा और विरोध प्रदर्शन हुआ।
- आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान:
- “गोधरा दंगों” (2002) में भी आपेक्षिक बंचन का प्रभाव देखा गया। मुस्लिम समुदाय ने सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान की रक्षा के लिए संघर्ष किया, जिसके परिणामस्वरूप सांप्रदायिक हिंसा और विरोध की स्थिति उत्पन्न हुई।
निष्कर्ष: सांप्रदायिकता का उभार अक्सर शक्ति संघर्ष और आपेक्षिक बंचन के कारण होता है। राजनीतिक और सामाजिक असमानताएँ, आर्थिक असमानताएँ, और धार्मिक पहचान के लिए संघर्ष सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देते हैं। इन तत्वों को समझने से सांप्रदायिकता के उभार के कारणों को स्पष्ट किया जा सकता है और समाज में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के उपाय किए जा सकते हैं।
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भारत में जातीय अस्मिता (ethnic identity) गतिशील (dynamic) और स्थिर (static) दोनों रूपों में प्रकट होती है, और इसके पीछे कई कारण हैं: गतिशीलता के कारण: आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन: वैश्वीकरण, औद्योगिकीकरण, और शहरीकरण के साथ, जातीय अस्मिता की पहचान और अनुभव में परिवर्तन आया है। आर्थिक अवसरों और सामाजिकRead more
भारत में जातीय अस्मिता (ethnic identity) गतिशील (dynamic) और स्थिर (static) दोनों रूपों में प्रकट होती है, और इसके पीछे कई कारण हैं:
गतिशीलता के कारण:
स्थिरता के कारण:
इस प्रकार, जातीय अस्मिता भारत में गतिशीलता और स्थिरता दोनों को दर्शाती है। यह सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के साथ बदलती है, जबकि पारंपरिक मान्यताएँ और सामाजिक संरचनाएँ इसे स्थिर बनाए रखने में योगदान करती हैं।
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