भारत में निर्धनता की माप कैसे की जाती है? भारत में ग्रामीण निर्धनता दूर करने के लिए उठाये गये कदमों का वर्णन कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
परिचय: ऐन्टीबायोटिकों का अति-उपयोग और डॉक्टरी नुस्खे के बिना उनकी मुक्त उपलब्धता भारत में औषधि प्रतिरोधी रोगों के उदय के प्रमुख कारण हो सकते हैं। यह समस्या सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करती है, क्योंकि इससे ऐन्टीबायोटिक की प्रभावशीलता कम होती है और प्रतिरोधी बैक्टीरिया का प्रसार होतRead more
परिचय: ऐन्टीबायोटिकों का अति-उपयोग और डॉक्टरी नुस्खे के बिना उनकी मुक्त उपलब्धता भारत में औषधि प्रतिरोधी रोगों के उदय के प्रमुख कारण हो सकते हैं। यह समस्या सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करती है, क्योंकि इससे ऐन्टीबायोटिक की प्रभावशीलता कम होती है और प्रतिरोधी बैक्टीरिया का प्रसार होता है।
औषधि प्रतिरोध के योगदानकर्ता:
- अति-उपयोग: ऐन्टीबायोटिकों का अत्यधिक और अनुचित उपयोग, जैसे कि वायरल संक्रमणों में जहाँ ये प्रभावी नहीं होते, प्रतिरोधी बैक्टीरिया के विकास को तेज करता है। उदाहरण के लिए, भारतीय परिषद अनुसंधान (ICMR) की एक रिपोर्ट में, ई. कोलाई और स्टैफिलोकोकस ऑरियस जैसी सामान्य बैक्टीरिया में सिप्रोफ्लोक्सासिन और अमोक्सीसिलीन के प्रति उच्च प्रतिरोध दर देखी गई है।
- डॉक्टरी नुस्खे के बिना उपलब्धता: भारत में कई फार्मेसियों में ऐन्टीबायोटिक नुस्खे के बिना बिकते हैं, जिससे आत्म-उपचार को बढ़ावा मिलता है। उदाहरण के लिए, अजिथ्रोमाइसिन और डॉक्सीसाइक्लिन जैसी दवाएँ बिना डॉक्टर के परामर्श के उपयोग की जाती हैं, जो दुरुपयोग और प्रतिरोध को बढ़ावा देती हैं।
अनुवीक्षण और नियंत्रण की क्रियाविधियाँ:
- नियामक उपाय: भारत में दवाओं और कॉस्मेटिक्स अधिनियम के तहत नियम और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) की दिशानिर्देश ऐन्टीबायोटिक उपयोग को नियंत्रित करने के लिए लागू हैं। हालांकि, इन नियमों का अनुपालन कमजोर है, और कई फार्मेसियाँ बिना नुस्खे के ऐन्टीबायोटिक बेचती हैं।
- ऐन्टीबायोटिक स्टुअर्डशिप कार्यक्रम: अस्पतालों और क्लीनिकों में स्टुअर्डशिप कार्यक्रमों का कार्यान्वयन ऐन्टीबायोटिक उपयोग को अनुकूलित करने और प्रतिरोध को कम करने में सहायक हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की वैश्विक कार्य योजना में इस पर जोर दिया गया है, हालांकि भारत में इसका व्यापक कार्यान्वयन एक चुनौती है।
- जन जागरूकता अभियानों: “ऐन्टीबायोटिक जागरूकता सप्ताह” जैसी पहलें जनता को दवाओं के दुरुपयोग और निर्धारित उपचार पूरा करने के महत्व के बारे में शिक्षित करने का प्रयास करती हैं। यह आत्म-उपचार और दुरुपयोग को कम करने में मदद कर सकती है।
समीक्षा:
- प्रवर्तन की चुनौतियाँ: नियमों का कमजोर प्रवर्तन ऐन्टीबायोटिक के मुफ्त बिक्री की अनुमति देता है, जिससे नियंत्रण प्रयासों को नुकसान पहुंचता है। नियमों को मजबूत करना और अनुपालन में सुधार आवश्यक है।
- अनुवीक्षण की कमी: अपर्याप्त अनुवीक्षण प्रणालियाँ प्रतिरोध पैटर्न की प्रभावी निगरानी में बाधा डालती हैं। डेटा संग्रह और अनुवीक्षण को मजबूत करना महत्वपूर्ण है।
- आर्थिक और सांस्कृतिक कारक: आर्थिक सीमाएं और सांस्कृतिक प्रथाएँ, जैसे कि आत्म-उपचार, ऐन्टीबायोटिक दुरुपयोग में योगदान करती हैं। इनका समाधान बहुपरकारी रणनीतियों की आवश्यकता है, जिसमें आर्थिक समर्थन और सांस्कृतिक परिवर्तन शामिल हैं।
निष्कर्ष: ऐन्टीबायोटिकों का अति-उपयोग और नुस्खे के बिना उपलब्धता भारत में औषधि प्रतिरोधी रोगों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रभावी नियंत्रण के लिए नियामक ढांचे को मजबूत करना, स्टुअर्डशिप कार्यक्रमों को लागू करना, और जन जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। संबंधित मुद्दों पर ध्यान देकर ही इस समस्या का समाधान संभव है।
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भारत में निर्धनता की माप और ग्रामीण निर्धनता दूर करने के कदम 1. निर्धनता की माप: निर्धनता रेखा: भारत में निर्धनता की माप आय और उपभोग के आधार पर की जाती है। तेंदुलकर समिति (2009) और रंगराजन समिति (2014) ने निर्धनता रेखा को अद्यतन किया है, जो यह निर्धारित करती है कि व्यक्ति या परिवार कितनी आय पर निर्धRead more
भारत में निर्धनता की माप और ग्रामीण निर्धनता दूर करने के कदम
1. निर्धनता की माप:
2. ग्रामीण निर्धनता दूर करने के कदम:
निष्कर्ष: भारत निर्धनता को आय-आधारित मापदंडों और सर्वेक्षणों के माध्यम से मापता है। ग्रामीण निर्धनता दूर करने के लिए रोजगार गारंटी, आवास योजनाएँ और आत्मनिर्भरता कार्यक्रम जैसे उपाय उठाए गए हैं।
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