हाल के वर्षों में सहकारी परिसंघवाद की संकल्पना पर अधिकाधिक बल दिया जाता रहा है। विद्यमान संरचना में असुविधाओं और सहकारी परिसंघवाद किस सीमा तक इन असुविधाओं का हल निकाल लेगा, इस पर प्रकाश डालिए। (200 words) [UPSC 2015]
भारत में सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने में अंतर-राज्यीय परिषद की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण 1. अंतर-राज्यीय परिषद की भूमिका: अंतर-राज्यीय परिषद का गठन 1990 में संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत किया गया। इसका उद्देश्य राज्यों और केंद्र के बीच बेहतर सहयोग और समन्वय सुनिश्चित करना है। यह परिषद राज्योंRead more
भारत में सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने में अंतर-राज्यीय परिषद की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण
1. अंतर-राज्यीय परिषद की भूमिका:
अंतर-राज्यीय परिषद का गठन 1990 में संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत किया गया। इसका उद्देश्य राज्यों और केंद्र के बीच बेहतर सहयोग और समन्वय सुनिश्चित करना है। यह परिषद राज्यों के प्रतिनिधियों, केंद्रीय मंत्रियों, और प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कार्य करती है।
2. सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना:
- संवैधानिक अनुशासन: परिषद राज्यों की चिंताओं को केंद्र सरकार के सामने प्रस्तुत करती है, जैसे कि वेतन आयोग की सिफारिशें या आर्थिक सहायता पर चर्चा।
- समस्याओं का समाधान: परिषद ने 2017 में जीएसटी के कार्यान्वयन में राज्यों के योगदान और समस्याओं पर सार्थक चर्चा की, जिससे सहकारी संघवाद को बढ़ावा मिला।
3. चुनौतियाँ:
- प्रभावशीलता: परिषद की सिफारिशें अक्सर सुझाव तक सीमित रहती हैं और अनिवार्य नहीं होतीं, जिससे राज्यों की समस्याओं का समाधान पूर्ण रूप से नहीं हो पाता।
- अवधि की कमी: परिषद की बैठकें और कार्यवाहियाँ अपेक्षाकृत कम होती हैं, जिससे समय पर समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता।
निष्कर्ष:
अंतर-राज्यीय परिषद सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन इसके प्रभावी कार्यान्वयन और सिफारिशों की अनिवार्यता में सुधार की आवश्यकता है।
सहकारी परिसंघवाद, जिसमें संघीय और राज्य सरकारों के बीच सहयोग को महत्व दिया जाता है, वर्तमान संरचना की कुछ प्रमुख असुविधाओं को संबोधित करता है। असुविधाएँ: अधिकरण की विखंडनता: शक्तियों का विभाजन विभिन्न स्तरों पर अस्थिरता और प्रभावशीलता की कमी को जन्म दे सकता है, जिससे नीतियों के कार्यान्वयन में कठिनाRead more
सहकारी परिसंघवाद, जिसमें संघीय और राज्य सरकारों के बीच सहयोग को महत्व दिया जाता है, वर्तमान संरचना की कुछ प्रमुख असुविधाओं को संबोधित करता है।
असुविधाएँ:
अधिकरण की विखंडनता: शक्तियों का विभाजन विभिन्न स्तरों पर अस्थिरता और प्रभावशीलता की कमी को जन्म दे सकता है, जिससे नीतियों के कार्यान्वयन में कठिनाइयाँ आती हैं।
समन्वय की समस्याएँ: संघीय और राज्य एजेंसियों के बीच असंगठित प्रयास, राष्ट्रीय मुद्दों का प्रभावी समाधान करने में देरी और असंगति पैदा कर सकते हैं।
संसाधन असमानता: राज्यों के बीच असमान संसाधन वितरण, क्षेत्रीय असमानताओं को बढ़ावा दे सकता है, जिससे सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
स्वार्थों का टकराव: विभिन्न स्तरों की सरकारों के बीच प्राथमिकताओं में टकराव, प्रभावी शासन को बाधित कर सकता है।
सहकारी परिसंघवाद के समाधान:
सुधारित समन्वय: यह संघीय और राज्य सरकारों के बीच संयुक्त पहलों और समझौतों को बढ़ावा देता है, जिससे राष्ट्रीय मुद्दों जैसे कि स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा, और शिक्षा पर समन्वित प्रयास किए जा सकते हैं।
See lessसंसाधन साझेदारी: सहयोग की भावना से संसाधनों और विशेषज्ञता का साझा उपयोग संभव होता है, असमानता को कम करता है और संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करता है।
एकीकृत रणनीति: यह नीति निर्माण में राज्य और संघीय उद्देश्यों को जोड़ता है, जिससे नीतिगत टकराव कम होते हैं और नीति की समग्रता में सुधार होता है।
लचीला शासन: यह राज्यों को संघीय कार्यक्रमों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित करने की अनुमति देता है, जिससे शासन की प्रतिक्रिया और प्रभावशीलता में सुधार होता है।
इस प्रकार, सहकारी परिसंघवाद संरचनात्मक असुविधाओं को कम कर, बेहतर समन्वय, संसाधन समानता और नीति में सामंजस्य को बढ़ावा देता है।