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हिमालय के अपवाह तन्त्र की विवेचना कीजिये।
हिमालय के अपवाह तन्त्र की विवेचना हिमालय पर्वत श्रेणी, जो कि एशिया के सबसे प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, का अपवाह तन्त्र (drainage system) अत्यंत जटिल और विविध है। इस तन्त्र में कई प्रमुख नदियाँ और जलग्रहण क्षेत्र शामिल हैं, जो विभिन्न भागों से उत्पन्न होती हैं और दक्षिणी एशिया के जलवायु औरRead more
हिमालय के अपवाह तन्त्र की विवेचना
हिमालय पर्वत श्रेणी, जो कि एशिया के सबसे प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, का अपवाह तन्त्र (drainage system) अत्यंत जटिल और विविध है। इस तन्त्र में कई प्रमुख नदियाँ और जलग्रहण क्षेत्र शामिल हैं, जो विभिन्न भागों से उत्पन्न होती हैं और दक्षिणी एशिया के जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती हैं। यहाँ हिमालय के अपवाह तन्त्र का विस्तार से विवेचन किया गया है:
1. गंगा (गंगा) बेसिन:
परिभाषा: गंगा बेसिन में गंगा नदी और उसकी प्रमुख उपनदियाँ शामिल हैं, जो हिमालय की उत्तरी ढलानों से निकलती हैं और भारत के उत्तरी हिस्से से बहकर बंगाल की खाड़ी में समाहित होती हैं।
उदाहरण:
2. सिंधु (इंडस) बेसिन:
परिभाषा: सिंधु बेसिन में सिंधु नदी और इसकी प्रमुख उपनदियाँ शामिल हैं, जो हिमालय की पश्चिमी ढलानों से निकलती हैं और पाकिस्तान के थार रेगिस्तान की ओर बहती हैं।
उदाहरण:
3. ब्रह्मपुत्र बेसिन:
परिभाषा: ब्रह्मपुत्र बेसिन में ब्रह्मपुत्र नदी और इसकी उपनदियाँ शामिल हैं, जो हिमालय की पूर्वी ढलानों से निकलती हैं और बांग्लादेश की ओर बहती हैं।
उदाहरण:
4. पश्चिमी हिमालय के अपवाह तन्त्र:
परिभाषा: पश्चिमी हिमालय के अपवाह तन्त्र में नदियाँ शामिल हैं जो पश्चिम की ओर बहती हैं और अरब सागर की ओर जा मिलती हैं।
उदाहरण:
5. ग्लेशियरी और स्नोमल्ट प्रभाव:
परिभाषा: हिमालय में कई नदियाँ ग्लेशियरी पिघलन और स्नोमल्ट से भरी जाती हैं, जो उनके बहाव और मौसमी बदलावों को प्रभावित करती हैं।
उदाहरण:
निष्कर्ष
हिमालय का अपवाह तन्त्र एक जटिल और विविध प्रणाली है जिसमें विभिन्न प्रमुख नदियाँ और जलग्रहण क्षेत्र शामिल हैं। हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जलविवाद जैसे मुद्दे इस तन्त्र को प्रभावित कर रहे हैं, और इन समस्याओं के समाधान के लिए प्रभावी प्रबंधन और संरक्षण की आवश्यकता है।
See lessभारत अलवणजल (फैश वाटर) संसाधनों से सुसंपन्न है। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये कि क्या कारण है कि भारत इसके बावजूद जलाभाव से ग्रसित है। (200 words) [UPSC 2015]
भारत में अलवणजल संसाधनों की प्रचुरता और जलाभाव: समालोचनात्मक परीक्षण अलवणजल संसाधनों की प्रचुरता भारत अलवणजल (फ्रेश वॉटर) संसाधनों में समृद्ध है, जिसमें प्रमुख नदियाँ जैसे गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, और दक्खिन की नदियाँ शामिल हैं। देश की कुल जलवायु और भूगोल के कारण यहाँ जल संसाधनों की कोई कमी नहीं है।Read more
भारत में अलवणजल संसाधनों की प्रचुरता और जलाभाव: समालोचनात्मक परीक्षण
अलवणजल संसाधनों की प्रचुरता
भारत अलवणजल (फ्रेश वॉटर) संसाधनों में समृद्ध है, जिसमें प्रमुख नदियाँ जैसे गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, और दक्खिन की नदियाँ शामिल हैं। देश की कुल जलवायु और भूगोल के कारण यहाँ जल संसाधनों की कोई कमी नहीं है।
जलाभाव के कारण
जलवायु परिवर्तन के कारण असमान वर्षा पैटर्न, बाढ़, और सूखा जैसी समस्याएँ बढ़ी हैं। उदाहरण के लिए, 2022 में बिहार और उत्तर प्रदेश में भारी वर्षा और बाढ़ ने जल संसाधनों की असमानता को उजागर किया।
जल प्रबंधन की कमी और अधिक पानी का व्यय के कारण जल संसाधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है। जलाशयों और पानी संग्रहीत योजनाओं की कमी भी एक प्रमुख कारण है। पानी की चोरी और अप्रभावी नल जल आपूर्ति प्रणाली समस्याओं को और बढ़ाते हैं।
जनसंख्या वृद्धि और अत्यधिक जल उपयोग के कारण उपलब्ध जल संसाधनों पर भारी दबाव पड़ता है। शहरीकरण और विकास परियोजनाएँ जल संसाधनों की कमी को और बढ़ाती हैं। पानी की मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन एक प्रमुख मुद्दा है।
जल प्रदूषण भी एक गंभीर समस्या है। नदियों में औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट के कारण जल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। उदाहरण के लिए, गंगा नदी का प्रदूषण जल की उपलब्धता को और कम करता है।
निष्कर्ष
See lessभले ही भारत में अलवणजल संसाधनों की प्रचुरता है, लेकिन जलाभाव की समस्या कई जटिल कारणों से उत्पन्न हो रही है। इसके समाधान के लिए समन्वित जल प्रबंधन, जल पुनर्चक्रण, सतत विकास योजनाएँ और सामाजिक जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। जल संसाधनों का समुचित उपयोग और संरक्षण ही इस समस्या का समाधान है।
पर्यटन की प्रोन्नति के कारण जम्मू और काश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के राज्य अपनी पारिस्थितिक वहन क्षमता की सीमाओं तक पहुँच रहे हैं ? समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (200 words) [UPSC 2015]
पर्यटन की प्रोन्नति और पारिस्थितिक वहन क्षमता की सीमाएँ: जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड पर्यटन और पारिस्थितिक वहन क्षमता जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में पर्यटन की वृद्धि ने इन क्षेत्रों की पारिस्थितिक वहन क्षमता पर अत्यधिक दबाव डाला है। पर्यटकों की बRead more
पर्यटन की प्रोन्नति और पारिस्थितिक वहन क्षमता की सीमाएँ: जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड
पर्यटन और पारिस्थितिक वहन क्षमता
जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में पर्यटन की वृद्धि ने इन क्षेत्रों की पारिस्थितिक वहन क्षमता पर अत्यधिक दबाव डाला है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या, संरचनात्मक विकास (जैसे होटलों और सड़कें) और अनियंत्रित पर्यटन गतिविधियाँ प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचा रही हैं।
जम्मू और कश्मीर में सोनमर्ग और गुलमर्ग जैसे स्थलों पर बढ़ते पर्यटन ने जलवायु और वनस्पति को प्रभावित किया है। हिमाचल प्रदेश में मनाली और धर्मशाला जैसे स्थानों पर बेतहाशा विकास और पर्यटकों की भीड़ ने पर्यावरणीय संकट उत्पन्न किए हैं। उत्तराखंड में, ऋषिकेश और नैनीताल जैसे पर्यटन स्थल प्रदूषण और संसाधन कमी का सामना कर रहे हैं।
हालिया उदाहरण
2022 में, उत्तराखंड के नैनीताल में लगातार बढ़ते पर्यटकों की संख्या ने पानी की कमी और कचरे की समस्या को बढ़ा दिया। हिमाचल प्रदेश के शिमला में भी असामान्य रूप से बढ़ते पर्यटन की वजह से ठोस कचरे का संकट उत्पन्न हुआ है।
समालोचनात्मक मूल्यांकन
इन क्षेत्रों में पर्यटन की वृद्धि ने आर्थिक लाभ तो दिया है, लेकिन पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाए रखना भी आवश्यक है। इसके लिए संवेदनशील पर्यटन नीतियों और स्थायी विकास योजनाओं की आवश्यकता है। पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन और संसाधन प्रबंधन को प्राथमिकता देने से पर्यावरणीय दबाव को कम किया जा सकता है और सतत पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है।
इस प्रकार, पर्यटन की प्रोन्नति के साथ-साथ पारिस्थितिकीय स्थिरता की दिशा में ठोस कदम उठाना अनिवार्य है।
See lessदलहन की कृषि के लाभों का उल्लेख कीजिए जिसके कारण संयुक्त राष्ट्र के द्वारा वर्ष 2016 को अन्तर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष घोषित किया गया था । (150 words) [UPSC 2017]
दलहन की कृषि के लाभ: 2016 का अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष पोषण संबंधी लाभ दलहन पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, जैसे कि प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिज। ये पोषण से भरपूर विकल्प प्रदान करते हैं, जो विशेष रूप से विकासशील देशों में कुपोषण को कम करने में सहायक होते हैं। मिट्टी की सेहत दलहन नाइट्रोजन-फिक्सिंगRead more
दलहन की कृषि के लाभ: 2016 का अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष
पोषण संबंधी लाभ
दलहन पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, जैसे कि प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिज। ये पोषण से भरपूर विकल्प प्रदान करते हैं, जो विशेष रूप से विकासशील देशों में कुपोषण को कम करने में सहायक होते हैं।
मिट्टी की सेहत
दलहन नाइट्रोजन-फिक्सिंग फसलें होती हैं, जो मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाकर उसकी उर्वरता में सुधार करती हैं। इससे रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता कम होती है और मिट्टी की सेहत बनी रहती है।
जलवायु अनुकूलता
दलहन कम जल की आवश्यकता वाले पौधे होते हैं और विविध जलवायु परिस्थितियों में उग सकते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन में मदद मिलती है।
आर्थिक लाभ
दलहन की खेती कृषक की आय को विविधता प्रदान करती है और एक महत्वपूर्ण निर्यात वस्तु के रूप में लाभकारी होती है। उदाहरण के तौर पर, भारत, जो दलहन का प्रमुख उत्पादक और उपभोक्ता है, दलहन के निर्यात से आर्थिक लाभ प्राप्त करता है।
इन लाभों के कारण, संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2016 को अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष घोषित किया, जिससे दलहन की महत्वपूर्ण भूमिका को वैश्विक खाद्य सुरक्षा और सतत कृषि में उजागर किया जा सके।
See lessनीली क्रांति' को परिभाषित करते हुए भारत में मत्स्यपालन की समस्याओं और रणनीतियों को समझाइये । (250 words) [UPSC 2018]
नीली क्रांति: परिभाषा और भारत में मत्स्यपालन की समस्याएँ एवं रणनीतियाँ नीली क्रांति की परिभाषा 'नीली क्रांति' का तात्पर्य मत्स्यपालन के क्षेत्र में उत्पादकता और तकनीकी सुधार से है, जो कि पानी आधारित संसाधनों के प्रबंधन को प्रभावी बनाने के लिए लागू किया जाता है। इसे 'फिशरी क्रांति' भी कहा जाता है, जिRead more
नीली क्रांति: परिभाषा और भारत में मत्स्यपालन की समस्याएँ एवं रणनीतियाँ
नीली क्रांति की परिभाषा
‘नीली क्रांति’ का तात्पर्य मत्स्यपालन के क्षेत्र में उत्पादकता और तकनीकी सुधार से है, जो कि पानी आधारित संसाधनों के प्रबंधन को प्रभावी बनाने के लिए लागू किया जाता है। इसे ‘फिशरी क्रांति’ भी कहा जाता है, जिसका उद्देश्य मछली उत्पादन में वृद्धि करना और इसे आर्थिक लाभ का स्रोत बनाना है।
भारत में मत्स्यपालन की समस्याएँ
रणनीतियाँ
हालिया उदाहरण
मछली पालन में तकनीकी सुधार: भारत में ‘नीली क्रांति’ के तहत, केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय मत्स्य पालन योजना को लागू किया है, जो आधुनिक तकनीकों और अवसंरचना सुधार को बढ़ावा देती है। इसके अंतर्गत “सागर मित्रा” परियोजना भी शुरू की गई है, जो मछली उत्पादन में वृद्धि और मछुआरों के जीवन स्तर में सुधार के लिए काम कर रही है।
इन रणनीतियों और सुधारों के माध्यम से, भारत में मत्स्यपालन क्षेत्र को अधिक सक्षम और सतत बनाया जा रहा है, जो न केवल उत्पादन को बढ़ाने में मदद कर रहा है, बल्कि आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता को भी सुनिश्चित कर रहा है।
See lessगंगा के मैदान में ग्रामीण अधिवासों के प्रतिरूपों की विवेचना कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2021]
The Gangetic Plain exhibits distinct patterns of rural settlements shaped by its fertile alluvial soil and extensive river system. Key patterns include: Linear Settlements: Villages often develop along rivers or roads, following a linear pattern. This arrangement enhances accessibility to water sourRead more
The Gangetic Plain exhibits distinct patterns of rural settlements shaped by its fertile alluvial soil and extensive river system. Key patterns include:
These patterns demonstrate how rural communities in the Gangetic Plain have adapted their settlement strategies to the region’s environmental and geographical conditions.
See lessभारत में एल नीनो और दक्षिण-पश्चिम मानसून के बीच संबंधों की व्याख्या कीजिए और उसके कृषि पर प्रभाव बताइए । (200 Words) [UPPSC 2023]
एल नीनो और दक्षिण-पश्चिम मानसून के बीच संबंध: एल नीनो एक जलवायु घटना है जिसमें प्रशांत महासागर के मध्य और पूर्वी हिस्से में समुद्री सतह का तापमान सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है। इसका प्रभाव वैश्विक मौसम पर पड़ता है, विशेषकर भारत के दक्षिण-पश्चिम मानसून पर। दक्षिण-पश्चिम मानसून, जो जून से सितंबर तकRead more
एल नीनो और दक्षिण-पश्चिम मानसून के बीच संबंध:
एल नीनो एक जलवायु घटना है जिसमें प्रशांत महासागर के मध्य और पूर्वी हिस्से में समुद्री सतह का तापमान सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है। इसका प्रभाव वैश्विक मौसम पर पड़ता है, विशेषकर भारत के दक्षिण-पश्चिम मानसून पर।
दक्षिण-पश्चिम मानसून, जो जून से सितंबर तक भारत में वर्षा लाता है, एल नीनो की स्थिति में कमजोर हो जाता है। जब एल नीनो सक्रिय होता है, तो यह भारतीय मानसूनी हवाओं की दिशा और ताकत को प्रभावित करता है, जिससे मानसून की बारिश में कमी हो सकती है। गर्म महासागरीय तापमान वायुमंडलीय संचलन को बाधित करता है, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में कम नमी आती है।
कृषि पर प्रभाव:
इस प्रकार, एल नीनो का प्रभाव दक्षिण-पश्चिम मानसून पर कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा पर महत्वपूर्ण असर डालता है।
See lessनौ नम्बर चैनल के सामरिक महत्व पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए । (125 Words) [UPPSC 2023]
नौ नंबर चैनल, जिसे "नौसैनिक चैनल" भी कहा जाता है, भारतीय रक्षा के सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह चैनल भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर स्थित है और इसे अरब सागर से जोड़ता है। इसके माध्यम से भारत की नौसैनिक गतिविधियाँ और समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। यह चैनल विदेशी जहाजों और उपRead more
नौ नंबर चैनल, जिसे “नौसैनिक चैनल” भी कहा जाता है, भारतीय रक्षा के सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह चैनल भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर स्थित है और इसे अरब सागर से जोड़ता है। इसके माध्यम से भारत की नौसैनिक गतिविधियाँ और समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। यह चैनल विदेशी जहाजों और उपग्रहों की निगरानी के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग है, जो आतंकवाद और समुद्री अपराधों से निपटने में सहायक होता है। इसके अलावा, नौ नंबर चैनल के माध्यम से तेल और गैस के ट्रांसपोर्टेशन के मार्ग भी गुजरते हैं, जो आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। इस प्रकार, यह चैनल भारत की सामरिक सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए केंद्रीय भूमिका निभाता है।
See lessदक्षिण एशिया में रोहिंग्या शरणार्थी पर प्रकाश डालिए । (125 Words) [UPPSC 2023]
दक्षिण एशिया में रोहिंग्या शरणार्थी संकट मुख्यतः म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों की मजबूरी को दर्शाता है, जो अत्याचार और हिंसा से भागकर पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरण लेने को मजबूर हुए हैं। 2017 से, म्यांमार सेना द्वारा किए गए जातीय हमलों ने एक लाख से अधिक रोहिंग्या को बांग्लादेश के कक्स बाजार में स्Read more
दक्षिण एशिया में रोहिंग्या शरणार्थी संकट मुख्यतः म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों की मजबूरी को दर्शाता है, जो अत्याचार और हिंसा से भागकर पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरण लेने को मजबूर हुए हैं। 2017 से, म्यांमार सेना द्वारा किए गए जातीय हमलों ने एक लाख से अधिक रोहिंग्या को बांग्लादेश के कक्स बाजार में स्थित विशाल शरणार्थी शिविरों में भेजा। इन शिविरों में अत्यधिक भीड़, अस्वच्छ परिस्थितियाँ, और सीमित स्वास्थ्य व शिक्षा सेवाएँ हैं। स्थानीय समुदायों और संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा मानवीय सहायता प्रदान की जा रही है, लेकिन स्थायी समाधान और म्यांमार में स्थिरता की आवश्यकता बनी हुई है।
See lessभारत में बाढ़ों को सिंचाई के और सभी मौसम में अन्तर्देशीय नौसंचालन के एक धारणीय स्रोत में किस प्रकार परिवर्तित किया जा सकता है? (250 words) [UPSC 2017]
भारत में बाढ़ों को सिंचाई और सभी मौसम में अन्तर्देशीय नौसंचालन के एक धारणीय स्रोत में परिवर्तित करने के उपाय 1. बाढ़ जल संचयन और संग्रहण: बाढ़ों के पानी को सिंचाई के लिए उपयोगी संसाधन में बदलने के लिए जल संचयन और संग्रहण ढांचों में निवेश करना आवश्यक है। चेक डैम और पेरकोलेशन टैंक जैसे ढांचे बाढ़ के पRead more
भारत में बाढ़ों को सिंचाई और सभी मौसम में अन्तर्देशीय नौसंचालन के एक धारणीय स्रोत में परिवर्तित करने के उपाय
1. बाढ़ जल संचयन और संग्रहण:
बाढ़ों के पानी को सिंचाई के लिए उपयोगी संसाधन में बदलने के लिए जल संचयन और संग्रहण ढांचों में निवेश करना आवश्यक है। चेक डैम और पेरकोलेशन टैंक जैसे ढांचे बाढ़ के पानी को संग्रहीत कर सकते हैं और इसे भूमिगत जल पुनर्भरण के रूप में उपयोग कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में छोटे चेक डैम का उपयोग बाढ़ के पानी को संग्रहित करने के लिए किया जाता है, जिससे सिंचाई के लिए जल उपलब्धता में सुधार हुआ है।
2. बाढ़ नियंत्रण जलाशयों का निर्माण:
बाढ़ नियंत्रण जलाशयों और आर्टिफिशियल लेक्स का निर्माण बाढ़ के पानी को भविष्य में उपयोग के लिए संग्रहीत कर सकता है। नर्मदा डैम (गुजरात) इसका एक उदाहरण है, जो बाढ़ के पानी को संग्रहीत करके पूरे वर्ष सिंचाई के लिए एक स्थिर जल स्रोत प्रदान करता है।
3. बाढ़ क्षेत्रों का कृषि में उपयोग:
बाढ़ क्षेत्रों, जो पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, को कृषि योजनाओं में शामिल किया जा सकता है। इन क्षेत्रों में बाढ़-प्रतिरोधी फसलों और खेती की तकनीकों का उपयोग कर बाढ़ के पानी के पोषक तत्वों को कृषि उत्पादकता में बदला जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, ब्रह्मपुत्र घाटी (असम) में बाढ़ के पानी से फसलों की उत्पादकता बढ़ी है।
4. अन्तर्देशीय नौसंचालन के लिए बाढ़ जल का उपयोग:
बाढ़ के पानी का अन्तर्देशीय नौसंचालन के लिए उपयोग में लाने के लिए नदी चैनलों और जलमार्गों का विकास किया जा सकता है। बाढ़ क्षेत्रों और नदी चैनलों को गहरा और बनाए रखा जा सकता है ताकि बाढ़ और बाद में नौसंचालन संभव हो सके। राष्ट्रीय जलमार्ग-1 (गंगा) और राष्ट्रीय जलमार्ग-2 (ब्रह्मपुत्र) इसका उदाहरण हैं।
5. स्मार्ट बाढ़ प्रबंधन प्रणाली:
स्मार्ट बाढ़ प्रबंधन प्रणाली का उपयोग बाढ़ पूर्वानुमान और प्रबंधन के लिए किया जा सकता है। सैटेलाइट तकनीक और जीआईएस (भूगोलिक सूचना प्रणाली) बाढ़ घटनाओं की भविष्यवाणी करने और बाढ़ के पानी के उपयोग की योजना बनाने में सहायक हो सकते हैं।
6. सरकारी योजनाएँ और नीतियाँ:
राष्ट्रीय मिशन फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (NMSA) और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) जैसी सरकारी योजनाएँ बाढ़ के पानी का उपयोग प्रभावी ढंग से करने के लिए अवसंरचना और प्रथाओं के विकास का समर्थन करती हैं।
निष्कर्ष:
See lessभारत में बाढ़ों को सिंचाई और अन्तर्देशीय नौसंचालन के लिए धारणीय संसाधन में बदलने के लिए प्रभावी योजना और अवसंरचना विकास की आवश्यकता है। बाढ़ जल संचयन, जलाशय निर्माण, बाढ़ क्षेत्रों का कृषि में उपयोग, और नौसंचालन परियोजनाओं में निवेश बाढ़ के पानी को लाभकारी बनाने में सहायक हो सकते हैं।