ऊर्जा क्षेत्रक के संदर्भ में डीकार्बोनाइजेशन, विकेंद्रीकरण और डिजिटलीकरण की प्रवृत्तियां तेजी से उभर रही हैं। चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दें)
नयी औद्योगिक नीति में 'नया' क्या है? 1. नयी औद्योगिक नीति की विशेषताएँ: प्रौद्योगिकी उन्नयन और नवाचार: नई औद्योगिक नीति (NIP) 2021 में प्रौद्योगिकी और नवाचार को प्रोत्साहित करने पर विशेष ध्यान दिया गया है। सरकार ने डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और स्वचालन जैसी तकनीकों पर जोर दिया हैRead more
नयी औद्योगिक नीति में ‘नया’ क्या है?
1. नयी औद्योगिक नीति की विशेषताएँ:
- प्रौद्योगिकी उन्नयन और नवाचार: नई औद्योगिक नीति (NIP) 2021 में प्रौद्योगिकी और नवाचार को प्रोत्साहित करने पर विशेष ध्यान दिया गया है। सरकार ने डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और स्वचालन जैसी तकनीकों पर जोर दिया है। उदाहरण के लिए, पीएम-गति शक्ति योजना के अंतर्गत बेहतर लॉजिस्टिक्स और डिजिटल ट्रैकिंग की दिशा में काम किया जा रहा है।
- आत्मनिर्भर भारत अभियान: नीति में मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों को प्रमुखता दी गई है। इसमें घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन और कर लाभ प्रदान किए गए हैं। एलआईसी और बीएसएनएल जैसे सार्वजनिक उपक्रमों को निजी क्षेत्र में विस्तार देने की योजना है।
- निवेश और व्यापार में सुधार: नीति में निवेश और व्यापार में सुगमता के लिए नए प्रावधान किए गए हैं। वन स्टॉप शॉप सुविधा और ग्लोबल सप्लाई चेन को भारतीय बाजार में लाने के प्रयास किए गए हैं।
2. औद्योगिक विकास पर प्रभाव:
- उच्च वृद्धि दर: नई नीति से औद्योगिक क्षेत्र में नवाचार और तकनीकी उन्नति से उत्पादकता में वृद्धि होने की संभावना है। उदाहरण के लिए, मेक इन इंडिया से ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में विदेशी निवेश बढ़ा है।
- आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रगति: आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने से भारत आपूर्ति श्रृंखला में आत्मनिर्भर हो सकेगा, जो विदेशी निर्भरता को कम करेगा और स्थानीय उद्योगों को सशक्त बनाएगा।
- रोजगार सृजन: नयी नीति के तहत औद्योगिक विकास में निवेश और विकास परियोजनाओं से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, जिससे बेरोज़गारी में कमी आएगी।
इन विशेषताओं और प्रभावों से स्पष्ट है कि नयी औद्योगिक नीति औद्योगिक विकास को नई दिशा और मजबूती प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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ऊर्जा क्षेत्र में डीकार्बोनाइजेशन, विकेंद्रीकरण, और डिजिटलीकरण की प्रवृत्तियाँ तेजी से उभर रही हैं, जो इस क्षेत्र की संरचना और कार्यप्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव ला रही हैं। डीकार्बोनाइजेशन: यह प्रवृत्ति कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों को संदर्भित करती है, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से निRead more
ऊर्जा क्षेत्र में डीकार्बोनाइजेशन, विकेंद्रीकरण, और डिजिटलीकरण की प्रवृत्तियाँ तेजी से उभर रही हैं, जो इस क्षेत्र की संरचना और कार्यप्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव ला रही हैं।
डीकार्बोनाइजेशन: यह प्रवृत्ति कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों को संदर्भित करती है, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से निपटना है। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर, पवन, और हाइड्रो ऊर्जा का उपयोग बढ़ाया जा रहा है ताकि कोयला और गैस जैसे पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम की जा सके। इसके अतिरिक्त, ऊर्जा दक्षता में सुधार, इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रोत्साहन, और कार्बन कैप्चर तकनीकों के विकास से कार्बन फुटप्रिंट को घटाने में सहायता मिल रही है।
विकेंद्रीकरण: ऊर्जा प्रणाली के विकेंद्रीकरण का मतलब है ऊर्जा उत्पादन और वितरण के केंद्रीकृत मॉडल से लेकर स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर ऊर्जा उत्पादन और वितरण की ओर बढ़ना। माइक्रोग्रिड्स, घरों में सौर पैनल, और बैटरी स्टोरेज सिस्टम्स इस प्रवृत्ति के प्रमुख उदाहरण हैं। विकेंद्रीकरण से ऊर्जा आपूर्ति में लचीलापन और विश्वसनीयता बढ़ती है, जबकि ऊर्जा उत्पादन को स्थानीय स्तर पर किया जा सकता है, जिससे ऊर्जा लागत में कमी और ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि होती है।
डिजिटलीकरण: ऊर्जा क्षेत्र में डिजिटलीकरण का मतलब है ऊर्जा उत्पादन, वितरण और खपत को डिजिटल तकनीकों और डेटा एनालिटिक्स के माध्यम से बेहतर बनाना। स्मार्ट ग्रिड्स, आईओटी (Internet of Things) सेंसर्स, और एंटरप्राइज़ रिसोर्स प्लानिंग (ERP) सिस्टम्स ऊर्जा प्रबंधन में सटीकता और दक्षता को बढ़ाते हैं। ये तकनीकें रीयल-टाइम डेटा का उपयोग करके प्रणाली की निगरानी, रखरखाव, और ऑप्टिमाइजेशन में सहायता करती हैं, जिससे ऊर्जा की हानि कम होती है और सिस्टम की विश्वसनीयता बढ़ती है।
इन तीन प्रवृत्तियों का संयोजन ऊर्जा क्षेत्र में स्थिरता, सुरक्षा, और कुशलता को बढ़ावा देने में सहायक है, जो पर्यावरणीय लाभ और आर्थिक अवसर दोनों प्रदान करता है।
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