एक आयोग के सांविधानिकीकरण के लिए कौन-कौन से चरण आवश्यक हैं ? क्या आपके विचार में राष्ट्रीय महिला आयोग को सांविधानिकता प्रदान करना भारत में लैंगिक न्याय एवं सशक्तिकरण और अधिक सुनिश्चित करेगा ? कारण बताइए। (250 words) [UPSC 2020]
केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और समिति की अनुशंसा केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन केन्द्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission - CVC) भारत सरकार का एक प्रमुख संस्थान है, जिसका उद्देश्य सरकारी सेवाओं में भ्रष्टाचार की निगरानी और रोकथाम करना है। यह आयोग सरकारी कर्मचारियों औरRead more
केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और समिति की अनुशंसा
केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन
केन्द्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission – CVC) भारत सरकार का एक प्रमुख संस्थान है, जिसका उद्देश्य सरकारी सेवाओं में भ्रष्टाचार की निगरानी और रोकथाम करना है। यह आयोग सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के कार्यों की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
गठन की अनुशंसा
केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन सत्य नारायण समिति की अनुशंसा पर किया गया था। सत्य नारायण समिति, जिसे 1963 में सत्य नारायण रेddy द्वारा अध्यक्षता में गठित किया गया था, ने भारत में भ्रष्टाचार की समस्या को गंभीरता से लिया और इसके समाधान के लिए ठोस उपाय सुझाए। समिति ने एक स्वतंत्र संस्था की आवश्यकता की बात की जो सरकारी क्षेत्र में भ्रष्टाचार पर निगरानी रख सके और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए प्रभावी उपाय कर सके।
सत्य नारायण समिति की अनुशंसाएँ
- स्वतंत्र संस्था का गठन:
- सत्य नारायण समिति ने एक स्वतंत्र और शक्तिशाली संस्था के गठन की सिफारिश की, जो सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के भ्रष्टाचार पर नजर रख सके। इसका उद्देश्य भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए एक प्रभावी प्रणाली स्थापित करना था।
- आयोग की संरचना और कार्यक्षेत्र:
- समिति ने सुझाव दिया कि इस संस्था को स्वतंत्रता और अधिकार प्राप्त होना चाहिए ताकि यह बिना किसी बाहरी दबाव के अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सके।
वर्तमान स्थिति और उदाहरण
- संविधानिक दर्जा:
- 1999 में, भारत सरकार ने एक विधेयक पारित किया, जिससे केन्द्रीय सतर्कता आयोग को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ। इस संशोधन से आयोग की स्वतंत्रता और प्रभावशीलता को सुनिश्चित किया गया।
- हाल के उदाहरण:
- रेपिड एक्शन फोर्स (RAF) और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के मामलों में केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने भ्रष्टाचार की जांच की और सुधारात्मक उपाय सुझाए। उदाहरण के लिए, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के भ्रष्टाचार के मामलों में CVC ने जाँच की और कई सुधारात्मक कार्रवाइयाँ कीं।
- संविधानिक और विधायी सुधार:
- आय और संपत्ति का खुलासा और स्वतंत्र जांच जैसी व्यवस्थाएँ आयोग द्वारा लागू की गई हैं, जो सरकारी पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देती हैं।
निष्कर्ष
केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन सत्य नारायण समिति की अनुशंसा पर किया गया था, जिसने सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ एक प्रभावी निगरानी तंत्र स्थापित करने की सिफारिश की थी। आयोग की स्थापना के बाद से, यह भ्रष्टाचार की रोकथाम और सरकारी सेवाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सत्य नारायण समिति की अनुशंसाएँ आज भी भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों में महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्ध होती हैं।
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एक आयोग के सांविधानिकीकरण के लिए निम्नलिखित चरण आवश्यक हैं: 1. प्रस्ताव और विधेयक: सर्वप्रथम, एक आयोग के सांविधानिकीकरण के लिए एक विधेयक तैयार किया जाता है, जिसमें आयोग की संरचना, कार्यक्षेत्र और अधिकारों की विस्तृत जानकारी होती है। यह विधेयक संसद में प्रस्तुत किया जाता है। 2. विधेयक का पारित होना:Read more
एक आयोग के सांविधानिकीकरण के लिए निम्नलिखित चरण आवश्यक हैं:
1. प्रस्ताव और विधेयक:
सर्वप्रथम, एक आयोग के सांविधानिकीकरण के लिए एक विधेयक तैयार किया जाता है, जिसमें आयोग की संरचना, कार्यक्षेत्र और अधिकारों की विस्तृत जानकारी होती है। यह विधेयक संसद में प्रस्तुत किया जाता है।
2. विधेयक का पारित होना:
विधेयक को संसद के दोनों सदनों—लोकसभा और राज्यसभा—से पारित होना आवश्यक है। यह प्रक्रिया विधायिका की समीक्षा और संशोधन के बाद पूरी होती है।
3. राष्ट्रपति की स्वीकृति:
विधेयक के संसद से पारित होने के बाद, इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किया जाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद, विधेयक कानून बन जाता है और आयोग को सांविधानिक मान्यता मिलती है।
4. संविधान में संशोधन:
यदि आवश्यक हो, तो संविधान में उपयुक्त संशोधन किए जाते हैं ताकि आयोग को सांविधानिक दर्जा प्रदान किया जा सके। यह संशोधन संविधान की पहली अनुसूची या अनुच्छेद में शामिल किया जाता है।
राष्ट्रीय महिला आयोग को सांविधानिकता प्रदान करने के लाभ:
संवैधानिक दर्जा: राष्ट्रीय महिला आयोग को सांविधानिक दर्जा मिलने से आयोग की स्वायत्तता और अधिकारों की पुष्टि होगी, जो उसकी कार्यप्रणाली और प्रभावशीलता को बढ़ाएगा।
लैंगिक न्याय सुनिश्चित करना: सांविधानिक दर्जा आयोग को अधिक अधिकार और संसाधन प्रदान करेगा, जिससे वह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और लैंगिक न्याय को अधिक प्रभावी ढंग से लागू कर सकेगा।
सशक्तिकरण: आयोग के लिए स्पष्ट कानूनी आधार और शक्ति होने से महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में स्थायी और प्रभावी नीतियाँ और कार्यक्रम विकसित किए जा सकेंगे।
प्रशासनिक प्रभाव: सांविधानिक दर्जा प्राप्त करने के बाद, आयोग को बेहतर संसाधन और समर्थन मिलेगा, जिससे उसकी प्रशासनिक कार्यप्रणाली और सामाजिक प्रभावशीलता में सुधार होगा।
इस प्रकार, राष्ट्रीय महिला आयोग को सांविधानिकता प्रदान करने से भारत में लैंगिक न्याय और सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हो सकती है। यह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा को सुनिश्चित करेगा और समाज में समानता को बढ़ावा देगा।
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