1991 के आर्थिक सुधार, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक व्यापक संरचनात्मक सुधार थे। चर्चा कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
नियोजित विकास स्वतंत्र भारत के आर्थिक सुधारों में एक महत्वपूर्ण पहलू था, और द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) इसे उत्कृष्टता की ओर ले जाने वाले कदम के रूप में मील का पत्थर साबित हुई। द्वितीय पंचवर्षीय योजना को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसके अंतर्गत कई प्रमुख आर्थिक सुधार और विकासाRead more
नियोजित विकास स्वतंत्र भारत के आर्थिक सुधारों में एक महत्वपूर्ण पहलू था, और द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) इसे उत्कृष्टता की ओर ले जाने वाले कदम के रूप में मील का पत्थर साबित हुई।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसके अंतर्गत कई प्रमुख आर्थिक सुधार और विकासात्मक पहलुओं को लागू किया गया:
- औद्योगिकीकरण: इस योजना ने औद्योगिकीकरण को प्राथमिकता दी और भारी उद्योगों, जैसे इस्पात, ऊर्जा और खनन क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित किया। यह भारत की औद्योगिक आधारशिला को मजबूत करने में सहायक साबित हुआ।
- संरचनात्मक सुधार: योजना ने बुनियादी ढांचे के विकास, जैसे सड़कों, रेलवेज़ और जलस्रोतों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया। इससे उद्योगों की वृद्धि को समर्थन मिला और आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि हुई।
- सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार: इस योजना के तहत सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की स्थापना की गई, जो भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं।
- आर्थिक योजना का दृष्टिकोण: यह योजना योजना आयोग द्वारा तैयार की गई थी और इसमें विस्तृत आर्थिक दृष्टिकोण और लक्ष्यों का समावेश था, जो भारत की दीर्घकालिक विकास नीति को दिशा देने में सहायक साबित हुआ।
इन पहलों ने भारत के औद्योगिक विकास को गति दी और देश की आर्थिक आधारशिला को सशक्त किया, जिससे द्वितीय पंचवर्षीय योजना को एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना गया।
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1991 के आर्थिक सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थे। ये सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट और मंदी से उबारने के लिए लागू किए गए थे और इसका उद्देश्य आर्थिक संरचना को स्थिर और प्रतिस्पर्धी बनाना था। मुख्य सुधारों में शामिल हैं: वित्तीय क्षेत्र की सुधार: सरकारी बैंकों और वित्तीRead more
1991 के आर्थिक सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थे। ये सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट और मंदी से उबारने के लिए लागू किए गए थे और इसका उद्देश्य आर्थिक संरचना को स्थिर और प्रतिस्पर्धी बनाना था।
मुख्य सुधारों में शामिल हैं:
ये सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिरता, वृद्धि और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करने में सहायक साबित हुए। इनके परिणामस्वरूप भारत की आर्थिक विकास दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और विदेशी निवेश में भी वृद्धि दर्ज की गई।
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