हाल के वर्षों में सहकारी परिसंघवाद की संकल्पना पर अधिकाधिक बल दिया जाता रहा है। विद्यमान संरचना में असुविधाओं और सहकारी परिसंघवाद किस सीमा तक इन असुविधाओं का हल निकाल लेगा, इस पर प्रकाश डालिए। (200 words) [UPSC 2015]
भारतीय संघवाद की आलोचना अक्सर इसकी अत्यधिक केंद्रीकरण प्रवृत्ति के कारण की जाती है, लेकिन साथ ही यह राज्य सरकारों को पर्याप्त अवसर और स्वायत्तता भी प्रदान करता है। भारतीय संविधान में संघीय ढांचे को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया गया है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्ति का वितरण सुनिश्चित किRead more
भारतीय संघवाद की आलोचना अक्सर इसकी अत्यधिक केंद्रीकरण प्रवृत्ति के कारण की जाती है, लेकिन साथ ही यह राज्य सरकारों को पर्याप्त अवसर और स्वायत्तता भी प्रदान करता है। भारतीय संविधान में संघीय ढांचे को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया गया है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्ति का वितरण सुनिश्चित किया गया है।
केंद्रवाद का पहलू: भारतीय संघवाद में केंद्र सरकार के पास महत्वपूर्ण शक्तियां और अधिकार हैं। संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र, राज्य, और समवर्ती सूची के माध्यम से शक्ति का विभाजन किया गया है, लेकिन केंद्र के पास समवर्ती सूची में कानून बनाने की शक्ति होती है यदि राज्य सरकारों के साथ सहमति न हो। इसके अलावा, आपातकाल की स्थिति में केंद्र सरकार को विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं, जो राज्यों की स्वायत्तता को सीमित कर सकते हैं। इस कारण से, संघीय संरचना को केंद्रीकृत माना जाता है।
राज्यों को स्वायत्तता: इसके बावजूद, भारतीय संविधान राज्यों को कई महत्वपूर्ण अधिकार और स्वायत्तता भी प्रदान करता है। राज्यों के पास अपनी आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक नीतियों को आकार देने का अधिकार होता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, और स्थानीय प्रशासन जैसे क्षेत्र राज्य सूची में आते हैं, जिनमें राज्य सरकारें स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकती हैं। इसके अतिरिक्त, पंचायतों और नगर निकायों के माध्यम से स्थानीय स्वायत्तता को भी प्रोत्साहित किया गया है, जो स्थानीय समस्याओं का समाधान और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
विवाद और सुधार: संघवाद की इस संरचना पर आलोचना यह भी है कि केंद्रीकरण के कारण राज्यों के बीच समान विकास की खाई उत्पन्न हो सकती है और यह केन्द्र-राज्य संबंधों में असंतुलन पैदा कर सकता है। कई विशेषज्ञ और राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि राज्यों को और अधिक स्वायत्तता प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि संघीय व्यवस्था अधिक संतुलित और प्रभावी हो सके।
इस प्रकार, भारतीय संघवाद की संरचना के दोनों पहलू – केंद्रीकरण और राज्य स्वायत्तता – संघीय प्रणाली की जटिलता को दर्शाते हैं। जहां केंद्रीकरण केंद्र सरकार की शक्ति को मजबूत करता है, वहीं राज्यों को दी गई स्वायत्तता उनके विकास और प्रशासनिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करती है।
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सहकारी परिसंघवाद, जिसमें संघीय और राज्य सरकारों के बीच सहयोग को महत्व दिया जाता है, वर्तमान संरचना की कुछ प्रमुख असुविधाओं को संबोधित करता है। असुविधाएँ: अधिकरण की विखंडनता: शक्तियों का विभाजन विभिन्न स्तरों पर अस्थिरता और प्रभावशीलता की कमी को जन्म दे सकता है, जिससे नीतियों के कार्यान्वयन में कठिनाRead more
सहकारी परिसंघवाद, जिसमें संघीय और राज्य सरकारों के बीच सहयोग को महत्व दिया जाता है, वर्तमान संरचना की कुछ प्रमुख असुविधाओं को संबोधित करता है।
असुविधाएँ:
अधिकरण की विखंडनता: शक्तियों का विभाजन विभिन्न स्तरों पर अस्थिरता और प्रभावशीलता की कमी को जन्म दे सकता है, जिससे नीतियों के कार्यान्वयन में कठिनाइयाँ आती हैं।
समन्वय की समस्याएँ: संघीय और राज्य एजेंसियों के बीच असंगठित प्रयास, राष्ट्रीय मुद्दों का प्रभावी समाधान करने में देरी और असंगति पैदा कर सकते हैं।
संसाधन असमानता: राज्यों के बीच असमान संसाधन वितरण, क्षेत्रीय असमानताओं को बढ़ावा दे सकता है, जिससे सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
स्वार्थों का टकराव: विभिन्न स्तरों की सरकारों के बीच प्राथमिकताओं में टकराव, प्रभावी शासन को बाधित कर सकता है।
सहकारी परिसंघवाद के समाधान:
सुधारित समन्वय: यह संघीय और राज्य सरकारों के बीच संयुक्त पहलों और समझौतों को बढ़ावा देता है, जिससे राष्ट्रीय मुद्दों जैसे कि स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा, और शिक्षा पर समन्वित प्रयास किए जा सकते हैं।
See lessसंसाधन साझेदारी: सहयोग की भावना से संसाधनों और विशेषज्ञता का साझा उपयोग संभव होता है, असमानता को कम करता है और संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करता है।
एकीकृत रणनीति: यह नीति निर्माण में राज्य और संघीय उद्देश्यों को जोड़ता है, जिससे नीतिगत टकराव कम होते हैं और नीति की समग्रता में सुधार होता है।
लचीला शासन: यह राज्यों को संघीय कार्यक्रमों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित करने की अनुमति देता है, जिससे शासन की प्रतिक्रिया और प्रभावशीलता में सुधार होता है।
इस प्रकार, सहकारी परिसंघवाद संरचनात्मक असुविधाओं को कम कर, बेहतर समन्वय, संसाधन समानता और नीति में सामंजस्य को बढ़ावा देता है।