प्राचीन भारत के विकास की दिशा में भौगोलिक कारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए। (150 words)[UPSC 2023]
भारत में सीमांत और सीमा का अंतर सीमांत (फ्रंटियर) सीमांत वह क्षेत्र होता है जो किसी देश की सीमा से जुड़ा हुआ होता है और आमतौर पर इसे राजनयिक या आर्थिक रूप से पूरी तरह से परिभाषित नहीं किया जाता। यह राजनीतिक प्रभावों और सुरक्षा चिंताओं के संदर्भ में अस्थिर या सीमांत क्षेत्र हो सकता है। भारत में जम्मूRead more
भारत में सीमांत और सीमा का अंतर
सीमांत (फ्रंटियर)
सीमांत वह क्षेत्र होता है जो किसी देश की सीमा से जुड़ा हुआ होता है और आमतौर पर इसे राजनयिक या आर्थिक रूप से पूरी तरह से परिभाषित नहीं किया जाता। यह राजनीतिक प्रभावों और सुरक्षा चिंताओं के संदर्भ में अस्थिर या सीमांत क्षेत्र हो सकता है। भारत में जम्मू और कश्मीर और लद्दाख जैसे क्षेत्र सीमांत क्षेत्रों के उदाहरण हैं, जहां भौगोलिक और सुरक्षात्मक मुद्दे प्रमुख हैं।
सीमा (बाउंडरी)
सीमा वह स्पष्ट रूप से परिभाषित रेखा है जो दो देशों के बीच स्थिर और मान्यता प्राप्त विभाजन को दर्शाती है। यह अंतर्राष्ट्रीय संधियों और मानचित्रों के माध्यम से निर्धारित की जाती है। भारत की चीन के साथ लम्बी सीमा और पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा इसका उदाहरण हैं, जो सीमा समझौतों के आधार पर निश्चित हैं।
हाल के उदाहरण
- भारत-चीन सीमा के विवादित क्षेत्र जैसे लद्दाख एक सीमांत क्षेत्र है, जबकि पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा एक स्पष्ट रूप से परिभाषित सीमा है।
प्राचीन भारत के विकास की दिशा में भौगोलिक कारकों की भूमिका भौगोलिक कारकों ने प्राचीन भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिमालय ने उत्तरी सीमाओं की रक्षा की और एक प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य किया। इसके कारण भारत में विदेशी आक्रमणों की आवृत्ति सीमित रही, जबकि इसे उतRead more
प्राचीन भारत के विकास की दिशा में भौगोलिक कारकों की भूमिका
भौगोलिक कारकों ने प्राचीन भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिमालय ने उत्तरी सीमाओं की रक्षा की और एक प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य किया। इसके कारण भारत में विदेशी आक्रमणों की आवृत्ति सीमित रही, जबकि इसे उत्तर-पश्चिमी दर्रों (जैसे खैबर और बोलन दर्रा) के माध्यम से बाहरी संस्कृतियों के संपर्क में भी रखा।
नदियाँ, विशेष रूप से सिंधु, गंगा, और यमुना ने कृषि और सभ्यता के विकास को बढ़ावा दिया। सिंधु घाटी सभ्यता (2500-1700 BCE) सिंधु नदी के किनारे विकसित हुई, जहाँ समृद्ध कृषि ने शहरीकरण को प्रोत्साहित किया। इसी प्रकार, गंगा-यमुना का मैदान महाजनपद काल (600-300 BCE) में राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र बना, जिससे मौर्य और गुप्त साम्राज्यों का उदय हुआ।
इसके अलावा, दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्र व्यापार और सांस्कृतिक संपर्क के प्रमुख केंद्र बने, जहाँ से प्राचीन भारत का व्यापार रोम और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ हुआ। उदाहरणस्वरूप, चोल साम्राज्य (9वीं-13वीं शताब्दी) ने समुद्री व्यापार और सांस्कृतिक प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भौगोलिक विविधता ने भारत के क्षेत्रीय और सांस्कृतिक विविधता को जन्म दिया, जिससे भारत में कई संस्कृतियों और परंपराओं का समन्वय हुआ।
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