Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
भारतीय संविधान के "आधारभूत ढांचा सिद्धान्त" के विकास एवं प्रभाव की विवेचना कीजिए। (200 Words) [UPPSC 2022]
भारतीय संविधान के "आधारभूत ढांचा सिद्धान्त" के विकास एवं प्रभाव की विवेचना विकास: प्रस्तावना: "आधारभूत ढांचा सिद्धान्त" (Basic Structure Doctrine) की शुरुआत केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले से हुई। सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धान्त को स्थापित किया कि संसद संविधान को संशोधित कर सकती है, लेकिनRead more
भारतीय संविधान के “आधारभूत ढांचा सिद्धान्त” के विकास एवं प्रभाव की विवेचना
विकास:
प्रभाव:
निष्कर्ष: “आधारभूत ढांचा सिद्धान्त” ने भारतीय संविधान की मूल संरचना को संरक्षण प्रदान किया है, जिससे संविधान की स्थिरता और न्यायिक समीक्षा की भूमिका को सुनिश्चित किया गया है। यह सिद्धान्त संविधान की अनिवार्यता और संवैधानिक लोकतंत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है।
See less'संविधान का उद्देश्य सुधार लाने के लिए समाज को रूपांतरित करना है और यह उद्देश्य रूपांतरणकारी संविधान
संविधान का उद्देश्य समाज में सुधार लाना और उसे रूपांतरित करना है, और इसे रूपांतरणकारी संविधान के रूप में देखा जाता है। भारतीय संविधान की इस रूपांतरणकारी भूमिका की महत्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: सामाजिक न्याय की ओर: संविधान ने सामाजिक न्याय और समानता को सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान किए हैंRead more
संविधान का उद्देश्य समाज में सुधार लाना और उसे रूपांतरित करना है, और इसे रूपांतरणकारी संविधान के रूप में देखा जाता है। भारतीय संविधान की इस रूपांतरणकारी भूमिका की महत्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
सामाजिक न्याय की ओर: संविधान ने सामाजिक न्याय और समानता को सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान किए हैं। जाति, धर्म, लिंग, और वर्ग के आधार पर भेदभाव को समाप्त करने के लिए अनुच्छेद 15 और 17 जैसे प्रावधान शामिल किए गए हैं।
मूलभूत अधिकार: संविधान ने नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं, जैसे कि समानता, स्वतंत्रता, और धर्म की स्वतंत्रता, जो समाज में मौलिक सुधारों को प्रेरित करते हैं। ये अधिकार लोगों की जीवन की गुणवत्ता और स्वतंत्रता को बढ़ाते हैं।
सामाजिक और आर्थिक सुधार: संविधान ने सामाजिक और आर्थिक सुधारों को प्रोत्साहित किया है, जैसे आरक्षण की नीतियाँ, जो सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करने में मदद करती हैं।
संविधान के अनुच्छेद 46: यह अनुच्छेद अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष संरक्षण और सहायता की गारंटी करता है, जो उनके सामाजिक और आर्थिक विकास को सुनिश्चित करता है।
संविधानिक प्राधिकरण: संविधान ने संसद और राज्य विधानसभाओं को कानून बनाने की शक्ति दी है, जिससे समाज में आवश्यक सुधार लागू किए जा सकते हैं।
स्वतंत्र न्यायपालिका: संविधान ने एक स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की है, जो सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करती है और असामान्य परिस्थितियों में भी संविधान की रक्षा करती है।
इन पहलुओं के माध्यम से, भारतीय संविधान ने समाज को रूपांतरित करने और सुधार लाने की दिशा में एक ठोस आधार प्रदान किया है। इसका उद्देश्य न केवल विधायी और प्रशासनिक सुधारों को लागू करना है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समानता को भी बढ़ावा देना है। इस प्रकार, संविधान एक रूपांतरणकारी दस्तावेज है, जो समाज के समग्र विकास और सुधार की दिशा में मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।
See lessविधायिका और न्यायपालिका के बीच टकराव की परिणति केशवानंद भारती वाद में 'आधारभूत संरचना' के सिद्धांत रूप में हुई। विवेचना कीजिए। संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति को सीमित करने में इस वाद का क्या महत्व है? (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
केशवानंद भारती वाद (1973) भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक मुकदमा है, जिसने विधायिका और न्यायपालिका के बीच टकराव को "आधारभूत संरचना" के सिद्धांत के माध्यम से निपटाया। इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह तय किया कि संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति तो है, लेकिन यह शक्ति "आधारभूत सRead more
केशवानंद भारती वाद (1973) भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक मुकदमा है, जिसने विधायिका और न्यायपालिका के बीच टकराव को “आधारभूत संरचना” के सिद्धांत के माध्यम से निपटाया। इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह तय किया कि संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति तो है, लेकिन यह शक्ति “आधारभूत संरचना” (Basic Structure) को परिवर्तित या नष्ट नहीं कर सकती।
संदर्भ में, केशवानंद भारती ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि संसद संविधान की आधारभूत संरचना को परिवर्तित कर सकती है। न्यायालय ने निर्णय दिया कि संविधान की आधारभूत संरचना में लोकतंत्र, संघीय संरचना, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, और मूल अधिकार जैसे तत्व शामिल हैं, जिन्हें संसद द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता।
संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति को सीमित करने में इस वाद का महत्व अत्यधिक है:
संवैधानिक सुरक्षा: यह निर्णय संविधान की संरचनात्मक स्थिरता और मूलभूत सिद्धांतों की सुरक्षा करता है। यह सुनिश्चित करता है कि संविधान के मूल तत्व, जैसे लोकतंत्र और मौलिक अधिकार, संविधान संशोधन के दायरे से बाहर हैं।
न्यायपालिका की भूमिका: न्यायपालिका को संविधान की आधारभूत संरचना की रक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की शक्ति मिलती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि संविधान में बदलाव जनता के मूल अधिकारों और स्वतंत्रता को प्रभावित नहीं कर सकते।
संवैधानिक संतुलन: यह निर्णय विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के संतुलन को बनाए रखने में सहायक है। यह बताता है कि संविधान की मौलिक संरचना की रक्षा करना केवल संसद का काम नहीं है, बल्कि न्यायपालिका का भी है।
इस प्रकार, केशवानंद भारती वाद ने संविधान की स्थिरता और न्यायपूर्ण शासन के सिद्धांतों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और संसद की संविधान संशोधन की शक्ति की सीमाओं को स्पष्ट किया।
See lessभारतीय संविधान के लागू होने के बाद से मूल अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक तत्वों (DPSPs) में संवैधानिक रूप से सामंजस्य स्थापित करना एक कठिन कार्य रहा है। प्रासंगिक न्यायिक निर्णयों की सहायता से चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
भारतीय संविधान में मूल अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक तत्वों (DPSPs) के बीच सामंजस्य स्थापित करना चुनौतीपूर्ण रहा है। मूल अधिकार नागरिकों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा करते हैं, जबकि DPSPs सरकार को सामाजिक और आर्थिक सुधारों को लागू करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। सुप्रीम कोर्ट कRead more
भारतीय संविधान में मूल अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक तत्वों (DPSPs) के बीच सामंजस्य स्थापित करना चुनौतीपूर्ण रहा है। मूल अधिकार नागरिकों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा करते हैं, जबकि DPSPs सरकार को सामाजिक और आर्थिक सुधारों को लागू करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के Kesavananda Bharati (1973) मामले में, कोर्ट ने तय किया कि संविधान के मूल ढांचे को संरक्षित रखते हुए DPSPs को लागू किया जा सकता है। इस निर्णय में यह भी कहा गया कि यदि DPSPs का कार्यान्वयन मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो मूल अधिकारों की प्राथमिकता होगी।
Minerva Mills (1980) केस में, कोर्ट ने DPSPs और मूल अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया, यह मानते हुए कि संविधान के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए दोनों की समान महत्वपूर्ण भूमिका है। इन निर्णयों ने भारतीय संविधान के मूल अधिकारों और DPSPs के बीच संतुलन स्थापित किया है।
See lessशक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। भारतीय संविधान में ऐसे कौन-से प्रावधान हैं, जो शक्तियों के पृथक्करण को प्रतिबिंबित करते हैं?(उत्तर 200 शब्दों में दें)
शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा एक ऐसी सिद्धांत है जिसमें सरकार की विभिन्न संगठनाओं या अधिकारियों को विशिष्ट क्षेत्रों में शक्तियों का पृथक्करण किया जाता है, ताकि वे अपने क्षेत्र में स्वतंत्रता से निर्णय ले सकें और अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार हों। यह विभिन्न संगठनों और अधिकारियों को स्वतंत्रता औरRead more
शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा एक ऐसी सिद्धांत है जिसमें सरकार की विभिन्न संगठनाओं या अधिकारियों को विशिष्ट क्षेत्रों में शक्तियों का पृथक्करण किया जाता है, ताकि वे अपने क्षेत्र में स्वतंत्रता से निर्णय ले सकें और अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार हों। यह विभिन्न संगठनों और अधिकारियों को स्वतंत्रता और सामर्थ्य प्रदान करता है ताकि सरकारी कार्य प्रभावी रूप से संचालित हो सके।
भारतीय संविधान में शक्तियों के पृथक्करण को प्रतिबिंबित करने के कई प्रावधान हैं। कुछ मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं:
इन प्रावधानों के माध्यम से भारतीय संविधान ने शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा को प्रतिबिंबित किया है और सरकारी संगठनों को स्वतंत्रता और सामर्थ्य प्रदान किया है ।
See lessविधि के शासन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए कि यह विचार भारत के संविधान में कैसे परिलक्षित होता है।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
विधि के शासन वह सिद्धांत है जिसमें निर्धारित कानून और विधि का प्रभावकारी रूप से शासन किया जाता है। इसका मतलब है कि सभी व्यक्तियों, संस्थाओं और सरकारी अधिकारियों को कानून का पालन करना होगा और किसी भी व्यक्ति या संस्था पर कानून के उल्लंघन का दंड लगाया जाएगा। भारत के संविधान में, विधि के शासन का सिद्धाRead more
विधि के शासन वह सिद्धांत है जिसमें निर्धारित कानून और विधि का प्रभावकारी रूप से शासन किया जाता है। इसका मतलब है कि सभी व्यक्तियों, संस्थाओं और सरकारी अधिकारियों को कानून का पालन करना होगा और किसी भी व्यक्ति या संस्था पर कानून के उल्लंघन का दंड लगाया जाएगा।
भारत के संविधान में, विधि के शासन का सिद्धांत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। संविधान ने विभिन्न अनुच्छेदों में निर्धारित किया है कि कैसे कानूनी प्रक्रियाएं चलानी चाहिए और कैसे कानून का पालन किया जाए। संविधान ने न्यायपालिका, कानून निष्पक्षता, और विधि के पालन के मामले में सरकार की जिम्मेदारी को स्पष्ट किया है।
विधि के शासन का सिद्धांत भारतीय संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता, कानून का समान रूप से लागू होना और सरकारी अधिकारियों के द्वारा कानून का पालन करने की जिम्मेदारी को प्रोत्साहित करने के माध्यम से परिलक्षित होता है।
See lessभारत जैसे एक लोकतांत्रिक देश के संदर्भ में संविधान के महत्व की व्याख्या कीजिए। (उत्तर 200 शब्दों में दें)
भारत एक लोकतांत्रिक देश है और इसके संविधान का महत्व अत्यधिक है। संविधान एक ऐतिहासिक दस्तावेज है जो देश की नीतियों, मानवाधिकारों, और संरचना को परिभाषित करता ह। यह एक मानव संरचना है जो नागरिकों के हक्कों और कर्तव्यों की संरचना करता है। भारतीय संविधान ने देश को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापितRead more
भारत एक लोकतांत्रिक देश है और इसके संविधान का महत्व अत्यधिक है। संविधान एक ऐतिहासिक दस्तावेज है जो देश की नीतियों, मानवाधिकारों, और संरचना को परिभाषित करता ह। यह एक मानव संरचना है जो नागरिकों के हक्कों और कर्तव्यों की संरचना करता है।
भारतीय संविधान ने देश को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित किया है। यह नागरिकों को स्वतंत्रता, समानता, और न्याय के अधिकार प्रदान करता है। संविधान एक संरचित ढांचे में सरकार की शक्तियों को सीमित करता है और उन्हें जिम्मेदार बनाता है।
संविधान ने भारतीय समाज को एक सामाजिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक संघर्ष की भावना से उबारा है। यह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए एक सुरक्षात्मक कवच का कार्य करता है। संविधान भारतीय समाज की एकता और विविधता को संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और देश को एक सकारात्मक दिशा में अग्रसर बनाने में मदद करता ह।
See less"भारत का संविधान अत्यधिक गतिशीलता की क्षमताओं के साथ एक जीवंत यंत्र है। यह प्रगतिशील समाज के लिये बनाया गया एक संविधान है।" जीने के अधिकार तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में हो रहे निरंतर विस्तार के विशेष संदर्भ में उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए । (250 words) [UPSC 2023]
भारत का संविधान: गतिशीलता और प्रगतिशीलता के उदाहरण जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के निरंतर विस्तार: **1. "जीने का अधिकार (Article 21): "उन्नति और विस्तार": भारत का संविधान जीने के अधिकार को अत्यधिक गतिशील तरीके से समझता है। यह अधिकार मूल रूप से जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण की गारRead more
भारत का संविधान: गतिशीलता और प्रगतिशीलता के उदाहरण
जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के निरंतर विस्तार:
**1. “जीने का अधिकार (Article 21):
**2. “व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Article 19):
निष्कर्ष:
भारत का संविधान, अपने गतिशील दृष्टिकोण के माध्यम से, जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दायरे में निरंतर विस्तार कर रहा है। यह संविधान प्रगतिशील समाज की आवश्यकताओं के अनुसार अद्यतित रहता है, और इसके द्वारा प्रदान किए गए अधिकारों की व्याख्या और संरक्षण में न्यायालयों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
See lessकई सारे देशों के संविधानों से उधार ली गई विशेषताओं के बावजूद, भारत का संविधान अद्वितीय बना हुआ है। विवेचना कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
यह सच है कि भारतीय संविधान ने कई देशों के संविधानों से विशेषताएं उधार ली हैं, लेकिन उसके बावजूद यह अद्वितीय बना हुआ है। ये कुछ कारण हैं: भारतीय संविधान का व्यापक और विस्तृत स्वरूप: भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद हैं, जो किसी भी अन्य देश के संविधान से अधिक है। इससे इसकी व्यापकता और व्यवस्थित प्रकृतिRead more
यह सच है कि भारतीय संविधान ने कई देशों के संविधानों से विशेषताएं उधार ली हैं, लेकिन उसके बावजूद यह अद्वितीय बना हुआ है। ये कुछ कारण हैं:
भारतीय संविधान का व्यापक और विस्तृत स्वरूप: भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद हैं, जो किसी भी अन्य देश के संविधान से अधिक है। इससे इसकी व्यापकता और व्यवस्थित प्रकृति स्पष्ट होती है।
See lessसमावेशी और प्रतिनिधित्वपरक स्वरूप: भारतीय संविधान सभी वर्गों, समुदायों और क्षेत्रों का समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है, जो इसे अनूठा बनाता है।
संविधान संशोधन की प्रक्रिया: भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया में स्पष्ट और उचित प्रावधान हैं, जो इसकी लचीलेपन को बढ़ाते हैं।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता: भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता और शक्तियां इसे अद्वितीय बनाती हैं।
धर्मनिरपेक्षता का आग्रह: भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता को महत्व देता है, जो इसकी विशिष्टता है।
इन कारणों से भारतीय संविधान अद्वितीय और अनूठा बना हुआ है।
भारतीय संविधान की मूल संरचना (बेसिक स्ट्रक्चर) का सिद्धांत एक न्यायिक नवाचार है। विश्लेषण कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
भारतीय संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत एक महत्वपूर्ण न्यायिक नवाचार है, जो संविधान के मूलभूत और अविभाज्य अंगों की सुरक्षा करता है। यह सिद्धांत भारतीय उच्चतम न्यायालय द्वारा विकसित किया गया है और इसका मूल उद्देश्य संविधान की मौलिक विशेषताओं और मूल्यों को बरकरार रखना है। इस सिद्धांत के अनुसार, संविधRead more
भारतीय संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत एक महत्वपूर्ण न्यायिक नवाचार है, जो संविधान के मूलभूत और अविभाज्य अंगों की सुरक्षा करता है। यह सिद्धांत भारतीय उच्चतम न्यायालय द्वारा विकसित किया गया है और इसका मूल उद्देश्य संविधान की मौलिक विशेषताओं और मूल्यों को बरकरार रखना है।
इस सिद्धांत के अनुसार, संविधान के कुछ अवयव जैसे लोकतंत्र, न्यायिक स्वतंत्रता, मौलिक अधिकार और संघीय ढांचा संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं और इन्हें संशोधन द्वारा बदला या परिवर्तित नहीं किया जा सकता। यह सुनिश्चित करता है कि संविधान की मूल विशेषताएं सुरक्षित रहें और भविष्य में संविधान को कमजोर या धीमा न किया जा सके।
इस सिद्धांत ने भारतीय न्यायपालिका को संविधान के मूलभूत संरचना को बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका दी है। यह न्यायिक समीक्षा की शक्ति का उपयोग करके संविधान के मूलभूत सिद्धांतों और मूल्यों की रक्षा करता है।
See less