प्रश्न का उत्तर अधिकतम 200 शब्दों में दीजिए। यह प्रश्न 11 अंक का है। [MPPSC 2023] कौटिल्य की विदेश नीति की समकालीन प्रासंगिकता की व्याख्या कीजिए।
बाबा साहेब अम्बेडकर ने लोकतन्त्र को कैसे परिभाषित किया है डॉ. भीमराव अम्बेडकर, भारतीय संविधान के निर्माता और सामाजिक न्याय के प्रबल समर्थक, ने लोकतन्त्र को एक व्यापक दृष्टिकोण से परिभाषित किया। उनकी परिभाषा केवल चुनावी प्रक्रिया तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक और आर्थिक समानता की महत्वपूर्ण बाRead more
बाबा साहेब अम्बेडकर ने लोकतन्त्र को कैसे परिभाषित किया है
डॉ. भीमराव अम्बेडकर, भारतीय संविधान के निर्माता और सामाजिक न्याय के प्रबल समर्थक, ने लोकतन्त्र को एक व्यापक दृष्टिकोण से परिभाषित किया। उनकी परिभाषा केवल चुनावी प्रक्रिया तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक और आर्थिक समानता की महत्वपूर्ण बातें भी शामिल हैं।
अम्बेडकर का लोकतन्त्र का दृष्टिकोण:
- राजनीतिक लोकतन्त्र:
- सार्वभौम वयस्क मताधिकार: अम्बेडकर के अनुसार, लोकतन्त्र की बुनियाद सार्वभौम वयस्क मताधिकार (universal adult franchise) पर आधारित है। उनका मानना था कि हर नागरिक को वोट देने का अधिकार होना चाहिए, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, या आर्थिक स्थिति से संबंधित हो।
- बहुमत का शासन और सुरक्षा उपाय: अम्बेडकर ने बहुमत के शासन की भूमिका को मान्यता दी, लेकिन साथ ही अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा के लिए सुरक्षा उपायों की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने बहुमत के तानाशाही के संभावित खतरों से सतर्क रहने की सलाह दी।
- सामाजिक लोकतन्त्र:
- समानता और सामाजिक न्याय: अम्बेडकर का लोकतन्त्र का दृष्टिकोण सामाजिक न्याय और समानता को अत्यंत महत्वपूर्ण मानता है। उनके अनुसार, लोकतन्त्र केवल राजनीतिक अधिकारों तक सीमित नहीं रह सकता, बल्कि जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करना और समानता सुनिश्चित करना भी आवश्यक है।
- आर्थिक न्याय: अम्बेडकर ने आर्थिक असमानताओं को लोकतन्त्र के लिए खतरा मानते हुए आर्थिक न्याय की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने कहा कि आर्थिक असमानताएँ लोकतन्त्र की मूल भावना को कमजोर करती हैं, और इसलिए आर्थिक समानता के उपाय जरूरी हैं।
हाल के उदाहरण और प्रासंगिकता:
- आरक्षण नीति:
- आज के भारत में अनुसूचित जातियों (SCs), अनुसूचित जनजातियों (STs), और अन्य पिछड़ी जातियों (OBCs) के लिए आरक्षण जैसी नीतियाँ अम्बेडकर की सामाजिक लोकतन्त्र की अवधारणा की पुष्टि करती हैं। ये नीतियाँ सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को अवसर प्रदान करने के लिए बनाई गई हैं।
- अल्पसंख्यक अधिकारों की न्यायिक सुरक्षा:
- भारत की न्यायपालिका ने अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा के महत्व को समझते हुए कई फैसले दिए हैं, जो अम्बेडकर की लोकतन्त्र के प्रति दृष्टिकोण के अनुरूप हैं। जैसे कि LGBTQ+ अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर निर्णय।
- आर्थिक सुधार और सामाजिक कल्याण योजनाएँ:
- जैसे कि प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) जैसी योजनाएँ आर्थिक असमानताओं को दूर करने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई हैं। ये योजनाएँ अम्बेडकर के आर्थिक न्याय के सिद्धांत को दर्शाती हैं।
निष्कर्ष:
बाबा साहेब अम्बेडकर ने लोकतन्त्र को एक समग्र दृष्टिकोण से परिभाषित किया, जिसमें राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक आयाम शामिल हैं। उनके दृष्टिकोण ने यह सुनिश्चित किया कि लोकतन्त्र केवल वोट देने का अधिकार नहीं है, बल्कि समानता, सामाजिक न्याय, और आर्थिक समानता की गारंटी भी है। उनकी परिभाषा लोकतन्त्र के एक व्यापक और समावेशी दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती है, जो आज भी समाज की समानता और न्याय की दिशा में मार्गदर्शक सिद्ध होती है।
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कौटिल्य की विदेश नीति की समकालीन प्रासंगिकता परिचय कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने ग्रंथ "अर्थशास्त्र" में विदेश नीति पर महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए हैं। उनकी नीतियों का मुख्य उद्देश्य राज्य की सुरक्षा, शक्ति, और समृद्धि को सुनिश्चित करना था। आधुनिक समय में, कौटिल्य की वRead more
कौटिल्य की विदेश नीति की समकालीन प्रासंगिकता
परिचय
कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने ग्रंथ “अर्थशास्त्र” में विदेश नीति पर महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए हैं। उनकी नीतियों का मुख्य उद्देश्य राज्य की सुरक्षा, शक्ति, और समृद्धि को सुनिश्चित करना था। आधुनिक समय में, कौटिल्य की विदेश नीति के सिद्धांत कई वैश्विक परिदृश्यों में प्रासंगिक साबित हो रहे हैं। इस उत्तर में, हम देखेंगे कि कौटिल्य की विदेश नीति की समकालीन प्रासंगिकता क्या है और हाल की घटनाओं के उदाहरणों के माध्यम से इसे समझेंगे।
1. शक्ति संतुलन और नीति
2. सहयोग और विरोध की रणनीति
3. आंतरिक और बाहरी सुरक्षा
4. कूटनीति और राजनयिकता
5. अनुकूलन और लचीलापन
6. आर्थिक और व्यापारिक हित
निष्कर्ष
कौटिल्य की विदेश नीति के सिद्धांत आज भी वैश्विक राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में प्रासंगिक हैं। शक्ति संतुलन, कूटनीति, आंतरिक सुरक्षा, और आर्थिक हितों पर ध्यान देने वाले उनके विचार आधुनिक परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण हैं। UPSC Mains aspirants के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि ऐतिहासिक सिद्धांतों का आधुनिक संदर्भ में कैसे उपयोग किया जा सकता है और उनके अनुसार नीतियाँ कैसे विकसित की जा सकती हैं।
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