राष्ट्र की एकता और अखण्डता बनाये रखने के लिये भारतीय संविधान केन्द्रीयकरण करने की प्रवृत्ति प्रदर्शित करता है। महामारी अधिनियम, 1897; आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 तथा हाल में पारित किये गये कृषि क्षेत्र के अधिनियमों के परिप्रेक्ष्य में सुस्पष्ट कीजिये ...
संवैधानिक नैतिकता का सिद्धांत 1. संवैधानिक नैतिकता का अर्थ: 'संवैधानिक नैतिकता' संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों की ओर अनुग्रहित दृष्टिकोण को व्यक्त करती है। यह सुनिश्चित करती है कि संविधान के मूलभूत अधिकार और स्वतंत्रताओं का सम्मान किया जाए और संविधान के तात्त्विक मूल्यों को बनाए रखा जाए। 2. न्यायिRead more
संवैधानिक नैतिकता का सिद्धांत
1. संवैधानिक नैतिकता का अर्थ: ‘संवैधानिक नैतिकता’ संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों की ओर अनुग्रहित दृष्टिकोण को व्यक्त करती है। यह सुनिश्चित करती है कि संविधान के मूलभूत अधिकार और स्वतंत्रताओं का सम्मान किया जाए और संविधान के तात्त्विक मूल्यों को बनाए रखा जाए।
2. न्यायिक निर्णयों की प्रासंगिकता
के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017): इस निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने गोपनीयता को मूलभूत अधिकार मानते हुए कहा कि संवैधानिक नैतिकता संविधान के मूल सिद्धांतों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018): कोर्ट ने सहमति से यौन संबंधों को अपराधमुक्त किया, यह बताते हुए कि संवैधानिक नैतिकता समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करती है।
3. निष्कर्ष: संवैधानिक नैतिकता संविधान के मूल सिद्धांतों की सुरक्षा और न्यायिक फैसलों में उनके प्रभाव को सुनिश्चित करती है, जो न्याय और समानता को बढ़ावा देती है।
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भारतीय संविधान की केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। यह प्रवृत्ति विशेष रूप से महामारी अधिनियम, 1897; आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005; और हाल के कृषि क्षेत्र के अधिनियमों के संदर्भ में स्पष्ट होती है। 1. महामारी अधिनियम, 1897: यह अधिनियम महामारी की स्थितRead more
भारतीय संविधान की केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। यह प्रवृत्ति विशेष रूप से महामारी अधिनियम, 1897; आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005; और हाल के कृषि क्षेत्र के अधिनियमों के संदर्भ में स्पष्ट होती है।
1. महामारी अधिनियम, 1897:
यह अधिनियम महामारी की स्थिति में तात्कालिक और प्रभावी उपायों की सुविधा प्रदान करता है। इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार को व्यापक शक्तियाँ मिलती हैं, जिससे वह महामारी की रोकथाम के लिए राज्यों के साथ समन्वय कर सके। इसमें केंद्र की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, जो एकता बनाए रखने के लिए राज्यों को निर्देशित और नियंत्रित कर सकती है।
2. आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005:
इस अधिनियम के तहत, आपदाओं के प्रबंधन के लिए केंद्र और राज्य दोनों की जिम्मेदारियाँ निर्धारित की गई हैं। हालांकि, केंद्र सरकार को आपदा प्रबंधन के लिए व्यापक नीति निर्माण और समन्वय की शक्तियाँ दी गई हैं। इस अधिनियम के माध्यम से केंद्र ने आपदा प्रबंधन के मामले में राज्यों के साथ मिलकर एक एकीकृत और समन्वित दृष्टिकोण अपनाया है, जो राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहित करता है।
3. कृषि क्षेत्र के अधिनियम:
हाल के कृषि अधिनियमों ने केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति को और स्पष्ट किया। इन अधिनियमों के अंतर्गत, केंद्र ने कृषि विपणन और अनुबंध खेती में सुधार के लिए कानूनी ढांचा तैयार किया है। हालांकि, इन कानूनों पर विवाद भी हुआ है, लेकिन इनका उद्देश्य राष्ट्रीय कृषि बाजार को एकीकृत करना और एकत्रित नीतियों के माध्यम से एकता और समानता को बढ़ावा देना है।
इन अधिनियमों के संदर्भ में, केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति स्पष्ट है, क्योंकि ये राष्ट्रीय समस्याओं को संबोधित करने और एकीकृत दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार को व्यापक शक्तियाँ प्रदान करते हैं। यह प्रवृत्ति संविधान की केंद्रीयता को बनाए रखने में सहायक होती है और राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुदृढ़ करती है।
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