क्या प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति भारत में रोज़गार की प्रोन्नति करने में सहायक हो सकती है ? (250 words) [UPSC 2019]
भारत में आई.टी. और बी.पी.एम. उद्योग की स्थिति: भारत का आई.टी. और बी.पी.एम. (बिजनेस प्रॉसेस मैनेजमेंट) उद्योग वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह उद्योग 1990 के दशक की शुरुआत से तेजी से विकसित हुआ है और अब वैश्विक आई.टी. आउटसोर्सिंग और बी.पी.एम. सेवाओं में एक प्रमुख खिलाड़ी है। भारत के आईRead more
भारत में आई.टी. और बी.पी.एम. उद्योग की स्थिति:
भारत का आई.टी. और बी.पी.एम. (बिजनेस प्रॉसेस मैनेजमेंट) उद्योग वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह उद्योग 1990 के दशक की शुरुआत से तेजी से विकसित हुआ है और अब वैश्विक आई.टी. आउटसोर्सिंग और बी.पी.एम. सेवाओं में एक प्रमुख खिलाड़ी है। भारत के आई.टी. उद्योग ने सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, सिस्टम इंटीग्रेशन, कस्टमर सपोर्ट, और अन्य प्रौद्योगिकी सेवाओं में उत्कृष्टता हासिल की है। बी.पी.एम. सेक्टर, जिसमें व्यापार प्रक्रियाओं की आउटसोर्सिंग शामिल है, ने भी दुनिया भर की कंपनियों के लिए सेवाएँ प्रदान की हैं, जिससे भारत को वैश्विक बाजार में महत्वपूर्ण स्थान मिला है।
भारत में आई.टी. और बी.पी.एम. उद्योग के प्रमुख केंद्र हैं बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, और नोएडा। ये शहर न केवल तकनीकी कौशल और उन्नत सुविधाओं के लिए प्रसिद्ध हैं, बल्कि ये कुछ महत्वपूर्ण कारकों के कारण भी प्रमुख आई.टी. हब बने हैं:
आई.टी. हब की अवस्थिति में महत्वपूर्ण कारक:
- शिक्षा और कौशल: उच्च गुणवत्ता वाली तकनीकी शिक्षा और आई.टी. क्षेत्र में दक्ष पेशेवरों की उपलब्धता।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर: उन्नत आई.टी. पार्क, कार्यालय सुविधाएँ, और डेटा सेंटर की उपलब्धता।
- लागत-प्रभावशीलता: संचालन की लागत में लाभ, जैसे कि वेतन और अन्य संचालन खर्चे।
- नीतिगत समर्थन: राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा प्रोत्साहन और समर्थन योजनाएं, जैसे कि कर छूट और सब्सिडी।
- नेटवर्किंग और कनेक्टिविटी: बेहतर इंटरनेट और दूरसंचार नेटवर्क, जो वैश्विक संचार और डेटा ट्रांसफर को सुगम बनाते हैं।
इन कारकों ने भारत को आई.टी. और बी.पी.एम. उद्योग में एक वैश्विक नेता बनने में मदद की है, और देश के विभिन्न शहरों को इन उद्योगों के प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित किया है।
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प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति और रोज़गार की प्रोन्नति 1. स्थानीय संसाधनों के माध्यम से रोज़गार सृजन: प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति का उद्देश्य स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर उद्योगों की स्थापना करना है, जिससे ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर बढ़ सकते हैं। उदाRead more
प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति और रोज़गार की प्रोन्नति
1. स्थानीय संसाधनों के माध्यम से रोज़गार सृजन:
प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति का उद्देश्य स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर उद्योगों की स्थापना करना है, जिससे ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर बढ़ सकते हैं। उदाहरणस्वरूप, गुजरात का वस्त्र उद्योग, जो स्थानीय कपास पर आधारित है, ने कृषि और विनिर्माण दोनों क्षेत्रों में व्यापक रोज़गार उत्पन्न किया है।
2. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को बढ़ावा:
यह रणनीति सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को प्रोत्साहित कर सकती है, जो भारत में रोज़गार का एक प्रमुख स्रोत हैं। भारत के छत्तीसगढ़ में बांस आधारित उद्योग का उदाहरण लिया जा सकता है, जिसने स्थानीय कारीगरों और छोटे उद्यमों को सशक्त किया है, जिससे रोज़गार के अवसर बढ़े हैं।
3. समावेशी आर्थिक विकास:
स्थानीय संसाधनों पर आधारित उद्योगों से समावेशी विकास को बढ़ावा मिलेगा, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच आर्थिक असमानता कम होगी। उदाहरण के लिए, ओडिशा का इस्पात और एल्यूमीनियम उद्योग, जो स्थानीय खनिज संसाधनों पर आधारित है, ने न केवल रोज़गार सृजन किया है बल्कि क्षेत्रीय विकास में भी योगदान दिया है।
4. पर्यावरणीय स्थिरता और लागत में कमी:
स्थानीय संसाधनों पर आधारित विनिर्माण पर्यावरणीय स्थिरता को भी बढ़ावा देता है क्योंकि इससे परिवहन लागत और ऊर्जा खपत में कमी आती है। उदाहरण के तौर पर, केरल का नारियल उद्योग स्थानीय नारियल की भूसी का उपयोग करता है, जिससे कार्बन उत्सर्जन कम होता है और स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलता है।
5. चुनौतियाँ और समाधान:
इस रणनीति में संभावनाएँ हैं, परंतु कौशल विकास और अवसंरचना की चुनौतियाँ सामने हैं। कौशल विकास योजनाएँ जैसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) स्थानीय श्रमिकों को औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुसार प्रशिक्षित करने में मदद कर सकती हैं।
निष्कर्ष:
See lessप्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति भारत में रोज़गार सृजन के लिए एक प्रभावी तरीका हो सकता है, विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में। गुजरात और ओडिशा जैसे राज्यों में इस रणनीति की सफलता यह दर्शाती है कि स्थानीय संसाधनों और औद्योगिक विकास के संयोजन से आर्थिक विकास और रोज़गार में वृद्धि संभव है।