आप ‘वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य’ संकल्पना से क्या समझते हैं? क्या इसकी परिधि में घृणा वाक् भी आता है ? भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से तनिक भिन्न स्तर पर क्यों हैं ? चर्चा कीजिये। (200 words) [UPSC ...
भारत के संविधान में समानता के मूलाधिकार भारत के संविधान में समानता के मूलाधिकार अनुभाग 14 से 18 के अंतर्गत आते हैं और ये नागरिकों को समानता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान करते हैं: अनुभाग 14: समानता का अधिकार - यह संविधान का एक मूल अधिकार है जो हर व्यक्ति को कानूनी समानता और समान सुरकRead more
भारत के संविधान में समानता के मूलाधिकार
भारत के संविधान में समानता के मूलाधिकार अनुभाग 14 से 18 के अंतर्गत आते हैं और ये नागरिकों को समानता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान करते हैं:
- अनुभाग 14: समानता का अधिकार – यह संविधान का एक मूल अधिकार है जो हर व्यक्ति को कानूनी समानता और समान सुरक्षा की गारंटी देता है। इसका अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति कानून के समक्ष समान है और किसी भी प्रकार के भेदभाव से मुक्त है।
- अनुभाग 15: भेदभाव निषेध – इस अनुच्छेद के तहत, राज्य किसी भी व्यक्ति को धर्म, जाति, लिंग, या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता। यह विशेषकर सार्वजनिक स्थानों और शिक्षा संस्थानों में लागू होता है।
- अनुभाग 16: सार्वजनिक नौकरियों में समान अवसर – यह प्रावधान सरकारी नौकरियों में भेदभाव के खिलाफ है और सभी को समान अवसर की गारंटी देता है, साथ ही आरक्षण की भी व्यवस्था करता है।
- अनुभाग 17: अछूत प्रथा का उन्मूलन – यह अनुच्छेद अछूत प्रथा और सामाजिक असमानता को समाप्त करने के लिए है। यह किसी भी प्रकार की अछूत प्रथा को निषिद्ध करता है।
- अनुभाग 18: अशासकीय सम्मान – यह अनुच्छेद पुरस्कार और मान्यताएँ प्राप्त करने में समानता को सुनिश्चित करता है और किसी भी रियायत या पद को लेकर भेदभाव को समाप्त करता है।
निष्कर्ष: भारतीय संविधान के समानता के मूलाधिकार सभी नागरिकों को कानूनी सुरक्षा और समान अवसर की गारंटी प्रदान करते हैं। ये अधिकार भेदभाव, सामाजिक असमानता, और अभाव को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं, जो सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देते हैं।
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वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य एक मौलिक अधिकार है, जो व्यक्ति को अपने विचारों को स्वतंत्रता से व्यक्त करने की अनुमति देता है। यह लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास में योगदान करता है। हालांकि, इस स्वतंत्रता की सीमाएँ भी होती हैं। घृणा वाक् इस परिधि में आताRead more
वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य
एक मौलिक अधिकार है, जो व्यक्ति को अपने विचारों को स्वतंत्रता से व्यक्त करने की अनुमति देता है। यह लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास में योगदान करता है। हालांकि, इस स्वतंत्रता की सीमाएँ भी होती हैं।
घृणा वाक्
इस परिधि में आता है, क्योंकि यह न केवल अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि समाज में हिंसा और असहमति को भी बढ़ावा देता है। भारत में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात को स्पष्ट किया है कि घृणा वाक् को अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का हिस्सा नहीं माना जा सकता।
भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से भिन्न स्तर पर हैं क्योंकि फिल्में सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक संवेदनाओं को दर्शाती हैं। भारतीय सिनेमा में सेंसरशिप और सामाजिक मानदंडों का प्रभाव अधिक होता है, जो कलाकारों को अपनी अभिव्यक्ति में सीमित करता है। इसके अलावा, व्यावसायिक लाभ और दर्शकों की संवेदनाएँ भी फिल्म निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जिससे कुछ विषयों पर प्रतिबंध या आत्म-नियमन हो सकता है।
इसलिए, वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का सही उपयोग समाज में सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जबकि घृणा वाक् का त्याग आवश्यक है।
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