क्या आप इस बात से सहमत हैं कि आर्थिक सुधार के बाद की अवधि में उच्च आर्थिक संवृद्धि के परिणामस्वरूप संवृद्धि का लाभ हाशिए पर मौजूद वर्गों तक नहीं पहुंच पाया है, जिससे समावेशी विकास चिंता का एक प्रमुख विषय ...
समावेशी संवृद्धि का विकासात्मक रणनीति में केंद्रबिंदु 1. समावेशी संवृद्धि की परिभाषा: समावेशी संवृद्धि का तात्पर्य विकास की ऐसी प्रक्रिया से है, जो सभी वर्गों, विशेषकर अल्पसंख्यक और गरीब वर्गों, को लाभ पहुँचाती है। इसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करना और सभी नागरिकों के लिए समान अवसरRead more
समावेशी संवृद्धि का विकासात्मक रणनीति में केंद्रबिंदु
1. समावेशी संवृद्धि की परिभाषा: समावेशी संवृद्धि का तात्पर्य विकास की ऐसी प्रक्रिया से है, जो सभी वर्गों, विशेषकर अल्पसंख्यक और गरीब वर्गों, को लाभ पहुँचाती है। इसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करना और सभी नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान करना है।
2. भारत के संदर्भ में समावेशी संवृद्धि: भारत ने समावेशी संवृद्धि को अपनी विकासात्मक रणनीति का केंद्रीय तत्व माना है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना और आत्मनिर्भर भारत अभियान जैसे कार्यक्रमों ने गरीब और हाशिए पर स्थित लोगों के लिए आर्थिक सहायता और रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित किया है। उज्ज्वला योजना ने गरीब परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन प्रदान किया, जिससे उनकी जीवन गुणवत्ता में सुधार हुआ।
3. उपचारात्मक सुझाव:
1. शिक्षा और कौशल विकास: समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) को लागू किया जाना चाहिए। इसके तहत, कौशल विकास कार्यक्रमों को व्यापक रूप से फैलाया जाना चाहिए, ताकि युवाओं को रोजगार के अवसर मिल सकें।
2. स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार: स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को सभी वर्गों तक बढ़ाने के लिए आयुष्मान भारत योजना को और प्रभावी बनाया जाना चाहिए, ताकि गरीब परिवारों को उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा सेवाएँ मिल सकें।
3. आर्थिक अवसरों का विस्तार: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (MSMEs) को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता और अनुकूल नीतियाँ लागू की जानी चाहिए। इससे स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के अवसर सृजित होंगे।
4. सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क: सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को विस्तारित किया जाना चाहिए, जैसे महमारी के दौरान प्रवासी श्रमिकों के लिए खाद्य सुरक्षा और रोजगार सुरक्षा योजनाएँ।
निष्कर्ष: समावेशी संवृद्धि भारत की विकासात्मक रणनीति का केंद्रीय तत्व है, जो सभी वर्गों के लिए समान अवसर प्रदान करने पर जोर देता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक अवसर, और सामाजिक सुरक्षा में सुधार के माध्यम से इस लक्ष्य की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सकती है।
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हाँ, यह कहना उचित है कि आर्थिक सुधार के बाद की अवधि में उच्च आर्थिक संवृद्धि के परिणामस्वरूप संवृद्धि का लाभ हाशिए पर मौजूद वर्गों तक नहीं पहुंच पाया है, और समावेशी विकास एक प्रमुख चिंता बन गया है। इसके औचित्य के निम्नलिखित कारण हैं: आय असमानता: आर्थिक सुधारों ने समग्र GDP वृद्धि को बढ़ाया, लेकिन इसRead more
हाँ, यह कहना उचित है कि आर्थिक सुधार के बाद की अवधि में उच्च आर्थिक संवृद्धि के परिणामस्वरूप संवृद्धि का लाभ हाशिए पर मौजूद वर्गों तक नहीं पहुंच पाया है, और समावेशी विकास एक प्रमुख चिंता बन गया है। इसके औचित्य के निम्नलिखित कारण हैं:
आय असमानता: आर्थिक सुधारों ने समग्र GDP वृद्धि को बढ़ाया, लेकिन इस वृद्धि का लाभ अमीर वर्गों और बड़े शहरों तक सीमित रहा, जबकि गरीब और हाशिए पर मौजूद वर्गों को इसका समान लाभ नहीं मिला।
संवृद्धि का असमान वितरण: शहरी क्षेत्रों और औद्योगिक क्षेत्रों में अधिक निवेश होने से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में विकास की दर धीमी रही, जिससे असमानता बढ़ी।
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: हाशिए पर मौजूद वर्गों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो पाया।
इन कारणों से, समावेशी विकास, जो हर वर्ग को आर्थिक लाभ और अवसर प्रदान करता है, चिंता का एक प्रमुख विषय बन गया है।
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