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क्या प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति भारत में रोज़गार की प्रोन्नति करने में सहायक हो सकती है ? (250 words) [UPSC 2019]
प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति और रोज़गार की प्रोन्नति 1. स्थानीय संसाधनों के माध्यम से रोज़गार सृजन: प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति का उद्देश्य स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर उद्योगों की स्थापना करना है, जिससे ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर बढ़ सकते हैं। उदाRead more
प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति और रोज़गार की प्रोन्नति
1. स्थानीय संसाधनों के माध्यम से रोज़गार सृजन:
प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति का उद्देश्य स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर उद्योगों की स्थापना करना है, जिससे ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर बढ़ सकते हैं। उदाहरणस्वरूप, गुजरात का वस्त्र उद्योग, जो स्थानीय कपास पर आधारित है, ने कृषि और विनिर्माण दोनों क्षेत्रों में व्यापक रोज़गार उत्पन्न किया है।
2. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को बढ़ावा:
यह रणनीति सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को प्रोत्साहित कर सकती है, जो भारत में रोज़गार का एक प्रमुख स्रोत हैं। भारत के छत्तीसगढ़ में बांस आधारित उद्योग का उदाहरण लिया जा सकता है, जिसने स्थानीय कारीगरों और छोटे उद्यमों को सशक्त किया है, जिससे रोज़गार के अवसर बढ़े हैं।
3. समावेशी आर्थिक विकास:
स्थानीय संसाधनों पर आधारित उद्योगों से समावेशी विकास को बढ़ावा मिलेगा, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच आर्थिक असमानता कम होगी। उदाहरण के लिए, ओडिशा का इस्पात और एल्यूमीनियम उद्योग, जो स्थानीय खनिज संसाधनों पर आधारित है, ने न केवल रोज़गार सृजन किया है बल्कि क्षेत्रीय विकास में भी योगदान दिया है।
4. पर्यावरणीय स्थिरता और लागत में कमी:
स्थानीय संसाधनों पर आधारित विनिर्माण पर्यावरणीय स्थिरता को भी बढ़ावा देता है क्योंकि इससे परिवहन लागत और ऊर्जा खपत में कमी आती है। उदाहरण के तौर पर, केरल का नारियल उद्योग स्थानीय नारियल की भूसी का उपयोग करता है, जिससे कार्बन उत्सर्जन कम होता है और स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलता है।
5. चुनौतियाँ और समाधान:
इस रणनीति में संभावनाएँ हैं, परंतु कौशल विकास और अवसंरचना की चुनौतियाँ सामने हैं। कौशल विकास योजनाएँ जैसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) स्थानीय श्रमिकों को औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुसार प्रशिक्षित करने में मदद कर सकती हैं।
निष्कर्ष:
See lessप्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति भारत में रोज़गार सृजन के लिए एक प्रभावी तरीका हो सकता है, विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में। गुजरात और ओडिशा जैसे राज्यों में इस रणनीति की सफलता यह दर्शाती है कि स्थानीय संसाधनों और औद्योगिक विकास के संयोजन से आर्थिक विकास और रोज़गार में वृद्धि संभव है।
भारत में संधारणीय पर्यटन के संबंध में क्षेत्र-विशिष्ट बाधाओं का एक समालोचनात्मक विवरण दीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत में संधारणीय पर्यटन (Sustainable Tourism) की वृद्धि के बावजूद, विभिन्न क्षेत्रों में इसे अपनाने में कई बाधाएँ सामने आती हैं। इन बाधाओं का क्षेत्र-विशिष्ट विवरण निम्नलिखित है: 1. हिमालयी क्षेत्र: अत्यधिक पर्यटकों की भीड़: ऊँचाई पर स्थित पर्यटन स्थल जैसे मनाली, शिमला, और दार्जिलिंग में अत्यधिक परRead more
भारत में संधारणीय पर्यटन (Sustainable Tourism) की वृद्धि के बावजूद, विभिन्न क्षेत्रों में इसे अपनाने में कई बाधाएँ सामने आती हैं। इन बाधाओं का क्षेत्र-विशिष्ट विवरण निम्नलिखित है:
1. हिमालयी क्षेत्र:
2. तटीय क्षेत्र:
3. रेगिस्तानी क्षेत्र:
4. जंगल और वन क्षेत्र:
5. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल:
इन बाधाओं को दूर करने के लिए, सभी स्तरों पर एकीकृत प्रयास, नीति निर्माण, और स्थानीय समुदायों के साथ सहयोग की आवश्यकता है, ताकि पर्यटन को पर्यावरणीय और सामाजिक दृष्टिकोण से टिकाऊ बनाया जा सके।
See lessभारत के प्रमुख शहरों में आई.टी. उद्योगों के विकास से उत्पन्न होने वाले मुख्य सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या हैं ? (250 words) [UPSC 2021]
भारत के प्रमुख शहरों में आई.टी. उद्योगों के विकास के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव आर्थिक विकास और रोजगार सृजन: आर्थिक वृद्धि: आई.टी. उद्योगों के विकास ने भारत के प्रमुख शहरों में आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया है। बेंगलुरु, हैदराबाद, और पुणे जैसे शहरों में आई.टी. सेक्टर ने बड़े पैमाने पर निवेश और आय को आकर्षिRead more
भारत के प्रमुख शहरों में आई.टी. उद्योगों के विकास के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
आर्थिक विकास और रोजगार सृजन:
शहरीकरण और जीवनशैली में परिवर्तन:
सामाजिक असमानता और चुनौती:
शिक्षा और कौशल विकास:
निष्कर्ष:
आई.टी. उद्योगों का विकास भारत के प्रमुख शहरों में महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक प्रभाव डालता है। यह आर्थिक वृद्धि, रोजगार सृजन, और जीवनशैली में सुधार लाता है, लेकिन सामाजिक असमानता और शहरीकरण की चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करता है। इन प्रभावों को संतुलित करने के लिए सतत और समावेशी विकास की रणनीतियाँ अपनाना आवश्यक है।
See lessभारत में आई.टी. & बी.पी.एम. (बिजनेस प्रॉसेस मैनेजमेंट) उद्योग की स्थिति का संक्षिप्त विवरण दीजिए। साथ ही, विभिन्न भारतीय शहरों में आई.टी. हब की अवस्थिति का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कारकों पर चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
**भारत में आई.टी. और बी.पी.एम. उद्योग की स्थिति:** भारत का आई.टी. और बी.पी.एम. (बिजनेस प्रॉसेस मैनेजमेंट) उद्योग वैश्विक स्तर पर प्रमुख स्थान रखता है। यह क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करता है और विदेशी मुद्रा अर्जन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 1. **वृद्धि और विकास**: भारत काRead more
**भारत में आई.टी. और बी.पी.एम. उद्योग की स्थिति:**
भारत का आई.टी. और बी.पी.एम. (बिजनेस प्रॉसेस मैनेजमेंट) उद्योग वैश्विक स्तर पर प्रमुख स्थान रखता है। यह क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करता है और विदेशी मुद्रा अर्जन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
1. **वृद्धि और विकास**: भारत का आई.टी. और बी.पी.एम. उद्योग विश्व के सबसे तेजी से विकसित होने वाले सेक्टरों में से एक है। 2024 तक, भारतीय आई.टी. उद्योग की अनुमानित वृद्धि $250 अरब से अधिक हो सकती है। बी.पी.एम. क्षेत्र भी तेजी से बढ़ रहा है, जिसमें क्लाउड सेवाएँ, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), और डेटा एनालिटिक्स शामिल हैं।
2. **नौकरियों का सृजन**: यह उद्योग लाखों रोजगार अवसर प्रदान करता है और युवा पेशेवरों के लिए एक महत्वपूर्ण रोजगार क्षेत्र है।
3. **आयात और निर्यात**: भारत का आई.टी. और बी.पी.एम. उद्योग वैश्विक बाजार में प्रमुख निर्यातक है, खासकर अमेरिका, यूरोप और एशिया के देशों के लिए।
**आई.टी. हब की अवस्थिति में महत्वपूर्ण कारक:**
1. **शिक्षा और कौशल**: आई.टी. हब की सफलता में स्थानीय शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता और तकनीकी कौशल की उपलब्धता महत्वपूर्ण होती है। बेंगलुरु, हैदराबाद, और पुणे जैसे शहरों में कई शीर्ष तकनीकी संस्थान हैं।
2. **वेतन और जीवन यापन की लागत**: कम वेतन और जीवन यापन की लागत वाले शहरों में आई.टी. कंपनियाँ अपने संचालन को महंगे शहरों की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्धी बना सकती हैं। चेन्नई और अहमदाबाद जैसे शहर इसमें शामिल हैं।
3. **इन्फ्रास्ट्रक्चर**: एक अच्छा आई.टी. हब शहर में उन्नत इंफ्रास्ट्रक्चर, जैसे कि उच्च गति इंटरनेट, सस्ती और सुलभ परिवहन सुविधाएँ, और आधुनिक कार्यालय भवन होना चाहिए।
4. **सरकारी नीतियाँ और प्रोत्साहन**: राज्य सरकारें और केंद्र सरकार आई.टी. क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष नीतियाँ और प्रोत्साहन प्रदान करती हैं। उदाहरण के लिए, बेंगलुरु और हैदराबाद में विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) और आई.टी. पार्कों की स्थापना ने इस क्षेत्र को बढ़ावा दिया है।
5. **लॉजिस्टिक सपोर्ट**: बेहतर लॉजिस्टिक और परिवहन नेटवर्क भी आई.टी. हब के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इन कारकों के संयोजन से भारत के विभिन्न शहरों में आई.टी. हब का विकास हुआ है, जो देश को वैश्विक आई.टी. और बी.पी.एम. उद्योग में प्रमुख स्थान पर ले जा रहा है।
See lessजैसा कि विश्व अर्धचालक की तीव्र कमी से जूझ रहा है, ऐसे में भारत के लिए इस क्षेत्रक में आगे बढ़ने का अवसर उपलब्ध है। इस संदर्भ में, भारत में चिप डिजाइन उद्योग के समक्ष विद्यमान चुनौतियों पर चर्चा कीजिए तथा इस संबंध में उठाए जा सकने वाले कदमों का उल्लेख कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
वर्तमान में विश्व अर्धचालक (सेमीकंडक्टर) की कमी से जूझ रहा है, और भारत के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है। हालांकि, इस क्षेत्र में भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। **चुनौतियाँ:** 1. **तकनीकी अंतर**: भारत में चिप डिजाइन और निर्माण में तकनीकी अवसंरचना की कमी है। अत्याधुनिक डिजRead more
वर्तमान में विश्व अर्धचालक (सेमीकंडक्टर) की कमी से जूझ रहा है, और भारत के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है। हालांकि, इस क्षेत्र में भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
**चुनौतियाँ:**
1. **तकनीकी अंतर**: भारत में चिप डिजाइन और निर्माण में तकनीकी अवसंरचना की कमी है। अत्याधुनिक डिजाइन और निर्माण तकनीकों के लिए उच्च स्तर की तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, जो अभी भारत में सीमित है।
2. **निवेश की कमी**: सेमीकंडक्टर उद्योग में भारी निवेश की आवश्यकता होती है। भारत में इस क्षेत्र में निवेश की कमी है, जिससे नई कंपनियों और परियोजनाओं को स्थापित करने में कठिनाई होती है।
3. **कौशल की कमी**: चिप डिजाइनिंग और निर्माण के लिए विशेष तकनीकी कौशल की आवश्यकता होती है। भारत में इस क्षेत्र में प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी है, जो उद्योग की वृद्धि में बाधा डालती है।
4. **समयसीमा और प्रतिस्पर्धा**: वैश्विक प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ त्वरित समयसीमा में उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन की चुनौतियाँ भी हैं।
**उठाए जाने वाले कदम:**
1. **निवेश और प्रोत्साहन**: सरकार को सेमीकंडक्टर उद्योग के लिए वित्तीय प्रोत्साहन और सब्सिडी प्रदान करनी चाहिए। ‘सेमीकंडक्टर मिशन’ के तहत उद्योग को आकर्षित करने के लिए विशेष आर्थिक पैकेज और कर लाभ प्रदान किए जा सकते हैं।
2. **शिक्षा और कौशल विकास**: उच्च गुणवत्ता वाले प्रशिक्षण और शिक्षा कार्यक्रमों की शुरुआत की जानी चाहिए, जो चिप डिजाइन और निर्माण में विशेषज्ञता प्रदान करें।
3. **अंतर्राष्ट्रीय सहयोग**: भारत को वैश्विक सेमीकंडक्टर कंपनियों और अनुसंधान संस्थानों के साथ साझेदारी करनी चाहिए, ताकि तकनीकी सहयोग और ज्ञान हस्तांतरण को बढ़ावा मिल सके।
4. **आवश्यक अवसंरचना**: चिप निर्माण के लिए अत्याधुनिक अवसंरचना की स्थापना पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, जिसमें सेमीकंडक्टर फैब्स (फैब्रिकेशन यूनिट्स) और अनुसंधान प्रयोगशालाएँ शामिल हैं।
इन कदमों के माध्यम से भारत सेमीकंडक्टर उद्योग में आत्मनिर्भर बनने और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सफल होने की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
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